वृद्धाश्रम की संचालिका की कुर्सी पर बैठी कमला जी सामने बैठी अपनी ही दुनिया में खोई हुई जेठानी को देखकर एकदम हतप्रभ रह गईं। तभी सामने खड़े चपरासी मदन ने बताया बहन जी कोई लोग गाड़ी में आए थे
और हाईवे के मेरठ कॉफी हाउस में इन्हें बिठाकर खाने के कुछ पैसे कॉफी हाउस वाले को देकर चले गए थे। यह महिला किसी को भी पहचान नहीं पा रही इसलिए कॉफी हाउस के मलिक इन्हें यहां छोड़ने आए हैं। पुलिस में खबर करवा दी गई है अब क्या करना है बहन जी?
उन्हें देखकर कमला जी एक बार तो कुछ अनमनी सी हुई और उन्होंने परिचारिका को उस महिला के कपड़े बदलवा के दूसरी विंग में ठहराने के लिए कह दिया।
लगभग 40 वर्ष से भी अधिक हो चुके हैं। कमला जी दिल्ली के एक गांव में बहू बनकर गई थी। इनकी जेठानी मायाजी के दो बेटे थे परिवार का व्यवसाय और दुकान सब सब बड़े भैया माया के पति जेठ जी ने ही संभाला हुआ था। कमला के पति मानसिक और शारीरिक रूप से दुर्बल ही थे, शायद यही कारण था
कि उन्होंने कमला जी से इतने संपन्न परिवार के होने पर भी गरीब घर की बेटी से विवाह की स्वीकृति दे दी थी। कमला जी उस परिवार में एक नौकर की जैसे ही सबकी सेवा कर रही थी लेकिन 2 सालों के भीतर ही सास और ससुर की मृत्यु होने के उपरांत बड़े भैया को यही डर सताता था कि कहीं कमला जी के मां बनने के उपरांत घर की संपत्ति का बंटवारा न हो जाए।
यही कारण था कि उनके अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। सामने बैठी माया जी भी उनके बाल पकड़ कर यदा कदा एक दो थप्पड़ रसीद करने में भी नहीं झिझकती थी।
उनके पति ना तो शारीरिक और ना ही मानसिक रूप से उन्हें अपना पाए थे। उनका सहारा तो किसी तरह से मिलना संभव ही नहीं था और जैसे जैसे उनके पति की तबीयत बिगड़ती जा रही थी उन सब ने कमला जी को धक्के मार कर एक दिन उनके मायके मेरठ भिजवा दिया था।
मेरठ के गांव में कमला जी की माताजी अकेली ही थी कहने को उनकी थोड़ी सी बंजर जमीन भी थी और एक खपरैल वाला टूटा सा घर। वह खुद ही उस घर में किसी तरह से अपने आप को संभाल रही थी शायद यही कारण था कि उन्होंने अपनी बेटी का विवाह करके खुद को निश्चिंत महसूस किया था
परंतु अब दोहरा भार पढ़ने के कारण कमला जी की माता जी को खुद समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? समीप की हवेली में ही कमला जी की माताजी थोड़ा बहुत काम कर लिया करती थी
परंतु गांव में उस समय काम करने के बावजूद भी रिश्ते बरकरार रहते थे। कमला की माता जी को हवेली वाली, चाची ही बोलती थी और उन्होंने चाची की परेशानी समझ कर कमला जी को भी घर के कामों के लिए रख लिया था और अब वह दोनों टूटे खपरैल की जगह हवेली के एक कमरे में ही रहने लगे थे।
समय बीतता गया हवेली की ताई और ताऊजी दोनों परलोक सिधार चुके थे। हवेली में रहने वाली दोनों बहनों का विवाह हो चुका था और दो भाई अपने परिवार के साथ क्रमशः विदेश और हैदराबाद में स्थापित हो चुके थे। हवेली के जब तीसरे भाई का इकलौता बेटा भी विदेश चला गया और उनकी पत्नी की मृत्यु हुई
तो भाई ने उस हवेली को एक वृद्धाश्रम में बदल दिया था। अब गांव भी मेरठ के हाईवे के नजदीक आने के कारण वहां भी जमीनों की कीमत बढ़ चुकी थी। कमला की मां की जमीन और घर के भी बिकने के बाद कमला जी को काफी पैसे मिले थे। यूं भी हवेली वाले भैया ने कमला को अब हवेली के वृद्धाश्रम का संचालक बना दिया था।
ममता और सेवा भावना तो कमला में कूट-कूट कर भरी थी शायद यही कारण था कि उस वृद्धाश्रम का नाम दूर-दूर तक मशहूर था। बहुत से लोग वृद्ध आश्रम के लिए धन का दान भी देते रहते थे और कुछ कलयुगी संतानों के माता-पिता का भी वहां बसेरा था।
माया को देखकर कमला जी अपनी पुरानी यादों में ही खो गई थी। आज उनके आंसू तो मोतियों में तब्दील हो चुके थे। वह तो समाज के लिए बेहद उपयोगी हो चुकी थी
लेकिन वह कभी भी दिल्ली लौट कर नहीं गई थी। अखबार में ही उन्होंने पढ़ा था कि उनके जेठ जी का देहांत हो चुका है और उनके दोनों बच्चे भी यथासंभव माता-पिता के चरण कमलों पर ही गए होंगे और माया जी को बीमारी की हालत में छोड़ गए होंगे।
तभी माया जी ने अपनी पुरानी यादों को झटके से झटक दिया और हमेशा के जैसे अपने काम में ही व्यस्त हो गईं।
वृद्ध आश्रम के चपरासी को उन्होंने कहा कि पुलिस को सूचित करने के बाद परिवार की कोई खबर मिल जाए तो उनके परिवार वालों को बुलवा लेना । माया जी जब परिचारिका के साथ जा रही थी
तो कमला जी को कई बार लग रहा था कि शायद वह कमला को पहचान रही है या पहचानने की कोशिश कर रही है। खैर जो भी रहा हो परंतु यह तो सच है की कर्मों का फल अवश्य मिलता है। हमें सदैव अपने कर्मोंपर ध्यान देना चाहिए।
लेखिका : मधू वशिष्ठ
(आंसू जो बन गए मोती प्रतियोगिता के अंतर्गत )