आज जैसे ही काव्या ने घर में कदम रखा करूणा जोर से चिल्ला पड़ी काव्या इतनी देर से कहां थी तुम, पता है ना देर से घर आने पर पापा गुस्सा होने लगते हैं। और मुझे भी चिंता होने लगती है तुम्हारे देर से घर आने पर। कबसे परेशान हूं मैं । जाने कैसे कैसे ख्याल मन में आ रहे हैं।और ये क्या तुम्हारा फोन क्यों बंद है ।वो मां बैटरी खत्म हो गई है ।और मम्मी क्या है ये जरा सी देर से आने पर चिल्लाने
लगती है ,जब तुम धीरे से नहीं सुनती हो तो चिल्लाना पड़ता है। परेशान हो जाती हूं मैं बेटा समय इतना खराब है आए दिन कुछ न कुछ बुरी खबर मिलती रहती है ।मैं अब बच्ची नहीं हूं मां बड़ी हो गई हूं ।घर से बाहर जाती हूं तो हो जाती है कभी कभी देर सबेर किसी वजह से। उसमें इतना परेशान होने की क्या बात है।मैं तो आपके इस रोज रोज के नाटक से तंग आ गई हूं।और काव्या पैर पटकती हुई कमरे में जाकर दरवाजा बंद करके लेट गई।
रात के खाने का समय हो गया था । लेकिन काव्या बाहर नहीं आई थी। करूणा काव्या को आवाज दे रही थी पर वो बाहर नहीं आ रही थी। करूणा जी बराबर दरवाजा खटखटा रही थी फिर गुस्से में काव्या उठी और दरवाजा खोला क्या है मां ,चलों खाना खा लो , मुझे भूख नहीं है जाओ आप यहां से ।अरे तुमने दिनभर से कुछ खाया नहीं है चलो खाना खाओ भूख लगी होगी। नहीं लगी भूख ,
मेरी भूख तो आपके तानों से ही खत्म हो गई है।मेरा पेट तो आपके हर वक्त के टोका-टाकी से ही भर जाता है । नहीं खाना मुझे। काव्या फिर से जाकर लेट गई । फिर करूणा काव्या के पास बैठ कर उसके सिर पर हाथ फेरने लगी।देखो बेटा ये रोक-टोक , डांटना डपटना सब तुम्हारे भले के लिए ही
मैं करती हूं । तुम्हारी चिंता रहती है ।रात हो जाती है और तुम्हें आने में देर हो जाती है तो मेरा मन कितना घबराने लगता है बेटा।तुम अभी नहीं समझोगी बेटा ।कल के जब तुम भी मां बनोगी न तब समझोगी मेरी बात को। मेरी और भी दोस्ते है वो भी तो बाहर रहती है लेकिन उनकी मम्मी तो कुछ
नहीं कहती।ऐसा हो ही नहीं सकता कि तुम्हारी दोस्तों की मम्मी या कुछ न कहती हो । मां है तो चिंता तो करती ही होगी।चाहे तुम्हारी सहेलियां उसे हल्के में ले लेती हो और तुम नाराज़ हो जाती हो।ऐसा हो ही नहीं सकता कि मां बच्चे की फ़िक्र न करें ।चलों बेटा खाना खा लो आ जाओ।काव्या मां के प्यार भरे मनुहार को मान गई और आ गई खाना खाने।
ऐसा करीब करीब रोज़ ही होता था मां और बेटी के साथ। करुणा किसी ने किसी बात पर काव्या को रोकती टोकती रहती थी और काव्या नाराज होकर बैठ जाती। फिर करूणा उसको मनाती । मां बेटी की नोक झोंक में काव्या बड़ी हो गई और काव्या की शादी हो गई।
विदाई के समय मां बेटी एक दूसरे के गले लग कर खूब रोई। काव्या ससुराल पहुंच गई। कुछ दिन तो सब ठीक था नई-नई बहू थी सब कुछ चलता था लेकिन जब घरकी जिम्मेदारी सिर पर पड़ी तो परेशान हो गई। कभी सास की तो कभी ससुर की कभी पति तो कभी ननद रानी के नखरे उठाने
पड़ते।हर कोई किसी न किसी बात पर उसे टोकते रहते। काव्या को बुरा लगता, गुस्से में वो अक्सर खाना न खाती । लेकिन कोई उसे वहां प्यार से मनाने नहीं आता जैसे मां मनाया करती थी चलो बेटा खाना खा लो।उस समय काव्या को मां की बहुत याद आती थी।मां तो इतना डांट भी देती थी और फिर प्यार से मना कर खाना भी खिलातीं थी।खैर ,,,, धीरे धीरे काव्या इन सब बातों की आदी हो गई।
समय के साथ काव्या एक बेटे की मां बन गई। बड़े प्यार और जतन से बेटे आदि का पालन पोषण करने लगी ।एक मां की ममता क्या होती है अब काव्या को समझ आने लगी। कितना प्यार होता है न एक मां को अपने बच्चे से कितनी चिंता कितनी फिक्र होती है सब समझ में आ रहा था।मां का गुस्सा करना ग़लत नहीं होता है ये समझ आने लगा था।
आदि अब बड़ा हो गया था ,पांच साल का हो गया था। स्कूल जाने लगा था।अब तो काव्या को आदि की बहुत चिंता रहती थी।आदि ने स्कूल में खाना खाया कि नहीं पानी पिया की नहीं।जरा सी देर हो जाती घर आने में आदि को तो स्कूल बस को चौराहे तक देखने चली जाती थी।रात दिन फिक्र
में मरी जाती थी। करूणा जी काव्या को देखकर खुश होती थीं कि मैं काव्या की चिंता करती थी तो मुझसे कितना नाराज होती थी। अब देखो कैसे आदि की फ़िक्र में पागल होती रहती है। करूणा जी कुछ कहती तो काव्या कहती अभी आदि छोटा है न मां। बच्चा मां के लिए हमेशा ही छोटा रहता है ।बच्चा बड़ा हो या छोटा मां को चिंता बच्चे की हर उम्र में होती है।
आज स्कूल में बच्चों का छोटा सा एक सालाना फंक्शन था। जिसमें आदि का भी एक छोटा सा प्ले था। काव्या और आदि के पापा वरूण दर्शक दीर्घा में बैठे प्रोगाम का आनन्द ले रहे थे।आदि का परफामेंस देखकर काव्या जोर जोर से ताली बजा रही थी।आदि ने अपनी प्रस्तुति दे दी और मम्मी
को देखने लगा और उसका ध्यान भटक गया। स्टेज से उतरते वक्त आदि फर्श पर बिछे कालीन से उलझकर गिर पड़ा और उसके माथे पर किसी कुर्सी का कोना से कट लग गया खून बहने लगा। दौड़कर काव्या ने उसे गोद में उठा लिया और रूमाल से उसका सिर दबा लिया। तुरंत काव्या और
वरूण उसको डाक्टर के पास ले गए।दो टांके लगे। काव्या का रो रोकर बुरा हाल था। वरूण उसको समझा रहा था शांत हो जाओ काव्या डाक्टर ने टांके लगा दिए हैं और दवा भी दे दी है ठीक है जाएगा दो तीन दिन में। नहीं वरूण मेरा छोटा सा आदि कैसे ये दर्द सहन करेगा। क्यों मैंने उसे प्रोगाम में
हिस्सा लेने दिया ।अरे बच्चे हैं गिरते पड़ते रहते हैं ऐसे ही तो मज़बूत बनते हैं बच्चे। इतनी सी बात पर परेशान न हो। समझा बुझाकर काव्या और आदि को लेकर वरूण घर आ गए।
आज फोन पर मां करूणा को काव्या रो रोकर बता रही थी देखो मां आदि को चोट लग गई। कैसे वो दर्द सहन कर रहा होगा। कुछ नहीं बेटा इतना परेशान न हों , ऐसे ही बचपन में तुम भी एक बार गिर गई थी पांच टांके लगे थे बच्चे तो ऐसे गिरते पड़ते ही बड़े होते हैं।ये सब तो एक नार्मल बात है हां ज्यादा चोट न लगे बस इस बात का ध्यान रखो। अच्छा मैं शाम को आदि से मिलने घर आऊंगी कहकर करूणा ने फोन रख दिया।
शाम को करूणा काव्या के घर गई तो काव्या को आदि के लिए इतना परेशान देखकर मुस्कुरा रही थी। मां मैं आदि को लेकर इतना परेशान हूं और आप मुस्कुरा रही है। नहीं मेरे मुस्कुराने का ये मतलब हरगिज नहीं है कि मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है आदि के चोट लगने से।मैं तो इस लिए
मुस्कुरा रही हूं कि बेटा यही है मां का प्यार, चिंता, अपनापन अब समझी तुम ।जब देर से घर लौटती थी , खाना नहीं खाया होता था, बीमार हो या और कोई बात है तो एक चिंता होती थी मां को इसी लिए मैं तुमको रोकतीं टोकती थी।और तू गुस्सा हो जाती थी। यही है मां का प्यार ।अब समझ में आया बेटा
क्या होता है मां का प्यार।पर , मां आदि अभी छोटा है ,छोटा है तो क्या हुआ बड़ा हो जाएगा तब भी तू ऐसे ही चिंता करेगी । बच्चे मां बाप के लिए कभी बड़े नहीं होते ।बस मां की एक बेटी को ये सब बातें तब समझ आती है जब वह खुद मां बनती है समझीं मेरी लाडो। हां मां तुम सही कह रही हो हम
तुम्हारी बात पर टोकने पर कितना गुस्सा होती थी। लेकिन अब समझ आ गया कि एक मां की तकलीफ़ और प्यार जब बेटी मां बन जाती है तभी समझ आती है और काव्या मां के गले से लग गई।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश