कठोर कदम – डॉ.गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

“पाँच बरस हो गए हैं ब्याह हुए और अभी तक इसकी गोद हरी नहीं हुई है । हम क्या अपने पोते का मुँह देखे बिना ऐसे ही मर जाएँगे ?” रोहिणी की सास उर्मिला जी उसके ससुर जी से अपने बेटे,रोहिणी के पति समीर से रोज की तरह प्रलाप कर रही थी ।

शादी के पाँच बरस बाद भी रोहिणी के कोई संतान नहीं हुई थी इसी कारण वह घर में सभी की उपेक्षा और अपमान की भागी बन गई थी जैसे कि इसमें उसका अपना ही दोष हो और वह स्वयँ ही माँ न बनना चाहती हो । यहाँ तक कि दबे पाँव उसके पति समीर को रोहिणी को तलाक देकर दूसरी शादी

की  भी बात की जाने लगी थी । रोहिणी यह सब देखती और दुःखी होती थी पर उसके दुःख से किसी को कोई सरोकार न था उन्हें तो बस आगे वंश चलाने के लिए वारिस चाहिए था । उर्मिला जी अपनी शादीशुदा बेटियों से फ़ोन पर रोहिणी की शिकायतें करती रहतीं । उसके हर काम में नुक्स निकालतीं और रोहिणी घर में एक पराए प्राणी की भाँति सब सुनती-समझती और कुढ़ती रहती ।

समीर और रोहिणी डॉक्टर के पास भी जाते थे और ट्रीटमेंट ले रहे थे और समीर को पूरी उम्मीद थी कि वे माता-पिता बन जाएँगे परंतु बेहद कट्टर और रूढ़िवादी विचारों वाली अपनी माँ को समझाना उसके बस की बात नहीं थी इसलिए वह चुप ही रहता था और रोहिणी भी चुपचाप सास की जली-कटी सुनती रहती थी और कुछ न कहती क्योंकि ज़वाब देने से और ज़्यादा क्लेश होता और घर का सारा

माहौल तनावपूर्ण हो जाता । वह तो अच्छा था कि समीर संकीर्ण दिमाग पुरुष नहीं था और उसने कभी भी रोहिणी को बच्चा न होने का ताना नहीं मारा था लेकिन अपनी माँ की सोच बदल पाना उसके बस की बात नहीं थी । ससुर जी भी हालांकि उर्मिला जी के साथ इत्तेफाक रखते थे पर वे कहते नहीं थे ।

एक दिन पड़ोस वाली सुलोचना जी  घर आईं और  रोहिणी की सास से कहने लगीं, “अरी  तुमने सुना उर्मिला । शहर में सिद्ध स्वामी जी आए हैं । उनके आशीर्वाद से न जाने कितनी बाँझ औरतें माँ बन गईं । तुम भी अपनी बहू को लेकर दिखा आओ ।क्या पता  कुछ बात  बन ही जाय ।”

रोहिणी की सास उर्मिला देवी ने सुलोचना से शहर में आए बाबा का पूरा ब्यौरा लिया और शाम को समीर के घर आते ही रोहिणी को बाबा के पास ले कर जाने का फ़रमान सुना डाला ।

समीर को बाबाओं और अंधविश्वासों में ज़्यादा यकीन न था । लेकिन माँ की बात को काटने का साहस उसमें न था । वह अपनी माँ से कहना चाहता था कि “हम डॉक्टर से ट्रीटमेंट ले रहे हैं । बाबाओं के पास जाने की ज़रूरत नहीं है!” किंतु माँ के आगे बोलने की उसमें हिम्मत न थी ।

सास की ज़िद और घरवालों की चुप्पी के कारण रोहिणी को बाबा के पास जाना ही पड़ा । बाबा की चिकनी-चुपड़ी बातों से रोहिणी को साफ़-साफ़ शातिरी और बदनीयती की बू आ रही थी । घृणा के एहसास से रोहिणी का मन ख़राब हो गया और घर वापस आ कर उसने बाबा के पास जाने से साफ़-साफ़ इंकार कर दिया । उर्मिला जी ग़ुस्से से फुँफकारने लगी थीं,”सारी ज़िंदगी बाँझ ही बनी रहेगी क्या? क्या हमें अपना पोता खिलाने का हक़ नहीं है?” 

अब समीर से भी रहा न गया और उसने भी रोहिणी का पक्ष लेकर अपनी माँ से कह दिया कि ,‘वे लोग डॉक्टर से ट्रीटमेंट ले रहे हैं और उसे इन झाड़फूँक वाले बाबाओं पर कोई विश्वास नहीं है ।’

“माँ आप रोज टीवी,अख़बारों में निकल रही ख़बरें नहीं सुनती हो कि ये झाड़फूँक वाले किस तरह से इलाज़ के नाम पर स्त्रियों के साथ दुराचार और दुर्व्यवहार करते हैं फ़िर भी आप अपनी बहू को इन बाबाओं के जाल में फँसाना चाहती हो ।” समीर और रोहिणी के कठोर कदम से उर्मिला जी आगे ज़िद न कर पाईं और चुप रह गईं लेकिन रोहिणी के प्रति उनकी कटुता और नफ़रत और ज़्यादा बढ़ती ही

गई जिसे रोहिणी नज़रंदाज़ करती रही । डॉक्टर के ट्रीटमेंट से आख़िरकार रोहिणी को माँ बनने का सौभाग्य मिला और समय पर उसने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया । रोहिणी के सास ससुर भी दादा दादी बनने पर बहुत ख़ुश थे लेकिन उर्मिला जी ने कहा कि,”पोता होना चाहिए था ।” 

समीर और रोहिणी दिनों ने एक स्वर में कहा कि, “हमारे लिए यही बेटा और बेटी दोनों है । ईश्वर ने हमें जो ख़ुशी दी है उसको हमें सच्चे दिल से स्वीकारना चाहिए ।” उर्मिला जी चुप रह गईं । जीवन में हर ग़लत बात को न मान कर यदि कभी कठोर कदम उठाने की आवश्यकता पड़े तो हिचकिचाना नहीं चाहिए । रोहिणी और समीर ने  द्रढ़ता और आत्मविश्वास के साथ निर्णय लेकर यह सिद्ध कर दिया था ।

           डॉ. गीता यादवेन्दु

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