झूठे दिखावे से ज़िंदगी नहीं चलती – रश्मि सिंहल : Moral Stories in Hindi

अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर मोनिका ने फोन उठाया। देखा कि नई ड्रेस और पर्स वाली उसकी पोस्ट पर ढेरों लाइक्स और प्रशंसा के कमेंट्स थे। उसका मन खुशी और गर्व से भर गया। सोशल मीडिया के दौर में जिसे देखो वही झूठी शान बघारने में लगा हुआ है। कोई दिखावे का एक छोटा सा

मौका भी नहीं छोड़ता है। ऐसी ही धुन मोनिका पर भी सवार थी। हर छोटी और बड़ी बात को फेसबुक स्टोरी, व्हाट्सएप स्टेटस और इंस्टाग्राम पर शेयर करना उसका प्रिय शौक था। आए दिन वह कभी मॉल से नई नई चीजें, मंहगे और ब्रांडेड कपड़े ,घर की साज सज्जा का सामान खरीदती रहती

थी।अपनी सहेलियों के बीच वह अपनी तारीफें करती और अपने सामान का दिखावा करती। मसलन , उसे तो इंपोर्टेड परफ्यूम्स ही पसंद हैं और वह हमेशा ब्रांडेड चीजें ही इस्तेमाल करती है। उसकी बड़ी बहन मीरा उसकी इस आदत पर उसे हमेशा टोकती। लेकिन भला वो क्यों मानने लगी। सादगीपसंद

मीरा की बातों को वह यूं ही हंसी में उड़ा देती थी। लोगों के सादे रहन सहन का वह अक्सर मज़ाक बनाया करती थी। दिखावे के चक्कर में वह न तो खर्चों पर लगाम लगाती थी और न ही घर में हो रही बर्बादी पर उसका ध्यान जाता था। उसकी इस आदत से घर के सभी लोग परेशान थे। पर वह किसी की नहीं सुनती थी।

कहते हैं न कि बुरा वक्त देखकर नहीं आता। कोरोना की महामारी के समय बहुत से लोगों को समय की बुरी मार झेलनी पड़ी। मोनिका के पति राकेश का कैटरिंग का व्यवसाय था, जो उस वक्त बिल्कुल ही ठप्प हो गया। बिज़नेस में अनुमान के आधार पर काफी पैसा निवेशित होता है। इसलिए उनका

बैंक बेलैंस उतना नहीं था।अच्छा खासा कमाने वाले व्यक्ति की कमाई लगभग खत्म ही हो गई थी। सारा घर परिवार इसी कमाई पर अवलंबित था। वे बेहद परेशान रहने लगे और अवसादग्रस्त हो गए। मोनिका हमेशा दिखावे के चक्कर में रहती थी और बचत के बारे में सोचती भी नहीं थी। इस बुरे वक्त

में अपना कोई सहयोग नहीं दे सकी। बदली परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाना उसे मुश्किल लग रहा था।वह स्वयं भी चिड़चिड़ी और परेशान रहने लगी। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

ऐसे कठिन समय में मीरा ने ही उसका मार्गदर्शन किया। उसे समझाया कि वह अपने कुछ गहने गिरवी रखकर उस पैसे से अपने पति को नया व्यवसाय करने के लिए प्रेरित करे। मोनिका ने ऐसा ही किया और उसके पति ने दोबारा ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से दैनिक उपयोग की वस्तुओं की

होम डिलीवरी शुरू की, जो कि बहुत सफल रही और धीरे धीरे उनकी ज़िंदगी पटरी पर आने लगी। इसके बाद अपने खोखलेपन का मोनिका को जमकर अहसास हुआ। उसने पाया कि ज़िंदगी की सार्थकता रचनात्मक कार्यों में है न कि आडंबर और प्रदर्शन में। उसमें आए बदलाव को देखकर घर में भी सभी खुश थे।

मोनिका ने अपनी बहन मीरा का दिल से आभार व्यक्त किया। वह अब बदल चुकी थी।उसे समझ में आ गया था कि झूठे दिखावे से ज़िंदगी नहीं चलती ।

_रश्मि सिंहल

error: Content is protected !!