जाहिल आदमी – गीता वाधवानी :

 Moral Stories in Hindi

 घर वाले तनीषा की बात सुनकर बहुत नाराज थे। वह एक लड़के को पसंद करती थी और उसी से शादी करने की जिद पर अड़ी हुई थी। तनीषा के घर वाले बनिया जाति के थे और लड़का पंजाबी था। वह तनीषा को समझा रहे थे कि रीति रिवाज और खानपान अलग होने के कारण उसे बाद में मुश्किल हो सकती है। लेकिन वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। लड़के का नाम सौरभ था। 

 आखिरकार दोनों बच्चों की जिद पर माता-पिता को स्वीकृति देनी पड़ी। सुखपूर्वक विवाह संपन्न हुआ। 6 महीने हंसी खुशी बीत गए। फिर तनीषा गर्भवती हुई। समय आने पर उसने एक स्वस्थ सुंदर लड़की को जन्म दिया। उसके ससुराल वाले भी खुश थे। लड़की का नाम उन्होंने प्रिया रखा। तनीषा की सास को एक पोते की अभिलाषा थी। चार-पांच वर्ष बाद तनीषा ने एक और कन्या को जन्म दिया उसका नाम उन्होंने सिया रखा। 

 तनीषा की अब और संतान को जन्म देने की इच्छा नहीं थी, लेकिन सास और पति की इच्छा के आगे उसकी एक न चली। इस बार उसने एक पुत्र को जन्म दिया। सास तो मानो इसी इंतजार में बैठी थी, वह बहुत ही प्रसन्न थीं। कुछ समय सुखपूर्वक बीता और फिर उन लोगों ने देखा कि पुत्र आदि की ग्रोथ

ठीक तरह से नहीं हो रही है। उन्होंने डॉक्टर से चेकअप करवाया। डॉक्टर ने सारे टैस्ट करने के बाद बताया कि बच्चों की नसें, पूरे शरीर की, बहुत कमजोर हैं। जीवन में शायद ही वह कभी खुद से चल पाए या दौड़ पाए। और यह भी हो सकता है कि धीरे-धीरे उसकी कमजोरी बढ़ती जाए। हालांकि उसका दिमाग बहुत तेज था। थोड़ा बड़ा होने पर वह लोग उसे घर पर ही पढ़ाई करवाने लगे। वह तुरंत ही हर बात को समझ लेता था। 

 लेकिन स्वयं बैठने में,चलने में और कुछ भी खाने में असमर्थ था। धीरे-धीरे उसकी वीकनेस बढ़ती जा रही थी। लेकिन बच्चा बहुत ही हसंमुख था, इतना कष्ट होने पर भी हर समय मुस्कुराता रहता था। तनीषा जब बड़ा होने पर भी उसकी, मल मूत्र साफ करती थी और उसे अपने हाथ से खाना खिलाती थी तो उसका दिल बहुत रोता था। वह सोचती थी कि ईश्वर ने मेरे बच्चे को ऐसी सजा क्यों दी है। 

 और इधर सौरभ और उसकी मां, हर समय तनीषा को ताना मारते थे कि तूने ऐसा बीमार बच्चा पैदा किया है। इसका कारण तू ही है क्योंकि तू मनहूस है। तनीषा वैसे तो जवाब नहीं देती थी लेकिन कभी-कभी कहती थी की बेटियां भी तो मैं ही पैदा की है वह तो स्वस्थ हैं। लेकिन क्या मैं चाहती थी कि मेरा बेटा ऐसा पैदा हो। आप लोग मुझे क्यों ताने मारते हैं। इस पर बात पर सौरभ उसे बहुत गालियां देता था और उसके ऊपर चिल्लाता था,कभी-कभी तनीषा को मारता भी था। 

 कष्ट सहते सहते बेचारा बच्चा कमजोर होता गया और एक दिन उसकी सांसों की डोर टूट गई। इस पर सौरभ ने तनिषा से कहा कि-” तू यहां रहने के लायक नहीं है तू मेरे बच्चे को खा गई, डायन है तू। ” 

 तनीषा के सब्र का बांध टूट चुका था। उसने कहा ठीक है मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ यहां से चली जाऊंगी और उसने सोचा कि अब जब उसे अपने पति से अलग रहना ही है तो क्यों ना अपने मन का दुख और भड़ास निकाल कर जाए। 

 तनीषा ने सौरभ से कहा -” मैं ना जाने क्या समझ कर तुमसे प्यार किया था, घरवालों ने मुझे समझाया भी था लेकिन मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े थे, तुम दावा करते हो मुझसे प्यार करने का, बेटा होने के बाद तुमने मेरा पल पल अपमान किया है, जबकि तुम्हें और तुम्हारी मां को अच्छी तरह पता है कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी फिर भी तुम लोगों ने मुझे ही जिम्मेदार ठहराया, एक मां अपने बच्चों को कैसे

इतनी बुरी अवस्था में देख सकती है, क्या वह चाहती है कि उसका बच्चा बीमार रहे, मैं हर पल अपने बच्चों को देखकर खून के आंसू रोती थी और भगवान से उसके ठीक होने की प्रार्थना करती थी, लेकिन तुम लोगों की समझ में नहीं आता क्योंकि तुम एक जाहिल आदमी हो, और तुम्हारी मां के बारे में तो क्या ही कहूं, तुम क्या मुझे निकलोगे मैं खुद तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहती, क्योंकि तुम्हारा असर मेरी बेटियों  पर भी पड़ेगा, मैं तुम्हारा एक भी अवगुण उनमें आने नहीं दे सकती। तुम रहो अपनी मां के साथ और मैं यह घर छोड़कर जा रही हूं। ” 

 सौरभ ने उसे एक बार भी नहीं रोका। आज 8 साल बाद सौरभ अकेला धक्के खा रहा है क्योंकि उसकी मां गुजर चुकी है और तनीषा अपनी दोनों बेटियों के साथ सुखी जीवन की रही है, हालांकि वह अपने बेटे की याद में कभी-कभी बहुत रोती है, लेकिन उसे इस बात की तसल्ली है कि एक जाहिल आदमी से उसका पीछा छूटा। 

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली 

शीर्षक- जाहिल आदमी  

साप्ताहिक प्रतियोगिता विषय #जाहिल

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