Moral Stories in Hindi
आज रविना और उसकी जेठानी प्रिया दोनों ही तैयार होकर ,अपनी ननद यानि सुप्रिया के यहां जा रहीं हैं। रविना बैंक में नौकरी करती है ,तो उसकी जेठानी किसी आई.टी. कम्पनी में मैनेजर के पद पर हैं। दोनों ही ,अपने को आज के जमाने की ,सफलतम महिला समझती हैं ,और इस बात का उन्हें अहंकार भी है। उनकी ननद सुप्रिया भी पढ़ी -लिखी, नौकरीपेशा महिला रह चुकी है, किन्तु उसने परिवार के लिए अब नौकरी छोड़ दी है। ख़ैर अब तो उनके बेटों की बहुएं आ चुकी हैं। भरा-पूरा परिवार है ,दोनों बेटे अच्छे -अच्छे पदों पर कार्यरत हैं।
चलो ! जी मैं तो तैयार हो गयी,बाहर जाकर देखिये !आपकी भाभी अभी तैयार हुई या नहीं रविना अपने पति से बोली।
हाँ ,अभी जाता हूँ ,कुछ देर पश्चात वो, रविना को आवाज लगाता है ,आ जाओ ! मैं गाड़ी बाहर निकाल रहा हूँ। रविना बाहर आकर अपनी जेठानी को देखती है ,तो उसका चेहरा उतर जाता है ,उसने गले में हीरों का हार पहना हुआ था, दोनों के वेतन में बहुत अंतर था किन्तु दोनों एक दूसरे से मन ही मन प्रतियोगिता करती रहती थीं। एक दूसरे को देख, खुश रहने का बाहरी दिखावा करती थीं, वैसे अंदर ही अंदर एक दूसरे से जलती भी थीं। अपनी जेठानी को ‘हीरों का हार’ पहने देखकर, रविना मुस्कुराई और बोली -दीदी !यह हार तो बहुत अच्छा लग रहा है , कब लिया ?
अबकि बार ”शादी की सालगिरह” पर इन्होंने दिलवाया था ,
बहुत ही सुंदर है ,चिढ़ते हुए रविना बोली और मन ही मन अपने पति को कोस रही थी, इन्होंने तो आज तक मुझे कोई हार नहीं दिलवाया और इनके भाई को देख लो ! अपनी पत्नी के लिए कितना सुंदर हार लिया है ? दीदी, के यहां से आ जाऊं, तब इन्हें बताऊंगी ,मन ही मन जल उठी।
प्रिया ,रविना का चेहरा देखकर समझ गयी और बोली – ये हार ऐसे थोड़ी ही दिलवाने वाले थे, वह तो मेरा वेतन अच्छा है, तो थोड़े पैसे मैंने भी डाले हैं,वो उसे जतला देना चाहती थी ,कि मेरी होड़ न करे ,क्योंकि मेरा वेतन उससे ज्यादा है।
दोनों गाड़ी में बैठ गई और दोनों ही एक -दूसरे को देख रही थीं , किसने कैसी साड़ी पहनी है, कैसी चूड़ी पहनी है, कितनी अंगूठी पहनी है? इत्यादि।
अपनी ननद के घर पहुंच कर, दोनों पैर छूने के लिए झुकती हैं, तब सुप्रिया भावुक होकर उन्हें गले लगा लेती हैं। अपने भैया- भाभी को, बिठाकर उनके लिए पानी लाती है।
तब रविना गिलास उठाते हुए बोली – दीदी !आपकी बहुएं कहां हैं ? अब इस उम्र में,भी आप ही काम कर रही हैं।
दोनों आराम कर रहीं हैं, अभी थोड़ी देर में उन्हें उठा देती हूं। सुबह से दोनों काम कर रही थीं , थक गई थीं तब मैंने कहा -काम के साथ आराम भी जरूरी है,भोजन करके थोड़ा आराम कर रही हैं ।
रविना और उसकी जेठानी को अपनी नौकरी पर घमंड था इसीलिए वो बोली -नौकरी तो करती नहीं है, तो क्या अब उनसे घर के काम भी नहीं हो रहे हैं ?
अभी तो बताया, कि दोनों सुबह से काम में लगी हुई थीं, और अब थोड़ा आराम करने गई हैं ,दोनों के छोटे बच्चे भी हैं ,देर -सवेर उन्हें जगाते रहते हैं। वैसे तो उन्हें आराम करते हुए उन्हें आधा -पौना घंटा हो गया है फिर भी मैं सोचती हूं, अपने आप ही, उठकर बाहर आ जाएगीं।
वही तो मैं कह रही हूं, आजकल घर का काम करना कोई नहीं चाहता, नौकरी तो सब कर लेते हैं किंतु आपने भी जिद पकड़ ली थी कि मुझे बिना नौकरी वाली लड़की चाहिए अब कम से कम वह नौकरी कर रही होती तो घर में चार पैसे आते। घर के कामों में आराम भी मिल जाता है, हम नौकरी वालों को तो आराम भी नहीं मिलता।
सुप्रिया जी उनकी बातें सुन रही थीं , तब वो बोलीं -‘काम तो काम ही होता है, वह चाहे घर में हो या दफ्तर में, परिश्रम तो दोनों में ही है। वो कहना तो नहीं चाहती थी, किंतु जब भाभियों ने बात छेड़ दी थी, तब वो बोलीं -घर का काम भी काम ही होता है , बस अंतर इतना है ,कि उसमें हमें पैसे नहीं मिलते, उस प्यार और अपनेपन की कोई कीमत भी नहीं लगा सकता। यूं तो पैसे में, बहुत सी
कामवालियां मिल जाती हैं किंतु घर को संभालने वाली भी तो होनी चाहिए। हां, मैं मानती हूं, कि मैंने आज के समय में ऐसा ” कठोर कदम” उठाया किंतु उठाना भी आवश्यक था क्योंकि मैंने कई ऐसी नौकरीपेशा महिलाओं को देखा है ,वे न ही घर में ,एक पैसा देती हैं और न ही घर के काम में सहायता करती हैं और एहसान दिखाती हैं ,हम कमा रहे हैं। क्या महिलाओं के कमाने से ही घर- परिवार चलते हैं ?
दीदी ! आप कौन सी दुनिया में जी रही हैं , आजकल महंगाई बहुत है, जब तक दोनों पति-पत्नी न कमाये तो खर्चे पूरे नहीं पड़ते।
यह मैं मानती हूं, कि खर्चे बहुत हैं, महंगाई भी है किंतु क्या पहले महिलाएं घर पर रहकर कार्य नहीं करती थीं तो उनके खर्चे पूरे नहीं पड़ते थे और जिन्हें काम करना होता है ,वो घर पर रहकर भी कर लेती थीं , अब तुम मुझे ही देख लो !घर -परिवार के लिए मुझे अपनी लगी लगाई नौकरी छोड़नी पड़ी। जिस परिवार के लिए हम इतना परिश्रम कर रहे हैं उस परिवार को देने के लिए, हमारे पास समय ही
नहीं है। जब नौकरी करते हैं तो खर्च भी तो बढ़ ही जाते हैं। तुम नए-नए कपड़े खरीदोगी , सिलाई के लिए बाहर कपड़े सिलने दोगी, कामवाली लगाओगी , वैसे घर में देने के लिए, तनिक भी समय नहीं होता ,बच्चे पढ़ रहे हैं, क्या कर रहे हैं ? कुछ पता नहीं रहता। मात्र पैसा कमाना ही सब कुछ नहीं होता, परिवार के लिए, हम सोचते हैं और उसके लिए इतना परिश्रम करते हैं, कोई बीमार हो जाए उसके पास बैठने के लिए, दो शब्द बोलने के लिए,दवाई देने के लिए भी समय नहीं है।
पहले समय में भी, तो औरतें गृहस्थी ही संभालती थीं और अन्य कार्य भी करती थीं, महिलाएं घर से बाहर कब निकली है ? जब उनके काम की किसी ने कोई सराहना नहीं की, उन्हें पूरा-पूरा दिन और कभी-कभी अर्धरात्रि तक काम करना पड़ जाता था, लेकिन कभी उनसे, किसी ने दो बोल प्यार के नहीं बोले। उनके काम को सराहना नहीं मिली इसलिए आगे आने वाली पीढ़ी को हम पढ़ाने लगे,ताकि वो अपने ”पैरों पर खड़ी हो सकें” लेकिन मैंने महसूस किया, कि अब घर बनने की बजाय टूट रहे हैं,
नौकरी पेशा लड़की का, सोचने का नजरिया अलग ही हो जाता है। अब जरूरी तो नहीं कि वह क़ीमती ज़ेवर ही पहने, तभी सुंदर लगेगी। सुंदरता तो स्वयं से है, मन के विचारों से है, और कुदरत ने सुंदरता पहले ही दी होती है , उसे तो थोड़ी सी सजावट देनी होती है और ये सब चीजें कितनी देर के लिए हैं ? फिर लॉकर में ही रखी जाती हैं।बहु नौकरी वाली हो तो ,घर सूने पड़े रहते हैं ,आजकल तो
लड़कों की दूर -दूर नौकरी लगने से वैसे ही रिश्ते दूर होते जा रहे हैं। कम से कम जो अपने पास हैं ,उन्हें तो संभाल लें। दूर रहने से अब बहुओं को भी आदत नहीं रही कि परिवार के साथ रहें। बहुत से माता -पिता तो बेटे के साथ ही बहु को भेज देते हैं ,जिसके बाद ,वो चाहती ही नहीं ,कि कोई उसकी ससुराल से आये। ये सब गलतियां तो हम ही कर रहे हैं ,कुछ ”कठोर कदम ”उठाकर हमें ही टूटते रिश्तों को ,घरों को बचाना है।
सुप्रिया के ये शब्द सुनकर, मन ही मन रविना खुश हो गई और उसने अपनी जेठानी की तरफ देखा। तभी कुछ देर पश्चात, उनकी बहू, एक ट्रे में चाय लेकर आती है ,आते ही, मामा -मामी के पैर छूती है। दोनों बहुएं उसे देख रही थीं , बाइस -तेईस वर्ष की सुंदर प्यारी सी लड़की थी, उसने भी हल्के जेवर पहने हुए थे, लेकिन उनके सामने, वह अलग ही खिल रही थी, जानबूझकर रविना की जेठानी ने उससे पूछा -क्या सारा दिन घर में काम करती हो, या कुछ और भी कर रही हो।
आपको मम्मी जी ने बताया नहीं, मैं ऑनलाइन कार्य करती हूं, ऐसा कार्य, जो खाली समय में ही, घर पर बैठकर किया जा सकता है। इसमें मम्मी हमारी बहुत सहायता करती हैं, रात को मैंने 11:00 बजे तक काम किया था इसलिए मम्मी ने हमें उठाया नहीं। अब मुझे लगता है, कि मम्मी जी ने जो भी कदम उठाया था वह सही था। घर पर रहकर, घर का ध्यान भी रखा जा सकता है, और हम अपने को ‘अपग्रेड’ भी कर सकते हैं।
तुम कहना चाहती हो ,हम नौकरी पेशा महिलाएं गलत कर रहीं हैं।
नहीं, मैंने ऐसा नहीं कहा।
बहु !तुम जाओ !यहाँ मैं हूँ ,उनके कहने पर वो अंदर चली गयी ,तब सुप्रिया जी बोलीं -हम भी पढ़े -लिखे हैं ,घर के काम भी किये हैं किन्तु आजकल की लड़कियां आत्मनिर्भर होने के साथ -साथ उनकी सोच विद्रोही ज्यादा हो गयी है,रिश्तों को निभाना नहीं चाहतीं ,अरे वो ससुराल में तो तब निबाहेगी ,जब अपने घर में घरवालों की नहीं सुनती। इच्छानुकूल जीती हैं ,रिश्ते को न निभाकर ,शीघ्र
ही तोड़ने में विश्वास करती है ,तभी तो तलाक के केस बढ़ रहे हैं। यह एक लम्बा विषय है ,सबसे बड़ी बात तो ये है ,घर बनाने हैं तो घर बनाने वाली दफ्तरों में हो या घर में ,उनके काम को सराहा जाये ,उन्हें नकारा न जाये। देखो !तुम्हें सही लगता है या गलत किन्तु मुझे मेरे परिवार को बनाये रखने के लिए ,जो क़दम उचित लगा ,मैंने उठाया और आगे भी ,परिवार के लिए कुछ ‘कठोर कदम ”उठाने पड़े तो उठाउंगी।
✍🏻लक्ष्मी त्यागी
#कठोर कदम!