****झाड़ू-पोंचा-बर्तन**** – रमन शांडिल्य : Moral Stories in Hindi

हमारे घर झाड़ू पोंचा करने वाली, कामवाली बाई कल किसी लड़के के साथ नौ दो ग्यारह हो गई । मतलब भाग गई । मतलब प्यार निभाने की कसमों पर खरा उतरी ।

लेकिन हमारे घर की पूरी व्यवस्था चरमरा गई । और फलस्वरूप मेरी पत्नी की आंखों से नए पुराने सभी दर्द कुछ इस तरह बहने लगे मानो कोई नल की टोंटी पूरी बंद न हुई हो और पानी बूंद बूंद कर रिस रहा हो । लगातार । हालात मेरे भी कुछ अच्छे नहीं थे या यूं कहूं कि खराब होने वाले थे।

बहरहाल जिस झाड़ू से मुझे हमेशा डर लगता था वही झाड़ू अब मुझे मेरे गले पड़ती नज़र आई । और अचानक झाड़ू और साफ सफाई करने की मजबूरी ने मेरे मन में एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया कि इस झुग्गी से उस झुग्गी तक भाग कर जाने वाली उस कामवाली बाई को ओलम्पिक का कौन सा मैडल मिलेगा ??  एकल मैराथन का, या युगल मैराथन का !! 

अभी इसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिला था कि एक और प्रश्न दिमाग में ऐसे चक्कर काटने लगा जैसे सर्कसी मौत के कुंए में कोई बाइक सवार चक्कर काटता है । मैं खुद से ही पूछ रहा था कि हमारे घर को सही से सांभ-समेट कर रखने वाली बाई, जब अपने जीवन की अगली दौड़ के लिए फुर्र हो रही थी, तो उस समय उसके मन के बैकग्राउंड में कौन सी फिल्म का, कौन सा गाना बज रहा था ?

DDLJ वाला

‘प्यार होता है दीवाना सनम ‘,

या किसी और फिल्म का । कोई तड़कीला, भड़कीला गाना ! जैसे

“बांधा है किसने पागल हवा को

रोका है, किसने उड़ती घटा को….”

न जाने कौन सा !!!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

समझदारी का उम्र से नाता नहीं – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि “रोक सके जो दिलवालों को ऐसी कोई जेल नहीं,” यह मिसरा हमारी  कामवाली बाई जैसे दिलवालों के लिए लिखा गया होगा, शायद !

खैर !

हमारी कामवाली बाई के भागने से मेरा अशांत मन एक अनुमान लगाने लगा कि आजकल के नासमझ नाबालिग बच्चों को फिल्में या web series बहुत प्रभावित कर  रही हैं ।

फिल्म एक abstract भाव को अतिशयोक्ति से भी परे ले जाती है और अबोध बच्चे का कोमल मन उसी abstract को एक परफेक्ट shape देने की ठान लेता है ।

यह shape बाद में अलग अलग रूप में सामने आती है, जैसे छोटी बात से बड़ी दुश्मनी  पाल कर हिंसक हो जाने की shape में,

फतवे जारी करने की shape में, या भगवाकरण की shape में या फिर, घर से भाग शादी करने को, कोई बहुत बड़ी उपलब्धि समझ लेने की shape में ।

मैं सोचने लगा कि कोमल मन को बहुत आसानी से प्रभावित किया जा सकता है । और इसी प्रभाव का फायदा उठा कर आजकल कुछ लोग या संगठन बच्चों को अपना टारगेट बना, अपने आवरण में ले रहे हैं । दुष्प्रवृति एवं विकृत मानसिकता वाले ये लोग, बच्चों को हिंसक, अपराधी, आतंकी या ह्यूमन बम्ब के रूप में तब्दील करने का काम इतने गुपचुप तरीके से कर जाते हैं कि किसी को कोनों कान खबर नहीं होती ।

मेरी सोच यहां तक पहुंच गई कि आजकल झुग्गी झोंपड़ियों में रहने वाले बच्चे, जिनकी जिंदगी पहले से ही नारकीय है और जिनके माता पिता ध्याड़ी-मजदूरी कर अपना पेट पाल रहे हैं उनके बच्चों को आसानी ट्रैप किया जा रहा है ।

मोबाइल के माध्यम से इन बच्चों को ट्रैक किया जाता है । AI की सहायता से उनके दिमाग को पढ़ा जाता है । उनका बड़ा डेटा बसे तैयार किया जाता है । उस डेटा बेस पर डाटा माइनिंग होती है और उसके बाद शॉर्टलिस्ट किए हुए बच्चों के मोबाइल पर वहीं कंटेंट परोसा जाता है जिससे उन बच्चों के दिमाग में उन्माद ठूंस ठूंस कर भरा जा सके।

सोचते सोचते मुझे मेरे मन के विचार ये कहने लगे कि D गैंग जैसे बहुत से गैंग आजकल इसी तरह से ही अपना नेटवर्क फैला कर फलफूल रहे हैं । मोबाइल पर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सब कुछ खुल्लम खुल्ला उपलब्ध होने के कारण बच्चे आसानी से गलत हाथों का शिकार हो रहे हैं । साथ ही साथ गरीब बच्चों को अपराध की दुनिया में झोंकने के लिए जेल को झुग्गी से बेहतर विकल्प बताया जाता है । कहा जाता है  कि जेल में कोई भूखो नहीं मरता । जेल में किसी को भीख मांगने की नौबत नहीं आती । जेल में ठंडी हवा का आनन्द  बिजली का बिल भरे बिना ही मिल जाता है। आदि आदि।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

खुशी के आंसू… – रश्मि झा मिश्रा   : Moral Stories in Hindi

और मेरा मन इस निष्कर्ष पर पहुंच ही गया कि ऐसे वातावरण में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को नौकरी कर शांतिपूर्वक जिंदगी बिताने का ख्याल नहीं आता, क्योंकि, ये बच्चे हर रोज अपने ही घरों में अपने ही पिता को शराब पी कर अपनी ही मां को पीटते हुए देखते हैं । ये बच्चे अपने आसपड़ोस के लड़कों को छोटी मोटी चोरी करते हुए, किसी लड़की को छेड़ते हुए या भगा कर ले जाते हुए, देखते हैं । ऐसी बस्तियों में हिक्कड़ लड़के कमजोर बच्चों पर धाक जमा हीरोगिरी करते हैं, तो छोटे बच्चे भी हिक्कड़ाई और चोर-पुलिस,  पकड़म-पकड़ाई को एक नॉर्मल रूटीन मान लेते हैं ।

मुझे मेरे विचार उलझाए हुए थे और मेरे तन बदन को झाड़ू उठा कर घर की साफ सफाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए अब मेरे मन ने विश्लेषण करना शुरू किया कि अगर हम मध्यम वर्गीय शिक्षित परिवारों की बात करें, तो समाज के इस घटक से भी कुछ बच्चे अपराध की दुनिया को जीवन शैली के रूप में अपना रहे हैं ।

अच्छी नौकरी पा कर अपने जीवन में सुख सुविधाओं की लालसा का ख़्याल इन बच्चों को नहीं आता । ये बच्चे किसी भी घटना को एक उन्मादी ढंग से सोचते हैं और ऐसे कुकर्म कर देते हैं कि अपराधी बन जाते हैं । इन बच्चों की उन्मादी सोच को केवल आतंकी संगठन ही नहीं, बल्कि आजकल के स्वयंभू लाइफ कोच भी बढ़ावा देते दिखाई देते हैं । ये लाइफ कोच अपने भाषणों के माध्यम से जनमानस को समझाते हैं कि  “वर्तमान में जीना सीखिए ।”

यानी भूत, भविष्य का कोई ख़्याल नहीं रखिए । ये स्वयंभू

“कल हो न हो” वाले वाक्य को जीवन का फलसफा बताते हैं ।

और कुछ दिव्य दिमाग धारी ऐसे one liners philosophy वाले वाक्यों से प्रभावित हो वाक्य को ही वर्तमान में जीना शुरू कर देते हैं । ऐसे लोगों या बच्चों को अपना भूत अभूतपूर्व अंधकारमय संघर्षों से भरा हुआ जान पड़ता है । ऐसे बच्चे भविष्य के संघर्षों से दो दो हाथ करना नहीं चाहते क्योंकि इन्हें जीना तो वर्तमान में है !  इस तरह वर्तमान में रहने का यह फलसफा बहुत लोगों को नकारात्मक बना रहा है,

क्योंकि इस विचार से जीवन चंद लम्हों तक सीमित जान पड़ता है । ऐसे में व्यक्ति धीरज खो देता है । वो हथेली पर सरसों उगाने की जुगत भिड़ना शुरु करता है । असंभव को संभव करने का प्रयास करता है । इसलिए हर दिन असफल होता है । ऐसे में जब उसे अपने काम का फल हाथों हाथ नहीं मिलता तो वह अधीर हो, हिंसक हो जाता है । वह अपनी असफलता को किसी और की साजिश समझने लगता है। उसे लगता है  कि पूरी कायनात उसके खिलाफ है और उसे फेल करने में लगी है ।

इस तरह ‘कल हो न हो ‘ का यह विचार किसी भी कम विकसित बुद्धि में अपना एक जाल बनाना शुरू कर देता है और एक घातक रूप धारण कर लेता है ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

श्रवण कुमार – शुभ्रा बैनर्जी   : Moral Stories in Hindi

लेकिन गौरफरमाने की बात ये है कि सोशल मीडिया पर अपने मिलियंज ऑफ सब्सक्राइबर्स होने की ताल ठोकने वाले स्वयंभू दिकदृष्टाओं को भी नहीं पता होता कि उनके फलसफे ही समाज के बड़े पथभ्रष्टा हैं ।

ओ हो!!!!!!

मैं तो कामवाली बाई के हनीमून पर भाग जाने से झाड़ू लगाने के काम से बचते-बचते खुद ही दार्शनिक बन बैठा और सभी को एक लाठी हांक दिया ।

अन्याय! अन्याय ! घोर अन्याय!

लेकिन मुझे अब समझ आया कि महिलाएं अपने पतियों को सारा दिन एक लाठी से क्यूं हांकती हैं !!! झाड़ू-पोंचा-बर्तन किसी को भी दार्शनिक बना सकते हैं ।

रमन शांडिल्य

09.11.2024

भिवानी ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!