हीरालाल जी बड़े ही गर्म मिज़ाज और थोड़े झगड़ालू स्वभाव के व्यक्ति थे।आए दिन मुहल्ले में उनकी क्रोधपूर्ण आवाज़ सुनाई पड़ जाती थी। कभी पत्नी से बहस करते हुए, कभी बच्चों को डांटते हुए या कभी अपने किसी किरायेदार से झड़प करते हुए। आसपास के लोगों के लिए एक तमाशे का माहौल बन जाता था।
वहीं उनके छोटे भाई मुरारीलाल जी एकदम शांत स्वभाव के थे। शादी नहीं की थी, अकेले थे। गर्मियों में अपने घर के अंदर और सर्दियों में घर के बाहर चबूतरे पर चटाई या पतली सी गद्दी बिछाकर धूप सेंकते थे। दोनों ही भाइयों का मुहल्ले में किसी के साथ उठना-बैठना, बातें करना बहुत कम ही देखा जाता था। दोनों भाइयों के पास अच्छी-खासी प्रापर्टी थी। उनके जीवन निर्वाह का अच्छा स्रोत उनकी प्रापर्टी ही थी।
हीरालाल जी के दो बेटे थे। दोनों ही एक-दूसरे से विपरीत आचरण थे। बड़ा बेटा सोहन पिता की ही तरह अक्खड़ और बिगड़ैल स्वभाव का था। आठवीं कक्षा के बाद पढ़ने में मन नहीं लगा तो पढ़ाई छोड़ दी। हीरालाल जी ने एक बर्तन की दुकान खुलवा दी, उसी दुकान पर बैठने लगा।
हीरालाल जी और मुरारीलाल जी के घर या कहा जाए प्रापर्टी के बीच एक गली थी। दोनों गली के आमने-सामने थे। चूंकि मुरारीलाल जी अकेले थे इसलिए उनका खाना पीना हीरालाल जी के घर पर ही होता था। खाने के समय जाते थे और खाकर पुनः अपने घर लौट आते थे। अधिक समय अपने घर पर ही व्यतीत करते थे। आज के वर्तमान समय की तरह जैसे उस समय बोरियत नाम का शब्द ही नहीं था।
हीरालाल जी का छोटा बेटा सुशांत अपने नाम के अनुरूप ही गंभीर शांत स्वभाव का और पढ़ाई में रुचि रखने वाला था। नाश्ता और भोजन के अतिरिक्त वह भी अपनी दिनचर्या चाचा मुरारीलाल जी के घर रहकर निभाता था। पिता जी के घर में शोर मचा रहता था। भाई सोहन का बेटा दिनभर उछल-कूद करता रहता था, जिससे सुशांत की पढ़ाई में अवरोध उत्पन्न होता था। इसीलिए उसका पढ़ना और रात्रि -शयन चाचा जी के घर में ही होता था। चाचा जी और सुशांत एक दूसरे का बहुत ध्यान रखते थे।
मुरारीलाल जी के कुछ किरायेदार उच्च पदों पर आसीन थे। उन्हीं लोगों से ही कभी – कभी ही सुशांत की बातचीत हो जाया करती थी। कुछ बातें अध्ययन से संबंधित और कुछ राजनीतिक, साहित्यिक विषयों में होती थीं। सुशांत का स्वयं का व्यक्तित्व और कर्मठ ज्ञानवान लोगों का सम्पर्क उसे और अधिक निखार रहे थे।
हीरालाल जी के घर से कुछ ही दूरी पर उनकी विधवा बहन रहती थीं। उनकी प्रापर्टी दोनों भाइयों से भी अधिक थी। वो यहां अकेले ही रहतीं थीं। एक बेटी थी। उसकी शादी हो गई थी। सुशांत बुआ के घर जाया करता था। उनकी आवश्यकताओं को पूरा करता था और उनके साथ हंसी खुशी के कुछ पल ग़ुजारता था। बुआ भी उसके खाने पीने की पसंद का बहुत ध्यान रखती थीं। त्योहारों में नए कपड़े बनवाना, पसंद का पकवान बनाना उनके प्यार में निहित था।
लगन और परिश्रम व्यक्ति को सफलता की मंजिल पर अवश्य पहुंचाता है। उच्च शिक्षा समाप्त होने के बाद सुशांत आकाशवाणी (आल इंडिया रेडियो) में मुख्य अभियंता के पद पर कार्यरत हो गया।
समय सुनहरे पंख लगाकर आगे बढ़ने लगा। हीरालाल जी ने एक पढ़ी-लिखी कन्या नेहा से सुशांत का विवाह कर दिया। चाचा ने सुशांत और नेहा को अपना एक घर रहने के लिए दे दिया। दोनों पति-पत्नी प्रेम विश्वास और सुकून से जीवन व्यतीत करने लगे।
एक वर्ष पश्चात् मुरारीलाल जी ने अपनी प्रापर्टी का वसीयतनामा किया और उत्तराधिकारी केवल सुशांत को बना दिया। बुआ ने भी अपनी प्रापर्टी का उत्तराधिकारी अपनी बेटी और सुशांत को बनाया। भाई बहन के इस प्रकार का वसीयत बनाने से हीरालाल जी को अच्छा नहीं लगा। परन्तु कुछ बोले नहीं।
कहते हैं कि जीवन सुख दुःख के झूले में झूलता रहता है।कब सुख दुःख में बदल जाय, कब होनी अनहोनी में परिवर्तित हो जाय, कोई नहीं जान पाता।
एक रात काफी देर हो गई, सुशांत आकाशवाणी केंद्र से घर नहीं आया। नेहा घबराने लगी और बेचैनी से इंतज़ार करने लगी। रात्रि गहराती जा रही थी। ग्यारह बजा बारह बजा एक बज गया। नेहा की बेचैनी बढ़ने लगी। उसने लैंडलाइन टेलीफोन से फोन किया, ज़वाब मिला “वो तो कभीके चले गये।” वह सोचने लगी कि आधी रात को छ: महीने के बच्चे को लेकर कहां ढूंढने जाएं। जगती आंखों में रात बीत गई। भोर होते ही शोर होने लगा, “अरे! देखो, कोई मरा पड़ा है। लगता है किसी ने इसकी हत्या कर दिया है। देखते ही देखते लोग उमड़ पड़े। एक ने कहा, ” अरे! ये तो सुशांत भाई हैं।शोर सुनकर परिवार के सदस्य दौड़ते हुए आ गए। नेहा भी पहुंच गई ।कटा हुआ सुशांत का शरीर देखते ही मूर्च्छित (बेहोश) हो गई। होश आया तो रोते-रोते बोली ” बीती*काली रात मेरे जीवन को अंधकारमय कर गई। अब मैं किसके सहारे कैसे जीऊंगी। इतने सीधे मेरे पति के साथ ऐसा जघन्य कृत्य किसने और क्यों किया?” उपस्थित लोगों ने फुसफुसाया -“सज्जनता दुष्टों को अच्छी नहीं लगती। ऐसे सज्जन का अंत कर दिया।” कुछ औरतों ने कहा “यह *काली रात नेहा को जीवन भर आहत करती रहेगी।”
जो होनी होनी रहती है वो होकर ही रहती है। सच में नेहा के लिए वह रात *काली रात ही थी जिसने उसका हंसता-खेलता संसार छीन लिया। क्रिया कर्म के पश्चात नेहा अपने माता-पिता के साथ मायके चली गई।
विषय – # काली रात।
स्वलिखित मौलिक
गीता अस्थाना,
बंगलुरू।