शहर की एक अच्छी कॉलोनी में वर्मा जी का फ्लैट था। घर में थे श्रीमान अशोक वर्मा, उनकी पत्नी निर्मला जी, बेटा अमित, और सबसे प्यारी शांता जी (वर्मा जी की माँ और अमित की दादी)। अमित की पत्नी, अमिता, एक मल्टीनेशनल कंपनी में मार्केटिंग हेड थी।
निर्मला जी एक समर्पित गृहिणी थीं। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी घर और परिवार के अनुशासन में बिताई थी। उनके पास सिर्फ़ कीपैड वाला फ़ोन था, जिसका इस्तेमाल वह केवल कॉल करने के लिए करती थीं। वहीं, अमिता का जीवन लैपटॉप, ईमेल और वीडियो कॉल पर चलता था।
देखने में घर शांत था, पर एक अदृश्य तनाव हमेशा मंडराता रहता था। निर्मला जी को बहू अमिता का मोबाइल इस्तेमाल करने का तरीका पसंद नहीं था। उन्हें लगता था कि बहू अपने ‘ऑनलाइन ग्रुप्स’ और सोशल मीडिया को मानवीय रिश्तों से ज़्यादा प्राथमिकता देती है। जब भी निर्मला जी कोई बात शुरू करतीं, अमिता के कान में ईयरपॉड्स लगे होते थे या उसकी नज़र लैपटॉप और स्मार्टफोन पर रहती थी।
निर्मला जी अक्सर बुदबुदाती थीं, “इस लड़की का सिर्फ़ शरीर हमारे घर में रहता है, दिमाग तो हमेशा फ़ोन या लैपटॉप में उलझा रहता है। कभी हमसे भी तो बात कर लिया करे! पता नहीं क्या करती रहती है, सारा समय फ़ोन में ही लगी रहती है।”
निर्मला जी एक सीधी महिला थीं, कुशल गृहिणी थीं, उनकी दुनिया उनका घर था। वहीं दूसरी ओर बहू अमिता मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करती थी, इसलिए घर पर ज़्यादा समय नहीं दे पाती थी। वह घर, नौकरी, दोस्त, घूमना-फिरना, सब जगह एक्टिव रहती थी। शांता दादी सब देखती थीं। वह समझती थीं कि दोनों अपनी-अपनी जगह पर सही हैं, पर निर्मला जी को लगता था कि अमिता बहू जानबूझकर उन्हें नज़रअंदाज़ कर रही है। इन्हीं छोटे-छोटे मतभेदों की वजह से घर में कलह का माहौल बन जाता था।
एक शाम, निर्मला जी ने ठान लिया कि आज यह बात साफ़ हो जानी चाहिए।
“बहू, सुनो, ज़रा किचन में आना! आज तुमने खाने में नमक ठीक से नहीं डाला,” निर्मला जी ने जानबूझकर ऊँची आवाज़ में कहा, ताकि बहू का ध्यान टूटे।
अमिता उस समय बहुत ज़रूरी ऑनलाइन मीटिंग में थी, जहाँ उसे अपने क्लाइंट को एक महत्वपूर्ण प्रेजेंटेशन देनी थी। उसने हाथ से इशारा किया कि वह बाद में आएगी, पर निर्मला जी को लगा कि बहू ने जानबूझकर उनको अनदेखा किया है।
वह गुस्से में सीधे कमरे में गईं और लगभग चिल्लाते हुए बोलीं, “ओह! क्या इतना ज़रूरी है यह लैपटॉप चलाना? क्या खाना ज़रूरी नहीं है? मैं कितनी देर से आवाज़ लगा रही हूँ!”
अमिता का ध्यान टूटा। उसकी मीटिंग में आवाज़ चली गई। क्लाइंट्स के सामने उसकी पेशेवर छवि को धक्का लगा। उस समय का तनाव और क्रोध इतना ज़्यादा था कि वह खुद पर काबू नहीं रख पाई।
वह झल्लाकर उठी और लगभग चिल्लाते हुए बोली, “माँ! आप कुछ समझतीं क्यों नहीं! यह मेरी नौकरी है, काम कर रही हूँ मैं, बेवजह का टाइमपास नहीं कर रही हूँ! अगर मेरी मीटिंग ख़राब हुई, तो कंपनी मुझे नौकरी से निकाल देगी! क्या आप चाहती हैं कि मेरी नौकरी चली जाए?”
इतनी तेज़ आवाज़ घर में सबको सुनाई दी। निर्मला जी के चेहरे का रंग उड़ गया। बेटा अमित तो सदमे में था। निर्मला जी की आँखों में नमी आ गई। बहू का इतनी तेज आवाज़ में बोलना निर्मला जी को बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने कुछ नहीं कहा और वह चुपचाप अपने कमरे में चली गईं।
अगले दो दिन घर में भयंकर चुप्पी रही। अमिता खुद पर बहुत शर्मिंदा थी। उसने जो कहा था, वह केवल क्रोध में कही गई बात थी।
तीसरे दिन, शांता दादी ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने बहू अमिता को अपने पास बुलाया।
दादी सास ने प्यार से कहा, “सुनो बहू, तूने जो कुछ कहा, वह ग़लत था। पर तुम्हारी सास भी ग़लत नहीं हैं। वह घर में अकेली रहती हैं। उनकी दुनिया बस इस घर तक सीमित है, जबकि तेरी दुनिया इतनी बड़ी है, और उसके पास वहाँ पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है।”
अमिता ने नासमझी से दादी जी की तरफ देखा। दादी ने मुस्कुराकर कहा, “तुम पूरा दिन फ़ोन-लैपटॉप के बीच में बिता देती हो, लेकिन तुम्हारी सास आज के ज़माने में भी इस चीज़ से अनजान हैं। वो आज भी पुराना कीपैड का फ़ोन इस्तेमाल करती हैं, जबकि उनकी सहेलियाँ तक आज के ज़माने के हिसाब से आगे बढ़ गई हैं, उन सबके पास स्मार्टफोन है।”
दादी सास ने अमिता के कान में फुसफुसाते हुए कहा, “जा, उसे एक स्मार्टफोन दे। उसे खुद की दुनिया बनाने का मौका दे! फिर देख, यह झगड़ा कैसे पल भर में दूर हो जाता है। तू बड़ी मॉडर्न है थोड़ा अपनी सास को भी नए ज़माने की चीज़ें सिखा।” ये सब कहकर शांता जी हँसने लगीं।
दादी सास की बात अमिता के दिल को छू गई। अगले दिन, अमिता ने अपनी सैलरी से एक अच्छा सा स्मार्टफोन खरीदा और रात को डिनर के बाद सास के सामने रख दिया।
“माँ, मेरी तरफ से आपके लिए एक छोटा सा गिफ़्ट,” अमिता ने प्यार से कहा, “मुझे माफ़ कर दीजिए, मुझसे गलती हो गई, मुझे आपसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी।”
निर्मला जी ने अमिता को देखा जो बड़ी उम्मीद और मासूमियत के साथ उनको देख रही थी, निर्मला जी ने फ़ोन तो ले लिया, लेकिन कुछ कहा नहीं।
अगले कुछ हफ़्तों में चमत्कार हो गया। अमिता ने धैर्य से उन्हें फ़ोन चलाना सिखाया। सबसे पहले, उसने निर्मला जी को उनकी पुरानी सहेलियों के साथ एक व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा। फिर, उन्हें उनकी भजन-कीर्तन मंडली के ग्रुप में जोड़ा गया।
निर्मला जी को लगा जैसे उनके जीवन में कुछ अनोखा हो गया है। उनकी सहेलियाँ भी ऑनलाइन थीं! उनका खाली समय अब आनंद से भरने लगा। अमिता और निर्मला जी की जोड़ी बन गई। अब वे दोनों एक-दूसरे से ऑनलाइन बात करना सीख चुकी थीं। घर का कलह धीरे-धीरे खत्म हो गया, वो दोनों अब खुश रहने लगी थीं।
लेकिन, कहानी में एक मज़ेदार मोड़ आया।
जल्द ही, निर्मला जी अपने स्मार्टफोन में इतनी व्यस्त हो गईं कि उन्होंने अपने पति वर्मा जी और बेटे अमित को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया।
वर्मा जी को अब अपनी पत्नी से बात करने के लिए समय लेना पड़ता था। वह अक्सर अपनी बहू अमिता से शिकायत करते, “बहू, जब तुम फ़ोन चलाती थी, तब भी ठीक था, पर कम से कम तुम्हारी मीटिंग का समय निश्चित होता था! अब तो तुम्हारी सास हमेशा ऑनलाइन रहती हैं। मैं चाय के लिए आवाज़ लगाता हूँ, तो कहती हैं— ‘जस्ट अ मिनट! ग्रुप में मैसेज डाल रही हूँ!'”
बेटा अमित अब बेचारा हो गया था। माँ और पत्नी दोनों व्यस्त रहने लगीं थीं।
एक रात, वर्मा जी और अमित, दोनों थके-हारे सोफ़े पर बैठे थे। शांता दादी सोफ़े पर बैठी थीं, उन्होंने यह देखकर ज़ोर से ठहाका लगाया। वर्मा जी ने दादी से शिकायत की, “माँ! देखो न, पहले बहू फ़ोन चलाती थी, अब बहू ने बीवी को बिगाड़ दिया! कौन ज़्यादा खतरनाक है?”
शांता दादी ने हँसते हुए कहा, “अरे बेटा, मेरी बहू ने तो घर में कलह का माहौल दूर किया है, देखो दोनों कितनी शांत और खुश हैं। अब तुम दोनों को भी खुश रहना चाहिए। अब तुम दोनों को कभी-कभी चाय खुद बनाकर पीनी चाहिए और अपनी पत्नियों को भी पिला देनी चाहिए, क्योंकि बहू और सास को अब सोशल मीडिया से फ़ुर्सत नहीं है! जाओ, अपनी बीवियों को डिस्टर्ब मत करना, उन्हें ग्रुप डिस्कशन करना है!”
और इस तरह, इनके घर का ‘कलह’ खत्म हुआ, पर उसकी जगह दो महिलाओं के मजबूत ऑनलाइन रिश्ते ने ले ली, और अब वर्मा जी और अमित को अपनी पुरानी शांत ज़िंदगी पाने के लिए खुद का संघर्ष शुरू करना पड़ा, लेकिन वो दोनों बेचारे नहीं थे बल्कि सास-बहू की बॉन्डिंग से बहुत खुश थे, बस घर में हँसी-खुशी का माहौल रखने के लिए बेचारेपन का नाटक कर लिया करते थे। लेकिन शांता जी को उनके नाटक पहले ही समझ आ जाते थे और फिर शांता जी अपनी बहुओं की तरफ आ जाती थीं। अब घर में हँसी-खुशी का माहौल बन गया है।
“और इस तरह, घर का ‘कलह’ तो खत्म हुआ, पर उसकी जगह हँसी-खुशी ने ले ली। इस कहानी ने साबित कर दिया कि स्मार्टफोन सिर्फ़ दूरी ही नहीं, बल्कि प्यार का पुल भी बन सकता है! पर आपको क्या लगता है, वर्मा जी और अमित अब अपनी खोई हुई ‘शांति’ कैसे वापस लाएँगे? क्या आपके घर में भी सास-बहू की जोड़ी के आगे पिता-पुत्र को कभी हार माननी पड़ी है? कमेंट करके बताइए, हम आपकी राय का इंतज़ार कर रहे हैं!”
समाप्त
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