जौहरी – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

जब सगाई का सामान लेकर आए श्वेता के होने वाले सास- ससुर को विश्वंभरनाथ जी ने  शगुन का लिफ़ाफ़ा पकड़ाया तो उन्होंने माथे से लगाकर मेज़ पर रखते हुए कहा —-

मारे ख़ानदान में लेने- देने की जगह रिश्तो में प्यार  औरअपनापन  हो , इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है।आप अपने जीवन की सबसे बड़ी जमापूँजी हमें सौंप रहे हैं, इसके लिए आपके हमेशा आभारी रहेंगे । 

जब विश्वंभर नाथजी ने अपनी होने वाली समधिन और समधी  के मुँह से यह बात सुनी तो उनके चेहरे पर चमक आ गई । उन्होंने हमेशा बेटियों की शादी के लिए दान- दहेज के बारे में न सोचकर, उनकी शिक्षा को सर्वोपरि रखा था । कभी-कभी पत्नी कहती भी थी —-

ख़ाली हाथ कोई नहीं ले जाता । बेटियों के विवाह के लिए कुछ जोड़ भी लो ।

पर विश्वंभर जी को भरोसा था कि ईश्वर उनकी बेटियों के लिए कोई न कोई जौहरी अवश्य भेजेगा । 

पर जब पूरे तीन साल हो गए थे चप्पल घिसते- घिसते  और  सबसे बड़ी बेटी श्वेता के लिए सुयोग्य वर तलाशते तो उन्हें लगने लगा था कि पत्नी सही कहती थी कि ख़ाली हाथ कोई नहीं ले जाता बेटियों को । आदमी  सोचता कुछ ओर है और होता कुछ ओर है । पहले सोचते थे कि रिटायरमेंट से पहले तीनों बेटियों का विवाह संपन्न कर देंगे पर  अब रिटायर होने के  केवल छह महीने रह गए थे और श्वेता के लिए भी लड़का नहीं मिला था । 

एक दिन जब किसी अनजान कॉल को बार-बार आता देखा तो विश्वंभरनाथ जी ने कॉल उठाकर कहा—-

शायद आप बार-बार किसी ग़लत नंबर पर कॉल कर रहे हैं…..

इतना कहकर फ़ोन रखने ही वाले थे कि उधर से आवाज़ आई—

ठहरिए…. मैं विश्वंभरनाथ जी से बात करना चाहता हूँ जो डाकखाने में काम करते हैं…..

जी …. बोल रहा हूँ, कहिए ….क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ  ?

जी … मेरा नाम रविशंकर प्रसाद है और मैं दिल्ली पुलिस में था , अब रिटायर हूँ । मैं आपसे मिलना चाहता हूँ । 

सोमवार को डाकखाने में आ जाइए , क़रीब ग्यारह बजे तक वहीं मिलूँगा । उसके बाद डाक वितरण के लिए चला जाता हूँ ।

क्या मैं आपके घर या आप मेरे घर पर नहीं मिल सकते ? 

उनकी इस बात का कुछ जवाब न देकर विश्वंभरनाथ जी ने कहा —-

ठीक है तो साहब , सोमवार को मिल लीजिएगा ।

मन ही मन उन्होंने सोचा—-

एक पुलिस वाले को उनसे क्या काम पड़ गया ? ख़ैर…. मिलकर ही पता चलेगा । वैसे पुलिस वालों की तो दोस्ती भी बुरी और दुश्मनी भी ….. यही बात सुनते आए हैं पर जब हमने कोई गलती नहीं की तो डर किस बात का ? 

सोमवार को साढ़े दस बजे के क़रीब विश्वंभरनाथ जी अपने थैले में चिट्ठियों को रखने के बाद बाहर माली के साथ गपशप कर रहे थे कि एक कार मेन गेट पर रुकी । अब डाकखाने में तो हज़ारों लोग आते-जाते रहते हैं वह बिना ध्यान दिए अपनी बातों में लगे हुए थे । तभी बड़े साहब के चपरासी की आवाज़ आई——

विश्वंभर काका , साहब बुला रहे हैं….. जल्दी आइए ।

वहीं पर उनकी मुलाक़ात रविशंकर प्रसाद जी से हुई । वे पोस्ट मास्टर साहब के दूर के परिचित निकले । औपचारिक मुलाक़ात के बाद रविशंकर प्रसाद जी ने कहा —-

विश्वंभरनाथ जी , दरअसल मैं आपकी बेटी श्वेता के रिश्ते के संदर्भ में आपसे बातचीत करना चाहता हूँ…..

मेरी बेटी के रिश्ते से पुलिस का क्या संबंध? 

अचानक बेटी का नाम सुनकर वे बौखलाहट में ये भी भूल गए कि रविशंकर प्रसाद जी तो रिटायर हो चुके हैं । 

नहीं…नहीं…. मैं अपने बेटे के लिए श्वेता बिटिया का हाथ माँगना चाहता हूँ । अक्सर बिटिया के बैंक में आना-जाना लगा रहता है तो वहीं पता चला था कि वो आपकी बेटी है और अविवाहित है । बस इसलिए…. मेरा बेटा सी० ए० है। बाक़ी आप तसल्ली कर लें । उसके बाद ही बात आगे बढ़ाएँगे ।अब चलता हूँ, आप भी अपनी ड्यूटी कर लीजिए ।मेरा नंबर तो आपके पास है ही …. 

इतना कहकर वे बाहर चले गए । उस दिन विश्वंभरनाथ जी ने अनमने भाव से डाक बाँटी , वैसे भी कुल दस लिफ़ाफ़े थे । इस तरह से बेटी के लिए आए रिश्ते को वे सहजता से ले नहीं पा रहे थे । शाम को घर भी जल्दी आ गए और पत्नी से बोले—-

श्वेता की माँ! मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा । कहाँ तो रिश्ता ढूँढ- ढूँढ कर थक गया और अब रिश्ता आया भी तो पुलिस वाले के बेटे का ….. लड़का तो सी० ए० है पर घर का वातावरण तो पुलसिया ही होगा ना …… वहीं खाना-पीना , गाली-गलौज! कहाँ मेरी शांत स्वभाव की होनहार बेटी ….. लड़के की अच्छी नौकरी के बावजूद रिश्ता ठुकराना पड़ेगा ।

देखो जी , पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती । माना ….. पुलिस वाले बदनाम हैं पर यह भी तो हो सकता है कि रविशंकर प्रसाद जी अपवाद हों ? 

कोई अपवाद नहीं होता ….. देखा होगा कि अच्छी कमाऊ लड़की है , सुंदर है…. बस कह दिया कि रिश्ता करना चाहते हैं । अरे ! इन लोगों को अपने डंडे के ज़ोर पर हामी भरवाने की आदत पड़ी होती है पर मेरे ऊपर इनका असर नहीं पड़ने वाला …

चलो , श्वेता को आने दो ….बात करेंगे । 

रात के खाने के बाद विश्वंभरनाथ जी ने अपनी तीनों बेटियों के सामने दिन में हुई घटना का ज़िक्र किया । तीनों का ही मानना था कि बिना किसी सबूत के, केवल समाज में प्रचलित कुछ धारणाओं के आधार पर कैसे किसी को अच्छा/ बुरा कह सकते हैं? 

अगले दिन विश्वंभरनाथ जी  लँच टाइम में इसी ऊहापोह में फँसे डाकखाने की बराबर में स्थित सरकारी  स्कूल के हेडमास्टर साहब के पास चले गए । अक्सर जब भी उनके दिल में कोई बेचैनी होती थी तो वे हेडमास्टर साहब के पास चले जाते थे । दोनों की आपस में काफ़ी घनिष्ठता हो गई थी । विश्वंभरनाथ जी को देखते ही हेडमास्टर साहब बोले —-

वाह विश्वंभर! बड़ी लंबी उम्र है तुम्हारी… पिछले दो दिन से तुमसे मिलने की सोच रहा हूँ और आज तो मन बना लिया था कि डाकखाने की तरफ़ जाकर तुमसे मिलूँगा । यार ! मेरे छोटे बेटे मनीष का डिग्री कॉलेज में लेक्चरर के पद पर चयन हो गया है । अब अपनी दूसरी बेटी का हाथ देने में कोई आनाकानी मत करना …. दोनों बच्चे एक ही फ़ील्ड के हैं , अच्छा रहेगा । 

बधाई हो हेडमास्टर साहब! बहुत धन्यवाद, आपने मुझे इस क़ाबिल समझा पर बड़ी बहन से पहले छोटी का विवाह हरगिज़ नहीं करूँगा । 

नहीं…नहीं…. ऐसा तो मैं भी नहीं करने दूँगा । ईश्वर, बहुत जल्दी  बड़ी बिटिया के लिए भी सुयोग्य वर से अवश्य मिलवाएगा ।

हाँ…. एक रिश्ता आ तो रहा है । लड़का सी० ए० है पर पिता पुलिस विभाग से रिटायर  है …. बस .. बड़ी दुविधा में फँसा हूँ । 

इतना कहकर विश्वंभरनाथ जी ने सारी बात उन्हें बता दी । 

तुम बेफ़िक्र होकर जाओ । मेरे बहुत से परिचित दिल्ली पुलिस में कार्यरत हैं और कुछ रिटायर हो चुके हैं । मैं किसी न किसी तरह पूरी जानकारी प्राप्त कर लूँगा । 

हफ़्ते बाद ही हेडमास्टर साहब रविवार की शाम को अपनी पत्नी के साथ विश्वंभरनाथ जी के घर मिठाई का डिब्बा लेकर पहुँच गए ।

विश्वंभर! रविशंकर प्रसाद जी का नाम सुनते ही लोगों की आँखों में सम्मान का भाव देखकर आया हूँ । बहुत ही ईमानदार और नेकनामी के साथ उन्होंने अपनी नौकरी की है । तीन बेटियाँ और एक बेटा है । पुलिस विभाग में नौकरी अवश्य की है पर उनके परिवार के किसी भी सदस्य पर कोई उँगली नहीं उठा सकता । बेटियों की शादियाँ हो चुकी है । सबसे बड़ी बात कि  मूल रूप से तुम्हारी भाभी के गाँव के रहने वाले निकले । ख़ानदानी लोग हैं । पूरे गाँव में इज़्ज़त है । अब भी कोई शंका है क्या? 

नहीं….नहीं…. हेडमास्टर साहब! आपने हमेशा मेरे दिल की उलझन को सुलझाया है । और आज तो बहुत बड़ी परेशानी से बाहर निकाला है । 

अगले ही दिन विश्वंभरनाथ जी ने रविशंकर प्रसाद जी को फ़ोन मिलाकर कहा —-

भाई साहब जी ! क्या मैं अपनी पत्नी के साथ आपके यहाँ आज शाम आ सकता हूँ ? 

विश्वंभरनाथ जी , मैं तो कब से आपके फ़ोन का इंतज़ार कर रहा था । आपका इंतज़ार रहेगा । 

विश्वंभरनाथ जी ने तो सोचा भी नहीं था कि उनकी दोनों बेटियों का रिश्ता दस दिन के अंदर पक्का हो जाएगा । बस उन्हें इस बात की चिंता थी कि दो शादियों का खर्च कैसे होगा? हेडमास्टर साहब से तो उनकी माली हालत छिपी नहीं थी पर बड़ी बेटी की ससुराल वालों की उम्मीदें पूरी कर पाएँगे या नहीं । पर आज रविशंकर प्रसाद जी और उनकी पत्नी के शब्दों को सुनकर विश्वंभर जी को विश्वास हो गया कि दुनिया में सब तरह के लोग मौजूद हैं । 

सबसे बड़ी बात यह हुई कि दोनों समधियों ने आपस में सलाह मशविरा करके विवाह  करीबी रिश्तेदारों और मित्रों के साथ मंदिर में संपन्न करवाया तथा निर्धनों के लिए भंडारे का आयोजन किया । इस तरह बिना दिखावे के शादी संपन्न हो गई । 

दोनों बेटियों की विदाई के बाद विश्वंभरनाथ जी की सबसे छोटी बेटी , जो बी० एड० के बाद एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही थी, उसी स्कूल के मालिक ने अपने बेटे के लिए उसका हाथ माँग लिया । 

आज विश्वंभरनाथ जी रिटायर हो गए थे और ईश्वर ने इन छह महीनों में उनकी मन की इच्छा भी पूरी कर दी थी । विश्वंभरनाथ जी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया, जिन्होंने उनकी बेटियों के लिए जौहरी भेजकर उनके विश्वास को टूटने से बचा लिया था । 

लेखिका : करुणा मलिक

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