पूरा हॉल तम्बाकू के कसैले धुंए और अल्कोहल की मिली जुली दमघोंटू महक से भरा हुआ था. निऑन लाइटों के रंगीन प्रकाश बिंदु इधर से उधर उछल रहे थे. कर्णभेदी संगीत की धुनों पर कई जोड़े लिपटकर ऐसे नाच रहे थे जैसे दुनिया में मुहब्बत की परिभाषा इन्ही से शुरू होकर इन्ही पर समाप्त होती है. कुछ नव धनकुबेर से दिखने वाले लोग और मेकअप की कई परतों में लिपटी हुई बालाएं, पाषाण युग की तरह गोश्त के टुकड़ों को दोनों हाथों से पकड़कर ऐसे उधेड़ रहे थे जैसे ढील छोड़ते ही मुर्गा उड़ जाने वाला हो.
एकदम कौने में पड़ी एक मेज पर एक गौरवर्ण, अनुपम सौंदर्य की प्रतिमूर्ति सी रमणी अकेली चुपचाप कोई जूस पी रही थी. तभी एक मोटे सा व्यक्ति उस महिला के पास आया. उसके पांव नशे में लड़खड़ा रहे थे और होठों के किनारों पर पान की लाली जैसे चूकर बह निकलना चाहती थी. उन्होंने थोड़ा झुककर करुणा की तरफ हाथ बढाकर कहा “में आई डांस विद यू”. महिला ने लापरवाही से उसकी और देखा और रूखे से स्वर में ‘नो आई एम् नॉट इंटरस्टिड’ कहकर दूसरी तरफ देखने लगी. मोटा आदमी हिलोरे सी लेता हुआ दूसरी तरफ बढ़ गया.
रात अब गहराने लगी थी. कई जोड़े नृत्य के बहाने अश्लीलता की हद तक एक दूसरे के शरीरों को टटोलने में व्यस्त थे. नशे के कारण शरीर पर नियंत्रण न रहने के कारण कुछ लोग लड़खड़ाते से बेमन से पार्टी छोड़कर जा रहे थे. कई लोगों की बीवी या गर्लफ्रैंड उन्हें सहारा देकर बाहर की और ले जा रही थीं. रात ढलने लगी थी. संगीत धीमा होता जा रहा था और धीरे धीरे लाइटें बुझाई जा रही थीं.
तभी करुणा के पति तन्मय लपकते हुए उसके पास आये और बोले “डार्लिंग, मैं तुम्हे अपनी टीम से मिलाना तो भूल ही गया”. और बांह पकड़कर लगभग घसीटते से कई लोगों के एक झुण्ड के पास ले गए जो शायद अपनी आखिरी ड्रिंक ख़त्म कर रहे थे. “वैल, ऑल ऑफ़ माई फ्रेंड्स, ये हैं मेरी हमसफ़र माई डार्लिंग, माई वाइफ करुणा शर्मा एन्ड मिस्टर सबरवाल द फाइनेंसर, वरुण, शायला, डायरेक्टर खन्ना और राईटर मिस्टर दिवाकर. और ये हैं मेरे ख़ास दोस्त और पार्टनर मिस्टर जोसफ फर्नांडीज”. कुछ लोग हाथ मिलाने को आगे बढ़ाते, इस से पहले ही करुणा ने दोनों हाथ जोड़कर सबका अभिवादन किया. इन लोगों में जोसफ ही वो व्यक्ति था जिसने करुणा को डांस का ऑफर दिया था. वो अब भी वासना मई निगाहों से करुणा को घूर रहा था.
विलाड़ के फ्लैट नंबर 1703 में रात के बारह बजने जा रहे थे. करुणा डाइनिंग टेबल पर सर टिकाये तन्मय की प्रतीक्षा कर रही थी. तभी दरवाजे पर कुछ खटपट सी हुई और बहार से अपनी चाबी से दरवाजा खोलकर तन्मय ने प्रवेश किया और डाइनिंग टेबल पर बैठी करुणा को देखकर बोला “ओह माई गॉड. डार्लिंग तुम अबतक जाग रही हो. तुम से कितनी बार कहा है कि मेरे काम का कोई भरोसा नहीं है. तुम खाना खाकर सो जाया करो मगर तुम्हे समझ में ही नहीं आता है. कितने लोगों से मिलना पड़ता है. फिर मीटिंग, बार बार चाय, कॉफी, सॉफ्टड्रिंक. कुछ तो भारत के सबसे मॉडर्न और तेज भागते मेट्रोपोलिटन सिटी मुंबई के साथ खुद को बदलने का प्रयास करो”.
” सब कुछ मुझे ही बदलना है तन्मय. एक साल हो गया हमारी शादी को. अगर मैं तुम्हारी दिशा में चार कदम चलूँ तो दो कदम तो तुम्हे भी चलना चाहिए ना. तुम बताओ, तुम कितने बदले हो. अपनी भूखी बैठी पत्नी को एक फोन भी…”.
“ओफ़… फिर वही कभी ना ख़त्म होने वाली बहस. तुम्हे नहीं पता था कि तुम शादी होकर मुंबई जैसे भागते शहर में एक फिल्मो से जुड़े आदमी के साथ जा रही हो. अगर इस शहर, इसकी संस्कृति, रहन सहन, खानपान के हिसाब से खुद को ढाल नहीं सकती थीं तो ना करने की चॉयस थी तुम्हारे पास”.
“चॉयस तो तुम्हारे पास मुझसे कहीं अधिक सुलभ थी तन्मय. तुम रहते थे इस चौबीस घंटे जागते और नियोन लाइटों से जगमगाते महानगर में जहाँ छोटे छोटे पारदर्शी कपड़े पहने सुंदरियाँ तुम जैसे फिल्मो से जुड़े नौजवान के चरों और मंडराती रहती हैं. फिर मध्य भारत के छोटे से शहर में क्यों गए थे अपने लिए जीवन साथी ढूंढने. जब तुमने अपना कार्यक्षेत्र यहाँ चुना है तो क्यों इस शहर में समरस नहीं होना चाहते थे. क्यों तुम्हे अपनी मूल जमीन की महक, भाषा, जीवन शैली, मूल्य, और रहनसहन खींचकर ले गए गर्म रेत में तपते बाड़मेर की ओर. और अब तुम चाहते हो कि पाषाण सी कठोर जीवन की मान्यताएं, मापदंड और परिभाषाएं छोड़कर हजार मील दूर से आया ये पौधा पश्चिम से आई हवाओं के साथ उड़ने वाले शहर में लहलहा उठे. मर जायेगा वो तन्मय मर जायेगा”.
तन्मय बेडरूम के दरवाजे तक गया. अपना कोट उतारकर बैड पर उछाल दिया. मुड़कर दोबारा डाइनिंग टेबल पर पहुंचा और एक कुर्सी खींचकर उसपर बैठ गया. उसने जग से ग्लास में ढालकर एक घूँट पानी हलक में उतरा, कुर्सी से पीठ लगाई और आँखे बंद कर लीं. कुछ क्षण बाद ऑंखें खोलीं और एक एक शब्द पर जोर देकर बोला “जिस तरह के छोटे शहर से तुम आईं थीं, लगभग उसी तरह के शहर से मैं भी आया था इस महानगर में जिसे तुम पाश्चात्य संस्कृति, अनकल्चर्ड, चरित्रहीन और ना जाने क्या क्या बोलती हो. तुमने अपने दिमाग को एक सीमित दायरे में कैद कर लिया है. तुम्हे लगता है कि हमारी मान्यताएं,जीवन के मापदंड और सीमायें दुनिया में सबसे आदर्श हैं. केवल हम लोग ही महा चरित्रवान, आध्यात्मिक, भारत की पुरातन संस्कृति के धारक और संरक्षक हैं. बाकी सब वाहियात हैं. तुम्हे लगता है कि मुंबई में रहने वाली अपना कैरियर ढूंढने वाली आधुनिकाएं अपना चरित्र हथेली पर लिए घूमती हैं. तुम परिधान में, जीवन शैली में, और शहर की चमक दमक में करेक्टर तलाश करती हो और वो भी अपने मापदंडों पर. देखो… दुनिया में अलग द्वीपों, महाद्वीपों, नदियों के किनारे और पर्वतों की घाटियों में भिन्न भिन्न मानव सभ्यताएं विकसित हुईं. उन्होंने अन्य सभ्यताओं से दूर अपनी जीवन शैली, अन्तर्सम्बन्धों की सीमायें, वस्त्र विन्यास, विवाह पद्यतियाँ और देवता सुनिश्चित किये. उन्होंने अपने चरित्र के मापदंड भी सुनिश्चित किये होंगे. शायद इसी को संस्कृति कहते हैं. बाद में आवागमन के साधन बढ़ने और संचार संपर्कों का विस्तार होने से दुनिया छोटी होती चली गई. अनेक सभ्यताओं ने एक दूसरे के रस्मोरिवाज, खानपान, रीतिरिवाज और धर्म को अपना लिया या कहीं कहीं थोप भी दिए गए. अब आप चाहते हैं कि पूरी दुनिया के मापदंड वैसे हों जैसे हमारी सिंधु घाटी की आर्यन सभ्यता के हैं. हा हा हा. ये तो एक मजाक सा हो गया ना करुणा”. फिर कुछ देर चुप रहकर दोबारा बोले. “आज मैं तुम से साफ़ साफ़ बात करना चाहता हूँ करुणा. हमारी शादी को एक साल हो गया. क्या इस एक साल में कभी तुमने ये अनुभव नहीं किया कि मेरे संघर्ष, तनावों और तुम्हारे बदले हुए परिवेश के उपरांत भी हमने एक प्यार भरा वर्ष गुजरा है. क्या तुम्हे नहीं लगता कि हमारे इस स्वनिर्मित नव उपवन में कभी सुगन्धित, सुवासित, प्रेमपुष्प पल्ल्वित नहीं हुए. क्या तुम्हे लगता है कि मेरे साथ मुंबई आने का तुम्हारा निर्णय गलत था. मैं तुम्हे प्यार नहीं करता. मेरे जीवन में कोई और है. कष्ट होता हैं मुझे जब तुम्हे दुखी देखता हूँ तो. एक अपरध बोध जन्म लेने लगता हैं मन में.”
“वो बात नहीं है तन्मय किन्तु …।”
“फिर तुम एडजेस्ट करने का प्रयास क्यों नहीं करतीं हो करुणा. मैं यहाँ मुंबई में तुम्हारी सहेलियों का झुण्ड और सावन के झूले तो ला नहीं सकता. यहाँ का जीवन ऐसा ही है. तुम्हारे बाड़मेर से बिलकुल अलग. यहीं तुम्हे रहना है, अगर मेरे साथ रहना चाहो तो. किन्तु आज मैं साफ़ साफ़ बात करना चाहता हूँ. एक वर्ष निर्णय लेने के लिए कोई कम समय तो नहीं होता. तुम जैसा चाहो निर्णय ले सकती हो. लौट सकती हो अपनी दुनिया में किन्तु एक बार फिर कहता हूँ. तुम्हारे जाने से, मेरे जीवन से निकलने से मुझे दुःख होगा. मैं प्यार करता हूँ तुम से”.
“मैंने प्रयास तो किया है मगर …।”
” कहाँ प्रयास किया है तुम ने करुणा. उस दिन पार्टी में तुमने मेरे दोस्त और पार्टनर जोसफ का अपमान किया. वो शिकायत कर रहा था”.
“क्या तुम्हारी पार्टी में किसी का सम्मान करने का मतलब ये होता है कि मैं चाहे अनचाहे किसी गैर मर्द के शरीर से चिपक कर डांस करूं और वो मेरे जिस्म को टटोलकर अपनी यौन कुंठा को तृप्त करे”.
“ओफ्फो… वो ऐसा आदमी नहीं है. बाल बच्चेदार शरीफ इंसान है. मैं उसे दो साल से जनता हूँ. बड़ी मुश्किल से मैंने उसकी नारजगी दूर करने के लिए मंगलवार को अपने यहाँ डिनर पर बुलाया है. तुम खुद देखोगी कि जोसफ कितना शरीफ आदमी है”.”
शाम के लगभग छह बजे थे. बाहर बरसात हो रही थी और मुंबई का मौसम सुहाना हो गया था. करुणा आज व्यस्त थी. शाम को कुछ मेहमान डिनर पर आने वाले थे. उसने बड़े मनोयोग से कई प्रकार के व्यंजन तैयार किये थे. आखिर आगंतुक पति के मित्र और पार्टनर थे और वे दोनों किसी महत्वकांगशी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे.
दिन ढल रहा था और धीरे धीरे अँधेरा हो रहा था. पति तन्मय मेहमान के साथ आने वाले थे कि तभी डोरबैल बज उठी. करुणा ने दरवाजा खोला. सामने मिस्टर जोसफ खड़े हुए थे.
“हैल्लो मिसेज शर्मा, एक्चुली तन्मय शायद कहीं जाम में फंस गया है. वैसे भी हमलोगों का आठ बजे क्लब में मिलने का समय तय हुआ था मगर… इत्तेफाक से मैं किसी काम से इस तरफ ही आया हुआ था तो सोचा… चलो तबतक मिसेज शर्मा के साथ एक कप चाय पी जाय”.
“जी श्योर श्योर. मैं आप के लिए पानी लाती हूँ”. करुणा ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया और किचन में पानी लेने चली गई. थोड़ी देर में वो पानी लेकर आई और जोसफ के सामने रख दिया. फिर अत्यंत विनम्र भाव से कहा “आई एम् सौरी जोसफ साहब, अगर मेरी किसी बात से आप उस दिन पार्टी में हर्ट हुए हों तो. दरअसल मैं आप को जानती भी तो नहीं थी तब तक”.
“जानने का क्या है मिसेज शर्मा… जान पहचान तो बनाने से बनती है और बिगाड़ने से बिगड़ जाती है. दोस्ती और सम्बन्ध… चाहे जितने बढ़ा लो और चाहे जब… कट्टी. एक्चुली… मिसेज शर्मा, मैं… मैं तो एक शायर किस्म का आदमी हूँ. यू नो हम लोग कला के ही तो पारखी होते हैं. कला… सौंदर्य… डू यू अंडरस्टैंड सौंदर्य. इट मीन्स ब्यूटी. आप समझ रही हैं न. इधर मुंबई में ऑल आर्टिफिशयल ब्यूटी. मेकअप एन्ड हेयर स्टाइल, वाकिंग, स्टाइल, स्पीकिंग, बॉडी लेंग्वेज एट्सेटरा एट्सेटरा सब नकली… बनावटी… बट नो नेचुरल ब्यूटी”.
“जी ये आपकी फ़िल्मी दुनिया भी एक अलग जहांन है” करुणा ने संकोच के साथ कहा.
जोसफ ने छत की और घूरते हुए दर्शनिकों के अंदाज में दोबारा कहना शुरू किया “मिसेज शर्मा, उस दिन हम तुमको क्लब में देखा तो बस देखता ही रहा गया. ये ऑंखें जैसे अभी कुछ बोल उठेंगी, बंधन तोड़कर माथे पर झूल रही आवारा जुल्फें, और गोरे चहरे पर ये जो छोटी सी बिंदी तुम लगती हो… ओफ्फ. ये लजाना, शर्माना…।”
“मैं आप के लिए चाय बनाकर लाती हूँ मिस्टर जोसफ”. करुणा ने वहां से हटाने की नियत से कहा”
“चाय… चाय तो मैं पीता ही नहीं और शाम ढलने के बाद तो बिलकुल नहीं पीता. अरे थोड़ा बैठो हमारे पास। यार तुम तो हमें लिफ्ट ही नहीं दे रही हो…” और जोसफ ने उठती हुई करुणा का हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर हल्का सा झटका दिया. अनजाने ही एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया हुई और करुणा का झन्नाटेदार थप्पड़ जोसफ के मुँह पर पड़ा. टेबल पर रखी हुई ट्रे और फूलदान टूटकर बिखर गए. जोसफ की ऑंखें क्रोध से अंगारे बरसाने लगीं लेकिन उसने गुस्से को जज्ब करते हुए कामुक मुस्कान के साथ कहा “अरे नाराज क्यों होती हो डार्लिंग. तुम भाभी हो. इतना तो हक़ हमारा भी बनता है।” और उसने एक बार फिर करुणा के कंधे की और हाथ बढ़ाया. करुणा ने उसे जोर का धक्का दिया. जोसफ लड़खड़ाया, पलटा और किसी चोटिल सांप की तरह क्रोध और अपमान से जलता हुआ खड़ा हो गया. उसने अंगारे सी धधक रही लाल आँखों से करुणा को घूरते हुए कहा “तुम जानती हो, तुमने किस से पंगा लिया है। तुम्हारे पति का कैरियर तबाह कर दूंगा। देखता हूँ कैसे सरवाइव करते हो तुम लोग मुंबई में।” और वो क्रोध से पाँव पटकता हुआ वहाँ से चला गया।
ठीक आठ बजे तन्मय ने रोज की तरह अपनी चाबी से दरवाजा खोलकर अंदर आया तो ड्रॉइंगरूम का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया. फर्श पर फूलदान टूटा पड़ा था, ग्लास के टुकड़े बिखरे हुए थे और करुणा रो रोकर सुर्ख ऑंखें और बिखरे हुए बाल लिए सोफे पर बैठी थी.
“हुआ क्या है करुणा. क्या हुआ है यहाँ. जोसफ को फोन किया था तो उसने कई बार में फोन उठाया और गंदी सी गली देकर काट दिया. कुझे बताओ… आखिर हुआ क्या है”.
“मुझे तुम्हारे पार्टनर और मित्र को घर से निकालना पड़ा”.
“व्हाट… तुम ने जोसफ को घर से निकाल दिया. क्यों निकाल दिया. आखिर तुम समझती क्या हो अपने आप को. तुम्हे इतना भी एटिकेट नहीं हैं कि मेहमान का स्वागत कैसे किया जाता हैं. यही संस्कार दिए हैं तुम्हारे घर वालों ने. कोई आसमान से उतरी हुई पारी हो तुम. कोई स्वप्नसुंदरी हो कि सारी दुनिया तुम्हारे ही पीछे हाथ धोकर पड़ी है. क्या जोसफ कोई लुटेरा या बलात्कारी है. दो साल से दोस्त है वो मेरा. हम लोग एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और तुमने बड़े आराम से कह दिया कि मैंने उसे निकाल दिया. तुम… तुम पनौती हो मेरे जीवन की. अभिशाप हो मेरे लिए. सबसे बड़ी बाधा हो मेरे कैरियर की और मेरी तरक्की की. ये घर तुम्हारे बाप ने मुझे दहेज़ में नहीं दिया था कि तुम किसी को भी कान पकड़कर बहार निकाल दो. तुम वहीं रेत के टीलों पर खड़े खेजड़ी के पेड़ों के नीचे भेड़ चराने के लिए बनी हो… गंवार. ये शहर है ही नहीं तुम्हारे लिए”. तन्मय ने चिल्लाकर कहा. फिर होठों में बड़बड़ाते हुए कोट इतने गुस्से से उतारकर फर्श पर फेंक दिया कि उसके बटन टूटकर फर्श पर बिखर गए.
“पता नहीं अपने आप को उर्वशी या रम्भा सझती है. इतनी ईगो. इतना घमंड कि आप किसी का अपने घर पर स्वागत भी न कर सकें”. और वो माथा पकड़कर सोफे पर बैठ गया.
कुछ देर एकदम सन्नाटा सा छाया रहा था. फिर करुणा धीरे से रूद्र स्वर में बोली.
“बहुत अहसान किया तुम ने मुझे रेत के टीलों के शहर से इस जन्नत में लाकर. धन्य हो गई मैं तो, तृप्त हो गई. किन्तु जब पंडित वेदमंत्रों के साथ अग्नि को साक्षी मानकर मुझसे और तुम से एक दूसरे के प्रति निष्ठावान, समर्पित और निश्छल रहने का वचन ले रहा था”… उसने एक हिचकी ली और फिर कहना शुरू किया “तभी कह देना था कि तुम भुझे ‘वैश्या’ बनाने के लिए मुंबई ले जा रहे हो. तभी कह देना था कि मेरे प्रोफेशन में किसी के साथ लिपटकर नृत्य करने से मना करने को अशिष्टता कहते हैं. तभी बता देना था कि आगंतुक मेहमान का स्वागत उसकी बाँहों में समाकर चुम्बन देने से होता हैं या उस से भी आगे. अगर तुम्हारे इस ‘कैरियर सिटी’ में मुझे तुम्हारे प्रति बेवफाई करके ये शरीर किसी गैर पुरुष को सौंपना हैं तो इस से पहले की मैं किसी की भोग्या बनूँ, इस नश्वर देह को समाप्त करना पसंद करूंगी. मैंने निर्मल पवित्र मन से तुम्हे अपने जीवन का प्रथम और अंतिम पुरुष स्वीकार किया हैं. मैं वधु बनकर इस घर में आई थी तन्मय, नगर वधु बनकर नहीं”.
फिर उसने सुर्ख आँखों में तैर गए आंसुओं के सैलाब को पल्लू में सोख लिया और पुनः बोलना शुरू किया “अपशगुन हूँ न तुम्हारे जीवन का, बाधा हूँ तुम्हारे कैरियर की… तरक्की की… तो… तो आज ही दूर चली जाउंगी तुम्हारी दुनिया से. बस तुमसे अंतिम प्रार्थना हैं कि मुझे रेलवे स्टेशन तक छोड़ आओ. दूर जा सकती हूँ, जीवन समाप्त कर सकती हूँ किन्तु अपने जमीर से, आत्मा से, सिद्धांतों और संस्कारों से समझौता नहीं कर सकती. अपना सतीत्व, अपनी निष्ठा और पवित्रता किसी दूसरे को सौंपने से मर जाना बेहतर हैं मेरे लिए तन्मय। याहे मेरे संस्कृति और संस्कार हैं।”.
तन्मय ने हथेलियों में छुपाया हुआ चेहरा बाहर निकाला और धीरे से बोला “क्या बोले जा रही हो करुणा. कौन तुम्हारी पतिव्रत, निष्ठा और पवित्रता पर हाथ डालना चाहता हैं. मैं तुम्हे सामान्य कर्टसी और एटिकेट बरतने की बात कह रहा हूँ. आखिर हुआ क्या हैं”.
“वो तुम्हारा मित्र जोसफ… कामुक दरिंदा हैं. मुझे बाँहों में लेकर चूमने को अपना नैतिक अधिकार बता रहा था. वो तुम्हारी दोस्ती और पार्टनरशिप के बदले मेरे शरीर से खेलना चाहता था”. और वो हिचकी लेकर रोने लगी.
तन्मय ने अपना हाथ करुणा के हाथ पर रखा और नम्र भाव से कहा “चलो करुणा, उस विश्वासघाती दानव के खिलाफ पुलिस में ऍफ़.आई.आर. कराते हैं. वो मेरा भगवान नहीं हैं. कोई किसी का भाग्यविधाता नहीं होता. मेरी भाग्यलक्ष्मी तो तुम हो करुणा… तुम. ऐसे न जाने कितने कामुक कीड़े हमारे अटूट बंधन और विश्वास को काटने का प्रयास करेंगे मगर…। अपने ज़मीर को मार कर एक जिंदा लाश बनकर नहीं जीना है इस शहर में।” और दोनों प्रेम पाश में बंध गए।
रवीन्द्र कान्त त्यागी