झूठ हमेशा झूठ ही रहेगा – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

   “जाओ मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी, रोज रोज की चिक चिक से तंग आ चुकी हूं मैं, जब भी पूछो, कल बात करता हूं, कल बात करता हूं, पता नहीं तुम्हारा ये कल कब आएगा”, विभा ने 

  पुनीत से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा 

      “ बस सिर्फ एक हफ्ता और दे दो, ये बात आखरी बार कह रहा हूं, प्लीज , प्लीज , मान जाओ ना” पुनीत ने हंसते हुए कान पकड़ने की एक्टिंग की। अरे अरे, स्टैयरिंग संभालो, अभी कार किसी से टकरा जाती, बड़े आए कान पकड़ने वाले, नौंटकी बाज कहीं के, विभा ने कहा।

       पुनीत और विभा कालिज के जमाने से ही साथ पढ़ते थे, पढ़ाई पूरी करके नौकरी पर लग गए लेकिन आफिस अलग अलग थे। दोस्ती कब प्यार में  बदल गई दोनों को पता ही नहीं चला। विभा ने काफी दूरी बना कर रखी, जब पुनीत ने उसे प्रपोज किया तो उसने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वो उसके स्टैडर्ड से मेल नहीं खाती।

     पुनीत के पिताजी का बहुत अच्छा बिजनैस था। यानि कि वो बहुत अमीर वर्ग से ताल्लुक रखता था, जबकि विभा एक आम मिडल क्लास परिवार से थी। उसका एक छोटा भाई इसी साल कालिज में गया। 

   उधर पुनीत का बड़ा शादी शुदा भाई जो कि अपने पिता के साथ बिजनैस सभांलता था, उसकी शादी भी उनहीं के समान अमीर घर में हुई थी। अपनी कोठी, कारें , नौकर चाकर सब कुछ था। इसीलिए विभा इस रिशते को आगे बढ़ाने में संकोच करती थी, लेकिन वो कहते है ना कि दिल पर किसी का जोर नहीं चलता।न चाहते हुए भी कुछ बंधन अटूट होते है और अपने आप बंधते चले जाते हैं।

    इधर पुनीत को विभा बेहद पंसद थी, सीधी , सरल, सादा सी एक घरेलू सी लेकिन बहुत लायक लड़की। उनका प्यार जैसे बचपन का ही प्यार हो। पुनीत को अपनी माँ को इस शादी के लिए मनाना यानि कि हिमालय की चोटी पर विजय प्राप्त करना। 

     पुनीत के नाना जी भी बहुत अच्छे बिजनैस मैन, इधर भाभी के मायके वाले भी अमीर , और पुनीत की माँ वैसे तो बहुत अच्छे स्वभाव की थी लेकिन दिखावा और कह सकते हैं कि गुरूर भी था। हर मां की तरह बच्चों को बहुत प्यार करती लेकिन छोटा होने के नाते पुनीत पर विशेष स्नेह लुटाती।

      पुनीत के नौकरी करने के पक्ष में तो घर पर कोई भी नहीं था, लेकिन जब अच्छी कंपनी में कालिज के दौरान ही रिपलेस्टमैंट हो गई तो उसके पिताजी ने इजाज़त दे दी कि बाहर काम करेगा तो कुछ ज्यादा ही सीखेगा। अपना बिजनैस तो जब मर्जी संभाल ले। 

    रही बात विभा से शादी की तो विभा के पिताजी एक आम से सरकारी अधिकारी थे। ठीक ठीक सा अपना पुशतैनी घर लेकिन बेटे बेटी में कोई फर्क न करते हुए उन्होनें विभा को उच्च शिक्षा दी और अब बेटे को भी अच्छे कालिज में पढ़ा रहे थे। 

    आज के जमाने में भी बेटियां कितना पढ़ जाएं लेकिन शादी ब्याह के खर्च पीछा नहीं छोड़ते और विभा तो जैसे कोर्ट मैरिज ही करना चाहती थी।समस्या ये थी कि पुनीत अपनी मां को इस रिशते के बारे में कैसे बताए, जबकि उसके लिए एक से बढ़ कर एक अमीर घरों से रिश्ते आ रहे थे। 

         पुनीत के मन मे आया कि भाभी को सब बता दे लेकिन संकोच कर गया, आखिर चलनी तो मां की ही थी। एक दिन हिम्मत करके उसने अपनी मां को विभा के बारे में बता दिया। उसकी मां यानि कि शारदा गहरी सोच में पड़ गई, उनहें दहेज की भूख नहीं थी , समाज में दिखावे की ज्यादा चिंता थी। उसने कहा कि कल बताऊंगी। उसे अपने बेटे की खुशी और समाज में दिखावा भले ही वो दिखावा झूठा हो, दोनों की चिंता थी। 

     पुनीत के पिता और भाई तो उसकी खुशी में खुश थे। लेकिन पुनीत की माँ शारदा ने कहा कि हम शादी  किसी बड़े होटल में बड़ी धूमधाम से करेगें , बारात लेकर जाऐगें और सारा खर्च खुद ही करेगें, इससे हमारी समाज में इज्जत भी रह जाएगी और पुनीत को उसकी विभा भी मिल जाएगी।

     पुनीत ने जब यह बात विभा को बताई तो असूलों की पक्की और झूठे दिखावे में विश्वास न करने वाली विभा ने साफ मना कर दिया कि शादी तो कोर्ट में होगी और वो अपने खर्च पर रिसेप्शन चाहे जैसे मर्जी करें। 

     जैसी वो है , जैसा उसका घर बार है, उसे वैसे ही स्वीकार करना होगा । एक झूठ को छिपाने के लिए न जाने कितने झूठ बोलने पड़ेगे और वो ये कभी नहीं करेगी। वैसे भी दिखावा किसके लिए, इस दुनिया के लिए जो दो चार दिन में सब भूल जाती है। 

     और सच में ही अगले महीने पुनीत और विभा शादी के बंधन में बंध गए। कोई भी मां बाप अपनी बेटी को खाली हाथ नहीं भेजता , अपनी हैसियत मुताबिक सब किया और सभी ने विभा की सुंदरता , पढ़ाई, लयाकत को सराहा। शारदा समझ गई थी कि सचमुच ही जमाना बदल चुका है, जो है सो है फालतू में दिखावा करना तो सिरफ आत्मतुष्टि है, किसी को कुछ फरक नहीं पड़ता, अपने बच्चे और परिवार खुश रहना चाहिए।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़।

वाक्य- झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती।

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