घर से कोई आता नहीं है शुभी के यहाँ. अमेरिका में रहती है, कौन जाये, माँ-बाप ही आजतक नहीं गए. न शुभी के और न ही अजय के. दोनों पति पत्नी ने अपनी दोनों बेटियों के साथ मिलकर अपनी दुनिया बनाई थी जहां बस उनकी अपनी मर्ज़ी चलती थी. अजय की कोई इच्छा भी नहीं है
की उसके या शुभी के माता पिता उसके पास जाएँ वरना जाने को तो उनके दोस्तों-सहेलियों के माँ-बाप जा ही रहे हैं बेटे- बहु या बेटी-दामाद के पास. अजय ने बहाने बुनकर रखे हैं, अमेरिकन एम्बेसी में अपॉइंटमेंट मिल ही नहीं रहे हैं अगले साल तक, ये कहते हुए नौ साल बीत गए. शुभी की छोटी
बहन समर्थ है, अजय के बहानो को रौंद कर अपना वीजा और खर्चा खुद उठाने में इसलिए वो नौ साल में एक बार गयी। पर अजय के ड्रामो की वजह से पूरी तरह त्रस्त होकर वापिस कभी नहीं जाने का फैसला किया, पर अपना खून पुकारता है सो इसबार गर्मी की छुट्टियों में जब अजय 1 महीने की ऑफ साइट विजिट पर कम्पनी की तरफ से फ्रांस गया तब शुभी की बहन ने चटपट प्लानिंग कर ली,
अमेरिका जाने की. वरना बच्चे कभी ये जान ही नहीं पाएंगे कि छुट्टियों में मौसी के घर जाना क्या होता है, अपने मौसेरे भाई बहनो से लगाव क्या होता है. बच्चो में अपने बचपन की झलक देखने को आतुर शालिनी की इच्छा अमेरिका पहुंचने की ख़ुशी में क्या पैक किया, क्या नहीं इसपे ध्यान ही नहीं दे रही
थी. हेल्पर ने जो पैक कर दिया, वही लेकर वो चल पड़ी. वो भी भारत से दूर किसी दूसरे देश में रहती है जहां से अमेरिका १४ घंटे की उड़ान भर दूर है. घर में खाना बनाने वाली, सफाई करने वाली, बच्चो का ध्यान रखने वाली, और अन्य सुविधाओं की फौज लगी है पर इनसब को छोड़ कर अमेरिका में
खुद ही बर्तन, कपडे धोने को तैयार ख़ुशी ख़ुशी जा रही है सिर्फ इसलिए की बहन और बच्चो के साथ बचपन फिर से जी लेगी. शुभी की छोटी बेटी और शालिनी के छोटे बेटे में सिर्फ ४ महीने का अंतर है, तो ये छुट्टिया जैसे उनको ये बताने का तरीका है की बचपन में अपने कज़िन्स के साथ खेलने का
अनुभव क्या होता है. एक की गलती पर दोनों को डाँट पड़े, एक की बहादुरी पर दोनों की पीठ थपथपाई जाएगी, एक के खाने से दूसरा खाना सीख जाये, एक की कमी को दूसरा छिपाये, एक- दूसरे को डाँट पड़ने से बचाएगा, और यही तो फलसफा है जीवन का. अपनों की, दोस्तों की परवाह करना
सीखने की पहली पाठशाला तो ये छुट्टियां ही हैं. पहुंचते ही बच्चो के कोलाहल से घर गूज उठा. किसी तरह बच्चो को समझा बुझाकर रात 1 बजे सुलाया. 4-5 घंटे बाद आलस से भरपूर बहनें और उत्साह से भरे बच्चों
की आँखें खुली तो जैसे सपना सच हो गया था. ना पढाई ना लिखाई और न ही कोई बंदिश जो आमतौर पर क्लास के दोस्तों के साथ होता है. नींद खुलते ही बच्चे बाहर की तरफ भागे, साइकिल चलाने, होवरबॉर्ड चलाने, स्केटिंग करने, और पड़ोस के बच्चो को ये बताने की उनके घर उनका
बचपन आया है. आस पास अमेरिकन, चाइनीज़ , पोलिश और फिलिपिनो परिवार थे, सबके बच्चे हमउम्र ही हैं. चूँकि छुट्टियां थी और सब एक्सपैट ही थे तो सब मिलकर खूब धमा चौकड़ी करते थे. दो और बच्चो के आने से खुशियां और बढ़ गयी. अंदर बाहर करते हुए बच्चो को चप्पल बाहर उतारने की सुध नहीं रहती। “अरे क्या सीखायी हो बच्चो को, जरा सी अकल नहीं है की चप्पल उतार कर अंदर
बाहर करना चाहिए. यहाँ कामवाली नहीं है, सब खुद साफ़ करना होगा.”- शुभी शालिनी पर चीखी। “दीदी बच्चो को सुध नहीं है वरना बच्चे जानते हैं की बाहर की चप्पल अंदर नहीं लानी है. “हुंह, कुछ सिखाओ वरना ऐसे ही रह जायेंगे.’ शालिनी के दिल में कुछ टूटा पर वो चुप रही. फिर आयी खान पान की बात. शालिनी ने बच्चो को 1-1 ब्रेड पकड़ा दिया की जब तक खाना बनेगा तब तक बच्चो का पेट
भरा रहेगा और वो बेकार में खिन्नायेंगे नहीं. फिर शुभी ने टोका” मैं बच्चो को ब्रेड नहीं देती, मेरे बच्चो को ब्रेड मत दो, मैं खाना बनाकर ही देती हूँ.’ शालिनी हतप्रभ रह गयी, बोली” दीदी देती तो मैं भी नहीं हूँ,, घर पर बावर्ची भी है, जिस दिन बावर्ची नहीं आता उस दिन खुद बना कर देती हूँ , पर अभी बच्चो का ध्यान ज्यादा खेलने पर है ऐसे में भूख पे ध्यान नहीं पड़ेगा, और भूखे रह कर चिढ़ेंगे भी इसलिए
मैंने ब्रेड पकड़ा दिया।” “वो जो भी हो, मेरे बच्चो को मत दो, मुझे बिलकुल पसंद नहीं”-शुभी ने कहा. “ठीक है, कहकर शालिनी मुड़ गयी. इतने सालों से उसे लगता रहा की इस तरह की बेवजह नुक़तेबाज़ी अजय करता है, पर यहाँ तो गंगा की दिशा ही बदल गयी है. बच्चो को रीमाइंड करने के लिए बाहर से अंदर आनेवाले दरवाज़े पर बच्चों के नाम से नोटिस चिपका दिया गया “शानू बीनू, जूते यही उतार कर अंदर आओ” बच्चो ने 2-4 बार ध्यान दिया
फिर अपने ढर्रे पर आ गए, इस बार तो शुभी की बेटी ने वही काम किया, कई बार तो वो बाहर की चप्पल पहन अंदर आ गयी. शुभी ने फिर से बोला “मेरी बेटी कभी ऐसा नहीं करती है, संगत में सीख गयी.” अरे नहीं दीदी, बच्चे अपनी आवेग में आ-जा रहे हैं, कहाँ चप्पल जूते का होश है उन्हें- शालिनी ने कहा. “नहीं,और बच्चे भी आये हैं मेरे यहाँ आस पड़ोस और लोकल दोस्तों के,
तब तो मेरी बेटी नहीं भूलती है नियम कानून.”- शुभी ने कहा। ये तो अच्छी बात है ना दीदी, अपने भाई-बहन में परिधि की पराकाष्ठा नहीं होती और दोस्तों में संयम का अभाव नहीं होना चाहिए, इसकी समझ है अपनी बिटिया को. “क्या अपना-पराया लगा रखा है शालिनी, तुम तो आज आयी हो, वही
लोग यहाँ काम आते हैं मेरे, मुझे कभी लगता ही नहीं की वो अपने नहीं हैं, इसलिए ये सब बात मत करो. ” शालिनी चुप हो गयी. उसे यकीं ही नहीं हुआ की उसकी अपनी बहन ऐसी बातें करेगी जिससे अपना ही दिल दुःख जाये. वो इतनी दूर हो जाएगी की अपने-पराये की सीमाएं धूमिल कर देगी, आँचल पसार कर परायों को अपना बना लेना और बात है और अपनों को अपनापन के दायरे से निकाल कर
परायों की सेना में शामिल करना दूसरी बात है. ” सोचती हुयी शालिनी काम में मदद करने के लिहाज से डिशवाशर में बर्तन लगाने लगी. खीजती हुयी शुभी इधर उधर के कामो को करती हुयी भुनभुना रही थी. “तुम झाड़ू लगा दो, मुझे पसंद नहीं आता है अगर कोई और डिशवाशर लगाए, तुम
दूसरा काम भी तो देख सकती हो”- शुभी के कहने पर शालिनी दूसरे कामो में लग गयी. मन मसोस कर सोचती रही की कहा पीछे छूट गयी उसकी बहन और अजय कितना हावी हो गया शुभी के किरदार पर. उधर से शुभी की बड़ी बेटी सीढ़ियों से आवाज़ लगाती हुयी आयी, “मुम्मा, मुझे
वोलेनटीरिंग के लिए स्कूल जाना है, मुझे देर हो रही है, मुझे कुछ नहीं खाना। शुभी नहाने जा चुकी थी, सो शालिनी ने मान मुनहार करके अपने बेटे के लिए बनायीं पराठा उसे खिला दिया, जबतक शुभी नहाकर आती तबतक बेटी जा चुकी थी. आते ही एकदम चिल्लाई शुभी- “वो चली गयी?” शालिनी ने
कहा-“हाँ कह रही थी जल्दी जाना है, देर हो रही थी उसे.” चिल्लाकर कहा- “बिना खाये चली गयी?”. शालिनी ने कहा” नहीं, मैंने आलू का पराठा बनाया था, वही खा लिया उसने.” “क्यूँ?”-जोर से चिल्लाई, छोटा सा आलू पराठा खाकर पूरे दिन कैसे काटेगी, मैंने ओट्स भिगोकर रखा था, उसे खिलाने के
लिए, तुमने उसे आलू के परांठे का ऑप्शन दिया ही क्यों? आईन्दा कभी अपना दिमाग मत लगाना की मेरी बेटियां क्या खायेगी, अपने बच्चे का तो ढंग से ध्यान रख सकती नहीं , बड़ा चली मेरे बच्चो के रूटीन में टांग अड़ाने.”.
अजीब सी हरकत देखकर शालिनी हतप्रभ रह गयी! मन मर्ज़ी करने की इतनी आदत हो चुकी है की सही गलत और रिश्ते नाते भी भूल चुकी है. धुप बढ़ गयी है, 12 बजने को आये, दोनों छोटे बच्चों को घर बुलाकर खाना खिला देते हैं. फिर घर पे ही खेलेंगे नहा धो कर. किसी तरह बहला-फुसला कर बच्चो को अंदर लाया गया. दोनों को हाथ पेअर धुला कर जब डाइनिंग टेबल पर बैठाया तो शालिनी
का बेटा थका हुआ और जेटलैग होने के कारण सोफे पर धम्म करके बैठ गया ” मुम्मा मुझे यही बैठना है”. शुभी ने कड़क आवाज़ में बोला ” हमारे यहाँ डाइनिंग टेबल पर बैठ कर ही कहते हैं शानू, यही बैठो, तभी खाना मिलेगा नहीं तो नहीं मिलेगा।” “ठीक है मुझे नहीं खाना”- शानू ने कहा तो शालिनी
का दिल पसीज गया. परसो से कुछ नहीं खाया ठीक से, क्या इसी कारण से खाना खिलाना छोड़ दूँ क्यूंकि डाइनिंग टेबल की जगह सोफे पर बैठा है. अजीब कशम कश हो रही थी. पर माँ का दिल, कटोरी में दाल-चावल सान कर सोफे पर बगल में जा बैठी शालिनी. शुभी ने आकर शानू को बांह से पकड़ा और खींचते हुए लाकर डाइनिंग चेयर पर बैठा दिया. “अभी अकल और तमीज नहीं
सीखाओगी तो कभी नहीं सीख पायेगा, तरीका तमीज सिखाओ, सिर्फ दुनियां घूमने से अकल नहीं आ जाती.” मौसी वो भी बड़ी, का ऐसा रूप असलियत में तो दूर, किसी सस्ते साहित्य की किताब में भी नहीं पढ़ी थी. सच ये है की अजीब सी व्यवहार करने वाली बहन को शालिनी पहचान ही नहीं पा रही. सौम्य, सुलझी हुई, साधारण आचरण वाली, कम बोलने वाली सीधी बहन का ये रूप ,वो क्या वो .
धारणा के अनुसार बड़ी बहन शांत ही होती है, मेरी बहन थी भी, अचानक ये रूप उम्र के चालीसवें सावन में देख शालिनी धीरे धीरे टूट रही थी. बहनों के बीच ऐसी बातें होने लगी तो रिश्तों पर से भरोसा ही उठ जायेगा। पुरानी कहावत प्रचलित है- “मरे मैय्या, जियें मौसी” मतलब की बच्चो के अनुसार, माँ हो न हो मौसी हो, ये काफी है, प्रेम की अलग ही पराकाष्ठा होती है मौसी की. पर अपनी बहन का
व्यवहार देख कर शुभी इतनी आहत हुई की उसने एक कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया। अपने पति से कहकर टिकट प्री पोन करवा ली । जहाँ शुभी फ़ोन पर अपनी सहेलियों को शेखी बघारते हुए सुना रही थी की “मेरी बहन आयी है, एक महीने के लिए, काफी व्यस्त हो गयी हूँ मैं, अपने बच्चो की
माँ तो हूँ ही, इसके बच्चो को भी अकल सीखने का काम मैं ही करुँगी। शालिनी को बचपन से ही तौर तरीका और तमीज नहीं थी, अपने बच्चो को वो क्या सिखाएगी ये कहते हुए खिलखिला कर हंसती रही शुभी। इस बात से अनजान की अगले रविवार ही शालिनी अपने बच्चो समेत वापिस चली जाएगी।
न उसके घर पे अब कोई रिश्तेदार आएगा और न ही कोई उसके रूटीन में खलल डालेग। लेकिन इसके साथ साथ परिवार की जो समझ उसकी बेटियों को नहीं होगी इसका खामियाज़ा उसे अपने बुढ़ापे में चुकाना होग। जब बच्चियां परिवार का मतलब ही नहीं समझेंगी और अमेरिका के बड़े से घर में वो अजय के जहरीले तानो के साथ अकेली रह जाएगी ।
-रितिका सोनाली
कहानी- कठोर कदम