“मां जी आप इनके पीछे बच्चों जैसी पड़ी रहती हैं। हद्द हो जाती है कभी – कभी तो की बेटा ऑफिस से देर से आए तो गेट के पच्चीस चक्कर लगा डालती हैं। वैसे तो कहतीं हैं की आपके घुटने में दर्द है।जब तक ख़ाना नहीं खाते आप कुछ नहीं खातीं है। छोटे बच्चे हैं क्या और मैं हूं ना इनका ध्यान रखने के लिए। “सुनिता अपनी सास कुंती जी को सुनाए जा रही थी।अब तो ये रोज का सिलसिला था लेकिन कुंती जी को जैसे कुछ भी असर ही नहीं होता था।
कमलेश जी यानि कुंती जी के पति छोटी उम्र में छोड़ कर चले गए थे और उस समय ससुराल वालों ने कुंती जी को मायके भेज दिया था की कौन संभालेगा दो – दो लोगों की जिम्मेदारी।मायका भी कितने दिन काम आएगा।पति से ही मान सम्मान होता है और सहानुभूति भी ज्यादा दिनों तक नहीं चलती। धीरे धीरे कुंती जी अपने मायके में एक ऐसी महिला बन चुकी थी जिसका उपयोग हर कोई अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उठाया करता था।
राघव बड़ा हो रहा था और उसको जहां एक ओर अच्छी पढ़ाई लिखाई की जरूरत थी वहीं दूसरी ओर अच्छे माहौल की भी तो कुंती जी ने मायके से थोड़ी दूर पर एक घर किराए पर ले लिया । कमलेश जी की नौकरी मिल गई थी और कुछ सिलाई कढ़ाई करके वो अपनी गृहस्थी चलाने का फैसला ले ली थी।
बड़े ही नाजों से पाला था बेटे को और दोनों एक-दूसरे का सहारा भी थे।
राघव ऑफिस से जब भी घर आता तो मां को गेट पर ही पाता और रोज टोकता भी मां!” अब आप अपनी तकलीफ़ का ध्यान दिया करें। मेरा इंतजार करती रहती हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता है। मैं घर आते ही सबसे पहले आपके कमरे में आपसे मिलने आऊंगा फिर बाद में कुछ काम करूंगा।”
सुनिता को मौका मिल गया था बिना सोचे-समझे सुनाने लगी राघव को कि,” मैं तो कह – कह कर थक गई हूं लेकिन मां जी मेरी सुनती कहां है। ऐसा लगता है की ये आपका ख्याल नहीं रखेंगी तो आप का कोई काम ही नहीं होगा। अरे आप की बीवी आ गई है,अब तो उसे करने दें ये सब। कुछ ज्यादा ही करतीं हैं मां तो।”
“जब तुम मां बनोगी तब पता चलेगा तुम्हें की एक मां की ममता और फ़िक्र क्या होती है और हम दोनों ने बहुत ही तकलीफ़ से जिंदगी गुजारी है। मां ने कितना संघर्ष करके आज मुझे इस काबिल बनाया है। तुमने तो एक बड़े ऑफिसर को देखा है लेकिन उसके पीछे कितना त्याग किया था मां ने वो तुम नहीं जानती हो। कितनी रात हमें भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता था।उस मां के बारे में आज तो तुमने कह दिया, दोबारा कभी सवाल नहीं उठाना।उनको जो अच्छा लगता है करने दो तुम सुनिता” राघव ने कहा।
सुनिता की आंखें छलक गई मुझे नहीं पता था राघव और “सही कहा मां को अपने बच्चों की फ़िक्र होती ही है। मैं अपनी मम्मी को इसी बात के लिए हमेशा गुस्सा करती थी कि आप नाहक ही हमारी फ़िक्र करती हैं हम बच्चे थोड़े ही है। पता है आज ये बात समझ में आती है की मां कभी भी बिना खाए सोने नहीं देती थी।जरा सा बीमार पड़ गई तो रात भर सिराहने बैठी ही रहतीं थीं। ये सच है की हमें उनकी ममता का एहसास बाद में होता है।”
“आज से मैं मां को किसी बात के लिए नहीं कहूंगी क्यों कि पत्नी बाद में आती है मां तो पहले है ना ” । “अरे मेरी समझदार बीवी चलो कुछ चाय नाश्ता दोगी या बातें ही करती रहोगी” राघव ने प्यार जताते हुए कहा।
सचमुच ममता का कोई मोल नहीं है और जब सुनिता मां बनी तो वो पूरी तरह से समझ चुकी थी कि एक मां की तड़प अपनी औलाद के लिए कैसी होती है।
सभी हंसी खुशी से प्यार से एक घर में रह रहे थे और अब राघव का प्यार उसके बेटे कुश में बटने लगा था। दादी की जानअब पोते में ज्यादा अटकी रहती थी और सुनिता भी निश्चिंत थी की मां जी ने कितने अच्छे संस्कार राघव को दिए हैं अब मेरे बेटे को भी ऐसा ही मिलना चाहिए।
जिस घर में एक दूसरे की भावनाओं की कीमत होती है वहां देवी-देवता का निवास होता है।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी