शहर की चकाचौंध से दूर, पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा कस्बा था। कस्बा दिन में साधारण दिखता, लेकिन रात ढलते ही उसके चारों ओर एक सन्नाटा फैल जाता। लोग कहते थे कि यहाँ की रातें आम रातों जैसी नहीं होतीं, बल्कि काली रातें होती हैं—इतनी गहरी कि अपनी ही परछाई भी डराने लगे।
अमित, जो दिल्ली से आया एक युवा फोटोग्राफर था, इस कस्बे की रहस्यमयी रातों को कैमरे में कैद करने आया था। गाँव वालों ने उसे बहुत समझाया—
“बेटा, रात में बाहर मत निकलना। यहाँ कई हादसे हो चुके हैं। लोग लौटकर वापस नहीं आए।”
लेकिन अमित ने इसे अंधविश्वास समझकर अनसुना कर दिया।
उस रात अमावस्या थी। आकाश पर बादल थे और चाँद का कोई निशान नहीं। चारों ओर घना अंधेरा फैला हुआ था। अमित अपने कैमरे और टॉर्च के साथ कस्बे से बाहर जंगल की तरफ निकल पड़ा। पेड़ों की टहनियाँ हवा में चरमरातीं और कभी-कभी ऐसे लगतीं जैसे किसी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया हो।
चलते-चलते उसने देखा कि दूर एक पुराना मकान है—खंडहर जैसा। खिड़कियाँ टूटी हुईं, दरवाज़ा आधा खुला। जैसे किसी ने जानबूझकर उसे बुलाने के लिए खुला छोड़ दिया हो। अमित के भीतर रोमांच और डर, दोनों एक साथ उठे। उसने कैमरा ऑन किया और घर के भीतर कदम रख दिया।
अंदर घुप्प अंधेरा था। टॉर्च की रोशनी में धूल उड़ रही थी। अचानक उसे लगा जैसे किसी ने फुसफुसाकर उसका नाम लिया—
“अ…मि…त।”
वह चौंक पड़ा। उसने टॉर्च इधर-उधर घुमाई, मगर कोई नहीं था। उसने खुद को समझाया कि शायद यह उसके दिमाग का भ्रम है।
लेकिन तभी कैमरे की स्क्रीन अपने आप ऑन हो गई। स्क्रीन पर वही कमरा दिख रहा था जिसमें वह खड़ा था, लेकिन फर्क ये था कि उसमें एक औरत खड़ी थी—लंबे खुले बाल, सफ़ेद चेहरा और लाल चमकती आँखें। अमित के शरीर से पसीना बहने लगा। उसने पलटकर देखा—कमरा खाली था।
“यह कैसे संभव है?” उसने बुदबुदाया।
तभी ऊपर से दरवाज़े के जोर से बंद होने की आवाज़ आई। पूरा घर हिल गया। अमित भागकर बाहर निकलना चाहता था, मगर दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हो चुका था। उसने दरवाज़ा खींचा, धक्का मारा, लेकिन वह टस से मस न हुआ। पीछे से फिर वही आवाज़ आई—धीमी, खौफनाक हँसी।
अब उसकी सांसें तेज़ हो गईं। टॉर्च की बैटरी झपक-झपककर बंद हो गई और कमरा फिर से अंधेरे में डूब गया। अंधेरे में उसने किसी के कदमों की आहट सुनी—धीमी, लेकिन पास आती हुई। डर से उसकी टाँगें कांपने लगीं। अचानक कैमरा अपने आप क्लिक हुआ। फ्लैश की सफेद रोशनी में उसने देखा—वही औरत, ठीक उसके सामने खड़ी थी।
उसके होंठ खुले थे और आँखें सीधे अमित पर टिकी थीं। एक पल को लगा कि उसकी सांस रुक जाएगी। उसने कैमरा नीचे गिरा दिया और ज़ोर से दरवाज़ा धक्का मारकर किसी तरह बाहर भाग निकला।
बाहर आते ही उसे राहत की सांस मिली। लेकिन जैसे ही वह मुड़ा, उसका खून जम गया। पूरा गाँव अंधेरे में डूबा था। न कहीं कोई घर, न कोई इंसान। सब कुछ गायब। चारों तरफ सिर्फ घना जंगल और सन्नाटा।
उसे लगा कि शायद वह किसी और ही दुनिया में आ गया है। अचानक मोबाइल की स्क्रीन चमकी—उस पर एक मैसेज लिखा था:
“अब तू हमारी रात का हिस्सा है। भाग नहीं सकता।”
अमित का हाथ काँपने लगा। वह पसीने से तर-बतर था। तभी पीछे से ठंडी हवा का झोंका आया और किसी ने धीरे से उसके कान के पास फुसफुसाया—
“काली रात से कोई बच नहीं सकता…”
उसके बाद क्या हुआ, कोई नहीं जानता। अगले दिन जब गाँव वाले खंडहर में पहुँचे, तो उन्हें सिर्फ अमित का टूटा हुआ कैमरा मिला। कैमरे में आखिरी तस्वीर वही थी—अमित की, डरी हुई आँखें और उसके पीछे खड़ी वह औरत।
कस्बे के लोग आज भी कहते हैं कि जो भी अमावस्या की रात उस खंडहर में जाता है, वह लौटकर कभी इंसानों की दुनिया में नहीं आता। और तभी से उस जगह का नाम पड़ गया—काली रात का घर
सुदर्शन सचदेवा
विषय: काली रात