जाहिल – करुणा मालिक :  Moral Stories in Hindi

भाभी , सुबह का खाना तो ज्यों का त्यों रखा है । अब बनाऊँ  या नहीं ? 

पड़ा है तो बनाने की क्या ज़रूरत है …….. हाँ आशी , ज़रा एक कप गर्म चाय बना दो । गाड़ी पार्क करते- करते कपड़े सील गए , पता नहीं ये बारिश की टिप- टिप कब बंद होगी ? 

महक ने अपने घर काम करने वाली आशी से कहा और अपने बेडरूम में चली गई । उसके आने के आधा घंटा बाद महक के पति निकुंज भी आ गए । पति को देखते ही ड्राइंगरूम में बैठकर  चाय पीती महक बोली —

ये सुबह का खाना यूँ ही पड़ा है, खाया क्यों नहीं? पता भी है तुम्हें कि महँगाई किस कदर बढ़ रही है । सुबह से शाम तक हड्डियाँ गलाती हूँ तब जाकर पैसा कमाया जाता है , कहीं बाहर खाने का प्रोग्राम होता है तो बता दिया करो ना आशी को ।

मुझे तो पता ही नहीं कि पैसा कैसे कमाते हैं? मैंने तो कभी कुछ किया ही नहीं….. तुम्हारे कमाए पैसे की रोटी खाने से तो आदमी मर जाए वो अच्छा है । दिन- रात के ताने मार- मारकर मेरा जीना हराम कर दिया तुमने …. ये तो माँ और कुहू का मोह पैरों में बेड़ियाँ डाले हुए हैं वरना कब का मर जाता । 

मेरे सामने ये इमोशनल ड्रामा करने की ज़रूरत नहीं है ….

इतने में उनकी चार साल की बेटी कुहू आँखों को मलती बाहर आई पर महक और निकुंज की बहसबाजी जारी रही , दोनों ने उसे देखकर अनदेखा कर दिया । कुहू रोती हुई रसोई में काम करती आशी के पास चली गई । छोटी सी बच्ची की हिचकियाँ देखकर आशी का दिल ख़राब हो गया । उसने सोचा —

कैसे लोग हैं… घर में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं फिर भी एक मिनट पास नहीं बैठ सकते ? ना अपने बच्चे का ख़याल करते कि उस पर क्या असर पड़ेगा । अपने झंझटों से फ़ुरसत नहीं थी तो इसे क्यों पैदा किया था? 

आशी ने कुहू के लिए दूध बनाया और उसे गोद में लेकर बैठ गई । वह कोई दस- बारह साल की होगी जब यहाँ अपनी माँ के साथ काम करने आती थी । निकुंज की माँ को ताई कहती थी । ताई हमेशा उसे कुछ न कुछ खाने- पीने का सामान देती थी । निकुंज भैया की बहन नीरा दीदी अक्सर उसकी माँ से कहती थी—

पार्वती आँटी! आप आशी को स्कूल भेजा करो ना ….फ़ीस तो पापा दे दिया करेंगे । 

पर माँ ने घर आके आशी को समझा दिया था—

ना बेटी, अहसान उतना लेना चाहिए जितना उतार सकें । और फिर तू कौन सा इकलौती है , तेरे पीछे पाँच भाई- बहन ओर है । दो चार कामों में हाथ बँटा दे तो काम जल्दी निपटा देती हूँ, नहीं तो साँझ ढले तक लगी रहूँगी । 

सत्तरह साल की थी जब उसकी शादी मोहना से हुई थी । ताई ने उसकी शादी में पाँच जोड़ी कपड़े , चाँदी की पायल और पाँच हज़ार नक़द रुपये दिए थे । शादी के बाद मोहना वापस अपने गाँव नहीं गया । कुछ साल तक वह माँ के साथ आती रही पर एक दिन माँ ने कहा—

अपनी ताई का घर तू ही पकड़ ले । मुझसे अब नहीं होता । बस उस दिन से पूरे घर की ज़िम्मेदारी आशी ने सँभाल ली । महक से  शादी केवल निकुंज भैया की ज़िद के कारण हुई वरना ताई- ताऊ दोनों इस रिश्ते के खिलाफ थे । और ताऊ की मृत्यु के बाद नीरा दीदी का आना कम हो गया । ताई ज़्यादातर अपने गुरुजी के आश्रम में समय बिताने लगी । 

ये सब सोचते- सोचते जैसे ही आशी की नज़र घड़ी पर पड़ी वह चौंक उठी —- 

हाय राम ! छह बज गए । बच्चे इंतज़ार कर रहे होंगे ।

उसने गोद में बैठी कुहू की ओर देखा वो अब भी डरी- सहमी सी उसकी छाती से लगी बैठी थी । 

— कुहू …. जा , मम्मी के पास जाकर खेल लें । मुझे जाना है ना ।

बुआ! मुझे भी जाना है…..

आशी जानती थी कि माँ- बाप की लड़ाई के बाद अक्सर कुहू उसके साथ जाने की ज़िद करती हैं और वह झूठ- सच बोलकर वहाँ से निकलती है । 

कुछ महीनों की रोज़-रोज़ की लड़ाई और फ़ोन पर निकुंज तथा महक की खुसरफुसर सुनकर आशी को पता चल गया कि लड़ाई भैया के काम न करने की नहीं है बल्कि अब दोनों एक-दूसरे से उकता चुके थे । आशी को गहरा धक्का लगा था । जिस घर से उसने संस्कार , आदर्श और घर- परिवार का सही अर्थ सीखा वहीं पर अब ये ….. कई दिन तक वह इसी चिंतन में डूबी रही । आशी को लगने लगा कि शायद ताई असली कारण जान चुकी थी इसलिए  कुछ न कर पाने की स्थिति में ही उन्होंने घर से किनारा कर लिया था । 

एक दिन आशी को पता चला कि कुहू को होस्टल में भेजा जा रहा है । दुनिया को तो यही कहा गया कि वहाँ उसका भविष्य बन जाएगा पर आशी समझ गई कि कुहू , माँ- बाप की बिंदास ज़िंदगी में शायद रोड़ा बनने लगी थी । 

अब आशी आती , घर का काम करती और चली जाती । पता नहीं…. वह घर था या दो मुसाफ़िरों की सराय ? एक दिन आशी मोहना के साथ ताई से मिलने उनके गुरु जी के आश्रम गई ….. ताई को देखते ही उसकी आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह चली ।आज  आशी को लगा कि वो ताई कहाँ गई जो अक्सर अपनी भारतीय संस्कृति की प्राचीन कहानियाँ सुनाकर उसे अप्रत्यक्ष रूप से उसकी ज़िम्मेदारियाँ समझाती थी । आशी घर लौट आई पर उसके दिलोदिमाग़ से ताई के हँसते- खेलते परिवार से एक टूटे परिवार की फ़िल्म निकलती ही नहीं थी । 

एक दिन उसने मोहना से कहा —

मैं अब ताई के घर नहीं जाना चाहती वरना मेरा दिमाग़ फट जाएगा ।

मैं तो तुम्हें कब से कह रहा हूँ कि मेरी नौकरी से आराम से दाल- रोटी का काम चलेगा पर तुम पर तो वहाँ जाने का जादू सवार था । नौकरी करने में कोई बुराई नहीं है पर अगर उसी नौकरी से तुम्हारे मन की शांति ख़त्म हो रही है तो कम में गुज़ारा करना भला है और फिर इच्छाएँ कभी ख़त्म ही नहीं होती। 

अगले दिन आशी गई । उसने रोज़ की तरह काम किया । इतवार था । निकुंज और महक अपने- अपने कमरे में सोए थे । आशी पूरा काम समाप्त करके बैठ गई और उनके उठने का इंतज़ार करने लगी ।

 ग्यारह बजे के क़रीब महक अपने कमरे से बाहर निकली । आशी को वहीं देखकर बोली —-

तुम यहीं हो ….. मेरे लिए एक कप कॉफी बना दो ….

मैं कल से नहीं आऊँगी । बस एक बात कहने के लिए रुकी हूँ । आपको याद है भाभी कि एक बार नीचे सड़क पर चौकीदार और उसकी पत्नी की लड़ाई देखकर आपने मुझसे कहा था—-

कैसे- कैसे जाहिल लोग हैं , यही तो फ़र्क़ है अनपढ़ और पढ़े लिखे में ……. भाभी ! मुझे उस दिन लगा था कि आप बहुत समझदार हैं, हमें कभी इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए । सच मानिए…. उस दिन के बाद मैंने कभी मोहना के साथ बहस नहीं की । अगर मुझे उसकी कोई बात बुरी लगती है तो मैं उसे बाद में समझाती हूँ । ये बात सही है कि आदमी और औरत बराबर है पर बाप से ज़्यादा सहनशील माँ होती है तभी तो कुदरत ने माँ बनने का सौभाग्य उसे दिया है । 

आप जैसी पढ़ी- लिखी होने से अच्छी वो जाहिल , गँवार- अनपढ़ औरत है जो अपने भरे- पूरे परिवार को टूटने नहीं देती । ये रही चाबियाँ….

महक उस पर चीखना चाहती थी पर कहीं अंदर उसकी आवाज़ घुट कर रह गई । 

जाहिल # जाहिल 

करुणा मालिक 

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