कसूर तुम्हारा भी है – विमला गुगलानी :  Moral Stories in Hindi

     रात के दस बजे बेटी अनन्या को अचानक बैग लेकर अकेली आई देखकर सुलभा जी को बिल्कुल हैरानगी नहीं हुई। कौनसा ये पहली बार हुआ। सात साल की शादी में वो कई बार ऐसा कर चुकी है।एक दो दिन रहती है,दिमाग ठंडा हो जाता है तो वापिस चली जाती है।

     अब सुलभा और उसके पिता रजनीश उसे समझा समझा कर थक चुके है, वो तो उनका दामाद हर्ष बहुत समझदार है और दो जुड़वा बच्चे एक बेटा और एक बेटी लवी और कुशा ने उनहें जोड़कर रखा है और अनन्या की सास स्नेहा  निहायत ही परिवार जोड़ कर रखने वाली घरेलू और संस्कारी औरत है, तभी बेटे का घर बसा हुआ है और सुलभा और रजनीश भी अपनी बेटी को अच्छे से जानते है।

       स्नेहा के बेटा हर्ष और बेटी रजनी है, रजनी की शादी हर्ष से पहले ही हो गई थी। अनन्या से हर्ष की अरेंज मैरिज है, किसी जानकार ने रिश्ता बताया और दोनों पक्षों को में सब ठीक लगा और धूमधाम से शादी संम्पन हुई। अनन्या की बड़ी बहन नीरजा भी शादीशुदा है और अपने घर में आराम से रह रही है, कभी कभार तीज त्यौहार पर ही आती है, लेकिन अनन्या शुरू से ही घंमडी और नकचढ़ी है, घर के काम में जरा भी दिलचस्पी नहीं।

      माना कि पैसे देकर सब मिल जाता है लेकिन घर के कामों की और कुछ ध्यान तो देना ही पड़ता है। कामवालियां भी तभी सही काम करती है, अगर उनहें अच्छे से समझाया जाए , उन पर नजर रखी जाए। और बच्चे तो मां के हाथ का खाना ही पंसद करते है। 

      अनन्या खूब पढ़ी लिखी है और शादी से पहले से ही किसी बड़ी इंटरनैशनल कंपनी में काम करती है। साल में दो बार मीटिगं के लिए विदेश भी जाती रहती है। 

     किसी प्रकार की कोई कमी नहीं घर में। उसके ससुर भी अच्छी पोस्ट से रिटायर है। शादी के अगले साल ही उसके जुड़वा बच्चे हो गए, जो कि उसकी सास ने बहुत प्यार से पाले। 

      घर में नौकरानी हर समय रहती है। अनन्या की सास सिरफ इतना ही चाहती है कि आफिस से आकर वो कुछ समय अपने बच्चे संभाले और रसोई पर ध्यान दे। काम तो नौकरानी बेला कर ही देती है।

     लेकिन अनन्या तो अपने मूड की है। घर में कोई आए जाए यहां तक कि चार महीने बाद ननद आए तो भी वो अपने मूड से कमरे से बाहर आएगी।शनि ईतवार को देर तक सोए रहना, शाम को घूमने निकल जाना। स्नेहा ने कभी कुछ नहीं कहा। कई बार मन होता है कि बहू अपने हाथ से चाय बना कर या फल काटकर साथ बैठे। 

   परतुं अब तो उन्होंने सोचना भी बंद कर दिया है। जो संभव ही नहीं वो सोचना ही क्यों। घर का सारा खर्च हर्ष के पिताजी देखते है, सी. ए. होने के नाते हर्ष की बहुत अच्छी कमाई है, और वो पिताजी को एक निशचित रकम हर महीने देता है।

     अनन्या ने कभी घर पर कुछ खर्च नहीं किया, उसकी मां ने उसे कई बार समझाया कि सबसे मिलजुल कर रहा करे, भले ही कोई उससे पैसे न मांगे लेकिन वो अपने सास ससुर ननद को जन्मदिन, एनवरसिरी पर उपहार तो दे सकती है।परंतु बात फिर वही। 

     कुछ महीने पहले अनन्या के ननदोई का एक्सीडैंट हो गया, वो तो खुशकिस्मती से बचाव हो गया। सब गए लेकिन अनन्या नहीं गई, फोन पर बात कर ली। कहने लगी, डाक्टर इलाज कर तो रहें हैं, मेरे जाने से क्या हो जाएगा। स्नेहा ने कभी कुछ नहीं कहा था, लेकिन उनके दिल को बहुत गहरी ठेस लगी। 

     स्नेहा की बड़ी बहन विदेश से कुछ दिनों के लिए रजनीश की शादी के बाद पहली बार आई, लेकिन अनन्या ने जरा भी अपनापन नहीं दिखाया। परिवार में रहकर भी वो अलग थलग ही रहती।ऐसी घटनाएं घटती रहती। 

     जब घर में कोई मेहमान आता कुछ काम होता वो मायके चली आती, बच्चों को भी वहीं छोड़ आती।

पिछले चार दिन से स्नेहा की तबियत ठीक नहीं थी, बी. पी. बढ़ गया था तो वो बच्चों को अनन्या के आने के बाद उसके पास भेज देती। 

     अब बच्चे तो ठहरे बच्चे, अनन्या के आराम में खलल पड़ा तो उसने बच्चों को एक एक चांटा जड़ दिया। बात बढ़ गई तो मैडम बैग उठाकर पहले की तरह मायके चल दी। आठ दस किलोमीटर की दूरी पर ही तो घर था।गाड़ी उठाओ और चल दो, पूछने या बताने की कभी जरूरत ही नहीं होती। जिसको चिंता होती फोन कर लेता।

        सुलभा ने कुछ पूछा नहीं और उसने बताया नहीं। लेकिन हमेशा शांत रहने वाला हर्ष अबके गुस्से में था। अगले दिन उसने फोन पर सास को कहा कि अनन्या को वहीं पर रखे, वापिस भेजने की जरूरत नहीं।

    हर्ष की मां की बीमारी, जीजा के एक्सीडैंट के समय अनन्या के व्यवहार से हर्ष का ह्रदय  सचमुच बहुत आहत हुआ था।वहां कुछ चांस ऐसा हुआ कि अनन्या का पैर बाथरूम में फिसल गया और उसके काफी चोट लगी। 

    अनन्या को बैड रैस्ट की हिदायत हुई। सूचना देने पर भी ससुराल से कोई नहीं आया। 

   अब अनन्या बिस्तर पर पड़ी बच्चों से मिलने के लिए तरस रही थी।हर्ष को फोन करती है, लेकिन चार दिन हो गए , कोई नहीं आया।बेटी कसूर तुम्हारा भी है, सुलभा ने कह तो दिया पर आखिर मां ठहरी।  सुलभा भी क्या करे, बेटी को कई बार समझाया अपना व्यवहार सुधारने के लिए, कुछ आप आगे बढ़ो कुछ दूसरा बढ़ता है, जैसे ताली बजाने के लिए दो हाथों की जरूरत पड़ता है, उसी प्रकार प्याऱ , मनुहार , फिक्र, देखभाल इत्यादि भी दोनों और से होता है।अनन्या को अब गल्ती का सचमुच अहसास हो गया। डाक्टर दवाई देता है मगर अपनों का साथ कितना जरूरी है।

        सुलभा ने हर्ष को फोन किया और अनन्या ने रोते हुए माफी मांगी, ज्यादा कुछ कह तो नहीं पाई लेकिन उसके आंसूओं ने बहुत कुछ कह दिया। अगले दिन सारा परिवार अनन्या से मिलने आया और जब तक वो ठीक नहीं हो गई, सबने खूब उसकी देखभाल की। उसे अपनी गल्ती का अहसास हो गया था। 

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

मुहावरा-एक हाथ से ताली नहीं बजती।

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