Moral Stories in Hindi
काका ओ काका!!
कहां हो??
अपनी पूरी ताकत लगा कर चिल्लाते हुए हर दिन मंगलू जब सुनिल के घर आता तो सरिता जल भून कर रह जाती….
आ गया… जाहिल..
ना बोलने की तमीज है और ना आवाज में कोई मिठास है इसके….
चीखते हुए आता है तो जी करता है कि गला दबा दूं इस गंवार का…
सरिता को मंगलू फुटी आंख ना सुहाता…
जैसे मंगलू घर में प्रवेश करता सरिता का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचता….
मंगलू की आवाज सुनते हीं सुनिल के चेहरे पर एक मीठी मुस्कान तैर जाती और उस मुस्कान को देख सरिता जल भून जाती…
हां हां जाइए जाइए आ गया आपका मुंह लगा नौकर…
जाने कौन सी ऐसी मिठास दिखती है आपको उसकी आवाज में जो सुनते हीं दौड़ पड़ते हैं….
क्या बोलती रहती हो???
मंगलू मेरा नौकर नहीं इस घर के सदस्य जैसा है और हां हर बार उसे जाहिल गंवार कहना बंद करो तुम….
माना कि वो पढ़ा लिखा नहीं है मगर जाहिल नहीं है वो…
बड़ों का सम्मान करना बखूबी जानता है….
ये जानते हुए भी कि तुम उसके लिए कैसे विचार रखती हो वो कभी भी तुम्हारा अपमान नहीं करता है वो…
सुनिल बोला।
सुनिल की बात शत-प्रतिशत सही थी मंगलू की शक्ल सुरत भले हीं भयावनी सी थी…
आवाज भले हीं फटे बांस की तरह थी परंतु स्वभाव का हीरा था हीरा….
मंगलू की सुबह की शुरुआत सुनिल के साथ हीं हुआ करती थी…
सुबह-सुबह सुनिल के घर आकर चाय पीना,गाय को चारा खिलाना, दूध निकालना,गोबर हटाना और गाय के घर की साफ-सफाई इत्यादि करना…
ये सारे काम करते हुए कभी भी मंगलू के चेहरे पर कोई घबराहट या अपने काम को लेकर उकताहट नहीं होती थी….
मंगलू कोई सत्रह-अठारह साल का एक किशोर था….
सुनिल के घर बचपन से उसका आना-जाना था….
गरीब तो नहीं था परंतु सुनिल के साथ अत्यधिक लगाव के कारण वो ये सारे काम खुशी खुशी कर दिया करता था वरना बाकियों के घर तो कोई अच्छा सा काम करने में भी वो सौ बहाने कर दिया करता था…
सुनिल का मंगलू के प्रति प्रेम को वो बखूबी समझता था…
जो काम पैसे से नहीं हो सकता वो प्रेम से अक्सर सुलभ हो जाता है वैसे हीं मंगलू के साथ भी था…
प्रेम के कारण हीं वो सुनिल के घर का काम बड़े हीं शौक से किया करता था…
गायों के देखभाल के साथ-साथ घर के सारे कठिन कामों में सबसे पहले मंगलू को हीं बुलाया जाता था…
परंतु सरिता को जाने मंगलू से ऐसी कौन सी दुश्मनी थी जो उसके चेहरे और आवाज से हीं उसके तन बदन में आग लग जाती थी…
आज तक उसने प्रेम तो दूर कभी उससे सीधे मुंह बात भी नहीं की थी…
जाहिल हां यहीं शब्द वो उसके लिए इस्तेमाल किया करती थी…
आ गया जाहिल….
इसकी तो शक्ल देख कर हीं खून खौल उठता है मेरा…
जाने कब इस जाहिल से पीछा छुटेगा….
ये तमाम बातें सुनकर अक्सर सुनिल का सरिता से झगड़ा हो जाता था…
सरिता मंगलू का नाम भी है उसे उसके नाम से बुलाया करो…
और हां वो जाहिल नहीं है…
उसके दिल में कभी झांकोगी तब जानोगी कि, कितना सम्मान है उसके दिल में हम सबके लिए…
इतनी बातें सुनाती है तुम उसे परंतु कभी भी वो पलट कर जवाब नहीं देता….
अगर जाहिल होता तो क्या जवाब ना दिया होता अब तक???
सुनील और सरिता में हर दिन मंगलू को लेकर बहस हो हीं जाती थी…
परंतु नतीजा वहीं निकलता ढाक के तीन पात…
ना मंगलू का घर में आना रूका और ना हीं सुनील का उसके प्रति मोह कम हुआ…
मंगलू के लिए तो काका काकी किसी ईश्वर से कम नहीं थे..
उसे पता था कि काकी मुझे पसंद नहीं करती इसलिए वो सरिता का सामना करने से अक्सर बचा करता…
कभी-कभी तो स्वयं हीं हंस कर कहा करता कि, क्या करूं जाहिल हूं ना….
सरिता और सुनील का तीन साल का बेटा पार्थ…
उसकी तो जान ही बसती थी मंगलू में…
जब भी वो उसकी आवाज सुनता सारे खेल-खिलौने छोड़ कर दौड़ पड़ता…
सुनील पर तो बस भी चलता सरिता का परंतु पार्थ पर तो उसकी एक ना चलती…
और वो चाहकर भी उसे मंगलू के पास जाने से रोक नहीं पाती…
बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं तभी तो मंगलू के बदसूरत और भद्दे चेहरे के पीछे के भले इंसान को पार्थ बखूबी पहचानता था….
मंगलू को देखते हीं दौड़ कर उसकी गोद में चढ़ जाता और अपनी तोतली जुबान में उसे कांधे पर बैठाने की जिद करने लगता…
मंगलू भी कहां कम था…
कितना भी थका मांदा क्यों ना हो परंतु पार्थ की हर जिद को हंसते-हंसते पूरी करता…
उन दोनों में प्रेम का एक ऐसा अनोखा संबंध था जो हर सुंदरता और ऊंच-नीच से परे था…
पार्थ के लिए घोड़ा बनना हो या गले में रस्सी डाल कर पांव घसीट कर गाय बन कर चलना हो…
ये सारे हीं काम मंगलू बेझिझक किया करता था….
सरिता हर बार विरोध करती कि इस जाहिल के साथ ना जाने दीजिए जी बच्चे को…
परंतु सुनील के आगे उसकी एक ना चलती…
समय बीतता गया सब-कुछ वैसे हीं चलता रहा….
पार्थ पूरे पांच साल का हो गया…
भादों का महीना था हर तरफ नदियों का जलस्तर काफी बढ़ा हुआ था…
बाढ़ जैसी स्थिति होने के कारण लोगों का कहीं आना-जाना भी ठप्प था….
बच्चों के स्कूल बंद थे…
सुनील ने सरिता से हर समय घर का दरवाजा बंद कर के रखने को कहा था ताकि बच्चा बाहर ना जा सके…
बाढ़ का पानी घर के नजदीक तक आ पहुंचा था और पानी के जलस्तर का अंदाजा लगाना मुश्किल था….
एक दिन सुबह दस बजे के करीब दरवाजा बंद कर के सरिता पीछे वाले बरामदे की सफाई कर रही थी….
दरवाजे की कुंडी लगा था इसलिए निश्चिंत थी परंतु होनी को कुछ और हीं मंजुर था….
नन्हा सा पार्थ अपने खिलौने वाले बड़े से घोड़े पर चढ़ कर धीरे से दरवाजे का सांकल खोल लिया और निकल पड़ा….
सरिता को अनहोनी की आशंका का आभास हो गया और वो दौड़ते हुए आई तो दरवाजा खुला था…
धड़कते दिल से पूरे घर में खोजने लगी परन्तु पार्थ कहीं ना मिला….
बदहवास अवस्था में वो पार्थ को पुकारते हुए दौड़ पड़ी…
सरिता को ऐसे दौड़ते देख मंगलू और सुनील भी दौड़ पड़े….
वो बच्चा घर से निकल कर सीधे बाढ़ के पानी की तरफ बढ़ता जा रहा था ……
बच्चों को पानी से अत्यधिक हीं लगाव होता है और एक साथ इतना सारा पानी देख वो उसे छूने के लिए बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा था…
पीछे से माता-पिता को आते देख दौड़ पड़ा और छपाक की आवाज को साथ पानी में गिर पड़ा….
पार्थ…..
कहकर सरिता गस खाकर गिर पड़ी…
बाढ़ का पानी पूरे जोश से बह रहा था…
किसी दैत्य की भांति हर वस्तु को बस निगल जाना चाहता था…
सुनील की तो हिम्मत हीं नहीं हो रही थी कि उस भयंकर तुफान में आगे बढ़ कर पार्थ को ढूंढें….
तभी बहते हुए पानी में किसी के सिर के काले बाल दिखाई पड़े…
और एक हाथ में पार्थ को थाम दूसरे हाथ से पानी के बहाव को काटते हुए एक फरिश्ता अपनी जान की बाजी लगाए बढ़ता चला आ रहा था….
किनारे पर आते हीं उसकी हिम्मत टूटने लगी और वो पानी के अंदर जाने लगा…
परंतु फिर से अपनी पूरी ताकत बटोर कर वो किनारे पर आ लगा….
गिरते पड़ते हाथों में पार्थ को थामे मंगलू आकर सुनील के कदमों में आ गिरा…
खुशी और आश्चर्य के मारे सुनील के कंठ से आवाज नहीं निकल रही थी…
कांपते हुए स्वर में मंगलू कहकर वो उससे लिपट गया….
सरिता की आंखें फटी की फटी रह गई…
जिस मंगलू को जाहिल और गंवार कहते उसकी जुबान नहीं थकती थी आज वो उसे किसी देवदूत की भांति लग रहा था….
अपने बच्चे की परवाह किए बिना वो जाकर मंगलू से लिपट गई…
मुझे माफ कर दे रे मंगलू…
मैं आज तक तुझे पहचान नहीं पाई…
मेरे बच्चे के प्राण बचा कर तुने ये साबित कर दिया कि जाहिल तू नहीं जाहिल तो मैं हूं जो तुम्हें पहचान नहीं पाई….
पानी के बहाव से लड़ते हुए मंगलू इतना थक गया था कि वहीं बेहोश हो गया….
होश खोने से पहले बस इतना हीं सुन पाया कि सरिता कह रही थी…
आज मेरे पार्थ को कुछ हो जाए तो हो जाए मगर मंगलू को कुछ नहीं होना चाहिए….
डोली पाठक
#जाहिल