महेश बेचैनी से आपरेशन थियेटर के बाहर चहलकदमी कर रहा था । थोड़ी देर में डाक्टर बाहर आए तो महेश लपककर डाक्टर के पास जा पहुंचा, डाक्टर साहब मेरी पत्नी कैसी है । हां मैंने उसका पेट क्लीन कर दिया है , लेकिन अभी भी उनके जिस्म में ज़हर का असर है और वो बेहोश है ।
48 घंटे के बाद ही पता चलेगा कि वो बच पायेगी या नहीं। ऐसा न कहें डाक्टर साहब बचा लिजिए मेरी पत्नी को। हां हां मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं लेकिन ये सब हुआ या होता क्यूं है ।
आप घर में टेंशन पैदा करते हैं तभी घर की औरतें इस तरह का कदम उठाती है ।और ये आपकी पत्नी के साथ एक बार नहीं दूसरी बार हुआ है ।और यदि आपने आगे ध्यान नहीं दिया तो बहुत मुश्किल हो जाएगा उसे बचाना। नहीं डाक्टर साहब अब ऐसा नहीं होगा।और महेश आंसू पोंछता बाहर आ गया।
महेश कुछ देर के लिए घर आया तो देखा उसकी तीन साल की बेटी महेश को देखते ही सहमकर दादी की गोद में छिप गई। कैसी है महेश बहू बच गई ,मर ही जाती तो अच्छा था रोज़ रोज़ मरने से एक दिन ही मर जाना अच्छा है। तूने तो बहू का जीना दूभर कर रखा था।
रोज उसको मारता पीटता था आखिर तंग आ गई थी वो तुझसे। लेकिन मां तुम भी तो उसे दिनभर ताने देती थी।और अब सारा इलज़ाम मुझ-पर लगा रही हो। हां देती थी ताने लेकिन बहू कभी भी मुझे जवाब नहीं देती थी मेरा अच्छे से ख्याल रखती थी ।
और पोता चाहती थी मैं लेकिन उसने लड़की पैदा कर दी ।मैं अपनी पोती से नफ़रत करती थी । लेकिन जब हमारी पोती छै महीने की हुई तो वो मुझे देखकर मुस्करा देती थी तो धीरे धीरे मैं इसकी तरफ खिंचने लगी ।और एक दिन जब मैं इसके पास से निकलीं तो इसने मेरा साड़ी का पल्लू पकड़ लिया और मैंने इसे गोद में उठा लिया।और मेरे अंदर की ममता इसको गोद में लेने से ही उमड़ पड़ी ।और मैंने गुनगुन को सीने से लगा लिया और मैं बेटा और बेटी का फर्क भूल गई।
सुनंदा जिसकी शादी महेश से चार साईं पहले हुई थी। महेश की बिजली के सामान की दुकान थी।अच्छी चलती थी घर में सास और एक बहन थी। बहन की शादी पहले ही हो चुकी थी। महेश के पिता जी नहीं थे । उनकी मृत्यु कई साल पहले ही हो चुकी थी। महेश ही दुकान चलाता था। बिजनेस अच्छे से कर लेता था।
सुनंदा जब छोटी थी तभी उसकी मां गुजर गई थी । पिताजी ने दूसरी शादी कर ली थी। सौतेली मां के जुल्मों से तंग थी सुनंदा। मां के विरोध की वजह से सुनंदा ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाई थी बस किसी तरह इंटर कर लिया था। आगे कालेज में मां ने एडमिशन नहीं होने दिया।बेचारी सुनंदा आगे पढ़ाई की हसरत लिए ही ब्याह दी गई।
सुनंदा के सौतेली मां के रिश्ते दारी में था महेश।बस पता लगा कि महेश की शादी के लिए उसकी मां कोई लड़की तलाश कर रही है तो सुनंदा की मां ने सुनंदा का रिश्ता महेश के घर भिजवा दिया। महेश भी कुछ ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था।बस भाई स्कूल तक ही पढ़ा था । सुनंदा के रिश्ते से महेश और उसकी मां को कोई दिक्कत नहीं थी।और शादी हो गई ।
शादी के कुछ समय तो सब ठीक था । सुनंदा घर के कामों में होशियार थी सबकुछ अच्छे से संभाल लिया था। लेकिन महेश को शराब पीने की आदत थी।जिसकी वजह से रात बिताते जब वो पीकर आता तो सुनंदा को परेशान करता । बिना मतलब गाली गलौज करता। सुनंदा सबकुछ खामोशी से सुन लेती थी।
एक रात सुनंदा की कुछ तबियत ठीक नहीं थी तो उसने महेश का खाना ढककर रख दिया और लेट गई। महेश आया रात को पीकर तो देखा सुनंदा लेटी हुई है । महेश ने दो तीन बार आवाज लगाई कि खाना दे दे तो सुनंदा ने लेटे हुए ही कह दिया कि खाना ढका रखा है खा ले मेरी कुछ तबियत ठीक नहीं है।
महेश ने जब खाना देखा तो उसका तेवर चढ़ गया क्या मैं ये ठंडा खाना खाऊंगा , महेश कमरे में गया और सुनंदा के हाथ पकड़कर उठा दिया बिस्तर से चल खाना गर्म कर ठंडा खाना खाऊंगा क्या। आराम से सो रही है । आराम से सो नहीं रही मेरी तबियत ठीक नहीं है आज मुझे बुखार है बदन टूट रहा है । अच्छा और महेश ने एक थप्पड़ जड़ दिया सुनंदा तिलमिला गई लेकिन चुप रही कुछ न बोली।
दूसरे दिन सुनंदा ने सास के पास जाकर शिकायत की तो सास ने भी बेटे का पक्ष लिया ।अब तो हर रोज घर में किसी न किसी बात से कलह होने लगी। सुनंदा किससे शिकायत करें उसका कोई नहीं था न ही ससुराल में और नहीं मायके में बस कड़वा घूंट पीकर रह जाती।एक दिन सुनंदा को सुबह-सुबह उल्टियां होने लगी
सास की पारखी नजर ने भांप लिया कि सुनंदा पेट से है ।अब सास कहने लगी कि देख बहू मुझे तो पोता ही चाहिए लड़की ने पैदा करना।अब सुनंदा दिनभर इसी टेंशन में रहती कि बेटा होने का दबाव बना हुआ है अब इसमें मैं क्या कर सकती हूं ।जो भी ईश्वर की मर्जी होगी वहीं तो होगा।
इसी बीच महेश की दुकान में शार्ट सर्किट से आग लग गई और उसके दुकान का सारा सामान जल गया ।अब महेश और भी टेंशन मे आ गया।इधर सुनंदा प्रेगनेंट थी तो कुछ शारीरिक परिवर्तन से परेशानियां बढ़ रही थी । सुनंदा ने महेश से कहा मुझे डाक्टर को दिखा दो । महेश वैसे भी दुकान में हादसा हो जाने की वजह से परेशान था।और इधर रोज ही रोज सुनंदा को भी कुछ न कुछ परेशानी होती रहती थी। महेश उसको डाक्टर के पास नहीं ले जा रहा था।तब सुनंदा ने कहा मुझको पैसे दे दे मैं खुद ही चली जाऊंगी बस फिर क्या था महेश गुस्से में उठा और सुनंदा को धक्का दे दिया और बोला तेरे बाप ने खजाना दिया है क्या पैसे दे दूं ।पूरी दुकान जल गई और तुझे पैसे की पड़ी है।जा अपने बाप से मांगकर ला । तभी बीच में सास बोली पड़ी हां हां बेटा दहेज तो कुछ दिया न था इसके बाप ने अब दुकान की भरपाई करने के लिए इसके बाप से ही पैसे मांग। दोनों तरफ से अपने ऊपर वार होते देख सुनंदा परेशान हो गई। सोचने लगी इस घर में जब मेरी स्थिति ऐसी है तो बच्चे की क्या होगी।
रात में सुनंदा ने सास की अस्थमा की कुछ दवाइयां पड़ी थी उठा लाई और खा ली ।रोज रोज के कलह से तंग आ गई थी। सुबह-सुबह उसको तेज पेट दर्द हुआ और उसका बच्चा गिर गया । ज्यादा खून बह जाने की वजह से सुनंदा बेहोश सी हो गई। महेश ने देखा कि बेसुध सी बड़ी है सुनंदा तो उसे होश आया और तुरंत अस्पताल ले गया ।समय पर अस्पताल ले जाने से सुनंदा की जान बच गई।अब महेश थोड़ा घबरा तो गया उसने अपने रवैए को थोड़ा ठीक करना शुरू किया।बहन सुमन को पता लगा तो वो घर आई और मां और भाई को अच्छी डांट लगाई ।तो मां का रवैया सुनंदा के लिए थोड़ा ठीक होने लगा।। अभी छै महीने ही बीते थे कि सुनंदा फिर से प्रेगनेंट हो गई।इस बार महेश का रवैया थोड़ा ठीक था ।नौ महीने बाद सुनंदा ने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी हो जाने से सास के तेवर बदल गए।सास फिर बेटे के कान भरने लगी बेटी पैदा करके रख दिया। तेरे ऊपर और बोझ डाल दिया। महेश भी बेटी होने का ताना देने लगा । बेटी को कभी प्यार न करता नफरत से उसे देखता। महेश फिर पहले जैसी हरकतें करने लगा जब भी पीकर आता सुनंदा से बदतमीजी करता। दिन भर के इस कलह से सुनंदा बिल्कुल टूट गई थी।हर वक्त सास और पति की उलाहना और उपेक्षा सहते सहते ऊब गई थी।
बच्ची अब छै महीने की हो रही थी । दादी को देखकर हंसने लगी थी।सास का मन थोड़ा थोड़ा बदलने लगा था कभी कभी कोई न होता तो थोड़ा प्यार दुलार कर लेती थी।आज बेटी की तबीयत खराब थी बुखार था आज फिर महेश से सुनंदा ने पैसे मांगे इलाज के लिए ।तो गुस्से में आकर महेश चिल्लाने लगा एक तो बेटी पैदा कर दी है अब उसके इलाज को पैसे मांगने को खड़ी है । सुनंदा बोली तो बेटी बीमार है तो इलाज न करवाएं क्या। महेश ने उठकर आज फिर सुनंदा को एक थप्पड़ जड़ दिया अब जुबान चलाएगी मुझसे। सुनंदा अब अपने साथ साथ बच्ची का भी तिरस्कार देखकर तिलमिला उठी। रोज़ रोज़ के कलह से ऊब गई थी । बच्ची को एक बार प्यार से गले लगाया और आज फिर उसने ढेर सारी एक्सपायरी दवाएं खा ली ।सुबह जब सुनंदा के मुंह से सफेद झाग निकलता देखा तो महेश घबरा गया। क्या हो गया इसे।आनन फानन में अस्पताल ले गया । डाक्टर ने कहा बचने की उम्मीद कम है ।अब महेश का जमीर जागा कहीं मर तो न जाएगी ।इधर ननद सुमन को जब पता लगा तो वो घर आई और मां को और भाई को खूब लताड़ा । क्या हो गया है भाई तुम्हें सुनंदा को कुछ हो गया तो बच्ची को कोन पालेगा । इतनी अच्छी पत्नी मिली है आदर नहीं करता तू उसकी।बहन की डांट का शायद कुछ असर हुआ तो वह बेचैन हो गया कहीं सच में सुनंदा को कुछ हो गया तो।चहल कदमी करता हुआ महेश जब डाक्टर को देखा तो पूछने लगा डाक्टर साहब कैसी है मेरी पत्नी। डाक्टर ने बताया 48 घंटे का समय है होश में आ जाती है तो ठीक है वरना,,,,,।
48 घंटे हूं सुनंदा को होश आने लगा थोड़ा थोड़ा। डाक्टर की बात सुनकर कि अब आपकी पत्नी खतरे से बाहर है महेश रूम में गया। सुनंदा की ऐसी हालत का जिम्मेदार वो स्वयं को ही मान रहा था।मान क्या रहा था ,था ही वो जिम्मेदार।
घर आकर महेश ने मां को बताया कि सुनंदा होश में आ गई है। महेश को देखकर गुनगुन दादी की गोद में और चिपक गई। सोचने लगा महेश सुनंदा को कुछ हो जाता तो बच्ची का क्या होता।अब यदि मेरा घर उजड़ जाता तो कौन शादी करता मुझसे।
बहुत मन पक्का करके आज महेश अस्पताल पहुंचा।तो सुनंदा ने मुंह फेर लिया । शर्मिंदगी से सिर झुकाए हुए महेश सुनंदा से बोला मुझसे गलती हो गई सुनंदा मुझे माफ कर दो।माफ़ कर दो सुनंदा , महेश ने सुनंदा का हाथ पकड़ लिया।अब ऐसा कुछ नहीं होगा सुनंदा हम खुशी खुशी रहेंगे।
आज सुनंदा की बेटी का तीसरा जन्मदिन है ।एक सुंदर सी फ्राक लेकर आया है बेटी के लिए ।आज पहली बार महेश ने बेटी को गले से लगाया है ।चारों लोग ही घर में ही बेटी का जन्मदिन मना रहे हैं। महेश का दिल एक अलग ही अनुभूति से भर गया बेटी को गले लगाकर।
घर में कलह की जगह खुशहाली आ जाए तो पूरा घर , दीवारें खिड़कियां सब चहकने लगते हैं । खुशियां हर ओर बिखरने लगी थी।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
9 नवंबर