ट्रेन में बैठी ख्याति के मन में कई सारे विचार चल रहे थे। रक्षाबंधन के एक दिन पहले ही वह अपने पीहर आई थी, बड़े भाई के बुलाने पर, भाई ने स्वयं फोन करके रक्षाबंधन पर बुलाया था। खुशी खुशी वह घर जाने के लिए रवाना हुई थी उसे क्या पता था कि रक्षाबंधन के दिन भाई रक्षा सूत्र बंधाने के साथ ही आज उपहार स्वरूप उससे कुछ ऐसा मांगेंगे जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की ।
विचारों में डूबी ख्याति को याद आ रहा था 3 साल पहले ही तो पापा के जाने के बाद घर में कितना कुछ बदल रहा था बिना पापा के घर सूना-सूना लगता था। मम्मी ,पापा को याद कर कर के रोने लगती थी ।
दो बड़ी बहनें व दो बड़े भाई, मैं सबसे छोटी ख्याति बहुत भावुक थी।
सभी भाई बहनों की शादी हो चुकी थी व सभी अपनी अपनी घर गृहस्थी में व्यस्त थे ।
हम तीनों बहनें अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई, त्यौहार बार अपने पीहर जाती और मां, परिवार से मिलकर वापिस आ जाती।
दोनों भाई भी व्यस्त होते थे तो कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हो पाती।
पापा के नाम से दो घर थे ।दोनों भाइयों ने आपसी रजामंदी से दोनों घर अपने-अपने नाम करवाने का स्वयं निर्णय ले लिया। जिस घर की कीमत अधिक थी उस घर की निश्चित कीमत एक भाई,दूसरे भाई को अदा कर देगा ऐसा उन दोनों ने ही आपसी सहमति से निर्णय ले लिया और कागजात वगैरह भी बनाकर तैयार कर लिए।
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मां रमा देवी जी पढ़ी-लिखी नहीं थी अतः बेटे उनसे ज्यादा कुछ पूछते नहीं, कोई भी काम होता तो कह देते कि यह इस चीज के कागज है मां तुम हस्ताक्षर कर दो और उनकी मां हस्ताक्षर कर भी देती थी।
किंतु आज… आज तो हद हो गई जब दोनों भाइयों ने आपसी निर्णय से दोनों घर अपने-अपने नाम करवाने का निश्चय कर लिया और तीनों बहनों को रक्षाबंधन पर बुलाकर उन कागजातों पर हस्ताक्षर करने को कहने लगे।
मां और बहनों की आंखों में आंसू थे कि अभी पापा को गए हुए तीन साल ही हुए थे और इतनी जल्दी क्या है?? दोनों को हस्ताक्षर कराने की ।
मां ने दोनों पुत्रों को कुछ प्रश्न पूछे किंतु दोनों ने संतुष्टि जनक जवाब नहीं दिए अतः मां ने कागज़ों पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।
तीनों बहनों को घर से,जायदाद से, कोई मोह नहीं था किंतु आज ख्याति और दोनों बहने गहरे भवर जाल में फसी थी क्योंकि अगर वे कागजातो पर हस्ताक्षर करती हैं तो वे कहीं ना कहीं अपनी मां के भविष्य को लेकर चिंतित हो उठती और अगर हस्ताक्षर ना करे तब अपने भाई भाभी के आगे बुरी बन जाती हैं।
उन्हें तो अपना पीहर घर परिवार सब प्यारे हैं किसी एक के बिना भी वे अपने पीहर की कल्पना नहीं कर सकती थी ।
आज रक्षाबंधन के दिन बहने हार गई थी। मां और भाइयों के बीच आज बहनें किसका साथ दे वे खुद समझ नहीं पा रही थी।
ख्याति भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र तो बांध आई किंतु उपहार स्वरूप वह अपने भाइयों का विश्वास ना पा सकी।
रह-रहकर उसके मन में यही विचार चल रहा था कि “हमारे माता पिता ने जो रिश्ता विपत्ति बांटने के लिए बनाया था ,वह रिश्ता आज संपत्ति बांटने के चक्कर में बंट गया है ।”। ख्याति की आंखे नम थी और ट्रेन अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने ही वाली थी।
धन्यवाद
किरण फुलवारी