शहर के एक मोहल्ले में रहने वाली जानकी जी ने अपने छोटे बेटे की शादी बड़े अरमानों से की थी।
लड़का सरकारी नौकरी में था — हर महीने डेढ़ लाख रुपये कमाता था।
दो बेटे थे उनके — दोनों ही पढ़े-लिखे, अच्छे संस्कारी और अपने-अपने घरों में व्यवस्थित।
जानकी जी ने हमेशा यही सपना देखा था कि जब दोनों बेटे अपने-अपने जीवन में जम जाएँगे, तो वह बहुओं के साथ मिलकर जीवन की संध्या पति के साथ सुकून से बिताएंगी।
छोटे बेटे की शादी में उन्होंने अपनी समधी जी से बहुत स्पष्ट कह दिया था —
“भगवान का दिया हमारे पास सब कुछ है। हम कुछ नहीं चाहते, बस रिश्तों में मिठास बनाए रखिए।”
शादी हुई। बहू घर आई।
जानकी जी ने अपने पूरे मन से बहू का स्वागत किया। सोचा, अब साथ में चाय पिएंगे, रसोई में बातें करेंगे, त्योहार मनाएंगे — ये ही तो वो उम्र थी जब किसी की बातों से मन खिलता है।
शादी के 4 दिन बाद सारे नेगचार निपटा बहू, बेटे को हनीमून भेज दिया कि बाद में जाना नहीं होता।
छुट्टी कम होने के कारण बेटा अपनी पोस्टिंग वाली जगह चला गया ।
लेकिन वहीं से रिश्तों का रंग बदलने लगा।
बहू वहां जा बेटे से कहने लगी,
“मम्मीजी तो सबसे यही कह रहीं है कि बहू गहने लेकर चली गयी।
जानकी जी को जब यह बात पता चली, तो उनका दिल अंदर तक टूट गया।
उन्होंने बेटे को समझाते हुए कहा,
“बेटा, तुम ही सोचो… मैं क्यों ऐसा कहूंगी? तुम दोनों तो हनीमून पर गए थे, और वहीं से सीधे नौकरी पर चले गए।
बेटे को कुछ समझ आया, पर बहू की कही झूठी बातें धीरे-धीरे उसके मन में भी असर करने लगीं।
उसने कहना शुरू कर दिया —
“अब बहू ने अपने पति से कहना शुरू किया आपको तो कुछ पता ही नहीं है… मेरे पापा ने बहुत कुछ दिया था, बहुत पैसा लगाया था।”
जानकी जी ने बहुत धैर्य से कहा,
“बेटा, अगर शंका है तो अपने ससुर जी को बुलाकर साफ-साफ पूछ लो। वे खुद कह देंगे , बहू को कोई भ्रम है।”
ससुर जी आए, लेकिन उन्होंने बात को हँसी में टाल दिया —
“अरे भाभीजी, हमने भगवान का दिया सब दिया… अब क्या हिसाब रखा जाए!”
और इस हँसी में जानकी जी की पीड़ा दुगनी हो गई।
किस बात का जवाब देतीं? किसका सबूत देतीं?
जब बाड़ ही बाग को खाने लगे।
बेटे के बहुत आग्रह पर वे उसके पास गयीं
फिर बहू ने तरह-तरह के आरोप लगाने शुरू कर दिए
“मेरी अलमारी से सामान गायब हो गया… मेरे कपड़े नहीं मिलते… …”
फिर खुद से कहती है ऐसी लड़कियों में नहीं हूँ जो रात को पति के कान भरतीं हैं।
जानकी जी का मन टूट गया।
उन्होंने बेटे को कितना भी समझाया, लेकिन बहू की चालाकी और झूठ बोलने की आदत ने बेटे को भ्रमित कर दिया।
आख़िरकार, जानकी जी ने संकल्प लिया — “अब यहाँ नहीं लौटेंगी!”
वे अपने पति के साथ गांव आ गईं, जहाँ थोड़ी शांति तो थी, पर दिल का दर्द साथ था।
समय बीतता गया।
फिर एक दिन बेटे ने फोन किया —
“माँ, बहू प्रेग्नेंट है… अगर आप आ जाएँ तो अच्छा रहेगा…”
माँ का दिल फिर नरम पड़ गया।
सोचा — “चलो, अब शायद बहू को समझ आ गया होगा।”
जानकी जी फिर लौट आईं, बहू का ख्याल रखने लगीं — दवा, खाना, आराम सब करतीं।
लेकिन बहू अब भी वही —
“माँजी मुझे टेंशन मत दीजिए… आपकी आदतें ही अजीब हैं… ये मत करो, वो मत करो।”
फिर एक दिन बेटे ने झुंझलाकर कहा —
“माँ, प्लीज़ आपकी बातों से उसे टेन्शन होती है
जानकी जी चुप रह गईं।
इतना सब करके भी वह “गलत” थीं…
उस दिन उन्होंने फैसला कर लिया — “अब कोई सफाई नहीं… सब भगवान पर छोड़ दिया है।”
, “बहू, यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है” बस इतना ही कह गाँव चली आईं
पाँच साल बीत गए।
फिर खबर आई — बहू के भाई की शादी हो गई है।
नई भाभी आई। रिश्तेदारों से खबरें मिलती रहतीं कि नयी आई बहू ने कैसे परेशान कर रखा है।
अब जानकी जी की बहू पति के साथ अपने मायके गयी और अपने ही माँ-बाप की स्थिति देखकर हैरान थी।
भाभी हर बात पर ताने देती —
“मैं क्यों बनाऊँ तुम्हारे लिए खाना? मेरा पति सर्विस नहीं करता तो क्या मैं तुम्हारी नौकरानी हूँ । मेरे पिता के दिये सामान पर मुझे ही हेकड़ी दिखा रहे हो ?” सिखाना है तो अपनी बेटी को सिखाओ।
एक दिन जब बहू ने अपनी माँ को रोते देखा और पिता को खामोश बैठे पाया, तो उसे अपने बीते दिन याद आ गए अपने पति से वे नजरें नहीं मिला पा रही थी।
उसे याद आया जब वह भी अपनी सास जानकी जी से यही कहती थी —
“मैं तुम्हारे लिए कुछ क्यों करूँ?”
आज वही शब्द उसकी भाभी ने उसकी माँ के लिए कहे थे।
उसके भीतर कुछ टूटा।
वह चुपचाप बैठी रही, और बस सोचती रही…
“माँजी ने सच ही कहा था — बहू, यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है।”
आज वो बात उसकी रग-रग में उतर गई थी।
याद रखने की बात है*****
“रिश्ते जब समझ से नहीं, केवल अहं से चलते हैं… तो एक दिन आईना ज़रूर दिखता है।
जो सबसे चुप रहता है, वही सब देखता है… वही ईश्वर है।”। जब कोई सबूत नहीं होता तब ईश्वर खुद न्याय करता है।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
#बहू यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है