विनिता आज की घटना से हतप्रभ -सी वेदना के महासागर में डूब गई।आज जो घर में घटित हुआ,उस अग्नि की तपिश में वह चारों बेटियों के साथ झुलसकर रह गई।पति के रौद्र रूप से उसके मन में दरक रही वेदना का बाॅंध अचानक से टूट पड़ा।
ज़िन्दगी में पहली बार कठोर कदम उठाते हुए चारों बेटियों के सुनहरे भविष्य के लिए पति के सामने विनिता घायल सिंहनी की भाॅंति दहाड़ उठी।उसकी ऑंखों से चिंगारियाॅं बरसने लगीं थीं।मन के अंदर ज्वालामुखी का खौलता लावा शब्दों के रूप में बाहर निकलने लगा।उसने पहली बार पति के समक्ष डटकर कहा -” आप होश में तो हो?अगर हमें बेटा नहीं है ,तो उनमें हमारी बेटियों का क्या दोष?”
विनिता के पति सुरेश का गुस्सा अभी तक शांत नहीं हुआ था। उसने भी तैश में आकर कहा -“हाॅं! मैं बिल्कुल होशो-हवास में हूॅं। मामूली-सी नौकरी में मैं इनके बढ़ते खर्चें को सॅंभाल नहीं पा रहा हूॅं।अगर इनमें से एक भी बेटा रहता,तो मेरे बुढ़ापे का सहारा बनता। चारों शादी कर दूसरे घर चलीं जाऐंगी और मैं बुढ़ापे में खटता रहूॅंगा।ये मेरी ज़िन्दगी का अभिशाप हैं।”
आज विनिता भी खामोश बैठनेवाली नहीं थी।उसने भी जबाव देते हुए कहा -“मुझे नहीं पता था कि आप जैसे विवेकवान और धैर्यशील व्यक्ति बेटियों को लेकर इतनी घटिया सोच रखता है?आपकी इस घटिया मानसिकता की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी!”
बेटियों से बेइंतिहा प्यार करनेवाले सुरेश पर भी उस दिन न जाने कौन-सा भूत सवार हो गया था!उसने एक बार फिर से गरजते हुए कहा -“हाॅं! कल्पना तो मैंने भी नहीं की थी कि एक-एककर तुम पाॅंच बेटियों को जन्म दोगी।एक तो किस्मत से जन्म लेते ही गुजर गई!अपनी सीमित आमदनी मैं इनकी पढ़ाई -लिखाई पर खर्च करुॅं या इनकी शादी के लिए दहेज जुटाऊॅं?आए दिन चारों के खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। इन्हें शादी नहीं करनी है!
ये कंगले की ड्योढ़ी पर बैठकर आसमान झुकाने चली हैं!ये जब तक जिन्दा रहेंगी,तब तक हमारी छाती पर मूॅंग दलतीं रहेंगी।इससे तो अच्छा था कि पहली की तरह ये चारों भी मर गई और होतीं!”
इससे अधिक बुरा बेटियों के बारे में सुनने की हिम्मत विनीता में नहीं थी।ऑंचल से अपनी रुलाई रोकते हुए वह वहाॅं से हट गई।पति का ऐसा रौद्र रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था।पति के इस रूप ने उसकी बेटियों की हर उम्मीद, आकांक्षा और उम्मीदों का गला घोंटने का काम किया था।वह सहमकर ठगी-सी रह गई।
उसे अचानक से अपनी बेटियों का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था। इंसान की आशाऍं जब टूटतीं हैं,तो दिल जार-जार रोता है।पति की बेटियों के प्रति ऐसी सोच से वह मर्माहत थी।उसे जल्द-से-जल्द बेटियों के भविष्य के लिए कठोर कदम उठाने ही होंगे।यही सब सोचते हुए विनीता खुद को संयत रखकर बेटियों के कमरे की ओर बढ़ चली।कमरे के अंदर भय से दुबकी चारों बेटियाॅं धीरे-धीरे सुबक रहीं थीं। दोनों बड़ी बेटियाॅं निशाऔर मीशा परिस्थिति की नजाकत को भली-भाॅंति समझ रहीं थीं।निशा MSC कर चुकी थी और मीना BSC। दोनों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थीं।
निशा ने उस दिन अपनी शादी के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा था -“पिताजी!जब तक मैं आत्मनिर्भर नहीं हो जाती,तब तक शादी नहीं करूॅंगी!”
बेटी की अस्वीकृति से तिलमिलाते हुए सुरेश ने तैश में आकर कहा था -“मैं तुम लोगों के रोज-रोज के बढ़ते खर्चें से तंग आ गया हूॅं।कभी आई ए एस की परीक्षा,तो कभी बैंक की परीक्षा,कभी रेलवे की परीक्षा और परिणाम कुछ भी नहीं। दोनों छोटी के भी खर्चें बढ़ते जा रहे हैं। मैं जल्द-से-जल्द तुमलोगों के हाथ पीले कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति चाहता हूॅं।”
उस समय विनीता ने बीच में पड़कर पिता-पुत्री की बहस को विराम दिया। परिणामस्वरुप पति का गुस्सा उसपर ही वज्र बनकर बरस पड़ा।उस दिन की घटना ऐसा दावानल की तरह था,जिसकी ज्वाला में पूरा परिवार सुलग उठा था।रात का खाना ज्यों -का-त्यों रखा ही रह गया था।सभी का मन इतना कसैला हो चुका था कि खाने की इच्छा मर चुकी थी।
तीनों बेटियाॅं निढ़ाल होकर भूखे-प्यासे हो चुकीं थीं।उनकी ऑंखों से निकले ऑंसू सूखकर लकीर बन चुके थे, परन्तु बड़ी बेटी निशा घुटनों में मुॅंह छुपाकर सुबकती जा रही थी।घर का स्तब्ध सन्नाटा उसके दिल को बेध रहा था।उसकी आहत भावनाऍं विदीर्ण हो रहीं थीं।कंधे पर रखा माॅं का स्नेहिल स्पर्श भी उसके दिल को सुकून नहीं दे रहा था।
उसे एहसास हो रहा था कि बेटी के रुप में जन्म लेकर सचमुच उसने कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो।माॅं का स्पर्श,संवेदना, सांत्वना उसे अर्थहीन लग रही थी।पिता की कटु बातें रह-रहकर उसके हृदय को छलनी कर रहीं थीं । अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उसके पास शब्द नहीं बचे थे।वास्तव में जहाॅं शब्द चूक जाते हैं, वहाॅं मौन मुखर हो उठते हैं।वह रुॅंधे कंठ से माॅं के गले में लिपटकर रो पड़ी।उसकी ऑंखों से अश्रुधारा बह निकली।
विनीता ने बड़े प्यार से बेटी को समझाते हुए चुप कराया। बेटी के समक्ष इस घटना के लिए उसके पिता को दोषी न ठहराकर समाज की मानसिकता को विश्लेषित करते हुए कहा -” हमारा पुरुष -प्रधान समाज आज भी बेटियों की शिक्षा पर बातें करने की बजाय उसकी शादी पर ही बातें करता है।इसी कारण आज तुम्हारे पिता अचानक से तुमलोगों पर बरस पड़े,वरना वे तुमलोगों से बहुत प्यार करते हैं!”
निशा ने भावुक मन से पूछा -“माॅं!क्या लड़की होना सचमुच अभिशाप है?”
विनीता ने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा -“नहीं!बेटियाॅं तो सौभाग्यशाली लोगों को होती हैं!वे तो दुर्गा, लक्ष्मी का रुप हैं।वे अभिशाप कैसे हो सकती हैं? अभिशाप तो हमारे समाज की घटिया मानसिकता,रूढ़ियाॅं, दहेज -प्रथा जैसी कुरीतियाॅं हैं,जिनके कारण लड़कियों का जीवन नर्क बन जाता है। मैंने अपने मन में कठोर फैसला कर लिया है कि अपनी चारों बेटियों को आत्मनिर्भर बनाऊॅंगी,उनका जीवन नर्क नहीं बनने दूॅं गी!”
निशा -” मैं! बिना आत्मनिर्भर बने शादी नहीं करुॅंगी!”
विनीता -” तुमलोग निश्चिन्त होकर अपनी पढ़ाई जारी रखो। तुम्हें जितनी परीक्षाऍं देनी है,जितने फाॅर्म भरने हैं,भरो। मैं अपने सारे जेवर बेच दूॅंगी।मेरा शृंगार तो तुम चारों बेटियाॅं ही हो!”
अपनी बेटियों को समझाकर विनीता अपने कमरे में आ गई।बाहर अमावस की काली रात थी।घर में भी मानो अंधकार की छाया पसर गई हो। सभी के मन में एक अजीब -सी खामोशी थी।आजतक जिस पति पर जान न्योछावर करती आई है,उसके व्यवहार से उसका मन खट्टा हो चुका था।पति के कटु वाक्य तीर से भी नुकीले वाणों की तरह उसके दिल को छलनी कर रहे थेऔर उनसे मिले ज़ख्मों से वह कराह रही थी।आज का तूफान उसे कठोर कदम उठाने के लिए विवश कर रहा था।वह चुपचाप बिस्तर के एक कोने में जाकर लेट गई।
सुरेश भी आज की घटना से मन-ही-मन आहत थे। बार-बार बेचैनी में करवटें बदल रहे थे और खुद को कोसते हुए सोच रहे थे -“अगर कहीं कोई ऊॅंच-नीच हो गई,तो दुनियाॅं मुझ पर ही थूकेगी!मुझे ही ताना मारेगी कि इसे जवान बेटियों की शादी की कोई चिंता नहीं! परन्तु अब मुझे इन बातों की परवाह नहीं है।बेटियाॅं तो मेरे दिल का टुकड़ा है न, फिर भी बहकावे में आकर मैंने उन्हें अभिशाप कहा। यहाॅं तक कि उन्हें मर जाने को कहा।अमावस की काली रात्रि में मेरी बुद्धि पर पर्दा पड़ गया था!”
आत्मग्लानि से उनका शरीर झनझना उठा।अब अपने कहे हुए शब्दों ने उन्हें धिक्कारना शुरू कर दिया।उनके मुख से निकला हुआ एक-एक शब्द नागफनी के काॅंटों की भाॅंति उनकी आत्मा को छलनी कर रहे थे।उनकी बंद पलकों से पश्चाताप के ऑंसू ढ़ुलक पड़े। पश्चाताप की अग्नि में झुलसते हुए नींद की आगोश में समा गए।
आज की घटना से विनीता के मन में बेचैनी का ज्वार -भाटा उठ रहा था। नींद उसकी ऑंखों से कोसों दूर थी। पुरानी यादें दस्तक देकर उसे और अधिक बेचैन कर रहीं थीं।जीवन का सफर भी कितना अजीब है?पल- भर में अचानक से कितना कुछ घटित हो जाता है!उसकी ऑंखों में अतीत चलचित्र की भाॅंति घूमने लगा। साधारण परिवार की विनीता की शादी सुरेश से हो गई।
सुरेश भी साधारण परिवार के ही थे और प्राइवेट नौकरी करते थे।उनकी आय भी बहुत कम थी। परिवार में सास-ससुर थे।एक ननद थी ,जिसकीशादी हो चुकी थी। विनीता ससुराल में काफी खुश थी।मायके में सौतेली माॅं थी,जिसने दसवीं पास करते ही उसकी शादी करवा दी।आगे पढ़ने की उसकी इच्छा अधूरी ही रह गई।इस कारण उसके मन में बस एक ही ख्वाब था कि वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाएगी!
पहली बार माॅं बनने की खुशी में उसके पाॅंव जमीं पर नहीं पड़ रहे थे।अपने अंश को खुद के भीतर महसूस करना ईश्वर का नायाब तोहफा है।समय पूरा होने पर उसने एक प्यारी बच्ची को जन्म दिया, परन्तु डाॅक्टरों की लापरवाही के कारण उसने कुछ ही घंटों में दुनियाॅं को अलविदा कह दिया।उसके जीवन की बगिया में वसन्त खिलने से पहले ही पतझड़ बनकर जा चुका था।
ममता की प्यासी विनीता को ऐसा महसूस हो रहा था,मानो उसके सामने से ममता का अमृत कलश छीन लिया गया हो! रह-रहकर उसकी ऑंखों के समक्ष बच्ची का चेहरा आ जाता।उसकी याद में उसका कलेजा विदीर्ण होकर तड़प उठता। मातृत्व रस चखने से पहले ही वह ममता विहीन हो उठी थी।
सचमुच कहा गया है कि रात कितनी भी अंधेरी क्यों न हो, परन्तु उसके बाद सुबह जरूर आती है।समय के साथ उसने चार बेटियों को जन्म दिया।वह हमेशा ईश्वर को धन्यवाद देती, जिन्होंने उसे एक के बदले चार बेटियों की सौगातें दीं।वह अपनी बेटियों के लालन-पालन में व्यस्त रहती।कभी-कभी उसकी सास पोता न होने के कारण मायूस होती, परन्तु बच्चियों का मासूम प्यारा चेहरा देखकर सबकुछ भूल जाती।
बेटियों की उम्र में पंख लगे होते हैं।कब चारों बेटियाॅंपंख फैलाकर महकने लगीं,पता ही नहीं चला!आरंभ में तो सुरेश बेटियों के प्रति तटस्थ ही रहते, परन्तु बेटियों के प्यार से वे अछूते न रह सकें। धीरे-धीरे बेटियाॅं उनके दिल का टुकड़ा बन गईं, फिर आज बेटियों के प्रति उनका अप्रत्याशित व्यवहार उसकी समझ से परे था। अतीत में विचरण करते-करते वह नींद के आगोश में समा गई।
तिरस्कार का अपदंश विनीता और उसकी बेटियों के लिए बिल्कुल नया था।पिता की चिल्लाहट आर्तनाद बनकर घर में पसर गई,मानो घर का प्रत्येक व्यक्ति सन्नाटे की चादर ओढ़कर खुद को इस घटना का गुनहगार मान रहा था। मजबूरियों की ऑंचल में बेटियों का आत्मविश्वास डोलने लगा, परन्तु विनीता के उठाए कठोर कदम ने बेटियों में हिम्मत, ठहराव और हौसला भर दिया।
विनीता बेटियों का भविष्य सॅंवारने के लिए एक मजबूत संबल बनकर उठ खड़ी हो गई।माॅं के स्नेहिल व्यवहार से बेटियों के मृतप्राय आत्मविश्वास मजबूती से जीवित हो उठे।निशा और मीशा जी-जान से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियाॅं कर रहीं थीं।निशा ने तो दिल्ली जाकर सिविल सर्विसेज का साक्षात्कार भी दे दिया। दोनों बहनों ने प्रतियोगी परीक्षाओं में खुद को झोंक दिया,मानो वे पिता को यह जता देना चाहतीं थीं कि बेटियाॅं बेटों से किसी भी हाल में कम नहीं हैं।वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए जितनी शिद्दत से कोशिश कर रहीं थीं,उतनी ही शिद्दत से पिता के कहे हुए वाक्य उनके अंतस में शोर मचाकर कुछ पाने का जुनून पैदा कर रहा था।
उस दिन की घटना के बाद से पश्चातापस्वरुप सुरेश जी बेटियों से कुछ नहीं कहते,परन्तु परोक्ष रूप से बेटियों को उनका समर्थन प्राप्त था।निशा को पिछली बार सिविल सर्विसेज में असफलता हाथ लगी।उस असफलता से उसके मन में अवसाद का घना अंधेरा एक बार फिर से गहराने लगा था, परन्तु माॅं का मजबूत संबल पाकर जल्द ही सॅंभलने भी लगीं। विनीता दोनों बेटियों का हौसला बढ़ाते हुए कहती -“बेटी!जीवन एक जंग है! जिनमें विश्वास, उत्साह,साहस और लगन होती है,वे ही सामाजिक रूढ़ियों को धता बताकर नई कहानी लिखते हैं। तुम्हारी जिन्दगी में अनिश्चितताओं और हताशा के अंधेरे में भी एक नई ज्योति जरूर जगमगाएगी।हमेशा याद रखना कि हर रात की एक नई सुबह जरूर होती है!”
विनीता का मजबूत सहारा पाकर बेटियों की जिंदगी से अवसाद का अंधेरा छंटने लगा। निराशा भरी निशा को त्यागकर निशा और मीशा ने अपनी कोशिशें जारी रखीं। उन्हें एहसास हो चुका था कि कठिन परिश्रम से ही फिज़ा में फैली धुॅंध छॅंटेगी। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई।निशा और मीशा की जिंदगी की रात की खुशनुमा सुबह हुई।सुबह की सुनहली धूप की स्वर्णिम किरणें फैलकर चारों ओर उजाला भर रहीं थीं। पक्षियों की सुमधुर चहचहाहट मानो कोई शुभ संकेत की ओर इशारा कर रही थी। कुछ देर बाद किसी के आने की आहट हुई। ऑंखों पर चश्मा चढ़ाएं सुरेश जी ने दरवाजा खोला।सामने से डाकिया ने उनसे बख्शीश माॅंगते हुए उनके हाथ में दो रजिस्ट्री लिफाफा थमा दिया।
लिफाफे पर दस्तखत करने के बाद सुरेश जी ने लिफाफे को खोला।उसे पढ़ते ही खुशी और आश्चर्य से सुरेश जी की ऑंखें फैल गईं।एक साथ दो-दो खुशियाॅं! विश्वास नहीं हो रहा था।उनके पूरे शरीर में झुरझुरी-सी हो गई। ऑंखें सावन-भादो की बारिश मानिंद खुशी से बरस पड़ीं। उन्हें बेटियों की कामयाबी पर सहसा विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने रुॅंधे गले से भावातिरेक में बेटियों को पुकारते हुए कहा -“निशा,मीशा सभी लोग जल्दी यहाॅं आओ।”
विनीता चारों बेटियों के साथ झट से आकर खड़ी हो गईं। विनीता और उसकी बेटियों के मन में बेचैनी थी कि आखिर सुरेश जी इतने भावुक क्यों हो रहे हैं?
सुरेश जी बच्चों की भाॅंति बिलखते हुए अपनी पत्नी से कहते हैं -“विनिता!काश!उस दिन मैं उतनी कड़वी बातें नहीं बोलता। मैं जानता था कि मेरी बेटियाॅं एक दिन मेरा नाम जरूर रोशन करेंगी! मैं लोगों की बातों में आकर शादी कराने की जिद्द कर बैठा।काश! मैं उसी समय मैं समझ गया होता कि बेटी और बेटा दोनों बराबर हैं,तो आज मुझे इतनी आत्मग्लानि और पछतावा नहीं होता!”
विनीता और उसकी बेटियाॅं खबर सुनने को बेसब्र थीं। विनीता ने पूछा -“आखिर बात क्या है?साफ-साफ बताइये!”
सुरेश जी -” ये देखो!अपनी निशा और मीशा की नियुक्ति पत्र!निशा आई पी एस ऑफिसर और मीशा बैंक ऑफिसर बन गई है!”
खुशखबरी सुनते ही विनीता की ऑंखों से खुशी के ऑंसू निकल पड़े।उसे ऐसा महसूस हो रहा था ,मानो सारी प्रकृति एक साथ उसकी बेटियों को आशीष दे रही है।उसने अपनी बेटियों की सफलता पर हर्षातिरेक से उन्हें गले लगा लिया। सुरेश जी भी तीनों बेटियों के साथ निशा को सैल्यूट मारकर बच्चों की भाॅंति खुशी से खिलखिलाने लगें। बेटियों के फूल बनकर उनकी जिंदगी सुवासित करने से उनकी ऑंखें नम हो गईं। वातावरण में चारों ओर महकते हुए लाल शोख रंग बिखर गए। सुरेश जी की ऑंखों से एक बार पुनः पश्चाताप के ऑंसू मोती बनकर जमीं पर ढ़ुलक पड़े।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा ( स्वरचित)