काली रात -प्रतिमा श्रीवास्तव :

 Moral Stories in Hindi

वो काली रात आज भी सोच कर सुरुचि घबरा सी जाती है जब उसके देवर ने उसके अकेलेपन का फायदा उठाने के लिए उसके साथ बुरा बर्ताव करने की कोशिश की थीं।

सुरुचि के शादी के साल भर ही हुए थे कि रवि जो भारतीय सेना में सैनिक था, उसकी एक जंग में मौत हो गई थी।सास ससुर ने मायके नहीं जाने दिया था क्योंकि बहुत सारा मुआवजा मिला था।

वैसे तो दिन रात बहू को कोसना नहीं छोड़ते थे कि ना जाने किस मनहूस घड़ी में बहू बनकर आई की मेरे बेटे को ही खा गई। देवर दिनेश बहुत सहानुभूति दिखाता था। दोनों ही हम उम्र थे तो दिल का दर्द हल्का कर लिया करती थी सुरुचि।

दिनेश के दिमाग में अलग ही चल रहा था। उसकी नीयत साफ नहीं थी। उसने उस रात उसके इज्जत के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की थीं जो सुरुचि के मन को गहरा सदमा लगा था।

उसने सास को बताना चाहा तो वो उल्टा उस पर ही बरस पड़ी की मेरे बेटे पर इतना गलत इल्ज़ाम लगाने की हिम्मत कैसे किया। कितना ख्याल रखता है तुम्हारा। हमारे संस्कार ऐसे नहीं हैं जो बहू बेटियों पर बुरी नजर डालें मेरा बेटा।

सुरुचि की समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस माया जाल से कैसे निकले और अभी उम्र भी कम थी। उसने मन-ही-मन सोचा की वो अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करके अपने पैरों पर खड़ी होगी। उसे अपने पति के पैसों का लालच नहीं था। उसने सोचा कि उनके माता-पिता का पहला हक है बेटे के पैसों का।जब जीवनसाथी ही नहीं रहा तो ये सब किस काम का।

गांव की लड़की थी तो माता पिता भी इतनी दुनियादारी नहीं जानते थे की उसको यहां से लिवा जाएं और उसके आने वाले भविष्य के बारे में सोचें। उनके लिए तो यही मंत्र था जीवन में की लड़की ससुराल डोली से जाती है तो अर्थी में ही अपनी चौखट से निकलती है।

माता पिता के ऊपर और भी जिम्मेदारियां थी और सुरुचि के सास ससुर ने उन्हें आश्वासन भी दिया था की बेटा चला गया तो क्या हुआ सुरुचि बेटी की तरह रहेगी हमारे साथ।

बेटी…भला किस के ससुराल में बहू को ऐसा दर्जा मिला है।

सुरुचि इतनी सारी उलझनों में घिरी थी कि क्या करे? क्या ना करें? आखिर सलाह भी किससे ले और इस चक्रव्यूह से निकलना जरूरी था क्योंकि दिनेश से एक बार तो बच गई थी दोबारा मुश्किल था।

सुरुचि ने चाय की प्याली पकड़ाते हुए ससुर रामलाल से कहा कि,” बाबू जी मैं आगे पढ़ना चाहती हूं। आगे जिंदगी बहुत बड़ी है। कुछ करूंगी तो ही वक्त भी कटेगा और बाहर निकलूंगी तो मेरा भी मन बहलेगा।चार पैसे कमाने लायक बन जाऊंगी तो आप सब पर बोझ नहीं रहूंगी।”

रामलाल जी तो सहमत हो गए थे पर सास कौशल्या जी भड़क उठी थी कि,” कहां से आएगा इतना पैसा रुपया और पढ़ने लिखने निकल जाएगी तो घर के काम कौन करेगा? मेरे से इस उम्र में ये सब नहीं होगा।”

अरे भाई!” अपने बारे में ही सोचती हो बहू का भी तो सोचो

बेचारी का मन लगा रहेगा।वो भी बाहर निकलेगी चार लोगों से मिलेगी, बेचारी कितनी उदास रहने लगी है रमेश के जाने के बाद से। हमने – तुमने बेटा खोया है तो उसने तो अपना सबकुछ खो दिया है।”

” आपको बड़ी हमदर्दी रहतीं है बहू से ” कौशल्या जी तनातनी हुई बोली।

“तुम औरत हो कर भी औरत का दर्द नहीं समझती हो। कुछ पल के उसको अपनी जगह रख कर देखो ” रामलाल ने समझाते हुए कहा तो कौशल्या जी ने भी अनमने मन से हां कर दिया।

अम्मा” आप बिल्कुल चिंता नहीं करिए मैं घर के सारे काम निपटाकर ही जाऊंगी।” सुरुचि को राहत मिली थी की वो घर से बाहर निकलेगी तो उसको दिनेश से डर भी नहीं रहेगा और पढ़ाई लिखाई करके नौकरी करेगी और अपना अलग घर बनाएगी जहां वो सुकून से कुछ वक्त बिताए।

दिनेश पहले तो थोड़ा भड़का फिर पिता ने फटकार लगाई तो चुप हो गया। सुरुचि पढ़ाई-लिखाई में अच्छी थी तो उसका दाखिला अच्छे काॅलेज में हो गया था। अब उसको एक नई सुबह की तलाश थी जहां उसको अपने लिए कुछ करना था।

सुबह जल्दी उठ जाती और घर के सारे काम निपटाकर पढ़ने बैठ जाती। फिर काॅलेज के लिए निकल जाती और शाम को घर आते ही कपड़े बदलने के बाद घर के काम निपटाकर पढ़ने बैठ जाती थी। यही दिनचर्या बन गई थी उसकी।

कभी किसी को मौका नहीं दिया था कि कोई ऊंगली उठा पाए।सास – ससुर भी खुश थे। समय अपनी रफ़्तार से उड़ान भर रहा था।साल भर बीत गया था और परीक्षा परिणाम घोषित हुआ था तो सभी आश्चर्यचकित थे की सुरुचि ने अव्वल नंबर पाए थे। पढ़ाई के साथ साथ वो नौकरी की तैयारी में भी लग गई थी। एक साल और बचा था पढाई का एम.ए करने के बाद उसको नौकरी करनीं थी।

घर में व्यस्त रहती थी तो दिनेश से भी थोड़ा दूरी बनाए रहती थी। दिनेश को भी समझ में आने लगा था कि यहां दाल नहीं गलेगी क्यों कि कोई औरत इतनी भी लाचार नहीं होती की ऐसे कंधे की उसे जरूरत पड़े जहां सहारा के नाम पर उसको अपने वजूद से ही समझौता करना पड़े।

घर के काम समाप्त करके अपने कमरे में चली जाती और कमरा बंद करके पढ़ाई-लिखाई करती।अब सुरुचि ज्यादा से ज्यादा वक्त अपनी पढ़ाई में लगाती थी, जिसका नतीजा भी अच्छा आ रहा था।

सुरुचि की परीक्षा थी तो उसने जाने से पहले सास – ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लिया तो कौशल्या जी ने दही चीनी खिला कर उसके सिर पर हांथ रखते हुए कहा,” बहू खूब अच्छा करना।”

सुरुचि की आंखें नम हो गई क्योंकि आज उसे लगा था की अम्मा ने दिल से उसे आशीर्वाद दिया है।

सुरुचि घर के कामों में लगी थी की तभी उसकी सहेली कांता का फोन आया कि,”सुरुचि हमारी परीक्षा परिणाम घोषित हुआ है और तुमने देखा तुम पहले नंबर पर हो।”

सुरुचि क्लास वन की नौकरी परीक्षा में सफल हुई थी और थोड़ी ही देर में उसको बधाई देने के लिए तांता लग गया था और घर में सभी बहुत खुश थे क्योंकि सुरुचि ने अव्वल आ कर परिवार वालों का सिर ऊंचा कर दिया था। सभी लोग सुरुचि से पूछ रहे थे कि आपकी सफलता का क्या राज है?

सुरुचि ने सारा श्रेय अपने सास – ससुर को देते हुए कहा था कि” अगर मुझे ये मौका नहीं मिला होता तो मैं जिंदगी में कुछ भी नहीं कर पाती।”

रामलाल जी सबको मिठाई खिलाकर कह रहे थे कि” बहू ने हमारे कुल का नाम रौशन कर दिया।”

थोड़े दिनों में सुरुचि ट्रेनिंग पर चली गई थी और कुछ महीनों बाद उसने उच्च पद ग्रहण किया था लेकिन वो नहीं भूली थी कि जिस सास ससुर की वजह से आज वो यहां पहुंची है उनका जीवनपर्यंत ख्याल रखेगी। दिनेश की भी नौकरी लग गई थी और उसका विवाह तय हो गया था। सभी अपने अपने जीवन में आगे बढ़ चुके थे।

दिनेश के विवाह में जब सुरुचि आई तो दिनेश ने उससे हांथ जोड़ कर माफी मांगी और कहा कि,” भाभी मैंने बहुत ग़लत किया था, अगर आप मुझे माफ कर देंगी तो उस बोझ से मुक्त हो जाऊंगा जो इतने समय से मुझे बेचैन किए जा रहा है।”

दिनेश भइया,” आपने गलती नहीं गुनाह करने की कोशिश की थीं लेकिन आपकी उस हरक़त ने मुझे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर किया था जिसकी वजह से आज मैं इस मुकाम तक पहुंचन पाईं हूं, लेकिन मैं खुश हूं की आज मैंने अपनी मंजिल पा लिया है। कभी भी किसी औरत के मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश नहीं कीजिएगा।अब आप नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रहे हैं तो मैं भी आपको माफ कर के आशीर्वाद देती हूं कि अपने रिश्ते के प्रति आप हमेशा इमानदारी निभायेंगे यही वादा चाहतीं हूं आपसे।”

हां” भाभी मैं आपको वचन देता हूं ” दिनेश की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे।

सुरुचि ने कुछ सालों के बाद अपनी पसंद के लड़के से शादी कर लिया था लेकिन अपने सास ससुर का ख्याल पहले की तरह रखती थी।

सभी रिश्तों को बैलेंस बनाकर रखिएगा तो जिंदगी भी आपके लिए सबकुछ अच्छा ही करती है।

यादों का क्या है अच्छी हों या बुरी समय – समय पर हवा के झोंके की तरह आती जाती रहती हैं लेकिन आप वक्त के साथ आगे बढ़ना सीख जाते हैं तो जिंदगी खुशहाल बन जाती है।

सुरुचि के जीवन में सबकुछ ठीक चल रहा था उसने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया था सभी का आशीर्वाद उसके काम आया था। उसने अपना फर्ज अच्छी तरह से निभाया था कभी भी कुछ नहीं लिया था अपने पहले पति के परिवार से बल्कि हर तीज त्यौहार पर सबके लिए कुछ ना कुछ भेजती थी और जब भी मौका मिलता तो सभी से मिलने भी आ जाती थी।

                                प्रतिमा श्रीवास्तव

                                 नोएडा यूपी

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