रितिका बड़े उद्योगपति की बेटी थी। उसका जीवन महँगी कारों, आलीशान घर और शानदार पार्टियों से भरा था। कॉलेज में उसकी मुलाकात ऋषि से हुई, जो एक साधारण परिवार का ईमानदार और संस्कारी युवक था। ऋषि की सादगी ने रितिका का दिल जीत लिया।
धीरे-धीरे दोस्ती प्रेम में बदली और एक दिन रितिका ने अपने मन की बात कह दी।
रितिका: “ऋषि, मैं तुम्हें दिल से चाहती हूँ। तुम्हारे साथ रहना ही मेरी सबसे बड़ी खुशी है।”
ऋषि “रितिका, तुम समझ क्यों नहीं रही? मैं तुम्हें वैसी ज़िंदगी नहीं दे सकता जैसी तुम्हारे घर में है। मेरा संसार बहुत अलग है।”
रितिका “मुझे ऐश्वर्य नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिए।”
परिवारों का विरोध हुआ, पर अंततः दोनों की जिद और सच्चे प्रेम ने सबको झुका दिया। शादी हो गई। शुरुआती दिन बेहद खूबसूरत थे। ऋषि हर छोटी ज़रूरत पूरी करने की कोशिश करता और रितिका उसकी ईमानदारी पर गर्व करती।
लेकिन समय बीतते ही परिस्थितियाँ बदलने लगीं। जब रितिका अपनी सहेलियों से मिलती, तो वे महंगी पार्टियों और विदेश यात्राओं की बातें करतीं। रितिका को अपने स्टेटस का अहसास सताने लगा। धीरे-धीरे उसने ताने देना शुरू कर दिया।
रितिका: “काश! मैंने पापा की बात मानी होती। यह साधारण ज़िंदगी मेरे लिए नहीं है।”
ऋषि (धीमे स्वर में): “रितिका, मुझे थोड़ा समय दो। सब ठीक हो जाएगा।”
तभी कोविड का संकट आया। ऋषि की नौकरी चली गई। घर चलाना मुश्किल हो गया, ईएमआई तक रुक गई। रितिका के लिए यह सबसे कठिन समय था।
रितिका (गुस्से में): “देखा, मैंने कहा था न! मेरी किस्मत ही खराब थी जो मैंने तुमसे शादी की।”
ऋषि (संयम से): “हालात कठिन हैं, पर ये हमेशा नहीं रहेंगे। धैर्य रखो। हम साथ हैं, यही सबसे बड़ी ताकत है।”
ऋषि ने हार नहीं मानी। उसने छोटे-छोटे काम करने शुरू किए—ऑनलाइन ट्यूशन, अकाउंट का काम, यहाँ तक कि ज़रूरत पड़ने पर सामान की होम-डिलीवरी तक। रितिका मन ही मन देख रही थी कि ऋषि किस तरह संघर्ष कर रहा है। उसकी मेहनत ने धीरे-धीरे एक छोटे बिज़नेस का रूप ले लिया।
कुछ महीनों बाद रितिका की सहेलियाँ उससे मिलने आईं। उन्होंने देखा कि घर भले ही सादा था, पर उसमें प्यार और आत्मसम्मान की गर्माहट थी। ऋषि ने स्वयं सबका स्वागत किया।
सहेली: “रितिका, तुम्हें बहुत किस्मत वाली हो। इतना सच्चा और समर्पित जीवनसाथी सबको कहाँ मिलता है? पैसा तो हम सब कमा रहे हैं, लेकिन इतनी इज्ज़त और अपनापन मिलना आसान नहीं।”
उनकी बात सुनकर रितिका की आँखें भर आईं। उसे याद आया कि कोविड की कठिनाइयों में ऋषि ने कभी हार नहीं मानी। तभी उसे एहसास हुआ कि झूठा दिखावा क्षणिक है, पर सच्चा रिश्ता हर तूफान झेल सकता है।
उसने ऋषि का हाथ पकड़ते हुए कहा—
रितिका (आँखों में आँसू लिए): “ऋषि, मुझे माफ़ कर दो। मैंने कई बार तुम्हें गलत समझा। पर अब मुझे एहसास हो गया है कि असली संपत्ति पैसा नहीं, बल्कि तुम्हारा साथ है। मैं वादा करती हूँ, अब कभी दिखावे को हमारे रिश्ते के बीच नहीं आने दूँगी।”
ऋषि मुस्कुराया और बोला—
ऋषि: “यही समझदारी हमें जीवनभर खुश रखेगी।
झूठा दिखावा और बाहरी चमक-दमक कभी स्थायी सुख नहीं दे सकते। असली संपत्ति तो सच्चा प्रेम, विश्वास और धैर्य है। पैसा घर को बड़ा बना सकता है, लेकिन उसे खुशहाल बनाने वाली चीज़ केवल रिश्तों का अपनापन है।
वाक्य:#झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती है
रेखा सक्सेना