झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती – आर. एस. कुमार : Moral Stories in Hindi

लंदन की चकाचौंध का बखान करते हुए जब बबलू हर शाम हाथ में दारू की गिलास लेकर बगल में बैठे अपने बहनोई को गरियाता है , उसकी बड़ी बहन खून के आंसू रोती है। अपने बहन बहनोई को भारत के गांव से लेकर आया बबलू डिंग हांकने में कोई कमी नहीं करता है। जबकि सच्चाई ये है की

सिर्फ अपने फायदे के लिए वो उन्हें सपरिवार, उनके हस्ते- खेलते गांव की जिंदगी से उखाड़ कर विदेशी धरती पर अपने टुकड़े पर पलने के लिए ले आया. अपने नवजात बच्चे को पालने के लिए और

घर के काम करने के लिए बहन बहनोई को खुद ही पांच लाख का उधार दिया और बदले में बेइज्जती

करने की आज़ादी पा ली। सपने तो दिखाए थे मर्सिडीज़ , महल और मुकाम की पर धरती पर अपने

सामने खड़ा रहने लायक भी नहीं छोड़ा।  गांव का पला-बढ़ा सुनील अंग्रेजी में हाथ तो तंग था ही, खेती – मजदूरी के अलावा कुछ करने की काबिलियत नहीं पाया था।  खेत लंदन में थे नहीं, तो सड़क बनाने के काम में लग गया। पिछले तीन सालो में बबलू ने नौ-छः करके जैसे तैसे एक कार ले ली थी तो

टैक्सी ड्राइवर बन गया था. भारत में लोफरगिरी करता पांच बहनो का इकलौता भाई टैक्सी चलाने को ही दुनिया जीतने की ओर बढ़ता हुआ कदम मानने लगा था. इतनी मन्नतो के बाद पैदा हुआ भाई जो कहता वो माँ-बाप को सही लगता। बड़ी बहन- बहनोई अपने बेटा और बेटी को लेकर अलग रहने लगे. ये सोचकर की सम्मान की आधी रोटी ही बहुत है। पांच लाख रुपया बहनोई को उधार देकर

बबलू ने बहन की जिंदगी को ज़ह्नुम बना दिया था।  बहनोई का गुस्सा गुबार बनकर पति होने के रिश्ते से पत्नी पर उतरता था हर रात।  बच्चे माँ पर अत्याचार के गवाह थे।  भाई से अपनेपन की उम्मीद नहीं थी और पति व्याभिचार के रस्ते पर निकल गया था।  ३ साल यूँही बीत गए। बच्चे रोज़

अपने घर में अपनी माँ को पीटते देख रहे थे। स्थिति ये आ गयी की अपनी ही पत्नी को पागल करार दे दिया।  साला – सलहज की मदद से अस्पताल में इलाज शुरू करवा दिया ये कहकर की पागल है ये।  वो तो शुक्र है लंदन की सरकारी मेडिकल सुविधा के कारण ये ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया और

सही इलाज के कारण वो बिस्तर से उठ गयी। माँ की विवशता पर  बच्चो के चेहरे पर जो मायूसी छायी उससे   रिंकी दीदी  का दिल बैठ गया। ऐसा लगा की जिंदगी में सबकुछ हार चुके हो, आगे का रास्ता या आत्महत्या का था या कोई चमत्कार का। रास्ता तो पतन का भी ले ही सकते थे, आसान भी

था पर बच्चो . उन्होंने पासके मोह ने गलत कदम उठाने नहीं दिया।   रिंकी दीदी    ने एक इंडियन ब्यूटी पार्लर में काम करना शुरू किया। पार्लर में साफ़ सफाई से शुरुआत की पर सीख गयी आईब्रो बनाना , फेसिअल करना वगैरह।  उम्मीद ज्यादा नज़र नहीं आ रही थी , बच्चो की मायूसी छंट नहीं

रही थी. मेहनत  करने वालो की जीत कहा नहीं होती , बच्चे पढाई में काफी तेज़ हुए. फिर माँ को ही अखरने लगा, “मेरे बच्चे पढ़ लिख कर कुछ सही बन गए तो क्या उनकी माँ क्या पार्लर साफ़ करने वाली  बन कर रह जानी  चाहिए.” और बचपन का शौक भी तो था ही कि, काश पढ़ पाती  मैं”.  बाबूजी इस तरह के उसठ थे की बेटियों का होना ही नहीं भाया सो जैसे ही किसी बेटी को बैठा देखते

तो उनको हज़ार काम बता जाते। तो बचपन की इच्छा पूरी करने का वक़्त ये उपयुक्त लगा. इससे दो फायदे थे, बच्चो के साथ साथ खुद भी पढ़ लिख कर उनके लेवल पर खड़े होने वाली पैरेंट बन सकेगी और दूसरा बच्चे चूँकि पढ़ रहे हैं तो साथ साथ पढ़ने में मदद हो जाएगी. पर समस्या ये थी की ये सब

मुमकिन कैसे होगा , अंग्रेजी छोडो, मगही के अलावा हिंदी बोलनी भी नहीं आती ठीक से , मैथ्स और साइंस क्या आएंगे। तब लंदन जैसे जगह की विकास शील समाज की व्यवस्था काम आयी , वयस्को की पढाई के लिए बारहवीं की पढाई – लिखे- टूशन सब मुफ्त मिलते थे , इवनिंग क्लासेज और दिन में

पार्लर का काम , बच्चो की मदद से न केवल बारहवीं पास किया बल्कि आगे की आयी- टी की पढाई में भी नाम लिखाया।  समस्याएं चुड़ैल की तरह चिपटी थीं रोजमर्रा की जिंदगी से पर जब खोने को कुछ हो ही ना तब कोई भी रास्ता प्रगति की तरफ ही जाता है।  किसी तरह भाग दौड़ करके आई-टी की डिग्री भी ले ली , बच्चो से अंग्रेजी में बात करते करते बोलचाल वाली अंग्रेजी भी सीख ली ,खर्च

अनुसार असक्षम आय वाले काबिल लोगो के लिए इंग्लैंड की सरकार नौकरियां दिलवाने में मदद करती है , रिंकी दीदी ने हर मदद ली , तन-मन में द्वन्द चालू था पर उस पार पहुंचने की उम्मीद और मेहनत जबरदस्त थी।  बच्चे बारहवीं में जिला टोपर हुए, माँ घर चलाने लायक आई टी की नौकरी एक सॉफ्टवेयर कंपनी में करने लगी।  तहलका मच गया , जब सबने सुना की रिंकी दीदी नौकरी करती

है।  बबलू देखने गया की झाड़ू मारने वाली नौकरी का इतना बवाल क्यों मचा है , तब रिसेप्शन पर दीदी का नाम लेते ही उसे गेस्ट रूम में भेजा गया. उसे अटपटा लगा, जमादारों के मिलने वाले भी गेस्ट रूम में मिलते हैं , वो ठिठका।  तभी कांच के दरवाज़े को खोल कर पचास साल की दीदी काळा पैंट शर्ट और कोट में अंदर आयी। जिस दीदी को पागल बना कर उसने अस्पताल में छोड़ा था , और

फिर कभी सुध न ली, उसे इस तरह देख कर घटिया मुस्कान फेंकी।  दीदी ने कहा “बोलो बबलू , अपने पांच लाख लेने आये हो? ये लो चेक , बबलू के हाथ में चेक थमाती हुयी दीदी बोली. ” न.. न.. नहीं.. . दीदी मैं तो बस. .- “ये देखने आये थे की इतने बड़े ऑफिस में मुझे  झाड़ू मारने वाली नौकरी

कैसे मिल गयी?” – रिंकी दीदी बोली।  देख लिया न अब ” अगली बार आना तो नेटवर्किंग ऑपरेशन्स में रिंकी सिन्हा को बुलाने को कहना रिसेप्शन पर , क्यूंकि अगली बार मैं तुम्हारा फ़ोन नहीं उठा पाऊंगी, काम में बिजी रहती हूँ”. कह कर मुड़ी और सीधा जाकर अपनी सीट पर बैठ आगयी।  तभी

मोबाइल बजा “माँ ऑक्सफ़ोर्ड मेडिसिन डिपार्टमेंट में मेरा ओरिएंटेशन  अगले महीने १३ तारीख को है और भैया का लंदन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस में १५ को है , आपको  पूरे हफ्ते की छुट्टी के लिए आवेदन देना होगा, आप बात कर लेना. भैया अपनी इंटर्नशिप के लिए बैंक ऑफ़ इंग्लैंड में होगा जो कल से

शुरू हो जाएगी, उसको बढ़िया पैसे मिलेंगे चलो न इस वीकेंड स्पेन घूम कर आते हैं “. “अच्छा मेरी नानी” बोलकर रिंकी ने फ़ोन रख दिया और बबलू को सर झुकाकर रिसेप्शन से बहार की तरफ जाते हुए देखा. रिंकू दीदी का मन किया की बबलू से बच्चो के बारे में पूछ ले पर माँ- बाबूजी और बाकि

बहनो से  सुन ही रखा था की ” दिखावा करने के चक्कर में बबलू ने घर को दोस्तों का अड्डा बना दिया था. माँ बाप के ध्यान न देने के कारण बच्चे नशे की लत में डूब चुके हैं बबलू क़र्ज़ में डूबकर घरवाली को हर बुराई के लिए जिम्मेदार बताने लगा था.” रिंकी दीदी ने भीगी पलकों से बबलू को  होने तक आँखों से ओझल होने तक निहारा।  

आर. एस. कुमार

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