जीना सीख लिया – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

          ” ये क्या मीनू…तूने फिर से कमरे में अंधेरा कर लिया।बेटी…बीती बात को भुला कर आगे बढ़ना चाहिये..और रोशनी के साथ…।” कहते हुए मालती ने कमरे की बत्ती जला दी तो मीनू चीख पड़ी,” नहीं माँ..बंद कर बत्ती…मुझे रोशनी नहीं…।” कहते हुए उसने अपने दोनों हाथों से चेहरा छुपा लिया।बेटी को अपने कलेज़े से लगाते हुए मालती बोली,” ना मेरी बच्ची..ऐसा नहीं कहते..।” 

    ” मैं क्या करूँ माँ…चाहकर भी उस #काली रात को नहीं भूल पाती…।” कहते हुए वो सुबकने लगी।मालती उसकी पीठ सहलाते हुए बुदबुदाई,” भूलना तो पड़ेगा बेटी..।”

         मालती का पति एक फ़ैक्ट्री में सुपरवाइज़र था।एक दिन फ़ैक्ट्री से लौटते हुए उसका एक्सीडेंट हो गया।सिर पर गहरी चोट लगने और अधिक खून बह जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।मालती टूट गई थी लेकिन जब दस साल की उसकी बेटी मीनू ने उसके सिर पर हाथ रखा तो उसने अपने आँसू पोंछ लिये।

         मालती उसी फ़ैक्ट्री में सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी करने लगी और बेटी को पढ़ाने में जी-जान से जुट गई।

      मीनू होशियार थी और मेहनती भी।अच्छे अंकों से उसने  बारहवीं की परीक्षा पास की और एक काॅलेज़ में दाखिला ले लिया।उम्र के साथ उसका रूप भी निखर आया था।नाक-नयन तीखे और कमर तक लंबे उसके काले-घने बाल बरबस ही हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे।

      सेकेंड ईयर की परीक्षा देकर मीनू फ़ाइनल ईयर की तैयारी कर रही थी।एक दिन उसने नोटिस किया कि एक लड़का कैंटीन, लाइब्रेरी, पार्क इत्यादि जगहों पर उसका पीछा कर रहा है।फिर एक दिन एकांत पाकर उसने फिल्मी स्टाइल में मीनू को फूल देना चाहा तो मीनू ने उसे डाँट दिया और फूल को फेंक दिया।उसने सोच लिया कि अब अगर कुछ ऐसा-वैसा किया तो वो प्रिंसिपल सर को शिकायत कर देगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि एक दिन कुछ लड़के जब उसे छेड़ रहे थे तब वही लड़का आकर सभी को डाँटा था।

       मालती को मीनू के लिए एक अच्छा रिश्ता मिल गया तो उसने शादी तय कर दी और फ़ाइनल परीक्षा के बाद विवाह की तारीख रख दी।काॅलेज़ में मीनू की सहेलियाँ उसे बधाई देने लगीं।उस लड़के ने भी आकर उसे मुबारकबाद दिया था।

       शनिवार का दिन था।मालती बेटी से बोली कि कल छुट्टी है।तू तो दिन भर पढ़ाई करेगी तो मैं तेरी बुआ से मिलकर आ जाती हूँ।सुबह की बस से जाकर शाम को वापस आ जाऊँगी।यदि रुकना पड़ा तो मैं फ़ोन कर दूँगी।

       मीनू तल्लीनता से अपनी पढ़ाई कर रही थी।शाम होते-होते अचानक आकाश में बादल छा गये और झमाझम बारिश होने लगी।कुछ देर में बिजली भी चली गई तो उसने माँ को फ़ोन करना चाहा लेकिन तेज़ बारिश के कारण वो संभव न हो सका।वो समझ गई कि माँ अब कल ही आयेगी तो उसने अपनी किताबें बंद की…खाना खाया और लैंप की रोशनी मद्धिम करके सोने चली गई।

       मीनू को नींद लगे कुछ ही समय हुआ था कि अचानक उसकी काॅलबेल बजी।उसकी नींद खुली तो उसने पूछा, कौन है? जवाब न मिलने पर उसने दुबारा पूछा।तब बाहर से एक पुरुष की आवाज़ आई,” मीनू..दरवाजा खोलो…तुम्हारी माँ…।” 

     ” क्या हुआ माँ को..।” किसी अनहोनी की आशंका से घिरी मीनू ने तुरंत दरवाजा खोल दिया।सामने में एक युवक को देखकर वो चौंक पड़ी,” तुम…।” वो दरवाजा बंद करती, तब तक में वो युवक अपने हाथ से उसका मुँह बंद करके उसे घसीटकर भीतर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया।वो युवक वही था जो काॅलेज़ में उसका पीछा करता था।अपने बचाव के लिए वो चीखी लेकिन तेज बारिश के कारण उसकी चीख चारदीवारी के अंदर ही घुटकर रह गई थी।वो खुद को बचाने के लिए एक कमरे से दूसरे कमरे तक भागती रही..मिन्नतें करती रही लेकिन..।वो अचेत हो गई।दरिंदा उसकी इज्जत के तार-तार करते हुए बुदबुदाता रहा,” तुझे पाने के लिए ही तो हमने स्वाँग रचा था…।”अपनी हवस बुझा कर वो चला गया।

          अगली सुबह जब मालती आई और घर का दरवाज़ा खुला देखा तो घबरा कर ‘मीनूऽऽऽ’ पुकारती हुई वो भीतर गई।बेटी को फ़र्श पर पड़े और उसके अस्त-व्यस्त कपड़े देखकर वो रात की पूरी घटना समझ गई।पानी के छींटे डालकर उसने मीनू को होश में लाया तो वो माँ से लिपटकर रो पड़ी।

     ” जो हुआ उसे एक भयानक सपना समझकर भूल जा…।” मालती ने मीनू को समझाने का प्रयास किया तब वो बोली,” नहीं माँ..मैं उसे नहीं छोड़ूँगी..पुलिस में कंप्लेन करके उसे सज़ा दिलाऊँगी।” 

      बेटी का दृढ़ निश्चय देखकर मालती ने भी हिम्मत बाँधी और दोनों तुरंत अपने इलाके के पुलिस थाने पहुँची।वहाँ के इंस्पेक्टर को मीनू ने लड़के का नाम बताकर रोते-रोते पिछली रात की पूरी घटना बताई।पुलिस ने उसका नाम-पता लिखकर उसे कल आने को कहा।अगले दिन जाने पर पुलिस ने टाल-मटोल किया।फिर कहा कि उस लड़के की पहुँच ऊपर तक है..केस वापस लो..।मीनू नहीं मानी तो पुलिस उसे ही चरित्रहीन कहने लगी।

         दस दिनों की इस भाग-दौड़ में मीनू समझ गई कि उसे न्याय नहीं मिलेगा।इसी बीच उसकी तय हुई शादी भी टूट गई।मुहल्ले में भी उसकी बदनामी होने लगी।उसकी माँ को देखकर लोग ऊँगली उठाने लगे, तब हताश-निराश होकर उसने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था।न खाना खाती और ना ही माँ से बात करती।मालती उसे बहुत समझाती लेकिन उसकी आँखों के सामने उस रात का भयानक हादसा आ जाता और वो रोने लगती।

       आज भी जब मालती काम से लौटी.. मीनू के कमरे की बत्ती जलाई तो वो अपना चेहरा छुपाकर रोने लगी।तब मालती उसे चुप कराते हुए बोली,” रो मत मेरी बच्ची..हम जल्दी ही ये जगह छोड़कर कहीं और चले जाएँगे…लेकिन अब तू नहीं रोएगी।” 

       एक दिन मालती काम पर जाकर दो घंटे बाद ही वापस आ गई।मीनू से बोली कि मेरे सिर में दर्द है और हल्का बुखार भी है।देख तो, घर में combiflam tab है? मीनू उसे बिस्तर पर लिटाते हुए बोली,” तुम आराम करो..घर में तो नहीं है.. मैं दुकान से ले आती हूँ।” पर्स लेकर उसने दुपट्टे से अपना मुँह ढ़का और बाहर निकल गई।पास ही उसे केमिस्ट की दुकान दिख गई तो वो रुक गई।दुकान पर खड़ी लड़की का जला हुआ चेहरा देखकर एक बार तो वो डर गई लेकिन फिर उससे combiflam की चार टेबलेट लेकर चली आई और माँ को खिलाकर सुला दी लेकिन उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी।रह-रहकर आँखों के सामने दुकान वाली लड़की का चेहरा आ जाता और वो बेचैन हो उठती।

       दवा खाने से मालती को आराम मिला तो वो काम पर चली गई और मीनू उस लड़की से मिलने चली गई।

       दुकान पर पहुँच कर मीनू ने उस लड़की से पूछा,” अगर बुरा न माने तो क्या मैं जान सकती हूँ कि आपका चेहरा..कैसे..।” लड़की बोली,” हाँ-हाँ, क्यों नहीं।” फिर उसे एक स्टूल पर बिठाते हुए बोली,” मेरा नाम नीलम है।कभी मैं भी आपकी तरह खूबसूरत थी। एक लड़का जो उम्र में मुझसे बड़ा था, आते-जाते मेरा रास्ता रोक लेता था।मैं उसे नहीं जानती थी।एक दिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बत्तमीजी करने लगा।मैंने किसी तरह से खुद को बचाया लेकिन घबरा गई थी।फिर मैंने अपना रास्ता बदल दिया।” कहकर वो चुप हो गई।मीनू ने उत्सुकता वश पूछा,” फिर?”

    नीलम बोली,” नवम्बर की वो शाम मेरे जीवन की# काली रात थी।मैं सात बजे अपनी सहेली के घर से आ रही थी कि अचानक वही लड़का मेरे सामने आया और कुछ तरल-सा मेरे चेहरे पर फेंक कर भाग गया।जलन हुई, तब समझ आया कि मुझ पर तेज़ाब फेंका गया है।मैं चीखते हुए वापस अपनी सहेली के घर भागी।उसका परिवार ही मुझे हाॅस्पीटल ले गया।मेरे माँ-पापा दौड़े-दौड़े आये..।” कहते हुए उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।तभी दो ग्राहक आ गये तो उसने आँसू पोंछकर उन्हें मेडिसिन दी।फिर बोली,” महीनों इलाज़ चला..उस पीड़ा में कई बार मरने को भी जी चाहा लेकिन…।पुलिस आई, वो पकड़ा भी गया लेकिन उसके पिता की मिनिस्ट्री तक  पहुँच थी..सो,छूट गया।इसी बीच मेरे पिता की मृत्यु हो गई जो माँ के लिए दूसरा सदमा था।फिर मैंने माँ के लिए खुद को संभाला।इलाज़ में काफ़ी खर्च हो गया था, इसीलिए बारहवीं के बाद इधर-उधर छोटे-मोटे काम करने लगी।माँ भी घरों में खाना बना रही थी।दो महीने पहले वो भी चल बसीं।स्याह रात की याद से आज भी मैं सिहर उठती हूँ लेकिन अब मैंने जीना सीख लिया है।एक रात के हादसे को चादर की तरह ओढ़े रखना तो मूर्खता है ना..।” कहते हुए उसके चेहरे पर एक दृढ़ता थी जिसे देखकर मीनू के भीतर जीने की एक प्रेरणा और नई ऊर्जा का संचार होने लगा।

         अगले दिन जब मालती काम पर जाने लगी तब मीनू के हाथ में किताबें देखकर वो चौंक पड़ी।मीनू बोली,” मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूँगी।” तब खुश होकर मालती बोली,” ज़रूर कर बेटी..उसके बाद हम यहाँ से..।

   ” कहीं नहीं जाएँगे माँ..हम अपने घर में ही रहेंगे और अब मैं अपना चेहरा भी नहीं छुपाऊँगी..।” कहते हुए मीनू का चेहरा आत्मविश्वास से चमक उठा था।

          काॅलेज़ जाने पर मीनू को पता चला कि उस घटना के बाद उस लड़के को काॅलेज़ से निकाल दिया गया था।पढ़ाई के साथ-साथ उसने कराँटे क्लास भी ज्वाइन कर ली थी।लोगों की निगाहें तो अब भी उसे घूरती थी पर वो उन्हें नज़रअंदाज़ करके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती गई।

        ग्रेजुएशन पूरा करके मीनू ने घर से ही ‘खाने का डिब्बा’ भेजने का काम शुरु कर दिया।परेशानी तो बहुत हुई..लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।धीरे-धीरे उसका काम ज़ोर पकड़ने लगा।साथ ही, वो लड़कियों को कराँटे भी सिखाने लगी ताकि वक्त आने पर वो अपनी रक्षा कर सके।

       मालती की उम्र ढ़ल रही थी।एक दिन उसने मीनू के सामने विवाह की बात छेड़ दी तो वो माँ के कंधे पर अपने दोनों हाथ रखते हुए बोली,” मेरी अच्छी माँ… तुम्हारी बेटी ने जीना सीख लिया है। तुम्हारी सेवा करना, गरीब-दुखियों की मदद करना और लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए तैयार करना ही अब मेरा उद्देश्य है..।”

        मालती अपनी बेटी को एकटक निहारने लगी।मीनू के चेहरे से स्याह-रात की परछाइयाँ मिट चुकी थी।उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया और बेटी के उद्देश्य के पूरा होने की प्रार्थना करने लगी।

                                   विभा गुप्ता 

# काली रात              स्वरचित, बैंगलुरु 

                हर इंसान के जीवन में एक काली रात आती है लेकिन उसे भुला कर आगे बढ़ना ही समझदारी है।नीलम ने यही किया।उससे प्रेरित होकर मीनू ने भी अपने मन पर पड़ी अंधियारे की चादर को उतार कर फेंक दिया।

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