अब ये पुरानी आराम कुर्सी भी लेकर जाएंगे क्या आप!! यहीं पड़े रहने दीजिए इसे। इसका एक हत्था भी अलग हो गया है ।इसकी लकड़ी भी बैठते समय चुभने लगी है। नए मकान में नया फर्नीचर रहेगा इस कबाड़ का क्या काम वहां सुजाता जी अपनी पुरानी साड़ियों का गट्ठर बांधते हुए पति कैलाश जी की तरफ देखती हुई बोल उठीं जो उसी आरामकुरसी पर बैठने की कोशिश कर रहे थे।
खबरदार जो इसे कबाड़ कहा तुमने कैलाश जी उखड़ पड़े।
क्यों कबाड़ को कबाड़ ही कहा जाएगा ।यह कुर्सी नए घर में नहीं जाएगी ।विपुल ने इतना नक्काशीदार सुसज्जित मकान कबाड़ रखने के लिए नहीं बनवाया है और ये कुर्सी ही नहीं आपका वो खटारा स्कूटर और पुरानी आलमारी जिसके कांच टूट गए हैं वो भी साथ नहीं जाएगी।आप उसे खाली कर दीजिए।विपुल कह रहा था नए मकान में हमारे कमरे की दीवारो में ही सुंदर अलमारियां बनी हुईं हैं पता ही नहीं चलता दीवार है कि अलमारी है।अलग से अलमारी की जरूरत ही नहीं है सुजाता जी ने कैलाश जी की मनोदशा भांपते हुए शांत स्वर में कहा।
नया मकान नया मकान नहीं जाना मुझे कहीं मैं यहीं इस छोटे पुराने मकान में रह लूंगा । दीवारों में अलमारियां बनी हैं तो उन्हीं दीवारों से पूछ लेना कि #घर दीवारों से नहीं परिवार से बनता है और परिवार एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने से बनता है।मैं भी पुराना निरूपयोगी हूं यहीं छोड़ दो मुझे भी जैसे यह मकान भी पुराना निरूपयोगी है खीजते हुए कैलाश जी जोर जोर से बोलने लगे तो सुजाता जी उनके पास आ गईं और स्नेह से हाथ पकड़ कर तख्त पर बिठा दिया।
धीरे बोलिए बगल के कमरे में नई बहू रुचि है सुनेगी तो क्या सोचेगी । अभी दो महीने ही तो हुए हैं उसे शादी होकर इस घर में आए हुए क्या सोचेगी वह विपुल से शिकायत कर देगी … सुजाता जी ने धीरे से लेकिन जोर देकर कहा।
आप इन चीजों के प्रति इतने भावुक क्यों हो रहे हैं।बार बार इन चीजों से खुद को क्यों जोड़ने लगते हैं।घर तो घर के लोगों से होता है इन बेजान सामानों से नहीं।जहां सब परिवार ले लोग वहीं घर।आपके इस तरह के व्यवहार से विपुल और बहू को बुरा लगेगा।इस बात को समझने की कोशिश कीजिए समझाते हुए वह कहने लगीं।
क्या समझने की कोशिश करूं सुजाता।सब कुछ मै ही समझूं।नई बहू है तो क्या अब तो वह भी इसी परिवार का हिस्सा है।समझने दो उसे जो समझना है और समझाने दो विपुल को अपनी समझ से।इन चीजों से मैं खुद को जोड़ता नहीं हूं बल्कि ये चीजें तो मेरा परिवार ही है इनसे जुड़ा ही हुआ हूं कैसे अलग करूं।विपुल जिन्हें फेंक देने की बात कर रहा है ये मेरे लिए कबाड़ नहीं हैं ये मेरे बरसों के साथी हैं सहयोगी हैं कहते कहते कैलाश जी की आवाज रूंध गई।
सुनिए आप फिर से भावुक होने लगे।अरे विपुल और बहू का कहना भी तो अपनी जगह सही है कि नया आधुनिक ढंग का मकान है तो ज्यादातर सामान भी नया और आधुनिक किस्म का ही रहना चाहिए और फिर ये सब बेढ़ंगी चीजें अनावश्यक स्थान घेरेंगी इतनी फालतू की जगह वहां नहीं है सुजाता जी ने फिर से समझाया उन्हें डर था कि रुचि सब कुछ सुनकर विपुल से कुछ उल्टा सीधा ना कह दे।
सुजाता जी कैलाश जी की मनोदशा समझ कर बहुत चिंतित हो रही थी।विपुल ने शादी होते ही नया मकान बनवाना शुरू कर दिया था हर कमरा हर दीवार सब विपुल और रुचि ने बेहद मनोयोग से इंजीनियर के साथ बैठ कर मिस्त्री के साथ मिल कर प्लान किया था।पिछले महीने जब विपुल ने आकर बताया कि नया मकान बनकर तैयार हो गया है और अच्छा सा मुहूर्त देख शीघ्र गृहप्रवेश करना है।आप लोग अपना सामान पैक करना शुरू कर दीजिए पुराने हो चुके सामान वहां बिल्कुल नहीं जाएंगे बस तभी से कैलाश जी परेशान हैं।वह अपना सारा पुराना सामान साथ में लेकर जाना चाहते हैं भले ही वह अनुपयोगी हो चुका है।सुजाता जी समझती हैं बेटा बहू ने इतने शौक और पसंद से नया मकान बनवाया है तो वे अपने तरीके से ही वहां साज सज्जा का स्तर रखना चाहते हैं।
विपुल ने प्रत्यक्षतः पिता से किसी भी सामान को कबाड़ का नाम नहीं दिया लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उसने उनके कमरे में रखे इन सभी समानों की तरफ इशारा कर दिया था।इसीलिए वह कैलाश जी को प्रत्यक्षत:उन सामानों के बारे में स्पष्ट बता रहीं थी।ताकि इन सबको यहीं छोड़कर जाने की मानसिकता उनकी बन जाए जिससे नए मकान में कोई बाद विवाद की स्थिति ना निर्मित हो जाए।
सुजाता मैं अकेला ही क्यूं तुम भी तो जुड़ी हुई हो इन सबसे।ये आरामकुरसी याद है तुमने मेरे जन्मदिन पर उपहार में दी थी।ताकि मैं इस पर आराम से बैठ कर अपनी पढ़ाई कर सकूं।इसे खरीदने के लिए तुमने अपने जरूरी खर्चों में कटौती की थी ।कई महीनों में बचत हो पाई थी।आज भी याद है मुझे अपने उस जन्मदिन की वह खास सुबह…तुमने बगीचे के फूलों से कितना सुंदर गुलदस्ता बनाया था और इस आरामकुरसी को भी उन फूलों से सजा कर ढंक दिया था।सुबह उठते ही चाय के साथ मुझे यही तोहफा दिया था और बिठाकर गुलदस्ता भेंट किया था… कैलाश जी जैसे भावसमाधि में चले गये थे…सुजाता जी चित्रलिखित सी उन्हें देख रहीं थीं एक एक चित्र उनके दृष्टिपटल पर सजीव हो रहा था।
और ये आलमारी तो हमारी मधुर स्मृतियों की अनमोल पिटारी है सुजाता।जब विपुल का जन्म हुआ था तब उसके कपड़ों तोहफों और खिलौनों के लिए हम दोनों ने छांट कर यह आलमारी खरीदी थी।इसके चार खण्ड अलग अलग चीजों से भर दिए थे हमने और जब विपुल स्कूल जाने लगा था तब उसे मिलने वाली ट्रॉफी मेडल और पुरस्कारों के लिए सबसे ऊपर वाले खंड में बढ़ाई बुलवाकर तुमने कांच लगवाया था ।याद करो विपुल कितना खुश हुआ था कांच के पीछे से चमकती हुई अपनी शील्ड और ट्रॉफियां देख देख कर सारे दोस्तों को बुला बुला कर दिखाया करता था जो भी घर में आता था विपुल सबसे पहले इस आलमारी के पास ले आया करता था।सबको दिखाने के उत्साह ने उसके मन में पुरस्कार प्राप्त करने की और अलमारी भरने की होड़ पैदा कर दी थी ….!!
हां हां मुझे याद है बड़ी कक्षाओं में पहुंचने तक उसके पुरस्कारों का भंडार इतना बढ़ गया था कि मुझे नीचे वाले खंड में भी कांच लगवाना पड़ गया था याद कर खिलखिला उठी सुजाता ।
और ये स्कूटर भी सुजाता मेरी गाढ़े पसीने की कमाई का था।उन दिनों अपने घर में सबसे महंगी और बड़ी वस्तु यही तो थी।याद है पूरा मोहल्ला कितनी ईर्ष्या से तुम्हे देखता था जब तुम छुट्टी के दिन मेरे साथ स्कूटर में पीछे बैठकर सिनेमा देखने जाती थीं….
हां जी कैसे भूल सकती हूं उन दिनों को विपुल स्कूटर में सामने खड़ा होकर हर आने जाने वालों को नन्हें नन्हें हाथों को हिलाहिला कर टाटा … किया करता था खासकर मोहल्ले के कॉर्नर में रहने वाली शीला आंटी को …सुजाता जी को सोच कर ही हंसी आ गई कि तब शीला जी चिढ़ जाया करती थीं और ये देख विपुल और जोर जोर से चिल्लाकर टाटा शीला आंटी बोला करता था।
हां और शीला जी मुंह बनाकर जवाब देती थीं जा रे इतरा तो ऐसे रहा है जैसे हवाईजहाज में बैठा हो … हो हो करके कैलाश जी हंसने लगे थे।
कब शाम हो गई पता ही नहीं चला।
दूसरे दिन सुबह अचानक विपुल ने उन दोनों को नए मकान में जाने के लिए कह दिया।
मां आप और पिता जी नाश्ता करके वहां चले जाइयेगा।आप लोगों का सभी सामान मै और रुचि रात तक लेकर आ जाएंगे। यहां पैकिंग और लोडिंग में आप दोनों व्यर्थ में बहुत परेशान हो जाएंगे।वहां पहुंच कर आप लोग आराम करिएगा नए नौकर हैं ख्याल रखेंगे।यहां का ये सब हम दोनों देख लेंगे।
अरे नहीं बेटा कैसी परेशानी सब साथ में चलेंगे।समान रखवाने में मै भी मदद करवा दूंगा।कहीं कोई जरूरी सामान छूट ना जाए कैलाश नाथ सहसा अपने सामानों से बिछड़ने के दुःख में दुखी हो गए।वह अच्छे से जानते थे विपुल उनके ये सभी सामान कबाड़ में दे देगा इसीलिए वह उन लोगों को यहां से हटाना चाह रहा है।उन्होंने समर्थन के लिए सुजाता की तरफ देखा लेकिन सुजाता बेटे की बात पर हामी भरती नजर आई।
मन मसोसते हुए बेहद कठिनाई और व्याकुलता से वह अपनी आराम कुर्सी पर अंतिम बार बैठ कर विदा लेने लगे , कारुणिक दृष्टि अपनी प्रिय आलमारी पर डाल प्यारे अनमोल स्कूटर पर हाथ फिरा बेहद नम आंखों से तब तक देखते रहे जब तक सुजाता जी आकर उनका हाथ पकड़ कर ले नहीं गईं।
कार के तीन घंटों की यात्रा के दौरान वह एकदम खामोश बैठे रहे। सुजाता जी भी दुखी थीं और उनकी मनःस्थिति समझ रहीं थीं लेकिन खामोशी से उनका हाथ पकड़ने के सिवा और कोई दिलासा नहीं दे सकती थीं।
नए मकान पहुंचने पर भी कैलाश जी का दुख कम नहीं हुआ बल्कि एक खालीपन और विवशता ने उन्हें जकड़ लिया।यह तो मेरे बेटा बहू का घर है।जैसा वे लोग चाहेंगे वैसा ही होगा मेरी भावनाओं का क्या मोल।सारा घर नए कीमती सामानों की रोशनी से चमक रहा था लेकिन कैलाश जी के मन के भीतर तो अंधेरा घिर आया था।नए चमकते सोफा सेट को देख देख अपनी पुरानी आराम कुर्सी उन्हें बेतरह याद आ रही थी।अपनी आरामकुरसी को कबाड़ में फेंके जाने की कल्पना उन्हें बेचैन किए दे रही थी।
साब चाय बाहर बागीचे में लगा दिया हूं नए नौकर ने आकर बहुत आदर से कहा फिर भी वह अपनी जगह से हिले भी नहीं।
मुझे चाय नहीं पीनी है कहते हुए बिस्तर पर करवट लेकर फिर लेट गए।
उठिए आइए बाहर अच्छा लगेगा लाइट जल गई हैं रात शुरू हो गई है।विपुल और बहू भी आते होंगे इस तरह आपको मुंह उतार कर बिस्तर में पड़े देख उन्हें कैसा लगेगा।इतने उत्साह से उन लोगों ने इतना सुंदर नया मकान बनवाया है प्रसन्न होकर तारीफ करते हुए मिलिए उनसे सुजाता जी ने बहुत झुंझलाते हुए उन्हें फिर समझाया।
तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई और सुजाता जी कैलाश जी को कमरे से बाहर आने का इशारा करती झपट कर बाहर आ गईं।
पिता जी कहां हैं मां विपुल ने मां को देखते ही पूछा और उनके कमरे की तरफ तेजी से बढ़ गया।
पिता जी आइए बाहर तो आइए कुछ दिखाना है आपको और उन्हें पकड़कर बाहर ले आया।
अनमने से कैलाश जी ने बाहर आकर जो देखा तो देखते ही रह गए ये सब क्या है विपुल लगभग चीखते हुए उन्होंने इतनी जोर से कहा कि सुजाता जी दौड़ती आ गईं ।
बहू रुचि कैलाश जी की वही आरामकुरसी नई सज धज के साथ लेकर खड़ी थी।उसमें नई आरामदायक गद्दियां लग गईं थीं और दोनों हत्थे पर भी गद्दियां लग गईं थीं ।
पिताजी लीजिए आपका पुराना साथी .. कहते रुचि ने आगे बढ़ उनके चरण स्पर्श कर लिए।
हां पिता जी और ये रहे आपके दो और साथी कहते हुए विपुल ने पुरानी आलमारी जिसमें नए कांच लग गए थे और नया पेंट किया हुआ था के साथ पुराना स्कूटर भी गाड़ी से उतरवा पिता जी के सामने खड़ा करवा दिया ।
अभी आपके कमरे में इन सभी को पहुंचा दिया जाएगा पिता जी ये सब रुचि की जिद से हुआ है इसने आप लोगों के जाते ही तुरंत बढ़ई और मिस्त्री बुलवा कर इन सबका सुधार करवाया इसीलिए इतनी देर भी हो गई विपुल ने ठगे से खड़े पिता जी के पास आकर कहा तो कैलाश जी गदगद हो गए।मारे खुशी के आंखों से आंसू बहने लगे बेटा तुम दोनों जुग जुग जियो अवरुद्ध कंठ से बस इतना ही कह विपुल को गले से लगा लिया और चरण स्पर्श करती बहू को भी।
पिता जी आप सही कहते हैं घर दीवारों से या इन सब दिखावटी चीजों के दिखावे से नहीं बनता बल्कि परिवार से बनता है और परिवार तभी बनता है जब एक दूसरे की दिल की इच्छाओं का भावनाओं का सम्मान किया जाए ख्याल रखा जाए आप सही कहते हैं ये सब भी तो हमारे परिवार का हिस्सा है इन सबके साथ आपकी भावनाएं जुड़ी हुई हैं।और परिवार के सदस्यों के लिए ही तो यह नया घर बनवाया गया है यहां बहुत जगह है रुचि बेहद विनम्रता से कह रही थी और सुजाता जी अपनी समझदार बहू को हर्ष विकंपित दृष्टि से देखे जा रहीं थीं।
घर दीवारों से नहीं परिवार से बनता है#वाक्य आधारित कहानी
लतिका श्रीवास्तव