कभी हार नहीं मानना – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

    अजी सुनते हो, जंयत ने तो हमारी नाक कटवा दी, दूसरी बार भी उसका बैंक का पैपर क्लीयर नहीं हुआ, और वो देखो, तुम्हारा भतीजा रोनित , पिछली बार रह गया था लेकिन इस बार क्लर्क की नौकरी मिल गई। आज जब जिठानी मिठाई का डिब्बा देने आई तो बड़ी अकड़ में थी, मेरी तो आंखे ही नीची करवा दी जंयत ने, रमा बुड़बुड़ा रही थी।

    “ अरी भाग्यवान क्यूं चिंता करती हो, इस बार नहीं तो अगली बार सही, जयंत प्राईवेट बैंक में लगा हुआ है ना, सरकारी भी मिल जाएगा। रोनित भी अपना ही बच्चा है। जा रहा हूं मैं भाईसाहब के घर बधाई देने।और यह कह कर दीवान बाबू निकल गए।

        रमा मना करती भी तो कैसे, चुप रह गई, लेकिन मन क्षुब्ध था। दीवान और सर्वण दोनों भाई थे। सर्वण बड़ा और दीवान छोटा था। मां बाप के जीते सब इकट्ठे रहते थे। सर्वण के दो बेटियां और एक ही बेटा रोनित था, बेटियों की शादी हो चुकी थी। इधर जंयत और उसकी बहन शिवी थी। लगभग दस साल से चूल्हा अलग ही था, ये तो होता ही है, कोई नई बात नहीं। दोनों घरों का आपस में अच्छा आना जाना था। 

       लेकिन वो कहते है न कि अपने बच्चों के लिए हर एक के मन में विशेष मोह होना स्वाभाविक ही है, कहना तो नहीं चाहिए लेकिन औरतों के मन में ये भावना कुछ अधिक होती है। सब बच्चे एक ही घर में जन्में थे तो सबका आपस में स्नेह था। 

        जंयत और रोनित कजन थे, दोनों की ही इच्छा बैंक में नौकरी करने की थी, वैसे रोनित ने इजियनरिंग में प्रवेश की कोशिश तो की थी लेकिन सफलता नहीं मिली। जंयत का विषय कामर्स था , वो पी. ओ. की परीक्षा में दिलचस्पी रखता था। कोशिश कर रहा था लेकिन सफलता मिलनी भी इतना आसान नहीं और वो भी सरकारी नौकरी के लिए, और आज जब कि हर जगह इतना हार्ड कम्पीटिशन चल रहा है, प्राईवेट बैंक में वो जाब कर रहा था। 

   दूसरी तरफ रोनित ने भी मास्टर डिग्री कर रखी थी, किसी कम्पयूटर आफिस में लगा हुआ था, पहली बार नहीं लेकिन दूसरी बार वो क्लर्क लग गया। बात तो बहुत खुशी की थी। जंयत को सफलता नहीं मिली क्यूकिं उसकी इच्छा  पी. ओ यानि की सीधा बड़ी ( मैनेजर) पोस्ट पर लगने की थी।

     कम पढ़ी लिखी रमा इतना कुछ नहीं जानती थी, वैसे उसे तो ये था कि जेठ के बेटे को सरकारी नौकरी मिल गई और उसके बेटे को नहीं मिली, रिशतेदारों में उसकी आंखे नीची हो गई। दो दिन से वो ढ़ग से खाना ही नहीं खा पा रही थी। बेटी शिवी जो कि कालिज में पढ़ रही थी, उसने भी मां को समझाया।

   “ माँ, क्यूं चिंता करती हो, सब हो जाएगा, इस बार नहीं तो अगली बार , नहीं तो किसी और डिपार्टमैंट में ट्राई कर लेगें, जंयत भाई बहुत लायक है, मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती, इसमें लज्जित होने वाली कोई बात नहीं। चलो आज शाम को हम दोनों भी ताई जी के घर चलेगें मुबारिक देने, वो भी तो मेरा भाई है”

       रमा के पास कोई चारा नहीं था। आखिर इतनी नजदीकी रिश्तेदारी है। और जंयत को तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उसने तो गले मिलकर रोनित को बधाई दी और ये भी कहा कि पार्टी कब दे रहा है। 

     एक हफ्ता बीत गया, लेकिन रमा अभी भी सामान्य नहीं हो पाई थी।इतवार को सब नाशता कर रहे थे, रमा सबको गर्मागरम परौंठे सर्व कर रही थी। बात फिर वही जयंत की नौकरी की चल रही थी, असल में इतवार होने के बावजूद भी जंयत को आज बैंक जाना था। पब्लिक के लिए भले ही बैंक बंद था लेकिन कुछ जरूरी काम के चलते कर्मचारियों को बुलाया गया था। रमा ने कह ही दिया, यही अंतर है, सरकारी और प्राईवेट में, देखो आज इतवार को भी जाना पड़ रहा है।

   तो क्या हो गया मां, काम तो पूजा है, काम है तो हम है, क्यूं मूड खराब कर रही हो, घर बैठ कर भी तो मैनें सोना ही था। काम करके कुछ न कुछ सीखने को मिलता है, मेरी कौनसी उम्र हो चली है, इस बार और लग्न से तैयारी करूगां, और मां आप ही तो कहती थी बचपन में, गिरते तो शहसवार ही है, जो घोड़े की सवारी करेगा वो ही गिरेगा, पैदल चलने वाला थोड़े ही गिरेगा। चलो अब हँस दो, और यह कह कर वो तैयार होने चला गया। 

       रमा भी मुस्करा दी। समय अपनी गति से चलता रहा। अगले साल जब रिजल्ट आया तो जंयत को भारी सफलता मिली, सीधे  सरकारी बैंक आफिसर की जाब में नियुक्ति हुई ।रमा की खुशी का ठिकाना नहीं था। अब वो समझ गई थी कि आंखे नीची तब होती हैं जब कोई गल्त काम किया जाए, सफलता , असफलता तो जीवन के दो पहलू हैं, कभी ये तो कभी वो, तो इसमें शर्मिंदा होने जैसी कोई बात नहीं। 

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

कहावत- आंखे नीची होना

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