झमाझम बारिश की आवाज़ सुनाई दे रही थी। रात के 9:00 बजे थे पर बारिश की वजह से आधी रात वाली खामोशी थी। रात का खाना निपटाकर कविता अपने कमरे में लेटी थी और फोन पर अपने पति प्रेम से बातें कर रही थी। प्रेम एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर गया था, अपने दफ्तर के काम से। कविता सात माह की गर्भवती थी। वह अपने दिन भर की बातें प्रेम से वीडियो कॉल पर बता रही थी।
उसके बाद उसने फोन रख दिया और सोने लगी। थोड़ी देर में उसके पेट में तेज़ दर्द उठा, जो आया और चला गया। कविता उठकर बैठ गई और इस दर्द की वजह सोचने लगी, उसका यह पहला बच्चा था, पर उसे इतना तो पता था कि अभी बच्चा आने में समय है। वह यह सब सोच ही रही थी, तभी वह
दर्द फिर से आया और इस बार थोड़ी देर से गया। वह घबरा जाती है और उठकर अपने सास ससुर के कमरे में जाकर अपनी सास से कहती है, उसकी सास (शोभा जी) कहती है, इस समय में कभी-कभी ऐसा होता है, कितना कहती हूं तुम्हें, थोड़ा चला फिरा करो, घर के काम किया करो, पर मेरी कौन सुनता है भला?
अशोक जी (कविता के ससुर जी): ओफ ओह शोभा! कभी-कभी तुम भी हद ही कर देती हो, वह अपनी समस्या बता रही है और तुम उसे अस्पताल ले जाने के बजाय ताने सुना रही हो? बहू अपने डॉक्टर को फोन लगाओ और कहो कि हम अभी आ रहे हैं।
कविता: पापा जी! मेरी डॉक्टर शहर से बाहर है, पर अस्पताल में कोई और तो मिल ही जाएगा। पर वहां जांऊ कैसे? इतनी रात ऊपर से इतनी बारिश, सारे केब भी कैंसिल कर रहे हैं
अशोक जी: हमारी गाड़ी तो है ना? उसी से चलते हैं
शोभा जी: अरे बस करिए आप सभी! कोई यहां मुझे तो कुछ समझता ही नहीं। बच्चा मैंनें भी जना है, कह तो रही हूं, यह सब आम है इस समय, ऐसे यूं हर छोटी-छोटी समस्याओं के लिए अगर अस्पताल भागते रहे, तो वहीं अस्पताल के बगल में ही मकान किराए पर लेना पड़ जाएगा। गैस बन गई होगी, काम तो कुछ करती नहीं, सारा दिन बस खाना और सोना, मेरी मानो जाकर गैस वाली दवा ले लो,
राहत मिल जाएगी और जो ना हुआ तो सुबह चल लेंगे अस्पताल और आपको रात को कुछ सही से दिखता भी है? जो गाड़ी चलाने की बात कर रहे हैं, पता चला जाना था अस्पताल, पहुंच गए कहीं और, आपको याद भी है आखिरी बार कब गाड़ी चलाई थी आपने? जाओ बहु जो कहा, वह करो, इनकी बातों में मत आओ।
कविता को भी लगा, हो सकता है मम्मी जी सही कह रही है, आखिर इनको तजुर्बा भी है इसका, फिर वह गैस की दवा खाकर लेट जाती है, पेट दर्द उसी तरह रहा, इसी तरह 2 घंटे बित जाते हैं, पेट दर्द
नहीं गया, अब कविता को कुछ सही नहीं लग रहा था, फिर वह अपने सास के कमरे में गई और उनको जगा कर कहा मम्मी जी दर्द नहीं गया, लगता है हमें जाना ही पड़ेगा अस्पताल
अशोक जी: हां हां बहू! तुम सारे कागजात तैयार कर लो, मैं गाड़ी निकालता हूं
शोभा जी: आप चलाओगे गाड़ी? हे भगवान, जब प्रेम नहीं होता है घर पर, तभी यह सब होना ज़रूरी है क्या?
इधर अशोक जी गाड़ी निकालने में व्यस्त हो गए और इधर शोभा जी बड़-बड़ करे जा रही थी, तभी कविता दर्द से चिल्लाने लगी उसका दर्द और बढ़ गया था।
शोभा जी: अरे अब क्यों चिल्ला रही हो? जा तो रहे हैं अस्पताल? पता नहीं कौन सी आफत आने वाली है?
सच्च ही कहा है किसी ने, इस समय एक औरत का दर्द एक औरत को ही ज्यादा समझना चाहिए, पर अगर ऐसा होता तो औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं, यह कहावत गलत ना हो जाती? बेचारे अशोक जी जिन्होंने न जाने कितने सालों से गाड़ी नहीं चलाई थी, क्योंकि उनकी उम्र काफी हो गई थी और उन्हें दिखाई भी कम देता था, प्रेम के रहते कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी और अगर कभी
ज़रूरत पड़ी तो ऑटो ओला वगैरा से काम चल जाता था, पर आज एक तो जोरों की बारिश, ऊपर से रात के 12:30 बज रहे थे, कोई और उपाय नहीं था। कविता की हालत बिगड़ती ही जा रही थी, अशोक जी को गैरेज से गाड़ी निकालने में 15 से 20 मिनट लग गए। बारिश की वजह से कार की गति धीमी ही रखी उन्होंने और आधे घंटे बाद अस्पताल पहुंच गए। जहां कविता को आनन-फानन में ओ
टी में ले जाया गया, पर डॉक्टर के लाख कोशिशें के बावजूद बच्चे को बचाया न जा सका, डॉक्टर ने जैसे ही यह खबर अशोक जी और शोभा जी को दिया, दोनों के मुंह से एक आवाज़ तक नहीं निकली, फिर डॉक्टर ने कहा आप लोगों को थोड़ा पहले आना चाहिए था। बच्चा डिलीवरी के लिए तैयार हो
गया था। पर देरी की वजह से उसको ऑक्सीजन की कमी हो गई और उसने अपना मल भी खा लिया था। जिससे उसे अगर तुरंत निकाल जाता, तो शायद बचाया जा सकता था। यह कहकर डॉक्टर तो चले गए। पर शोभा जी फूट-फूट कर रोने लगी और कहने लगी, क्या कहूंगी मैं प्रेम को? तेरे बच्चे की हत्या की है मैंने? मेरी खुशी को मैंने ही ग्रहण लगा दिया
अशोक जी चुपचाप एक और अपने आंसू पोंछ रहे थे और कांपते हाथों से प्रेम को फोन करके सारी बातें बता रहे थे। प्रेम यह खबर सुनते ही निकल पड़ता है और अगली सुबह अस्पताल पहुंच जाता है। जहां कविता एक जिंदा लाश की तरह पड़ी थी। उसे देखते ही वह उसे लिपटकर रोने लगती है और कहती है, मैं नहीं रख पाई हमारे बच्चे का ध्यान, भगवान मेरी जैसी मां किसी को ना दे।
प्रेम कविता को दिलासा देते हुए कहता है, नहीं कविता तुम बहुत अच्छी मां हो, पर वह हमारा नहीं था। तुम बस हिम्मत रखो भगवान के आगे किसकी चली है? तुम खुद को संभालो, भगवान चाहेंगे तो हमें जल्द ही यह खुशी फिर से देंगे, फिर वहां अशोक जी और शोभा जी आते हैं, शोभा जी को देखते
ही प्रेम भड़क जाता है और कहता है, मां आप लोगों के भरोसे छोड़ कर गया था कविता को, अच्छा ध्यान रखा आपने, इसको इसके जिंदगी की यह काली रात आपका दिया हुआ वह तोहफा होगा जिसको शायद यह अपनी पूरी जिंदगी कभी भूल पाएगी।
शोभा जी: माफ कर दो बेटा! ऐसा कुछ हो जाएगा मेरे एक फैसले से, सपने में भी नहीं सोचा था, मैं हत्यारिन बन गई, इस काली रात को शायद मैं भी कभी ना भूल पाऊं
कविता: मम्मी जी! आप इस दौर से गुज़र चुकी है, इसलिए मैंने आप पर आँख मूंद कर भरोसा कर लिया, पर यहां आपकी गलती भी नहीं है, आपने माहौल को देखकर वह सब कहा था, पर मम्मी जी आपको शायद अब इस बात का पता लग गया होगा कि सब की गर्भावस्था के दिन एक बराबर नहीं
होते, ज़रूरी नहीं आपको कोई दिक्कत नहीं हुई तो मुझे भी नहीं होगी। पर यहां पापा जी ने वह किया शायद ही कोई कर पाता। मैं जानती हूं बेचारे कितने सहमे थे कार चलाने में, पर मेरी हालत के आगे वह अपना डर भी भूल गए, बस मम्मी जी, पापा जी की तरह आपने भी मेरी हालत समझी होती, तो शायद आज मैं अपने बच्चों को ना खोती।
दोस्तों, इस कहानी के ज़रिए मैं यह दर्शाना चाहती हूं कि, कभी-कभी चीज़े हमारे हाथों में होती है, पर हम समय के महत्व को समझने में देर कर देते हैं, जिससे हमारी जिंदगी के हसीन दिन काली रात में तब्दील हो जाती है और फिर बच जाता है पछतावा और एक भारी शब्द ‘काश’…!
धन्यवाद
रोनिता
#काली रात