काश…. – संगीता अग्रवाल

” क्या बात है अंतरा क्या सोच रही हो ऐसे गुमगुम बैठी?” मासूमी अपनी दोस्त के घर पहुंच उसे गुमसुम देख बोली।

” कुछ नही यार बस ऐसे ही !” अंतरा अनमनी सी बोली।

” ऐसे तो नही कोई तो बात है ?” मासूमी ने जैसे ही अंतरा के कंधे पर हाथ रखा उसकी कराह निकल गई।

” आह!” 

” क्या हुआ अंतरा … ओह नो ये क्या है किसने किया ये सब …?” अंतरा की कराह सुन जैसे ही मासूमी ने अंतरा का सूट थोड़ा हटाया तो वहां जख्मों के निशान देख बोली।

” ये मेरे पति का तोहफा है जो कल शादी की सालगिरह पर दिया उसने !” अंतरा नम आंखों से बोली।

” पर क्यों ?” मासूमी लगभग चीखते हुए बोली।

” उसे अक्सर मुझपर शक रहता है मेरी सुंदरता उसकी नजर में चुभती है उसे लगता है मेरे जाने कितने यार होंगे इन सबकी फ्रस्टेशन उतारने को वो पीकर मुझपर अत्याचार करता है !” अंतरा फफकते हुए बोली।

” और तूने सहन कर लिया ये सब पलट कर दो नही मारे उसके …और अपने मम्मी पापा को नही बताया !” मासूमी गुस्से में बोली।

” मम्मी को तो शुरू शुरू में दो चार बार बताया था पर उन्होंने यही कहा धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा अब वही तेरा घर है तुझे वहीं रहना है !” अंतरा बोली।

” धीरे धीरे ठीक हो जायेगा पर क्या ठीक हो जायेगा तुम्हे मार खाने की आदत पड़ जायेगी या तुम्हारा पति मार मार कर थक जाएगा ? तुम राज से कितना प्यार करती थी मैंने कहा भी था उससे शादी कर लो पर तुम्हे तो अपने मां बाप की फिक्र थी ना ।” मासूमी गुस्से में बोली।

” मासूमी मैं एक गैर बिरादरी के लड़के साथ भाग जाती तो मम्मी पापा पर क्या बीतती तू खुद सोच ना !” अंतरा बोली।

” और जो तेरे मां बाप ने किया… अरे क्या हो जाता जो वो तेरी शादी एक गैर बिरादरी के लड़के से करवा देते कम से कम तू खुश तो रहती। अब वो बहुत खुश होंगे न तेरी शादी अपनी बिरादरी में करवा कर क्योंकि गैर बिरादरी का लड़का शादी करके खुश भी रखता तो बदनामी थी पर बिरादरी का लड़का मारता है दुखी रखता है पर ये तो तसल्ली है उन्हे की चलो बिरादरी वाले से ही मार खा रही है !” मासूमी गुस्से में बोली।

” कैसी बातें कर रही है यार तू वो ऐसा क्यों सोचेंगे उन्होंने तो मेरी खुशी ही चाही थी पर …!” अंतरा बोली।

” अंतरा काश तेरे घर वालो ने तुझे समझा होता तेरे प्यार को समझा होता या काश तुम ही मेरी बात मान राज के साथ भाग गई होती तो आज तुम्हारी जिंदगी कुछ और होती। बहुत अफसोस होता है मुझे ऐसे मां बाप की सोच पर जो बिरादरी के लड़के के लाख एब भी स्वीकार कर लेंगे पर गैर बिरादरी लड़का कितनी ही अच्छा हो उसमे एब ही ढूंढेंगे !” मासूमी बोली।

” सब किस्मत की बात है मासूमी मेरी किस्मत में यही है शायद !” अंतरा आंख के आंसू पोंछती हुई बोली।

” किस्मत खुद से बदली जाती है अंतरा तुम पढ़ी लिखी हो विरोध क्यों नही करती अपने ऊपर हुए अत्याचारों का क्यों सह रही हो सब मां बाप साथ नहीं तो क्या सारी जिंदगी पिटती रहोगी !” मासूमी उसके पास बैठती हुई बोली। उसकी हालत देख मासूमी को दुख भी हो रहा था गुस्सा भी आ रहा था।

“पर मासूमी मैं कैसे वो भी अकेली !” अंतरा डरते हुए बोली।

” जब तू ये सब अकेले सह सकती है तो इससे बाहर भी अकेले आ सकती है बस कोशिश करने की देर है रही तेरे मम्मी पापा की बात वो अगर तेरा साथ नही देते तो बेहिचक मेरे पास चली आना पर हां पहला कदम तुम्हे खुद बढ़ाना होगा उसमे मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगी !” मासूमी के इतना कहते ही अंतरा कुछ सोचने लगी।

” सोच मत अंतरा कल को कही ऐसा ना हो तू इस बात का अफसोस करे की काश मैंने उस दिन मासूमी की बात मानी होती तो इस नरक से निकल जाती !” मासूमी ने समझाया।

” नही मासूमी अब मेरी जिंदगी में काश की कोई जगह नही होगी !” अंतरा आत्मविश्वास से बोली और आंसू पोंछ उठ खड़ी हुई।

” मेरे पीछे से अपनी दोस्त को बुला मेरी बुराई की जा रही है पर ये मेरा घर है तुम ये भूल गई यहां मेरी इजाजत के बिना कोई नही आता !” तभी वहां अंतरा का पति विमल आकर गुस्से में चिंधाडा।

” शादी करके आई थी वो भी दान दहेज के साथ तो इस घर पर मेरा भी उतना ही हक जितना तुम्हारा तो मैं किसी को भी बुला सकती हूं यहां समझे तुम!” अंतरा गुस्से में बोली।

” वाह मेरी बिल्ली मुझे ही म्याऊं सहेली को देख पर निकल आए रुक अभी रात की मार भूल गई शायद तू!” ये बोल विमल अपनी बेल्ट खोलने लगा अंतरा एक बार तो डर गई पर फिर हिम्मत करके उसने विमल को धक्का दे गिरा दिया और दहाड़ी।

” अपने हाथों को अपने कंट्रोल में रखो वही अच्छा है रही तुम्हारे घर की बात तो वो तुम्हे मुबारक मैं जा रही हूं यहां से अब तुमसे मुलाकात कोर्ट में होगी वो भी सुबूतों के साथ !” अंतरा अपने जख्मों की तरफ इशारा कर बोली। और मासूमी का हाथ पकड़ बाहर निकल गई। अपनी जिंदगी के काश से दूर…. बहुत दूर। जाते हुए वो यही सोच रही थी उसके माता पिता अपने हो उसका दर्द नहीं समझ सके उसका साथ नहीं दे सके और मासूमी गैर होकर उसके लिए इतना कुछ करने को तैयार हो गई आज अगर मासूमी उसे न समझाती तो उसकी जिंदगी काश… बनकर रह जाती।

दोस्तों मां बाप का दिल दुखा उनकी बदनामी कर घर से भाग जाना गलत है पर मां बाप का बिरादरी में शादी करने के चक्कर में बेटी को ऐसी जगह ब्याहना भी गलत है और उसपर उसे सब सहने की सीख देना तो और भी गलत है। साथ ही लड़कियों का खुद भी सब सहना अपराध को बढ़ावा देने जैसा है । अपनी तरफ उठते पहले हाथ को ही रोक देना चाहिए फिर वो हाथ पति का ही क्यों ना हो वरना जिंदगी में बहुत से काश हमेशा परेशान करते रहते है।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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