जीवन की सांझ – रचना कंडवाल : Moral Stories in Hindi

सुनो मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं। क्या है? कोई और काम नहीं है।हर समय मुंह चलाने के अलावा आनंद जी ने न्यूज पेपर में सिर घुसाये हुए चिड़चिड़ा कर कहा फिर पेपर में और गहराई तक सिर घुसा लिया। मीरा रूआंसी हो गई। धम्म से सोफे पर बैठ गई और सोच में डूब गई।

ये तो कभी नहीं बदलेंगे‌ बुढ‌ऊ कहीं के। एक तो मुये इस घुटने के दर्द ने परेशान कर दिया है पहले तो जरा मोहल्ले पड़ोस में उठना बैठना हो जाता था कथा, कीर्तन में चली जाती थी,या फिर क्लब में,मेले, ठेले शापिंग मॉल आदि में घूम कर अपनी प्रिय मित्र कुसुम के साथ मोहल्ले,

पड़ोस की चार चुगलियां करके कलेजे में शांति पड़ जाती थी पर अब तो कुसुम भी पिछले छह महीने से अपने बेटे के पास ग‌ई है जाने कब वापस आयेगी।अब मेरा तो कोई बेटा भी नहीं है जिसके पास जाऊं दो बेटियां थीं दोनों की शादियां कर दी

एक अमेरिका है तो दूसरी लंदन में दोनों बुलाती हैं पर कैसे जाऊं महाराजाधिराज कहीं जाना भी तो नहीं चाहते।अपना घर अपना घर की रट लगाए रहते हैं। मीरा ने अपने ख्यालों में आनंद जी को कोसते हुए मुंह बनाया। उसकी सोच अभी बरगद का रूप ले ही रही थी कि आनंद जी की आवाज़ ने रंग में भंग कर दिया।

ये क्या मुंह बना रही हो, मुंह मत बनाओ,जाकर अदरक वाली चाय बनाओ। मीरा का पारा चढ़ कर अपनी सीमाओं को लांघने ही वाला था कि पड़ोस के चतुर्वेदी जी सशरीर उपस्थित हो ग‌ए अपने चेहरे पर माधुरी दीक्षित वाली मुस्कराहट लाकर बोले भाभी जी नमस्कार ।

नमस्कार भाई साहब आइये-आइये बदले में मीरा को भी जैकी चैन वाली मुस्कराहट चिपकानी पड़ी। अरे भई चतुर्वेदी जी भी चाय पियेंगे। मीरा अंदर जाकर चाय बनाने लगी चाय बनाते-बनाते सोचने लगी कि मेरी जिंदगी तो इस चाय नाश्ते,लंच, डिनर मेहमान नवाजी, और इनकी झिड‌कियों में ही गुजर गयी।

पर अब मैं चुप नहीं र‌हूंगी कुछ करना पड़ेगा हड़ताल पर जाऊं या ट्रान्सफर पर। तब तक बाहर से आवाज आई कि अरे चाय के साथ वो केले के चिप्स भी ले आना। खैर चाय का प्रकरण सफलता पूर्वक सम्पन्न हो गया। आंनद जी ने न्यूज पेपर पढ़ लिया तभी उनका ध्यान आसपास के वातावरण पर गया वो समझ ग‌ए कि सुनामी आने वाली है

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वो चुप चाप मीरा के पास आकर बैठ गए और मीरा के चेहरे का मुआयना करने लगे और  कहने लगे कि मीरा तुम्हारे चेहरे पर ये सूजन कैसी है मीरा बरस पड़ी मैं बहुत बोलती हूं, आपकी शांति भंग कर देती हूं अगर मैं ना रहूं तो ये घर बिल्कुल वैसे ही हो जायेगा जैसा आप चाहते हो। मैं ऋचा के पास चली जाउंगी और तब तक वापस नहीं आऊंगी

जब तक मेरी जरूरत नहीं होगी। आंनद जी हंस कर उसका हाथ पकड़ लिया और कहने लगे जा सकोगी मुझे छोड़ कर? तुम पर चिढ़ता हूं, गुस्सा करता हूं मैं एक कहता हूं तो क्या तुम सौ नहीं सुनाती।तुम्हें पता है कि मां जीवन में एक बार मिलती है और पत्नी जीवन भर  साथ निभाती है।और तुम बुढ़ापे में मुझे छोड़ कर चली जाओगी।

वैसे भी तुमने जो इतने करवाचौथ के व्रत रखें हैं सात जन्मों तक साथ निभाने के लिए उनका क्या होगा? पर मीरा गुस्से से उबल रही थी उसने कहा इन चिकनी चुपड़ी बातों से कुछ नहीं होगा रोज़-रोज मैं थक गई हूं डांट खाते खाते। आनंद जी गंभीर हो ग‌ए कहने लगे तुम्हें डांटता हूं

इसलिए कि इस घर में तुम्हारी आवाज़ गूंजती रहे ,जिससे इस घर में जिंदगी का अहसास होता रहे।पर वो प्यार से भी तो हो सकता है मीरा ने मुंह फुलाकर कहा। अच्छा तो मैं तुम्हें प्यार  नहीं करता इसलिए कि मैं इन सास बहू वाले टापिक्स में अपने विचार व्यक्त नहीं करता या तुम्हारे और कुसुम के साथ बैठकर मोहल्ले पडोस की गॉसिप नहीं करता ।

मीरा जीवन की इस सांझ में एक दूसरे का‌ साथ कितना जरूरी है ये साथ छूटने के बाद ही पता चलता है। तुम्हें अगर ऋचा के पास जाने का मन है तो दोनों साथ चलेंगे। वैसे भी आज कुछ ठीक महसूस नहीं कर रहा हूं। मीरा घबरा गई क्या हुआ? कल ही तो ब्लड प्रेशर चैक कराया था।

और खाओ चिप्स, पकौड़े उस छिछोरे चतुर्वेदी को बुलाओ दस-दस चाय गटको उसके साथ तभी आपकी तबीयत ठीक रहेगी। पर चाय कौन बनाएगा तुम तो जा रही हो न। नहीं मैं कहीं नहीं जा रही हूं जीवन की सांझ पर भाषण तुम्हें ही नहीं आता मुझे भी आता है। दोनों के सम्मिलित ठहाके गूंज उठे।

लेखिका–रचना कंडवाल

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