*जीवन की सांझ में उजास* – प्रतिमा पाठक : Moral Stories in Hindi

प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरता  छोटा सा गाँव सोनपुर अपनी रमणीयता के लिए प्रसिद्ध था।गांव के अंतिम छोर पर बसी छोटी-सी कुटिया में  निर्मला दादी अकेली रहती थीं। उम्र की सांझ ढल रही थी, लेकिन चेहरे पर  अब भी जीवन का सूरज चमकता था। रोज सुबह तुलसी में जल देकर, मिट्टी के दीयों से घर को सजाकर वह अपने दिन की शुरुआत करतीं।

कई सालों से कोई पूछने नहीं आया। बेटे-बेटियाँ सब शहर में अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए थे। पर दादी को कोई शिकवा नहीं था। उनका मानना था — जब तक सांस है, तब तक जीवन है और जब तक जीवन है तो तब तक #अस्तित्व भी है।

    एक दिन गांव में एक NGO के कुछ युवा आए। उद्देश्य था – बुजुर्गों से मिलना, उनकी कहानियाँ सुनना और उन्हें थोड़ा वक्त देना। जब वे निर्मला दादी के घर पहुँचे, तो वह आश्चर्यचकित रह गए। न कोई शिकायत, न कोई निराशा। बस आत्मिक संतोष।

दादी, आपको अकेलापन नहीं खलता? एक युवती ने पूछा।

निर्मला दादी मुस्कराईं, बेटी अकेलापन बाहर नहीं मन में होता है। जब मैं अपने पौधों से बात करती हूं, पुराने खत पढ़ती हूं, अपने मन के मंदिर में दीप जलाती हूं  तो मैं खुद को पूर्ण महसूस करती हूं।

     उनकी बातें सुनकर युवाओं की सोच बदल गई। उन्होंने दादी के साथ घंटों बिताए, और लौटते वक्त हर किसी की आंखों में एक नई समझ थी कि अस्तित्व केवल सांसों से नहीं, आत्म-सम्मान और स्वीकृति से बनता है।

     निर्मला दादी अब भी वहीं हैं, लेकिन अब हर सप्ताह कोई न कोई आता है । उनके #अस्तित्व को महसूस करने और खुद को समझने।

✍🏻प्रतिमा पाठक

लेखिका/समाज सेविका

         दिल्ली

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