प्रभाकर जी और सुनीता जी के एक बेटा था उसका नाम विश्वजीत था । वह विदेश में पढ़ने गया। प्रभाकर जी रिटायर हो चुके थे ।दोनों पति-पत्नी अपने घर में रहते प्रातः काल उठकर सुनीता जी पूजा पाठ करती। प्रभाकर जी सुबह टहलने जाते। उसके बाद पेड़ पौधों की देखभाल करते। दोनों एक साथ बैठकर चाय पीते खड़े आनंद से दिन बीत रहे थे ।
उनका बेटा से फोन पर बात करता अब बेटे विश्वजीत की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी।
उसने माता-पिता से कहा कि मैं भारत में आकर एक अस्पताल खोलूंगा।
जिससे यहां के लोगों की सेवा कर सकूं प्रभाकर जी को उसका यह विचार बहुत पसंद आया होने का ठीक है बेटा।
जैसी तुम्हारी मर्जी विश्वजीत भारत आ गया और यहां आकर उसने अपना अस्पताल बनाया अपने मां-बाप माता-पिता के नाम से पी एस हॉस्पिटल उधर विश्वजीत की उम्र शादी लायक हो गई थी।
सुनीता जी ने एक दिन प्रभाकर जी से कहा कि अब बेटे की शादी करा देनी चाहिए। उन्होंने विश्वजीत को अपने पास बुलाया और बोल बेटा अब हम चाहते हैं कि तुम भी अपना घर परिवार बसाओ हम सब एक साथ खुश रहें।
कुछ दिन बाद विश्वजीत की शादी उसके साथ पढी डॉक्टर सुगंधा के साथ कर दी गई।
सुगंध बहुत ही समझदार लड़की थी धीरे-धीरे उनके परिवार में खुशी से रह रही थी पति के साथ सुबह शाम हॉस्पिटल में रहती समय में मिलने पर घर आई ।
और जो भी काम होता उसे कर लेती लेकिन पता नहीं क्यों सुनीता को सुगंधा का मॉडल पर पसंद नहीं आता जी को लगता की बहू को अपने घर की परंपराओं को सीखें एं जिससे हमारी परंपरा रीति रिवाज आगे बढ़े लेकिन सुगंध आज के जमाने की लड़की थी वह आज के हिसाब से यह जाती थी वह पुरानी परंपराओं में विश्वास नहीं रखती थी सुनीता जी अपने मायके चली गई कुछ समय के लिए उसे समय सुगंध घर पर थी उसने घर की रसोई की सारी व्यवस्था बदल दी जहां पहले पीतल के बर्तन थे उसे स्थान पर उसने स्टील और कांच के बर्तन रख दिए इसे जब सुनीता जी वापस आई तो उन्होंने पूछा यह सब क्या है तो सुगंधा ने कहा इसमें क्या बुराई है यह कोई गलत थोड़ी है पीतल के बर्तन को कौन खाता है आजकल यह बात सुनीता जी को मन में बहुत बुरी लगी जब उन्होंने इस बात के मामले में अपने बेटे विश्वजीत से करना चाहा तो विश्वजीत ने कहा सुगंधा कोई गलत काम तो कर नहीं रही है अगर वह सही कर रही है तो आप क्यों रोक रहे हो उसे करने दो सुनीता जी चुप हो गई कुछ नहीं बोले अब उनकी समझ में आ चुका था कि अब वह समय नहीं कि जब बेटा उनकी हर बात उनकी मानें ने अब समय बदल चुका है अब वह अपनी पत्नी की बात मानेगा ।छोटी-छोटी बातों पर सुनीता जी सुगंधा में बहस सुनाने लगी।
प्रभाकर जी सब कुछ देखे लेकिन चुप रहे थे कुछ नहीं बोलते सुनीता जी कोई बात खाई जा रही थी कि बेटा तो अपनी पत्नी की बात मानता है लेकिन यह भी कुछ नहीं कहते हैं सुनीता जी मन ही मन अपने आप को अकेला महसूस करने लगी। और वह बीमार हो गई जब उन्होंने कहा कि बेटे से अपने हॉस्पिटल में मत ले जाना कहीं और ले जाना यह सुनकर विश्वजीत को बहुत अजीब लगा मां ऐसी बात क्यों कह रही है तो प्रभाकर जी ने कहा बेटा हमने और तुमने गौर नहीं किया सुनीता जी खुद को बहुत दिनों से अकेला महसूस कर रही है इस कारण उन्हें बीमार हो गई है जब यह बात सुगंध को पता चली तो उसे बहुत दुख हुआ मैं फिर अपनी सासू मां के पास गई और बोली मां मुझे माफ कर दो मैं हॉस्पिटल में इतना बिजी रहती हूं आपकी तरफ मैंने ध्यान नहीं दिया मुझे नहीं मालूम की आप मेरी छोटी सी बात आपको इतनी बुरी लग गई अगर आपको भी लगी तो आप मुझसे कह सकती थी मैं आपकी बेटी थी मैं डांट सकती थी आप मन ही मन में क्यों दुख पाल बैठी आप सब कुछ हो। हम आपके बिना कुछ नहीं है हमें माफ कर दो सुगंधा के साथ-साथ विश्वजीत भी यही शब्द बोला था मांमुझे माफ कर दो मुझे माफ कर दो दोनों बच्चों के मुंह से ऐसी बात सुनकर सुनीता जी ने दोनों बच्चों को गले लगाया तो प्रभाकर जी ने कहा कि हमें छोटी-छोटी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए बल्कि पर ध्यान देना चाहिए छोटी-छोटी बातें हैं कभी-कभी बहुत बड़े कलह का कारण बन जाती है
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि अगर हमारे विचार नहीं मिलते हैं तो हमें आपस में एक दूसरे से बात कर कर अपने विचारों के बारे में बताना चाहिए उनके प्रति गलत धारणा नहीं बननी चाहिए जैसे कि सुनीता जी और अपने सुगंधा दो की अपनी अपनी पीढ़ी के हिसाब से सोचना एक दूसरे को ग़लत समझना इस कलह का कारण था
विनीता सिंह