कर्मों का फल – रीतू गुप्ता

सविता जी को 5 दिन बाद आज अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी।

 जब से  डॉ. छुट्टी का बोल कर गए है तब से वो बहुत उत्साहित थी घर जाने को।

 पति सोमेश से कितने दिनों बाद मिलेगी … पोते ऋशव और पोती दिया से खूब बाते करेगी।

सविता जी के चेहरे पे आज अलग ही ख़ुशी थी जिसे बेटा वंश और बहु छवि समझ रहे थे।

छवि ने सहारे से सास सविता को गाड़ी में बिठाया।  गाड़ी सड़को पे दौड़ने लगी। अस्पताल से घर का रास्ता 1 घंटे का था सविता जी सोच रही थी आज रास्ता इतना लम्बा क्यों है? 

छवि-  “माँ ,क्या हुआ? क्या सोच रही हो?”

“बेटी यह घर इतनी दूर कैसे हो गया?” उदास सविता बोली।

वंश हंसते हुए… ” माँ, दुरी तो उतनी ही है… पर आपका मन व्याकुल हो रहा है…आप जल्दी से घर पहुंचना चाहती हो। 

गाड़ी तेज भगाऊँ ….।”

सविता जी कुछ कहती इस से पहले ही छवि बोली–  “नहीं नहीं,  माँ को तकलीफ होगी… आप धीरे ही चलाओ… थोड़ी देर हो जाएगी तो कोई बात नहीं।”

रास्ते में बीच बीच-बीच में छवि सविता जी से कभी पानी कभी जुस पूछती जा रही थी ।

जैसे ही घर पास आ रहा था सविता जी की धडकने बढ़ रही  थी।

घर आने पर छवि माँ का हाथ पकड़ भीतर ले जाने लगी। 

वंश ने जैसे ही दरवाजा खोला भीतर से वेलकम दादी की आवाज आई।

घर को गुब्बारों से सजा देख सविता हैरान रह गयी।

बच्चे भाग कर दादी पास आए।

 छवि बोली अभी दादी को बिठाने दो …बाद में बात करना।

ऋशव और दिया ने घर को मेड कमला  की सहायता  से  गुब्बारों  से  सजा  दिया था।  

दादी  बहुत  खुश  हुई  ..

बिस्तर पर बैठते ही दोनों  बच्चे दादी  से  लिपट गए ।

छवि – “धीरे -धीरे,  कोई  जोर जबरदस्ती  नहीं  … अभी दादी इतनी  स्ट्रांग  नहीं ….।

गाड़ी पार्क कर वंश  घर  आया ।

 पापा  को  व्हील चेयर पर बिठा कर माँ के  कमरे में ले आया ।

सोमेश जी ने गुलाब का फूल दे पत्नी  का स्वागत किया और पुछा कैसी हो सावी ….

बच्चो के साहमने पति को ऐसे करते देख सविता शर्मा गयी… 

हंसते   हुए  बोली  यह  सब क्या है ?

तब ऋशव बोला-  “यह सब आईडिया मम्मा का है।”

दिया माथे पे हाथ मार कर उफ़, इसके तो कोई बात पचती ही नहीं। मां ने मना भी किया था बताने को।

सोमेश जी और सविता जी हंसते हुए छवि की और देखते है…

छवि मुस्करा बाहर चली जाती है ।

..

कुछ  देर  बाद  सविता  की आस पड़ोस की सहेलियां अपनी सखी सविता को मिलने  आ  गयी ।

छवि ने सबके हाथ सैनीटाइज करवाए फिर भीतर जाने दिया।

सहलियां-   “सविता कैसी हो ?”

सविता- “अब ठीक हूं।

 रजनी सविता की सहेली-  “सविता,  तू बड़ी भाग्यशाली है… जो तुझे छवि जैसी  बहु मिली…  जो  तेरा इतना ध्यान रखती है… 

एक शारदा की बहु है जो उसे पूछती भी  नहीं।”  

वो भी दो दिन पहले ही अस्पताल से घर  आई है ।

जितने दिन अस्पताल में  थी …. बहु एक बार भी ना गई अस्पताल….सिर्फ बेटा ही  रहा…  

और  घर आने पर भी उसके कमरे  में नहीं जाती । 

बेटी  बुला  रखी  है… वो  ही कर  रही  है ।

जबकि अपनी सविता जब  से अस्पताल  गई  है छवि 1 पैर पे खड़े होकर  सेवा कर रही  हैं ।

तभी कुसुम दूसरी पड़ोसन  बोली …

“अरे बहन! सब कर्मो का  फल  है  .. यह कर्मो  का  चक्र है जो चलता रहता है….अच्छे -बुरे कर्म  सब इसी जन्म में  साहमने आते  है ।

तुम भूल गयी क्या..

शारदा ने कैसे अपनी बहु का जीना हराम कर रखा था..  ..

याद  करो…  कितना बुरा सलूक करती  थी  .. १  मिंट आराम नहीं लेने देती थी  उसे  .. घर  की  बहु  नहीं  काम  वाली  बना   रखा  था  .. 

उसकी  प्रेगनेंसी  में  भी  कितना तंग किया  करती थी ।

 हमारे समझाने पे कहती बहु को सर पर नहीं चढ़ाना मुझे  .. तो  अब बहु वैसा ही कर रही  है ।

जबकि  सविता  ने  अपनी  छवि  बहु को  कभी  बहु  माना  ही  नहीं …बेटी माना है .. 

नई- नवेली  दुल्हन की दुविधा  समझ  हर  पल  उसका  साथ दिया..  कभी  उस  पर  कोई  दबाब नहीं  बनाया  .. पूरी  आज़ादी  दी  .. और  प्रेगनेंसी  में  तो  ख़ास  ख्याल  रखा … तो  उसके  अच्छे कर्म लौट रहे है।

  अब बहु बेटी बन सेवा कर रही है ।

सब  सहेलियों  ने  कहा-  बिल्कुल सही कह रही हो तुम… सब कर्मो का फल यहीं भुगतना है …

इस  लिए कोशिश करो कि किसी का  दिल  ना दुखाया जाये… 

तभी छवि चाय लेकर आ जाती हैं …

दोस्तों,  यह बात सच है कि जीवन में कर्मों का चक्र चलता रहता है… स्वर्ग नरक सब जीवन में यहीं भोगना है… जो कि हमारे कर्मो पर निर्भर करता है… इसलिए अपनी तरफ से हमेशा अच्छे कर्म करने की कोशिश करें।

रीतू गुप्ता 

स्वरचित

विषय- कर्मों का चक्र तो चलता ही रहता है 

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