रजनी शादी हो कर एक भरे पूरे घर में हुईं थी।जहां सास सरस्वती और ससुर घनश्याम पति राघव देवर धीरेन और बहन राधा ऐसा परिवार था।ससुर की परचून की दुकान थी।राघव सेल्स मेन था जो एक साबुन की कंपनी में काम करता था।धीरेन एक फर्म में नौकरी करता था।
राधा बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी।सास सरस्वतीं एक तेज तरार महिला थी जो सुबह से बोलना शुरू करती तो रात तक बोलती ही रहती।ससुर चुप चाप सुबह 8 बजे अपनी दुकान खोल लेते।राघव की कमाई भी कुछ खास नहीं थी जब सेल्स होती तो पैसा मिलता नहीं तो राम भरोसे। रजनी शादी हो कर आई पिता ने अपनी हैसियत अनुसार दहेज दिया पर सरस्वती को वो भी कम लगता सुबह उठते ही शुरू हो जाती तेरे मां बाप ने कुछ नहीं दिया कंगाल को पल्ले बांध दिया।
अपने बेटे को पास बिठा बाते करती पुचकारती पर कोसने सारे बहु को इसी बीच धीरेन की भी शादी हो गई उसकी पत्नी मोटा दहेज लाई उसका नाम था पूजा उसे तो कभी कभार ही कुछ कहती पर रजनी के पीछे तो वो पड़ी ही रहती।सारा काम रजनी करती पर देवरानी और सास उसका जीना हराम करके रखते।
इसी बीच वो साबुन की फैक्ट्री बंद हो गई और राघव की नौकरी चली गई अब तो सारा दिन ताने पति की नौकरी खा गई मेरा बेटा कमाता था देवरानी अलग बोलती की हमारे टुकड़े तोड़ते है।रजनी graduate थी संस्कृत में उसने बीएड भी किया था पर संस्कृत को कोई पूछता नहीं तो वो चुप। हो रही पर अब पति बेरोजगार खाने पर ताने मिलते इसलिए उसने पास ही के एक स्कूल में अध्यापिका के पद के लिए आवेदन दिया और वो स्वीकार हो गई उसे नौकरी लग गई।
अब रजनी सुबह का नाश्ता खाना सफाई कर स्कूल जाती फिर 3 बजे वापस आती पर सास की चिक चिक बंद नहीं होती।वो बेटे को भी भड़काती की ये कमा कर तुझे नीचा दिखाना चाहती है ऐसा वैसा रजनी इस रोज रोज की कलह से तंग आ गई थी।
उसने राघव से सीधे बात करने की सोची उसने राघव से कहा राघव हम कब तक दूसरों पर निर्भर रहेंगे।देखो मेरी नौकरी लगी है हमारी होने वाली संतान को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।राघव बोला तुम मुझे जता रही हो।रजनी बोली मैं क्यों जताऊंगी दूसरों के जताने के कारण ही तो यह कह रही हूं
मैं समझो राघव प्लीज़ ।राघव बोला ठीक है मै कोई नौकरी देखता हूं।अगले दिन सुबह राघव भी जल्दी उठा और नौकरी ढूंढने गया। सरस्वती बोली सुबह सुबह मेरे बेटे को भेज दिया घनश्याम बोले क्यों वो काम नहीं करेगा घर चलाना उसी की जिम्मेदारी है बस मेरे बेटे के पीछे पड़े रहते हैं।
सरस्वती की छोटी से भी कम ही बनती थी क्योंकि वो मुंहफट थी और बहु अच्छे घर से आई थी दूसरा उसके पति की कमाई अच्छी थी तो सरस्वती एक बोलती वो चार सुनाती सारा दिन घर में कलह शोर और पड़ोसियों को मजा ।एक दिन राघव अपने एक मित्र के घर नौकरी के सिलसिले में गया वहां इतना शांत माहौल था।उसकी मां पूजा कर रही थी।पत्नी रसोई के काम कर रही थी।
उसके दोस्त अविनाश ने अपनी पत्नी को चाय लाने को कहा वो चाय लाई तब तक अविनाश के माता पिता भी आ गए ।अविनाश की मां उसकी पत्नी से बोली बेटा पहले तुम चाय नाश्ता कर लो फिर हम मिलकर बाकी काम कर लेंगे।इतनी शांति और सोहार्द पूर्ण वातावरण था उसे अच्छा लगा उसे आज रजनी की बात याद आई बरकत वही होती हैं जहां घर में कलह नहीं शांति होती हैं।राघव की नौकरी दूसरे शहर में लगनी थी
उसने घर आकर ये बात रजनी को बताई और बोला कि तुम तैयारी पकड़ लो अपने स्कूल में भी बता देना 15 दिन बाद हम निकलेंगे जब तक लेटर नहीं आता तुम कुछ मत कहना किसी से।रजनी अपने काम कर रही थी कि तभी सरस्वती बाहर से आई और बोली अरे कुलक्षिणी तू पढ़ाने जाती हैं
या फिर दूसरों के घर में घुसने ।रजनी बोली मां आप ऐसा क्यों कह रही है आपको पता है मै स्कूल जाती हूं वहां से दो बच्चों को टयूशन पढ़ाती हूं और तो मै कही नहीं जाती और वो ट्यूशन वाले इनके जानकार हैं। हा पता है मुझे उस घर का आदमी घर में रहता हैं तू उससे मिलने जाती हैं।सब पता है मुझे शांति ने बताया सब ।मां आप ये क्या कह रही है।आप मेरे चरित्र पर उंगली उठा रही है।
तभी राघव आ गया बोला मेरी नौकरी हो गई है रजनी तैयारी करो हमे सोमवार वहां पहुंचना है। पहले इस की हरकत तो देख ले ? क्यों क्या हुआ अब सरस्वती बोली दूसरों के घर में घुस जाती है जहां आदमी रहता है उसे रिझाने जाती हैं।किसके घर क्या कह रही है मां आप ?सच कह रही हूं सारा मोहल्ला यही बात करता है।
मां चुप कर जाए आप को अपनी बहु का नहीं पता वो कैसी है? और नीरज के घर मैने ही रजनी को जाने के लिए कहा था और वो कोई घर नहीं बैठा रहता अपनी दुकान चलाता है घर में उसकी बीवी मां सब होते है। रजनी तुम तैयारी करो मां तुम्हारी इस कलह से तंग हो कर पिताजी देर रात तक दुकान पर रहते हैं कोई इस घर में रहना नहीं चाहता।
मै भी जा रहा हूं।रजनी चलो ससुर घनश्याम बोले बेटा कहा जा रहे हो।पिताजी मेरी दूसरे शहर में नौकरी हो गई है और रजनी के लिए भी वही के एक स्कूल में बात कर ली है।अब हम अपनी गृहस्थी सुख शांति से बिताएंगे पिताजी मैं चलता हूं।जिस घर में इतनी कलह हो वहां सुख शांति बरकत हो ही नहीं सकती और अब सवाल मेरी पत्नी के चरित्र का है तो मै उसके बारे में अपशब्द नहीं सुनूंगा वो इतनी मेहनत हमारे लिए ही तो कर रही थी।
यह कह राघव रजनी का हाथ पकड़ निकल गया।घनश्याम सरस्वती से बोले तेरी कलह से मेरी मां मरी आज एक बेटा चला गया अब इंतजार कर की दूसरा भी जाए और फिर मैं भी जाऊ तू फिर सुबह से शाम अकेली शोर मचाना।सब अपने अपने कमरे में चले गए और आंगन में सरस्वती खड़ी थी तभी शांति आई बोली क्या हुआ और ये राघव किधर निकल गया।सरस्वती बोली मेरी कलह से घर छोड़ चला गया बता जरा मै लड़ाई करूं।
बड़ा जोरू का गुलाम हो रहा है। 4 दिन में वापस ना आया तो फिर कहना।रजनी और राघव दोनो नए शहर में बस गए धीरे धीरे मेहनत कर उन्होंने अपने लिए दो कमरों का घर ले लिया उसी बीच उनके पड़ोसी ने बताया कि सरकारी नौकरी निकली है संस्कृत अध्यापिका की पहले इंटरव्यू में ही रजनी का सिलेक्शन हो गया
अब उनके दिन फिर गए राघव ने भी लोन ले अपनी खुद की कपड़ों की दुकान कर ली।रजनी ने दो साल बाद बेटे को जन्म दिया उसकी मां उसके पास आ बच्चे को संभालने लगी।इसी बीच दिवाली पर इस बार राघव और रजनी अपने माता पिता के पास दिवाली मनाने आए देखा पूरा घर अंधेरे में डूबा है पिताजी सो रहे हैं और मां रसोई में खट पट कर रही थी।
राघव अंदर आया बोला पापा घनश्याम उठे बोले राघव बहु तुम आवाज सुन सरस्वती भी आई कमजोर लग रही थी।राघव बोला इतना अंधेरा क्यों है? धीरेन कहा है इसकी जबान की वजह से वो भी घर छोड़ गया।अब हम अकेले है।पापा आप अकेले नहीं हम है देखिए आपका पोता रजत।रजनी जल्दी रसोई में गई सबका खाना बना लाई ।
सबने खाना खाया घर में दिए जलाए दिवाली मना राघव के लौटने का टाइम हुआ सरस्वती बोली ना जा ये तेरा घर है ।राघव बोला यहाँ से जाकर ही तो शांति और जिंदगी जीने की कला आई। आप लोग हमारे साथ चलिए।नहीं बेटा तुम आराम से रहो हमे यही रहने दो इसे सुख नसीब होगा तो फिर इसकी कलह शुरू हो जाएगी इसलिए हमें यही रहने दो घनश्याम बोले ।
भारी मन से राघव और रजनी वापस आ गए और सरस्वती सोचती रही जो मज़ा लेते थे भड़काते थे अब वो अपने घर में सुख से बैठे है और मैं अपना सब कुछ लुटा अकेली पड़ी हूं।
बहु पोते वाली होकर अकेली पड़ी हूं। घनश्याम की आवाज आई उठो दिए लगाओ और खाना बना लो। सरस्वती भारी मन से रसोई में गई तो देखा सब बना हुआ है रजनी जाने से पहले सब करके गई थी वो अपनी करनी पर रो पड़ी।सब था उसके पास पर अपने व्यवहार से वो रह गई खाली हाथ।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी