अरे भाभी मैं तो मायके आई हूं और तुम अपने मायके चल दी यह क्या बात हुई भला। भाभी तुम्हें इतना तो समझना चाहिए कि जब ननद मायके आती है तो भाभी को अपने मायके नहीं जाना चाहिए। क्या तुम्हें अपने मायके से यह संस्कार भी नहीं मिले। शुभ्रा यही नहीं रुकी वह फिर कहने लगी। मेरा तो मायके आना ही व्यर्थ हो गया । मैं कितने चाव से यहां आई थी की भाभी के हाथ की बनी हुई रोज नई-नई डिश खाऊंगी मगर सब बेकार हो गया। इससे तो अच्छा होता मै ना आती कहकर बुरा सा मुंह बनाकर शुभ्रा अपनी मां ललिता जी के बाजू में जाकर बैठ गई।
शुभ्रा के शांत होते ही ललिता जी तुरंत बोल उठी। मन भर गया तेरा या अभी भी कुछ कहना बाकी है । तूने अभी भाभी से संस्कार की बात कही तो मैंने भी तो तुम्हें अच्छे ही संस्कार दिए थे फिर तूने क्यों बिना जाने भाभी को इतनी बातें कह दी। क्या तेरे संस्कार सही है। हां यह सच है मायके में जब ननद आती है
तो भाभी रहने से घर का माहौल अच्छा रहता है बाहर शॉपिंग करना नई-नई डिश बनाकर उसे टेस्ट करना दोनों ननद भाभी की गपशप होना बहुत अच्छी बात है और यही आमतौर पर होता आया है,क्योंकि एक ननद भाभी का रिश्ता दो बहनों की तरह,दो सहेलियों की तरह भी होता है। जो अपने सुख दुख की बातें आपस में सांझा कर सकती है, मगर जब भाभी को किसी मजबूरी वश अगर मायके जाना पड़ जाए तो क्या वह अपनी ननद के खातिर ना जाए। अभी उसके पिताजी की तबीयत बिल्कुल भी सही नहीं है तो क्या वह तुम्हारी खातिर अपने पिता से भी मिलने ना जाए।
सोनाली मायके तो अभी भी जाएगी मगर तूने इस रिश्ते में कलह करके ननद भाभी के रिश्ते में बेवजह एक दाग लगा दिया।
देख शुभ्रा तूने भाभी के मन को तकलीफ दी है। ये अच्छी बात नहीं है और हां तूने भाभी का फर्ज तो बता दिया मगर ननद का फर्ज तो बताया ही नहीं। इस रिश्ते में ही क्यों बल्कि मैं तो कहती हूं । दुनियां के हर रिश्ते को प्यार और सम्मान की जरूरत होती है । तभी वह रिश्ता चलता है, वरना एक वक्त पर जाकर कुछ रिश्ते इसी आपसी कलह की वजह से ठंडे पड़ जाते है।
ललिता जी भी यही नहीं रुकी ।
वह फिर अपनी बेटी शुभ्रा को समझाने लगी। देख शुभ्रा अपनी भाभी सोनाली पर हक जताना तो सिख लिया मगर वह हक पाने के लिए तुम अपनी भाभी सोनाली के दिल में अपने लिए एक स्नेह भरा घर बसाना तो भूल ही गई।
जिंदगी में यह बात मेरी सदा याद रखना। हक वही जताया जा सकता है। जहां सामने वाले के दिल में अपना एक स्नेह से भरा हुआ घर पहले से ही बसाया हुआ होता है और इसके लिए दोनों तरफ से स्नेह का आदान-प्रदान भी होना होता है। तभी तुम सामने वाले पर अपना हक जता सकती हो।
शुभ्रा को अपनी मां ललिता जी की बातें सब समझ आ गई थी वह नजरे झुकाते हुए ही अपनी मां से बोल उठी। मुझे माफ कर देना मां। मुझसे बड़ी भूल हो गई। मुझे भाभी से इस तरह बातें बिल्कुल भी नहीं करनी थी। भाभी तो अपने पिता के अस्वस्थ होने से पहले से ही दुखी थी। उस पर मैंने भी उन्हें दो मीठे बोल बोलने की जगह चार बातें ही सुना डाली।
मुझे ऐसा हरगिज नहीं करना था। शुभ्रा फिर अपनी भाभी सोनाली की तरफ देखकर बोल उठी। मुझे माफ करना भाभी मैं जानती हूं । मैंने अपनी भाभी का दिल दुखाया है मगर यह भी जानती हूं कि मेरी भाभी का दिल बड़ा साफ है इसीलिए मुझे क्षमा भी कर देगी है ना भाभी कहते हुए शुभ्रा अपनी भाभी के शब्दों का इंतजार करने लगी।
सोनाली अपनी ननद शुभ्रा की बातें सुनकर अपनी नम आंखों का पानी साफ करते हुए तुरंत प्यार से बोल उठी। दीदी भूल जाइए अब यह बातें जैसा कि अभी मां ने बताया ननद भाभी सहेलियां भी होती है तो सहेलियों के बीच कैसी शिकायतें और कैसे उलहाने।
हमारे रिश्ते के बीच तो बस अब प्यार और सम्मान को ही रहने दीजिए कहकर सोनाली चुप हो गई। ललिता जी का मन अब बड़ा खुश था की चलो दोनों ननद भाभी के बीच की कलह समय रहते खत्म हो गई।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम