भावना जैसी सुंदर, पढ़ी लिखी, कमाऊ बहू पाकर सुरेखा को तो जैसे अपनी ही किस्मत पर रशक हो आया। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि उसकी जिंदगी उस पर इतनी मेहरबां हो जाएगी और उसके नसीब में इतनी खुशिंया होंगी।
सुरेखा का एक गरीब घर में जन्म हुआ और सौतेली मां ने उसे एक नौकरानी से बढ़ कर कभी कुछ समझा ही नहीं।मुशकिल से सातवीं तक ही पढ़ पाई और बिना कोई ढ़ग का घर बार देखे उसकी शादी कर दी गई।
चाहे कोई इस बात को माने या ना लेकिन मायके वाले अगर अपनी बेटी को पूछते रहे, स्वागत सत्कार करते रहे तो ससुराल में भी इज्जत बनी रहती है, वरना तो प्रभु इच्छा। किस्मत ने यहां भी सुरेखा का पीछा नहीं छोड़ा। दिहाड़ी मजदूर और शराबी नशेड़ी पति की एक दुर्घटना में मौत हो गई। समझौते के पैसे सास ससुर ने रख कर उसे और उसके दस साल के बेटे हर्ष को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
बेचारी लाचार अनपढ़ औरत कहां जाती। हर्ष पढ़ाई में बहुत अच्छा था। सुरेखा तो गांव छोड़कर जा रही थी लेकिन जब स्कूल के हैडमास्टर को सारी बात का पता चला तो उसने उसे पास पड़ते साथ वाले गांव के सरंपच के पास काम पर रखवा दिया और हर्ष को एक साईकल भी दिलवा दी
ताकि वो नियमित रूप से स्कूल आ सके। नेक दिल हैडमास्टर साहब को हर्ष और उसकी मां से बहुत सहानुभूति थी।उस गांव में बारहवीं तक स्कूल था और आसपास के गावों के बच्चे भी वहां पढ़ने आते थे।
सुरेखा को सिर पर छत और काम दोनों मिल गए। सबसे बड़ी बात बेटा पढ़ रहा था। हैडमास्टर और सरंपच उसकी पूरी मदद कर रहे थे।हर्ष बारहवीं में अति उत्तम अंकों में उतीर्ण हुआ तो आगे चल कर उसने एम. काम करके बैंक की परीक्षा दी तो सीधा उच्च पद पर ही लग गया। सुरेखा को तो मानों सारी खुशिंया मिल गई। सरंपच से आज्ञा लेकर वो बेटे के पास शहर में आकर रहने लगी।
तीन चार साल हँसी खुशी बीत गए। सुरेखा चाहती थी कि बेटा शादी करके अपना घर बसा ले। चाहता तो हर्ष भी था लेकिन उसे ऐसी लड़की चाहिए थी जो उसके साथ साथ उसकी मां का भी पूरा ख्याल रखे। माँ के सघंर्ष और मेहनत को वो कैसे भूल सकता था। दूसरों के बर्तन साफ करके बेटे को इस योग्य बनाने वाली माँ को वह दुनिया का हर सुख देना चाहता था।
रिशतेदार तो कोई था नहीं और जो दूर पास के थे उनसे उनका कोई नाता नहीं था लेकिन दोस्त मित्र बहुत थे। उसके दोस्त आकाश ने अपनी जानकारी में उसी शहर में बैंक में कार्यरत भावना का रिशता सुझाया।
बातचीत हुई , सुरेखा को भी लड़की अच्छी लगी। तीन भाई बहनों में भावना सबसे बड़ी थी। भावना के पिताजी की ठीक ठाक सी नौकरी थी, एक बहन और भाई अभी पढ़ रहे थे।बिना ज्यादा तामझाम के शादी सम्पंन हो गई।
कुछ दिनों बाद हर्ष और भावना ने अपने अपने काम पर जाना शुरू कर दिया। सुरेखा घर पर ही रहती और थोड़ा बहुत घर का काम करती और कभी कभी सोसायटी वाले पार्क में चली जाती। घर के कामों के लिए पार्ट टाईम मेड थी। हर्ष तो चाहता था कि मां कोई काम न करे, सारी उम्र काम ही तो किया है, लेकिन सुरेखा का कहना था कि जब तक हो सके हर इन्सान को काम करते रहना चाहिए।
हर्ष ने जबरदस्ती मां को दो किटी पार्टीज का मैंबर भी बनवा दिया ताकि वो इसी बहाने से तैयार होकर घर से बाहर निकले, मां को खुश देखकर हर्ष को अजीब सा सकून मिलता। रात का खाना भावना और सुरेखा मिलकर बना लेती।
भावना और सुरेखा में बातचीत कम ही होती थी, काम से थक हार कर आते तो सब को आराम करने का ही मन होता। छुट्टी वाले दिन वो कई बार बाहर घूमने चले जाते और खाना वगैरह खा आते , मां को भी कहा लेकिन वो मना कर देती कि उसे बाहर का खाना हजम नहीं होता ।
इसी बीच हर्ष के मन में एक फ्लैट बुक करने की बात चल रही थी। उसने भावना से भी कहा लेकिन उसने कुछ खास ध्यान नहीं दिया। सब ठीक चल रहा था कि एक रात सुरेखा के सीने में तेज दर्द हुआ और उसे हस्पताल एडमिट करवाना पड़ा। टैस्ट वगैरह के बाद डाक्टर ने सर्जरी करवाने का कहा। काफी पैसा खर्च हो गया। सुरेखा घर आ चुकी थी।
हर्ष ने कभी भावना से उसकी सैलरी वगैरह के बारे में नहीं पूछा था लेकिन पिछले कुछ दिनों बहुत खर्च हो चुका था। उसने भावना से उसकी सेविंग्स के बारे में पूछा तो वो बात गोलमोल कर गई। हर्ष की डीलर से बात हो चुकी थी और सोसायटी भी अच्छी में फ्लैट बुक होना था।
इतवार था तो हर्ष ने डील फाईनल करनी थी, सुरेखा भी वहीं बैठी थी। कई दिन से भावना बात को टाल रही थी लेकिन कब तक। आखिर आज उसने हर्ष को सब बताना ठीक ही समझा।
भावना ने कहा कि वो काफी पैसे अपने मायके भेजती है , बहन भाई की पढ़ाई और मां की दवाईयों और मकान का किराया भी। उसके पिताजी की आमदन से घर का खर्च नहीं चलता। ये बात वो शादी से पहले ही बताना चाहती थी लेकिन कह नहीं पाई।
हर्ष को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे लेकिन उसका चेहरा कुछ तमतमा उठा। सुरेखा ने उसका हाथ धीरे से दबा कर उसे शांत रहने का इशारा किया।
“ कोई बात नहीं बहू, अगर तुम्हें अपने परिवार की मदद करनी है तो, अगर एक लड़का शादी के बाद भी अपने परिवार की मदद कर सकता है तो लड़की भी कर सकती है, हां पहले बता देती तो ठीक रहता, मत भूलो कि भगवान सब देखता है, और बात कितने दिन तक छुपी रह सकती है। भगवान तो कण कण में है और बात कभी न कभी सामने आ ही जाती है”।
अब तक हर्ष भी शांत हो चुका था। “ मुझे माफ कर दो हर्ष , मैनें बहुत बड़ी गल्ती कर दी, मुझे तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था।”भावना ने कहा।मेरी पढ़ाई पर भी मुझे लोन लेना पड़ा, पापा की इतनी हैसियत नहीं थी, मैं चाहती हूं कि मेरी बहन और भाई भी ढ़ग से सैटल हो जाएं, और वो हर्ष की और देखने लगी।
“ अब जल्दी से खाना लगाओ, पेट में चूहे ता ता थैया कर रहे हैं और कोई बात नहीं , दोनों ही परिवार अपने है, फ्लैट बुक करने का कुछ जुगाड़ करते है”।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
वाक्य- बहू, यह मत भूलो, भगवान सब देखता है