जिम्मेदारी की दीवारें –  प्रतिमा पाठक

सुबह की पहली किरण जैसे ही आँगन में पड़ी, रसोई से बर्तनों की खनखनाहट की आवाज़ आने लगी। घर की बहू संध्या अपने तीन बच्चों के टिफ़िन तैयार कर रही थी। सासू माँ पूजा कर रही थीं, ससुर जी अख़बार पढ़ रहे थे, और पति राजीव मोबाइल पर दफ़्तर की मेल देख रहे थे।

संध्या ने जल्दी-जल्दी काम निपटाया, बच्चों को स्कूल भेजा और सास के लिए चाय लेकर गई। सास मुस्कराईं, बहू, जरा आज राशन मंगवा लेना, मेरी कपड़े जो सिलने को गए हैं वो भी लेती आना और हाँ, पूजा के लिए फूल भी खत्म हो गए हैं।

संध्या ने सिर हिला दिया, लेकिन मन ही मन थकान की परतें घनी होती जा रही थीं। पिछले कुछ महीनों से वह महसूस कर रही थी कि इस घर में हर काम हर जिम्मेदारी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है।

दोपहर को सास की सहेली आईं। बातचीत में सास ने गर्व से कहा, हमारी बहू सब संभाल लेती है — बच्चों की पढ़ाई, ससुर जी की दवा, घर की सफ़ाई, मेहमानों की खातिरदारी  हमें किसी चीज़ की चिंता नहीं।

संध्या ने मुस्कराकर पानी का गिलास बढ़ाया, लेकिन भीतर कुछ टूट सा गया।

रात को जब सब सो गए, वह बरामदे में आकर बैठी। हवा में हल्की ठंडक थी, पर उसके दिल में भारीपन। उसने धीरे से राजीव से कहा, सुनो, क्या घर की सारी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ मेरी ही है?

राजीव थोड़ा चौंका, मतलब?

मतलब ये कि इस घर में मैं सिर्फ़ बहू नहीं, एक इंसान भी हूँ। मुझे भी थकान होती है, मुझे भी अपने लिए समय चाहिए। क्या कभी किसी ने सोचा कि बहू की भी कुछ इच्छाएँ होती हैं?

राजीव ने कुछ नहीं कहा, बस उसकी आँखों में देखता रहा। संध्या ने आगे कहा,

माँ ने मुझे घर की लक्ष्मी कहा था, पर शायद लोगों को लगता है लक्ष्मी का काम सिर्फ़ दूसरों के लिए काम करना है। कोई नहीं पूछता उस लक्ष्मी की ख़ुशी कहाँ है।

उसकी आँखों से आँसू बह निकले। 

उस रात राजीव ने पहली बार सोचा कि शायद सच में, हर ज़िम्मेदारी बहू की नहीं होती।

अगले दिन सुबह, जब संध्या रसोई में गई, तो देखा कि सासू माँ पहले से वहाँ थीं — बहू, आज की चाय हम बना लेंगे। तू ज़रा बच्चों का टिफ़िन देख ले।

राजीव ने भी कहा, आज से हम सब मिलकर घर संभालेंगे, क्योंकि यह घर सबका है।

संध्या की आँखों में एक हल्की मुस्कान थी। वर्षों से मन में जमा बोझ जैसे हल्का हो गया था।

उस दिन संध्या ने महसूस किया कि जब घर की ज़िम्मेदारी बाँटी जाती है, तभी सच्ची गृहस्थी बसती है।

 प्रतिमा पाठक

         दिल्ली

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