सेठ धनपत राय के यहां केतकी उनके पारिवारिक सदस्य की तरह रहती थीं। जब से सलिल ने होश संभाला था उनका प्यार भरा स्पर्श हमेशा महसूस किया था। वो अपने बेटे सरजू से भी ज्यादा प्यार करती थीं सलिल को और वह भी उसे अपना सच्चा दोस्त मानता था। चाहे वह बात अच्छी हो या बुरी.. एक- दूसरे से शेयर किए बिना चैन नहीं आता था दोनों को।
समय के साथ दोनों जवान हुए।अब केतकी काकी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था शायद उम्र का असर भी था। जब उन्हें लगा कि अब उनका अंत समय निकट है तो उन्होंने सरजू का हाथ उन्हें थमाते हुए कहा कि अब से यह आपकी शरण में है। मैंने इसे समझा दिया है यह हमेशा आपका वफादार रहेगा।
सेठ जी ने सरजू को गांव में अपने खेतों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंप दी और सलिल आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया। जब वह वापस लौटा तो उसके हाव- भाव बिल्कुल बदल चुके थे। पाश्चात्य संस्कृति में वह पूरी तरह रच – बस गया था। दिन – रात शराब में डूबा रहता, देर रात तक पब में मौज मस्ती करता। उसे इस तरह पतन के गर्त में जाते देख कर उसके माता- पिता की नींद हराम हो गई थी।
वह अंधाधुंध खर्च करता और जब पिता पैसे देने को मना करते तो वह बदतमीजी पर उतर आता। जवान बेटे के सामने वे अपने आप को बड़ा बेबस सा महसूस करते और अपनी इज्ज़त बचाने के लिए मजबूर हो कर उन्हें उसकी बात माननी पड़ती।
अपने व्यापार के साथ ही उन्हें उसके स्वास्थ्य की भी चिंता थी। जब भी सलिल की मां उसकी शादी की बात छेड़तीं तो सेठ जी तुरन्त मना कर देते।
वे हमेशा यही कहते कि कैसे मैं जान बूझ कर दूसरे की बेटी की जिंदगी खराब कर दूं आखिर मुझे भी तो ईश्वर को मुंह दिखाना है। अभी तो हम इसी को देख – देख कर कुढ़ते रहते हैं जब बहू आंखों में उदासी और सौ सवाल लिये हमारे आस- पास घूमेगी तो हमारी अंतर्रात्मा हमें चैन नहीं लेने देगी.. नहीं.. नहीं सलिल की मां यह मैं नहीं कर सकता।
जब सरजू को पता चला कि सलिल विदेश से लौट आया है तो वह बड़ी उमंग से उससे मिलने आया लेकिन अब वह पहले वाला उसका दोस्त नहीं था। उसने सीधे मुंह उससे बात तक नहीं की। जब सरजू ने उसे समझाना चाहा तो वह बोला.. तुम होते कौन हो मुझे शिक्षा देने वाले.. अपनी औकात में रहो तुम। बचपन में तुमसे प्यार जताने का मतलब यह कतई नहीं है कि तुम मालिक और नौकर का अंतर भूल जाओ #जाहिल
कहीं के।
सरजू आंखों में आंसू भरे वहां से जाने लगा तो सेठ जी ने उसे अपने पास बुलाया और बोले.. सलिल की बातों का बुरा मान कर हम से मुंह मत मोड़ लेना बेटा। हमें तुम्हारी बहुत जरूरत है हमारी खोज – खबर लेते रहना।
कैसी बातें कर रहे हैं मालिक?? मैं आप से मुंह कैसे मोड़ सकता हूं??जो आपने मेरे लिए किया है उसके लिए तो मैं अपने आप को आप पर कुर्बान भी कर दूं तो वो भी कम है। यह जीवन आप ही की अमानत है अगर किसी भी रूप में मैं आपके काम आ सकूं तो यह मेरा सौभाग्य होगा।
बेटे को बर्बाद होते देखकर मां बीमार रहने लगीं और एक दिन मौत ने उन्हें सारी चिंताओं से मुक्त कर अपने आगोश में समेट लिया। अब सेठ जी और भी अकेले पड़ गए अभी तक तो दोनों पति – पत्नी अपने दुःख – सुख बांट लेते थे पर अब वो अंदर ही अंदर घुटने लगे और उन्होंने भी खाट पकड़ ली।
एक दिन सलिल उन्हें हॉस्पिटल ले गया तो डॉक्टर ने कुछ जांचें करवाने के लिए कहा जिसके लिए सेठ जी की सहमति जरूरी थी। वह उन पेपर्स पर साइन कराने के लिए पिता के पास गया। उन्होंने चुपचाप साइन कर के वो पेपर्स उसे लौटा दिए पर इस बात से उसके मन में खुराफात ने जन्म ले लिया कि वह जायदाद के पेपर्स पर भी अगर धोखे से साइन करवा ले तो रोज – रोज पैसे मांगने और जलील होने का झंझट ही खत्म हो जाए।
और वह दिन भी आया जब एक पिता अपनी ही संतान के हाथों छला गया। धोखे से निकम्मे और निर्लज्ज पुत्र ने पिता का विश्वास तार – तार कर संपत्ति अपने नाम करवा ली।
जब उसकी बदतमीजियां हद पार करने लगीं तो एक दिन सेठ जी उसे अपनी जायदाद से बेदखल करने के लिए वकील को बुलाया ताकि अपनी वसीयत बनवा सकें।
लेकिन जब वकील ने उन्हें बताया कि उनके पास तो कुछ भी नहीं है जिसकी वो वसीयत करवाएं। यह जानकर उनका सीना छलनी हो गया और उन्हें सरजू की बात याद आई। उसने कहा था कि जब भी उन्हें उसकी जरूरत होगी वह हमेशा हाजिर रहेगा।
उन्होंने फैसला किया कि अब वो गांव जा कर रहेंगे। न इस कपूत की करतूतें देखेंगे और न उनकी जान जलेगी।
जब सरजू ने सेठ जी गाड़ी देखी तो वह भागा – भागा आया। उसकी पत्नी और बच्चे भी उन्हें देख कर बहुत खुश हुए। बच्चे दादू – दादू कहकर आगे – पीछे घूम रहे थे। जब भी वे बिस्तर से कहीं जाने के लिए खड़े होते तो बच्चे भाग कर उनकी छड़ी ले आते यह देखकर उनका मन प्यार से भर जाता।
सरजू की पत्नी उनकी बहुत सेवा करती जिस प्यार और अपनेपन के लिए अपने घर में उनका मन तरस रहा था वह उन्हें यहां मिल रहा था। वे सोच रहे थे.. जिस बेटे को मैंने लायक बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी उसी ने मुझे सबसे ज्यादा दुःख दिया।
एक तरफ यह सरजू है जो इतना पढ़ा – लिखा तो नहीं है पर जिंदगी जीने के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है वो सारे इसमें हैं जो मेरे बेटे में लाख कोशिश करने के बाद भी नहीं आ पाए। इसके दिल में मेरे लिए कितनी इज्ज़त और प्यार है अगर इंसानियत के तराजू में तौला जाए तो #जाहिल कौन है मेरा बेटा सलिल या सरजू??
जाहिर है मेरा बेटा सलिल ही संस्कार विहीन और जाहिल है।
पैसे और काबिलियत का घमंड कई बार इंसान को बर्बाद कर देता है उसका सही उपयोग ही इंसान को सफल बनाता है और कई बार अच्छा व्यवहार दुःखी व्यक्ति के लिए मरहम का काम करता है।
#जाहिल
कमलेश राणा
ग्वालियर