आज सुरभि को मायके लौटे हुए पूरे 25 दिन बीत गए थे , मगर अजय को न उसकी परवाह कल थी और न ही आज। कहते है न परवाह भी इंसान उसी की करता है जिसकी उसे जरूरत होती है , उस से प्यार होता है। मगर जब अजय की जिंदगी में पहले से ही सुजाता मौजूद थी
तो उसे क्या पड़ी थी कि वो सुरभि की सुध लेता। पहले तो शादी में मिलने वाले मोटे दहेज के लालच में अंधा होकर सुजाता से प्यार करते हुए भी अजय ने सुरभि से शादी के लिए हामी भर दी। उसे लगा कि कुछ दिन में वो सुजाता को भूल जाएगा और सुरभि के साथ नई गृहस्थी जमा लेगा।
मगर शादी के कुछ दिन बीतने पर उसे सुजाता की याद ने बेचैन कर दिया। जब उसने सुजाता से संपर्क बनाना चाहा तो सुजाता ने सीधे सीधे उसे यह कर झिड़क दिया कि वो किसी की गृहस्थी बर्बाद करने वाली लड़की नहीं है,
जो फैसला अजय ने लिया है उसे अब उसका पालन करना चाहिए। निराश लौटने पर भी अजय के दिल में सुरभि घर नहीं बना पा रही थी। इधर सुरभि को भी अब कुछ खटकने लग गया था कि ऐसा क्या है जो अजय उस से दूर दूर रहता है।
सुरभि की लाख पहल के बावजूद भी अजय का व्यवहार उसे द्रवित कर देता था। कहते है न सच छिपता नहीं। सुरभि जब तीज के त्यौहार पर अपने मायके गई तो सोसाइटी के कार्यक्रम में उसकी मुलाकात उन्हीं की सोसायटी में रहने वाले बंसल जी की बेटी चारूलता से हुई जो कि सुजाता की ही हॉस्टल में रूम पार्टनर थी।
जब वहां चारूलता ने अजय को सुरभि के साथ देखा तो वो हैरान हो गई कि अजय तो सुजाता का प्रेमी था तो आज सुरभि से कैसे शादी कर सकता है? अजय कई बार छिप छिप कर सुजाता के हॉस्टल में सुजाता को बाहर ले जाने के लिए आता था।
गार्ड के कई बार चेतावनी देने के बाद भी जब अजय ने आना नहीं छोड़ा तो गार्ड ने अजय और सुजाता की शिकायत वहां की वार्डन से कर दी। तो एक रात अजय और सुजाता को वार्डन ने रंगे हाथों पकड़ लिया और तब खूब हंगामा हुआ था ।
सब ही छात्राएं जमा हो कर मजे ले रही थी। चूंकि चारूलता ने अजय को एक ही बार देखा था वो भी दूर से तो उसे समझना मुश्किल हो रहा था कि अजय वो ही लड़का है या चारूलता कोई भूल तो नहीं कर रही, यह सोच कर उसने बात आई गई कर दी।
इधर ससुराल वापस लौटने पर भी परिस्थितियां वैसे ही बनी रही। अजय तो ऑफिस जाकर अपने आप को व्यस्त रखने का प्रयास करता मगर वो यह भूल कर रहा था कि इस सब में सुरभि की तो कोई गलती ही नहीं थी। उसको चाहिए था
कि अब सुजाता को भूल नई जिंदगी शुरू करे । मगर जब अक्ल पर पत्थर पड़ जाए तो भगवान भी मदद नहीं कर सकता। इधर महीने , दो महीने बीत गए। अब सुरभि खुल कर अजय से पूछती की उसकी जिंदगी में कोई और है तो उस का जवाब न होता।
घर वाले भी परेशान थे, अजय को बैठा कर पूछते तो अजय वहां भी सही से जवाब नहीं देता। अब इधर चूंकि शादी की पहली रात ही संपर्क स्थापित करने से सुरभि के पैर भारी हो गए। सुरभि और घर वालों को लगा शायद अब अजय के व्यवहार में परिवर्तन आ जाए मगर जैसे ही अजय को पता चला कि सुरभि मां बनने वाली है
तो उसने तुरंत यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि क्षण भर की बेफकूफी को पूरी उम्र नहीं ढोएगा। उसे न ही तो यह बच्चा चाहिए और न ही वह अब अपनी शादी को आगे और चला पाएगा। इतनी बड़ी बात से तूफान तो आना ही था। घर वालों ने हर संभव समझाने की कोशिश की मगर अजय कुछ नहीं समझना चाहता था। थक हार कर सुरभि के माता पिता सुरभि को अपने साथ ले गए।
आज पूरे 25 दिन बीतने पर अजय ने तो कोई खबर ली ही नहीं मगर सुरभि ने दो चार बार जब भी उस से बात करनी चाही तो उसने साफ साफ कन्नी काट ली। बेचारी सुरभि , उसके ससुराल वाले और मायके वाले यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि अजय पर क्या भूत सवार था
जो उसने अच्छी खासी गृहस्थी बिगाड़ ली। इधर सुरभि के जान पहचान वालों ने भी उसके पिता को इशारों इशारों में टटोलना शुरू कर दिया कि जब सुरभि भी मां बनने वाली है तो उस में भी कोई कमी नहीं है तो अजय का कहीं और तो चक्कर नहीं चल रहा है
जिसका समय रहते पता नहीं किया गया हो। अजय के माता पिता के व्यवहार के अच्छे होने के चलते सुरभि के माता पिता भी कोई कागजी कार्यवाही करने से बच रहे थे। लड़की शादी के बाद अगर घर आकर रहने लगें तो अफवाहों को जोर पकड़ते देर नहीं लगती और कुछ हुआ भी यहीं।
जब बंसल जी के घर भी सुरभि की भी चर्चा झिड़ी तो चारूलता के भी कान खड़े हो गए तो उसने एक बार अपने मन की तसल्ली के लिए एक बार सुजाता से बात करना सही समझा। जल्दी ही उसने सुजाता को बातों बातों में अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया।
कुछ दिन के देर सवेर सुजाता और चारूलता का जब मिलना हुआ तो थोड़ी बहुत औपचारिक बातों के बाद चारूलता ने सुजाता से उसके मंगेतर के बारे में बात करनी शुरू कर दी। जो कुछ भी उसे सुजाता से पता चला उसे जानकर तो उसे सुरभि से बड़ी हमदर्दी होने लगी। अभी तो उसने सुजाता से अजय के बारे में कोई बात नहीं करी ।
मगर जल्दी ही अपनी मम्मी को सब बात बता कर उनके साथ पहुंच गई सुरभि के घर। वहां जो उसने बताया उसे जानकर सुरभि और उसकी मां के तो आंसू ही नहीं रुके और भाई व पिता की आंखों में खून उतर आया। तत्काल अजय के माता पिता को अजय के साथ एक आखिरी मुलाकात के लिए घर आने के लिए बंसल जी ने ही फोन किया।
इधर चारूलता ने सुजाता को बुला लिया। चूंकि सुजाता पहले आ गई तो उसे अंदर कमरे में बैठा दिया गया और उसे इस तरह से बिठाया गया कि वो बाहर के कमरे में होने वाली सब बात आसानी से सुन सके। जब अजय अपने माता पिता के साथ पहुंचा तो बंसल जी ने ही बात करना शुरू किया।
बंसल जी का पहला ही सवाल था कि जब तुम किसी और लड़की से प्यार करते थे तो तुमने एक मासूम लड़की की जिंदगी क्यों उजाड़ दी? पहले तो अजय ने बहुत न नुकर की मगर जब चारूलता ने यह कह कर उसकी बोलती बंद करा दी कि उसने खुद उसे अपने हॉस्टल में सुजाता नाम की लड़की से मिलते जुलते और वार्डन के द्वारा पकड़े जाने पर बेइज्जत होते देखा है
तो अब अजय ने मनघड़ंत कहानी बनानी शुरू कर दी की वो लड़की बदचलन है और अच्छे लड़कों को अपने शौकों को पूरा करने के लिए फंसाना उसका पेशा है। तो अंदर बैठी हुई सुजाता यह बकवास सुनकर भड़क गई और बाहर आकर जो सच उसने सुनाया तो अजय के माता पिता ने अपना सर ही पीट लिया।
अब सुजाता ने अपनी कहानी बतानी शुरू की कैसे वो और अजय मिले, कैसे उनका प्यार जोर शोर से पनप रहा था कि तभी एक दिन सुजाता के पिता ने अजय और सुजाता को एक साथ घूमते हुए देख लिया। जब सुजाता के पिता ने अजय को बात करने की लिए घर बुलाया तो अजय ने साफ साफ कह दिया कि वो सुजाता से शादी करना चाहता है और अपने घर वालों को भी मना लेगा।
मगर अंतरजातीय होने से सुजाता के पिता ने रिश्ते को सिरे से नकार दिया और साथ साथ चेतावनी दे डाली कि फिर भी सुजाता अगर यह शादी करती है तो उनके परिवार का सुजाता से कोई रिश्ता नहीं रहेगा।
इस सब के बावजूद भी अजय और सुरभि साथ रहने और जिंदगी बिताने के सपने संजो रहे थे। मगर सब काम तब खराब हो गया जब सुरभि का रिश्ता अजय के लिए आया। सुरभि एक जाने माने रईस की बेटी , सुंदर , सुघड़ , पढ़ी लिखी और इतनी बड़ी जमा पूंजी की दावेदार।
जिस से अजय का ईमान डोल गया की उसे बिना मेहनत करे बहुत बड़ी लॉटरी लग गई है। उसके शातिर दिमाग ने पहले तो सुजाता का दिल तोड़ा । अजय ने सुजाता से कहा कि उसके माता पिता को जब उन दोनों के रिश्ते के बारे में पता चला तो दोनों अंतरजातीय विवाह के विरोध में आत्महत्या तक कर सकते है। इसलिए उन दोनों का अलग होना ही अच्छा है।
अब अजय ने सुरभि से शादी करने के बाद जब सुजाता से मिलने की कोशिश की और सुजाता के झिड़क देने और अपना घर संभालने की नसीहत दिए जाने के बाद अजय ने अगले दिन सुजाता को उसी कैफे बुलाया जहां वो अक्सर मिला करते थे।
अजय ने सुजाता को बताया कि उसने अपने माता पिता की जिद में आकर सुरभि से शादी तो कर ली मगर सुरभि मानसिक तौर से अस्वस्थ है। शादी की पहली ही रात सुरभि ने उसका गला पकड़ लिया था। अगर वो अपने आप को न छुड़ाता तो शायद वो उसे मार डालती।
माता पिता ने दहेज के लालच में आकर मेरी जिंदगी नरक कर दी। ऐसे माता पिता तो दुश्मन को भी न दे। अगर सुजाता भी उसका साथ नहीं देगी तो उस में जीने की हिम्मत नहीं बची। घर जाते ही वो पागल औरत चीज़ें उठा उठा कर फेंकती है और माता पिता यह कहकर तसल्ली दिलाते है कि इसका इलाज तो चल रहा है जल्दी ही ठीक हो जाएगी।
अजय की व्यथा सुन सुजाता के रोंगटे खड़े हो गए की जिस लड़के को उसने बेवफा समझा वो तो खुद कितना परेशान अपने ही माता पिता का सताया हुआ है ।
उसने अजय को हौसला दिया कि वो उसके साथ है। अजय ने सुजाता को यह कहकर शीशे में उतार लिया कि अगर वो उसके साथ है तो वो सुरभि के साथ साथ अपने माता पिता को भी छोड़ देगा, जिन्हें उसकी परवाह नहीं वो क्यों उनके बारे में सोचे।
अब पोल खुल जाने पर और सब कुछ हाथ से निकलता देख अजय ने साफ साफ कह दिया कि वो सुजाता से प्यार करता है और उसी के साथ रहेगा । सुरभि जब चाहे उस से तलाक ले ले , उसकी तरफ से वो आजाद है। तभी अजय के गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ता है
और वो होता है सुरभि का , वो औरत जो पति को सर आंखों पर रख अपनी कमियां टटोलती रही , आज उसने अपना फैसला सुनाया था कि वो उसे जेल की हवा खिलाएगी । जल्दी ही केस दर्ज हुआ, तारीखें चली और अंत में न्याय भी हुआ। तलाक भी हुआ और जब तक न्याय हुआ तब तक सुरभि ने एक स्वस्थ बिटिया को जन्म भी दिया।
इधर अजय को सुजाता भी नहीं मिली जिसके चक्कर में उसने एक मासूम का इतना बुरा किया। सुजाता भी अब अजय का मुंह नहीं देखना चाहती थी। जहां वो सुरभि के बारे में सोच कर दुखी होती थी वहीं उसे अपने लिए इस बात की संतुष्टि होती थी
कि वो अजय के हाथों बर्बाद होने से बच गई। जो लड़का कुछ भी कहानी बना सकता है उसने तो अपने जन्मदाताओं को ही नहीं बख्शा तो किसी का तो क्या ही सोचेगा। कानूनी प्रक्रिया और अपने ही बेटे की करतूतों की वजह से जो जग हंसाई हुई
उस वजह से अजय के माता पिता ने भी सार्वजनिक तौर पर अजय को बेदखल कर दिया था, क्योंकि हर लड़की का मां बाप सुरभि के माता पिता जैसे नहीं हो सकते थे जिन्होंने अजय की करनी के छींटे उन लोगों पर नहीं पड़ने दिए। सुरभि के माता पिता ने अजय के माता पिता को किसी भी केस में इन्वॉल्व नहीं किया था।
उनका मानना था कि अजय ने अकेले सब के लिए साजिश रची और सब को ही बलि का बकरा बनाया। हालांकि अजय के माता पिता अपनी पोती से मिलने की इच्छा रखते थे मगर अपने ही खून के कारण वो सुरभि से आंख से आंख मिलने से कतरा रहे थे।
आज अजय ने अपने ही शहर को छोड़ दिया है। मारा मारा कभी किसी शहर तो कभी किसी शहर आशियाना बनाता है। आदमी की करनी उसका पीछा नहीं छोड़ती। उसकी आत्मा ही धिक्कारने लगती है। कर्मों का चक्र चलता ही रहता है। अजय जिसके पास सब कुछ था
मगर अपने ही करनी ने आज उसका सब कुछ झीन लिया था। कहते है न दिन कट जाता है मगर रात बड़ी हो जाती हैं।।बड़े बुजुर्ग कहते है न करनी चाहे जैसे भी हो आगे आती जरूर है चाहे अच्छी हो या बुरी।
लेखिका : सोनिया अग्रवाल