काली रात – मनु वाशिष्ठ : Short Story in Hindi

वो आखिरी रात__ आज भी याद है मुझे वह काली रात। हां काली ही कहूंगी, वैसे तो पूर्णिमा थी पर हम बच्चों के लिए, मां के लिए तो वह काली रात ही बनकर आई थी। बैठक में पिताजी के साथ अचानक

कुछ अप्रिय घटित हुआ था, हवेली में सूचना मिलते ही दीदी, मां तुरंत बदहवास दौड़ पड़ी थीं भाई उनके पास ही था। अचानक लाइट चली गई, कुत्तों का बेसुरा रोना अनजान सा भय पैदा कर रहा था।

मां के हाथों में पिताजी का हाथ था, हम भाई बहन पैरों की ओर खड़े थे, आंखों में देखते हुए सब कुछ ओझल हो गया। दादाजी, ताऊजी शायद सब समझ चुके थे, वो बाहर बैठे थे, अचानक पूरा गांव

इकट्ठा होने लगा, हवा की रफ्तार से बात फैल गई कि मुकदम साहब का मंझला बेटा नहीं रहा, भीड़ जमा हो गई। मां की मनोस्थति को समझने की हमारी उम्र नहीं थी। मां ने आंसुओं से भीगी रात जो

बिताई थी कुछ पलों के लिए ही सही, वो याद सुनहरा साथ था, हम पांचों आखिरी बार साथ थे। मां की पिताजी से सिर्फ नजरों से बात हो पाई थी, हमारे लिए रो भी नहीं पाई थी मां। याद है वह आखिरी

मुलाकात जब पिताजी की सांसों की रफ्तार थम रही थी, पिताजी ने मानो खामोश निगाहों से सब जता दिया, अब तुझे ही संभालना है। शायद उस खामोश प्यार, जिम्मेदारी के अहसास से बढ़ कर कोई

इश्क नहीं। डॉक्टर,वैद्य, हकीमों तक के आने का इंतजार नहीं किया पिताजी ने, दुनिया भर से प्रार्थना की दई देवता, उठाने, मन्नतें, भगवान से असंभव को संभव में बदलने की, पर जिंदगी में इससे अधिक दुख और निराशा नहीं देखी। दादाजी ने अपना बेटा खोया था, और हम बच्चों ने पिता। हमारी खातिर

मां और दादाजी दोनों ने ही अपने आंसू नहीं निकलने दिए। उन आंसुओं के सैलाब को रोकना कितना कठिन रहा होगा, यह तब समझ आया जब रातों में दादाजी की हिचकियों से रजाई कांपने लगती थी। और मां रात रात सो नहीं पाती थी। ये यादें जब भी आती हैं, एक बार को तो भगवान पर से भी भरोसा उठ जाता है। भगवान किसी दुश्मन के साथ भी ऐसा ना करें बस यही कामना रहती है। ___

मनु वाशिष्ठ

साप्ताहिक विषय #काली रात

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