काश मैं कमजोर न पड़ती – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

गरिमा शाम को अपनी छत पर बैठी शून्य में कुछ ख़ोज रही थी, गरिमा हर शाम छत पर आकर बैठ जाती वो कभी आसमान पर उड़ते पक्षियों को देखती कभी चलते हुए बादलों को कभी वो शून्य में कुछ खोजती जैसे उसका कुछ खो गया हो और वो उसे दोबारा पाना चाहती हो पर जो चीज़ समय के भंवर में खो जाती है वो कभी वापस नहीं मिलती

मगर मन  की आशा आसानी से उस सत्य को स्वीकार नहीं कर पाती उसे हमेशा ऐसा लगता है शायद कोई चमत्कार हो जाए और उसकी मन चाही वस्तु जो खो गई थी वो वापस मिल जाए, गरिमा इन्हीं ख्यालों में खोई हुई थी। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी “आंटी जी!! गरिमा ने चौंक कर वर्तमान में लौट आई

उसने आवाज की दिशा में देखा कौन उसे आवाज दे रहा है। तभी उसकी नज़र बगल वाली छत पर चली गई वहां उसकी पड़ोसन की बहू निशा खड़ी थी, जिसने गरिमा को आवाज लगाई थी उसने देखा अंधेरा घिर आया है उसे समय का पता ही नहीं चला ।गरिमा उठकर निशा के पास गई, गरिमा नेे पूछा “क्या बात है निशा??” 

निशा ने घबराकर जल्दी से कहा “धीरे बोलिए आंटी नहीं तो कोई सुन लेगा” निशा के चेहरे पर डर साफ़ दिखाई दे रहा था। गरिमा ने आश्चर्य से उसे देखा  वो ऐसा क्यों कह रहीं है।

अभी वो कुछ पूछती उससे पहले निशा ने कहा “आंटी आप इस नम्बर पर फोन करके मेरी सहेली को बता दीजिए  वो मेरी ससुराल में फोन करके मुझसे बात करे” उसकी आंखों में आसूं थे गरिमा नेे देखा निशा विनती करते हुए आग्रह कर रहीं थीं।।

” निशा तुम  अपनी सहेली को खुद फोन क्यों नहीं करना चाहती??” गरिमा ने आश्चर्य से पूछा

“आंटी मेरा फोन मेरे पति ने तोड़ दिया है इसलिए मैं फोन नहीं कर सकती” निशा ने दुखी होकर कहा फिर इधर-उधर देखते हुए निशा ने धीरे से फिर कहा,

“वैसे मैं आप से मिलना भी चाहती थी मुझे आपसे कुछ सलाह लेनी है मेरे घर वाले अभी थोड़ी देर में शादी में चले जाएंगे उसके बाद मैं आपके पास आऊंगी”इतना कहकर निशा  छत से नीचे उतर  गई।

गरिमा निशा की बात सुनकर सोच में पड़ गई निशा के साथ ऐसा किया हो गया जो उसे मुझसे सलाह लेने की जरूरत पड़ गई। उसके घर वाले तो बहुत अच्छे हैं और उसका पति तो कालोनी में सभी से बहुत अच्छे से बात करता है

उसे तो कभी हम लोगों ने ऊंची आवाज में बात करते नहीं सुना फिर उसने गुस्से में निशा का मोबाइल क्यों तोड़ दिया हो सकता है निशा ने ही ऐसा कुछ किया हो गरिमा मन ही मन में ये बातें सोचने लगी।गरिमा नेे गहरी सांस ली उसने देखा अंधेरा गहरा गया था फिर वो भी नीचे आ गई आज वो घर में अकेली थी

उसके पति अपने दोस्त के बेटे की बारात में दूसरे शहर गए हुए थे।गरिमा अपने खाने की तैयारी करने लगी तभी काल बेल बजी गरिमा समझ गई  निशा ही होगी उसने दरवाजा खोला तो सामने निशा खड़ी थी गरिमा नेे मुस्कुराते हुए निशा को अंदर आने के लिए कहा निशा जल्दी से अंदर आई गरिमा नेे दरवाजा बंद कर दिया।

गरिमा ने मुस्कुराते हुए निशा को बैठने के लिए कहा,वो भी उसके पास ही बैठ गई गरिमा नेे गहरी नजरों से निशा को देखते हुए पूछा “तुम मुझसे क्या सलाह लेना चाहती हो??”

“आंटी जी  मेरे मम्मी पापा नहीं है ये बात आपको पता ही है अपने मन की बात मैं किससे कहूं मेरे मन में कई दिनों से एक द्वंद्व चल रहा है उसी विषय में मैं आपसे सलाह लेने आईं हूं ” निशा ने बहुत दुःखी मन से कहा।

” तुम्हारे मन में कैसा द्वंद्व चल रहा है!? तुम किस विषय पर मुझसे  सलाह लेना चाहती हो तुम अपने मन की बात अपने पति से कर सकती हो??” गरिमा ने गम्भीर होकर कहा

“आंटी मैं इस विषय में अपने पति की सलाह नहीं ले सकती इसीलिए तो मैं आपके पास आई हूं मुझे आप पर पूरा विश्वास है आप मुझे सही सलाह देंगी” निशा ने धीरे से कहा

” ठीक है पहले तुम अपनी समस्या मुझे बताओ” गरिमा नेे निशा को देखते हुए कहा 

निशा थोड़ी देर चुपचाप बैठी रही जैसे वो कुछ सोच रही हो फिर उसने धीरे से कहा,

“आंटी मैं अपनी ससुराल छोड़कर अपनी सहेली के पास जाना चाहतीं हूं” निशा ने सपाट शब्दों में कहा 

निशा की बात सुनकर गरिमा स्तब्ध रह गईं उसने आश्चर्य से पूछा “क्या तुम होश में तो हो??”

“हां आंटी जी आपने सही सुना, मैं अभी अपनी ससुराल से जाना चाहती हूं फिर यहां लौटकर आऊंगी या नहीं वो समय और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा” निशा ने कुछ सोचते हुए कहा।

“जब तुमने स्वयं निर्णय ले लिया है तो मुझसे क्या सलाह चाहिए??” गरिमा ने  थोड़ा गुस्से में कहा

” मैंने ससुराल छोड़ने का निर्णय लिया है पर हो सकता है , आप की सलाह से मेरा निर्णय बदल जाएं” निशा ने धीरे से कहा

“तुम मुझसे सलाह क्यों लेना चाहती हो?? तुम तो मुझे अच्छे से जानती भी नहीं ” गरिमा ने गम्भीरता से पूछा

“आंटी मैं उम्र में आपसे बहुत छोटी हूं फिर भी आप से पूछना चाहती हूं क्या हम जिसे अच्छे से जानते हैं वह हमें सही सलाह ही देगा इसकी क्या गारंटी है??” निशा ने पूछा

निशा की बात सुनकर गरिमा निरुत्तर हो गईं, फिर कुछ सोचते हुए उसने पूछा “निशा तुमने मुझे ही क्यों चुना सलाह लेने के लिए??”

“आंटी जब मेरे यहां पूजा थी तब सभी औरतें पड़ोस की सुधा भाभी की बुराई कर रहीं थीं  उनकी सास उन्हें बुरा कह रहीं थीं पर एक आप ही थी जिसने कहा था कभी भी गलती किसी एक की नहीं होती कोई शुरुआत करता है

और कोई अन्त करता है,जबतक दोनों की बात आमने-सामने ना सुनी जाए उसके विषय में हमें कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।यह बात सुनकर मैं समझ गई थी कि आप में सही गलत को समझने की समझ औरों से ज्यादा है इसलिए मैं आपके पास आईं हूं ” निशा ने कारण स्पष्ट कर दिया।

“पहले तुम अपनी पूरी बात तो बताओं तभी तो मै कोई सलाह दे सकतीं हूं” गरिमा ने कहा।

“आंटी जी मेरी शादी को लगभग दो साल होने वाला है पर अभी तक मैं इस घर में अपनी मर्जी से सांस भी नहीं ले सकती जैसा मेरे जेठ और सास चाहते हैं वहीं करना पड़ता है।दो दिन पहले तो हद ही हो गई आंटी जी मुझसे सब्जी में तेल थोड़ा ज्यादा हो गया उसी बात को लेकर जेठ जी लगे उल्टा सीधा बोलने मेरी सास उनको रोकने के स्थान पर आग में घी का काम कर रही थीं।

वो लोग मेरे चाचा-चाची को भी सुनाने लगे तो मैंने भी जवाब दे दिया  तेल ही तो ज्यादा हो गया है वो तेल है ज़हर तो नहीं, ये सुनते ही मेरे जेठ ने मुझ पर हाथ उठाने की कोशिश की उनकी ये हरकत देखकर मैं स्तब्ध रह गईं  सासू मां उन्हें रोकने की जगह कह रही हैं  “ये मार खाकर ही ठीक रहेंगी। उसके बाद मैं चुपचाप अपने कमरे में चली गई

शाम को जब मेरे पति आए तो सासू मां ने उन्हें मेरे खिलाफ झूठ बोल कर भड़का दिया मेरे पति ने भी मेरी बात  बिना सुने कमरे में आते ही मेरे ऊपर चिल्लाने लगे, “बोले तुमने मेरे भैया को जवाब देने की हिम्मत कैसे की?? मैं उनका चेहरा देखती रह गई जब मैंने अपनी बात उनके सामने रखनी चाही तो उन्होंने चिल्लाते हुए मुझे चुप रहने का आदेश दिया

और मेरा फोन उठाकर फर्श पर पटक दिया।मैंने उसी समय निर्णय ले लिया था  अब मैं इस घर में नहीं रहूंगी।क्योंकि जिस घर में मेरा कोई सम्मान नहीं है मेरा अस्तित्व नहीं वहां रहना बहुत मुश्किल है जिस घर में  उसका पति भी उसका साथ नहीं देता तो वो किसके भरोसे वहां आज इतनी छोटी सी बात पर मेरे जेठ ने मेरा अपमान किया और मेरे पति ने मेरा साथ न देकर अपने भाई का साथ दिया

तो मैं किसके भरोसे उस घर में रहूं। अगर आज मैं उनकी गलत बातों के आगे झुक गई तो जीवन भर मुझे अपमान का घूंट पीना पड़ेगा मेरा बार-बार अपमान होगा जिस घर में पति अपनी पत्नी का साथ नहीं देता वहां पत्नी के अस्तित्व को नकार दिया जाता है मेरा यही मानना है।मैंने अपना मन दृढ़ कर लिया है

पर पता नहीं क्यों आप में मुझे अपनी मां की छवि दिखाई देती है इसलिए मैंने सोचा एक बार मैं आप से भी पूछ लूं  कहीं मैं जल्दबाजी में कोई ग़लत फैसला तो नहीं ले रही हूं। मैंने सुना है  आप भी संयुक्त परिवार में बहुत दिनों तक रहीं हैं इसलिए शायद मेरी स्थिति को आप अच्छे से समझ सकें मैंने यहीं सोचकर आप से सलाह मांगी है।

मेरे साथ दो साल से ऐसा ही व्यवहार हो रहा है मैंने अपनी चाची से इस बारे में बात की थी पर उन्होंने कहा  शुरुआत में सभी के साथ ससुराल में ऐसा ही होता है कुछ दिन बाद सब ठीक हो जाएगा। उनकी बात मानकर मैं सब सहती रही पर कुछ बदलाव नहीं हुआ , एक दिन मेरी सहेली यहां आई जब मैंने अपनी स्थिति के बारे में उससे बात की तो उसने कहा  अगर तुम सहती रहोगी तो ये लोग तुम पर और ज़ुल्म करेंगे क्योंकि तेरा पति भी तेरे पक्ष में नहीं है।

इसलिए तुम्हें अपने सम्मान अपने अस्तित्व के लिए स्वयं लड़ना पड़ेगा वरना तुम्हारा पूरा जीवन इस घर में एक नौकरानी की तरह गुजरेगा अपने स्वाभिमान को पाने के लिए तुम्हें अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। मेरी सहेली जिस स्कूल में पढ़ाती है वहां एक टीचर की जगह ख़ाली है वो कह रहीं थीं अगर तुम चाहो तो मैं प्रिंसिपल मैडम से बात करके तुम्हें नौकरी दिलवा सकती हूं 

तुमने बी एड किया हुआ है इसलिए तुम्हें वहां नौकरी पर रख लिया जाएगा। मैं अपनी सहेली को बताना चाहतीं हूं मैं नौकरी करना चाहतीं हूं इसीलिए मैंने आपको अपनी सहेली का नम्बर दिया था आप उसे बता दें जिससे वह मुझे फोन कर ले” निशा गरिमा को अपने बारे में सब बता कर चुप हो गई।

गरिमा बहुत ध्यान से निशा की बात सुनती रही निशा की बात सुनकर गरिमा के चेहरे पर गम्भीरता छा गई फिर उसने दृढ़ता पूर्वक निशा से कहा, “निशा!! तुम्हारी सहेली ने तुम्हें बिल्कुल सही सलाह दी है मेरा भी यही मानना है जिस व्यक्ति का जैसा स्वाभाव होता है वह जल्दी बदलता नहीं कुछ अपवाद को छोड़कर इसलिए यही सही समय है

निर्णय लेने का कुछ वर्षों बाद जब समय तुम्हारे हाथ से निकल जाएगा तो तुम जीवन भर पश्चाताप करोगीं  काश मैंने अपनी सहेली की बात मान ली होती तब तुम कुछ नहीं कर पाओगी।यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है तुमने मां समझ कर सलाह मांगी है इसलिए मैं तुम्हें यहीं कहूंगी  तुम अपने साथ हो रहें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाओ हो सकता है 

तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हारे इस निर्णय से डर जाए कि कहीं तुम्हारे घर छोड़कर जाने से उनकी बदनामी न हो जब घर की बात बाहर निकल जाती है तो लोग समाज के डर से भी बदल जाते हैं।तुम अपना निर्णय अपने पति को बता दो उनसे कहो  तुम नौकरी करोगी और कोई गलत बात बर्दाश्त भी नहीं करोगी नहीं तो तुम इस घर को छोड़कर  चली जाओगी

हो सकता है तुम्हारी बात सुनकर तुम्हारे पति तुम्हारा साथ दें अगर ऐसा हुआ तो उसी घर में तुम्हें पूरा मान-सम्मान मिलेगा और घर के सभी व्यक्ति तुम्हारे निर्णय का भी समर्थन करेंगे ये तुम भी जानती हो जब पति साथ देता है तो कोई भी व्यक्ति उसका अपमान नहीं कर सकता” गरिमा ने निशा से कहा 

ये सब कहते हुए उसके चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कुराहट थी निशा बहुत ध्यान से गरिमा का चेहरा देख रहीं थीं फिर उसने पूछा “आंटी मुझे आप की आवाज में दर्द सुनाई दे रहा है क्या आपके साथ भी ऐसा कुछ घटा है??”

गरिमा ने गहरी सांस लेकर दर्द भरी मुस्कराहट के साथ कहा “हां निशा मेरे साथ भी यह सब घट चुका है काश मैंने भी अपनी दोस्त की बात मान ली होती तो आज मैं अपने पैरों पर खड़ी होती और मेरी भी अपनी अलग पहचान होती मेरा अपना अस्तित्व होता पर मैंने ,लोग क्या कहेंगे ये सोचकर अपने पूरे अस्तित्व को ही बिखेर दिया

और स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी बाद में कोई किसी का साथ नहीं देता यदि सही समय पर सही निर्णय ना लिया जाए तो जीवनपर्यंत मन में एक किरिंच चुभी रह जाती है कि काश मैंने उस समय अपने मन की बात सुनी होती इसलिए तुम भी आज अपने मन की सुनो लोगों की परवाह न करों”

गरिमा की बात सुनकर निशा उससे लिपट कर रो पड़ी गरिमा ने निशा को बहुत प्यार से अपनी बाहों में समेट लिया आज गरिमा के मन को बहुत सुकून मिला  उसने आज निशा को दूसरी गरिमा बनने से रोक लिया था।

#अस्तित्व

डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश

9/6/2025

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