कमजोरी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“हां!हां!रात होने से पहले ही लौट आएंगे मम्मी।पिछले पच्चीस सालों से यही एक बात मैं समझ नहीं पाई।आपको रात से क्या दिक्कत है? मम्मी,कभी -कभी परिस्थितियों के चलते रात हो जाती है लौटने में।कभी मीटिंग देर तक चलती है,कभी कैब नहीं मिलता।तुम्हें पता है ना, ट्रेवल करना कितना मुश्किल है यहां।तुम चिंता मत करना ना।मैं पहुंचकर ही फोन कर दूंगी,या मैसेज कर दूंगी।सो जाना तुम,मैं दादा को बता दूंगी पहुंचकर। रिलैक्स मम्मी।”

रिद्धि की बातों से नियति को थोड़ी हिम्मत और राहत मिली।इस मामले में बड़े बेटा भी सहमत रहता हमेशा।बहन से दो साल बड़ा है,साथ ही रहता है नियति के।ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह रात को घर से बाहर रहे।कितनी भी जरूरी पार्टी हो या गैदरिंग हो,वह घर आकर ही सोता है।कहना भी नहीं भूलता साथ में”ये तुमने बचपन से जो हमें रात को राक्षस के रूप में डराया है,हम अब भी रात को राक्षस ही मानते हैं।जानतें हैं आपकी बनाई हुई कहानी सच कम झूठी ज्यादा होगी।हमें काबू में करने का एक जरिया था ,ना तुम्हारे पास यह।क्या सच में तुमने रात में किसी राक्षस को देखा है मम्मी?”

नियति बेटे के सादे स्वभाव पर रीझ जातीं।जाने कब यह कहानी सुनाई थी,पर उसकी सीख आज भी याद है इनको।बेटे के बालों में तेल लगाते हुए कहा नियति ने”देख बेटा,तू मानता है ना ,हर काम का एक वक्त होता है।वक्त की कद्र करना भी तुम्हें मालूम है।मेरी कहानी, है तो मेरी,पर इसकी शुरुआत मेरी दादी ने की थी।जब हम भाई बहन छोटे थे।साथ में ही पड़ोसी के बच्चों के साथ खेला करते।तब लड़के और लड़कियों के बीच वासना का जहर नहीं होता था।लड़के लड़कियों की चोटी पकड़ कर धमा धम मारते,और लड़कियां डंडा लेकर दौड़ाया करतीं थीं लड़कों को।हां खेलते-खेलते,जैसे ही शाम होती,सब अपने घरों में दुबक जाते।यही परंपरा थी।”,

,”पर मां‌ उन पुरानी बातों को नए जमाने के समाज में कैसे स्थापित करोगी आप? रिद्धि को आए दिन टूर पर जाना होता है।कभी ज्यादा देर हो गई ,तो भी वो डरी-सहमी घर पहुंच जाती है। स्मार्ट है हमारी रिद्धि।तुम बेकार में परेशान होती हो।अच्छा सुनो मम्मी,कल शाम को शर्मा जी को खाने में बुलाया है।प्रमोशन का समय है।ऐसे पार्टी वालों से मुलाकात करने के लिए लंच या फिर डिनर ठीक रहेगा।उनके सामने मैं अपनी परेशानियां बता सकता हूं।बोल दूं ना उन्हें,प्लीज़।”

नियति ने हर बार की तरह साफ-साफ कह दिया,अगर खिलाना बहुत जरूरी हो तो,लंच में बुला ले।रात में मुझसे किसी की आवभगत नहीं होती रे।तू दिन में ही बुला ले।”बोलते हुए नियति एक रवींद्रनाथ संगीत गुनगुनाने लगी।दोनों भाई-बहन जानते थे, मम्मी के सामने रात को  किसी को खाने में बुलाना असंभव था।

रिद्धि आ चुकी थी अपने फ्लैट पर।फोन करके बता दिया उसने मां और भाई को खबर कर दी।मां (नियति )ख़ुद भी कहीं रात बिताने की आदत नहीं थी उनकी।यह मम्मी के ही सख्त उसूल थे,कि दोनों भाई बहन कभी भटके नहीं।

अगले दिन आते ही बेटे ने कहा”मम्मी वो जो नेता जी हैं ना,रात में ही खाना खाएंगे ।अब क्या करें?नियति ने सीधे कहा,बाहर से आर्डर कर लो,।हो सके तो बाहर ही खिला दिया करो।”

बेटे ने मां की बात मान तो ली,पर रात के प्रति इतनी नकारात्मक भावना क्यों भरे हुए बैठीं हैं ,पूछना पड़ेगा।

बहुत खोदकर भी नियति के दिल को खंगालना इतना आसान नहीं।तय समय पर बेटे के साथ काम करवा रही थी,तभी बेटे ने बड़े गंभीर होकर मां का हांथ अपने हांथ में‌ लिया,और बोला,मुझे बता सकती हो मम्मी,मैं अब बड़ा हो गया हूं।मैं समझने की कोशिश करूंगा बस।”

नियति के लिए यह कोई नई कहानी थी।यह कहानी तो पीढ़ियों से मेरी दादी को उनकी दादी ने सुनाई,और उन्होंने मुझे सुनाई।पूरी कहानी तो थी क्या‍,आपबीती।दादी अक्सर भाई -बहनों से कहतीं”अंधेरे में राक्षस विचरण करते हैं।इस,लिए रात होने से पहले सभी को अपने-अपने घरों में पहुंच जाना चाहिए,चाहे कितना भी जरूरी काम हो।इस दुनिया में सारे काले कारनामे रात को ही होतें हैं।”

नियति ने कहना शुरू किया-“,जब तेरे नाना जी गुजरे,मैं महज कॉलेज में फर्स्ट इयर में थी।नाना के जाने से घर की सारी जिम्मेदारी मुझ पर पड़ गई।मैं बहुत मेहनत कर भी लेती,पर बचत बिल्कुल नहीं हो पाती ।उसी बीच हमारे दादा दादी की जमीन का टैक्स नोटिस आया।जो कि मेरे फूफाजी पहले ही माफ करना चुके थे।अब किसी पटवारी को पकड़ना पड़ेगा।उस उम्र में अब तक किसी पटवारी से जान पहचान तो थी नहीं।जिस सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़ाती थी,वहां एक के जी टू में पढ़ने वाले बच्चे के पिता पुलिस में थे। हेडमास्टर साहब ने उनसे जिक्र किया,और समय देखकर मेरे घर आने को कहा।बस कर अब बहुत समय हो रहा है रे।बाकी का बाद में सुनना।”नियति ने टालना चाहा,और बेटा भी जिद नहीं किया।

नियति ने मन में ठान लिया कि यह कहानी तो रिद्धि को सुनाना चाहिए।उसके बहुत काम आएगी,रात की सीख।आजकल के बच्चे मानते नहीं ना इन सब को।बेटे के ड्यूटी जाते ही बेटी को फोन किया और कहा”तू जानना चाहती थी ना,कि मेरी रात से क्या दुश्मनी है।सुन वही कहानी तू सुन अब मुझसे।अभय जो के जी टू में पढ़ता था।उसके पापा शायद कांस्टेबल थे।मां की मदद हो जाएगी,सोचकर ही साथ मांगा।अब तो अभय के पापा हर दूसरे दिन आने लगे।कभी मां के  पेपर,कभी कोई ऐफिडेविट तो कभी खसरा।कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा।अक्सर वो उस समय आते रात में,जब हम या तो खाना खा रहे होते,या बस सोने जाने वाले होते।उस समय मैं जवानी की कगार में ही थी।दो छोटी और बहनें,और दो भाई।पहले -पहल तो मुझे छठी इंद्रिय से आभास हुआ कि यह मेरे ऊपर अपनी कुदृष्टि डाल रहें हैं।पर धीरे-धीरे जाना,कि वो तुम्हारी नानी (मेरी मां) को अपने जाल में फंसा रहे थे।पांच बच्चों की ऐसी मां,जिसे हिन्दी में बोलना आना अब तक नहीं आया।अपनी वही बंगाली टोन में हिंदी बोलतीं थीं वो।”,

“सुन रही है ना रिद्धि,बस करूं, कल बताऊं?”नियति ने पूछा तो रिद्धि ने पूरा सुनाने को कहा।नियति उस काली रात की यादें काले फिल्म के रूप में अपनी ही बेटी को बताने विवश हो गई।”उस दिन तेरी नानी तभी कलकत्ते (मायके) से आईं थीं।उनकी मां की तबीयत खराब थी,तो देखने गईं थीं।रात आठ बजे के लगभग कांस्टेबल सर पहुंच गए।आकर वही सारे कागजात,पेपर सब कुछ देखने की मांग करने लगे।मां थकी थीं।नींद थी आंखों में।मैंने ही आगे बढ़कर कहा”सर,थक गई हैं मां।उन्हें आराम करना होगा।आप कल चले आइयेगा।

उस आदमी के अहं को चोट लगने लगी।इतनी गन्दी नीयत का आदमी,जो पांच साल के बच्चे का पिता और मेरे लिए मेरे छात्र का अभिभावक था।मां तब भी नहीं समझ पाई उनके दांव,जब उसने छोटे भाई को पान लाने पड़ोस में भेजा।भाई को मैंने कहा भी कि दुकान बंद है,वह डर की वजह से नहीं माना।

घर में अब तीन सद्ध जवान बेटियां,और एक पचास पार कर चुकीं महिला।आधे घंटे से ज्यादा बक-बक करते हो गए।थोड़ी देर बाद मैंने अपने पड़ोस में रहने वाले,मुझे एकाउंट्स पढ़ाने वाले सर को छोटी बहन को भेजकर बुलवा लिया।उन्हें भी इस बात का बहुत बुरा लगा,कि ये पुलिस वाला अभी क्या कर रहा है?बड़े सख्त स्वर में ही उन्होंने पूछा”पांडे जी,कहां इतनी रात, महिलाओं के बीच में  बैठे हैं?कुछ जरूरी हो तो चलो,घर में बैठते हैं।यहां आना ठीक नहीं।बिन‌ बाप की रहती हैं‌ लड़कियां।कब कौन इन पर बदचलनी का दाग़ लगा दे,पता नहीं।फिर आप की भी जबरदस्ती बदनाम ना हो जाएं”

,सर की बात सुनकर जैसे ही जाने के लिए तैयार हुए वे,पलटकर मेरी ओर देखकर बोले”इतना क्या डरना मुझसे?मैं कुछ भी तो नहीं किया।आपकी मां मामले को समझ नहीं पा रही,तो सोचा चलो इन्हें पढ़ा देते हैं।

पर एक बात है नियति थी,आपकी मां की उम्र का पता ही नहीं चलता।अभी भी कई लोग उनसे शादी करने को तैयार हो जाएंगे।”,उनकी बात सुनकर पता नहीं क्या हुआ मुझे,मैंने वो अपनी बंगाली दाउ (हंसिया)उठाई और जोर से वार किया।बीच-बचाव करते उन कांस्टेबल जी का अंगूठा कट गया था।खून देखकर लगे चिल्लाने।तब मैंने कहा उनसे”मेरे छात्र के पिता हैं आप।यह मत सोचना  कि ये औरतों का घर है।इस घर में मेरे दादा -दादी,बुआ और पिता का आशीर्वाद है।आइंदा अगर आपने यहां आने की ग़लती की,तो मैं अभय की मां को भी आपके कारनामे प्रत्यक्ष सुनाऊंगी।जिस घर में पुरुष नहीं होते,बेशक उस घर की छत उड़ जाती है,पर लड़कियां दीवारों को अपने आंसुओ से मजबूत कर लेतीं है।मदद के बहाने यहां जो जहर आप घोलने का सोचे थे,वो कामयाब नही होंगे।”

उस दिन के बाद उस शख्स को रात या शाम के धुंधलके में आता नहीं देखा उस घर ने।पहला उसूल यही बना कि कोई भी,शाम के बाद घर के अंदर नहीं जाएगा।उस घर ने फिर कभी वो भयानक काली रात नहीं देखी।और उस रात ने बहुत बड़ी सीख दे दी‍, रात अपने परिवार के लोगों के साथ रहना है बस।रात की कालिमा कितनी ही सुनहरी लगे,यह असुरी प्रवृत्ति की होती है।काले रंग का अभिषाप ना लगे किसी घर पर,घर की बेटियों को,।

सूरज का तेज  ही सारे जीवों  की रक्षा का  संकल्प लेता है।रात बहुत बड़ी दुश्मन है,।

साप्ताहिक विषय कहानी-काली रात

शुभ्रा बैनर्जी 

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