कान भरना – कमलेश राणा : Moral Stories in Hindi

जगन्नाथ जी आठ दिन से रोज सुबह होते ही मंदिर की सीढ़ियों पर आ कर बैठ जाते और मंदिर के पट बंद होने के बाद ही घर जाते। कई बार वह कुछ बड़बड़ाते हुए रोने लगते थे। मेरे लाख पूछने के बाद भी वह इसका कारण नहीं बताते।

वे इस नगर के धनाढ्य और जाने माने समाजसेवी थे। मैं वर्षों से इस मंदिर में कान्हा जी की सेवा कर रहा हूं परंतु उन्हें आज तक भगवान के सामने इस तरह बिलखते मैंने कभी नहीं देखा। उन्हें इस हाल में देखकर मेरा भी मन व्यथित हो जाता पर मैं सिवाय उन्हें सांत्वना देने के कर भी क्या सकता था।

आज सुबह जब मैंने दान पेटी खोली तो उसमें करोड़ों की प्रॉपर्टी के दस्तावेज देखकर हैरान रह गया। मैंने सोचा जरूर कोई बहुत पैसे वाला होगा जिसने यह दान दिया है फिर जब मैंने उन पर जगन्नाथ जी का नाम देखा तो मैं सन्न रह गया क्योंकि उनका दो बेटे और दो बेटी का भरा – पूरा परिवार था फ़िर उन्होंने यह कदम क्यों उठाया? यह सवाल मुझे परेशान कर रहा था।

जब मैंने नगर में कुछ लोगों से उनके बारे में पूछा तो पता चला कि उनके बच्चों ने जायदाद के बंटवारे के लिए कोर्ट में उनके खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया था। इस घटना ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। अब सारी तस्वीर मेरे सामने साफ थी क्योंकि उनका व्याकुल हृदय से ईश्वर के सामने रोना मैंने देखा था।

कुछ दिनों बाद कुछ लोगों के साथ जगन्नाथ जी के बच्चे उन कागजों की तफ्तीश करने और सच जानने के लिए मंदिर आये। उनके साथ जगन्नाथ जी भी थे जो सर झुकाए हुए शांत खड़े थे।

उनके बेटे और बेटी चिल्ला – चिल्ला कर आरोप लगा रहे थे कि जरूर उनके खिलाफ किसी ने उनके पिता के कान भरे हैं तभी उन्होंने इतना कठोर कदम उठाकर उनका अधिकार छीन लिया है। वह प्रॉपर्टी को बिना उनकी मर्जी के ऐसे कैसे दान कर उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर सकते हैं।

शांत रहो तुम लोग.. किसी ने मेरे कान नहीं भरे हैं। मैं कोई बच्चा नहीं हूं जो किसी के बहकावे में आ जाऊंगा। तुम लोगों ने मुझे कितना रुलाया है यह मेरा दिल जानता है। जिस औलाद के लिए मैंने रात – दिन एक कर दिया था उन्हीं के लिए मैं एक बोझ था। प्रॉपर्टी तो तुम सबको चाहिए थी लेकिन दो रोटी देने और साथ रखने के लिए तुममें से कोई भी तैयार नहीं था।

तुम लोगों को यह अहसास दिलाना जरूरी था कि अगर मां – बाप अपनी औलाद के लिए किसी भी परेशानी से टकरा सकते हैं तो उन्हें सबक भी सिखा सकते हैं।

अधिकार के साथ कर्तव्य के बारे में भी एक बार तुम लोगों ने सोचा होता तो आज यह नौबत नहीं आती।

सब मूक हो कर एक दूसरे का मुंह देख रहे थे और अपनी करनी पर पछता रहे थे।

#कान भरना 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

Leave a Comment

error: Content is protected !!