Moral Stories in Hindi
राजेश एक मध्यमवर्गीय परिवार का सरल, ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था। एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी करता था। उसके इकलौता बेटा था आदित्य। बहुत ही जिसे बहुत ही लाड़ प्यार से पाला था। एक पल भी आंखों से ओझल हो जाए तो माँ बाप की जान निकलने को हो जाती।राजेश ने अपनी सीमित आमदनी में भी उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया, उसकी सारी इच्छाएँ पूरी करने की भरसक कोशिश की। उसे अपने बेटे से बहुत उम्मीदें थीं — वह चाहता था कि वे अच्छा इंसान बनें, पढ़ाई में आगे रहे और कुछ बनकर समाज में नाम रोशन करे।
लेकिन बीते एक साल में सब कुछ बदल गया था।आदित्य का मन पढ़ाई से उचट गया था। वह मोबाइल में घंटों लगा रहता, सोशल मीडिया, गेम्स और बेकार की वेबसाइटों में उलझा रहता। कई बार राजेश ने देखा कि वह देर रात तक चैटिंग करता है, और सुबह स्कूल जाने से कतराता है। उसकी मार्कशीट देखकर तो जैसे राजेश के पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी। सारे विषयों में बेहद खराब नंबर थे। उसकी दोस्ती भी ऐसे लड़कों से थी जो पूरे मोहल्ले में नशे और हुल्लड़बाजी के लिए मशहूर थे।
बो हर बक्त मोबाइल मांगता, स्कूल से झूठ बोलकर बाहर घूमने चला जाता, माँ-बाप की बातों को अनसुना करता। घर में अनुशासन जैसा कुछ रह ही नहीं गया था। राजेश ने कई बार समझाने की कोशिश की। प्यार से भी समझाया, गुस्से से भी डांटा। लेकिन वो अब सुनता ही नही था उसे लगता था कि उनके पिता पुराने ज़माने के हैं, उन्हें आज की दुनिया की समझ नहीं है।
एक शाम जब अचानक जल्दी राजेश दफ्तर से लौटा तो देखा कि आदित्य अपने कमरे में सिगरेट पी रहा था। सामने रखे मोबाइल में कोई अश्लील वीडियो चल रही थी उसका दोस्त राहुल उसके पास बैठा मुस्कुरा रहा था।उस पल राजेश का दिल बैठ गया।उसने बिना कुछ कहे दोनों को कमरे से बाहर भेजा और खुद अंदर जाकर चुपचाप बैठ गया। रातभर नींद नहीं आई। उसकी आंखों में एक ही सवाल था कि क्या मैं असफल पिता हूँ?
सुबह उठते ही उसने एक कठोर निर्णय लिया।वह चुपचाप बाहर गया, पास के एक बोर्डिंग स्कूल से संपर्क किया और अगले हफ्ते के लिए उसका दाखिला बहां करवा दिया। यह स्कूल सख्त अनुशासन के लिए जाना जाता था, जहाँ मोबाइल, टीवी, सोशल मीडिया कुछ नहीं चलता था सिर्फ पढ़ाई, खेल, योग, और चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जाती थी।
जब उसने ये बात बच्चों को बताई तो घर में तूफान आ गया।पापा, आप हमारे दुश्मन हैं? आदित्य चीखा मैं वहाँ नहीं जाऊँगा! आप हमें कैद करना चाहते हैंसविता भी रो पड़ी, इतना सख्त फैसला? कहीं बच्चा आपसे नफ़रत न करने लगे।राजेश ने कहा,अगर आज मैंने सख्ती नहीं दिखाई, तो कल ये बच्चा खुद अपनी ज़िंदगी तबाह कर लेगा। मैं आज कठोर बनूंगा ताकि ये कल सही राह पर चल सके।
एक हफ्ते बाद, भारी मन से, सविता के आँसू और आदित्य के विरोध के बावजूद, राजेश उसे बोर्डिंग स्कूल में छोड़ आया।शुरुआत के कुछ महीने कठिन थे।आदित्य को वहाँ का अनुशासन असहज लगता था। मोबाइल की लत छूटना मुश्किल हो रहा था। लेकिन धीरे-धीरे उसे वहां की दिनचर्या में एक अलग सुकून मिलने लगा। सुबह की प्रार्थना, नियमित कक्षाएं, खेलकूद, स्वच्छ वातावरण, प्रेरक कहानियाँ, ध्यान और आत्मचिंतन की आदत ने उनमें बदलाव लाना शुरू किया।
आदित्य को वहाँ के गणित शिक्षक बहुत अच्छे लगे। उसने खुद से पढ़ाई करना शुरू किया उसकी विज्ञान में दिलचस्पी जगी और वह स्कूल की लैब में प्रयोग करने लगा।छह महीने बीते अब वे जब कभी राजेश से फोन पर बात करता, तो आवाज़ में बदला हुआ लहजा होता विनम्र, शांत और आत्मविश्वास से भरा। उसने मोबाइल की ज़रूरत को पीछे छोड़ दिया था। ववो अब लक्ष्य की बात करता भविष्य की योजना बनाता। राजेश हर बार बात करके खुद को मजबूत महसूस करता।
एक साल बाद जब गर्मियों की छुट्टियों में वो घर लौटा, तो राजेश और सविता दोनों हैरान रह गए। आदित्य बिल्कुल बदल चुका था न केवल व्यवहार में, बल्कि चेहरे पर भी एक आत्मसम्मान की चमक थी। पापा आपने जो किया उसके लिए हम आपका शुक्रिया नहीं कर सकते आपने हमें बचा लिया आदित्य ने कहा।राजेश की आँखों में आँसू आ गए। वह कुछ नहीं कह पाया बस आदित्य को गले लगा लिया।
उस दिन राजेश को अहसास हुआ कभी कभी एक पिता को वह फैसला लेना पड़ता है, जो दिल को तोड़ता है, पर बच्चों का भविष्य संवार देता है। समाज भले उसे कठोर कहे, पर वही कठोरता बच्चों को बिगड़ने से बचा सकती है।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश