जब तुम माँ बनोगी – डॉ० मनीषा भारद्वाज :

 Moral Stories in Hindi

“नहीं! बिलकुल नहीं! ये  नीला वाला ड्रेस नहीं पहनूंगी! ये हरा मेरा फेवरेट ड्रेस है!” पांच साल की आद्या ने ज़मीन पर लोट लगा दी, उसकी आँखों से आंसुओं की नदियाँ बह रही थीं।

उसकी माँ, आर्या, एक पल को जमी हुई मूर्ति की तरह खड़ी रह गई। उसके हाथ में वह नीली ड्रेस थी जिसे पहनने के लिए वह आद्या को मनाने की कोशिश कर रही थी। उसके माथे पर बल पड़ गए। आज ऑफिस में एक महत्वपूर्ण प्रेजेंटेशन था और समय बर्बाद हो रहा था।

“पर बेटा, ये ड्रेस तो तुम्हारी फेवरेट है ना? फिर…” “नहीं!ये नहीं, वाला वाला! वाला फेवरेट!” आद्या का रोना और तेज़ हो गया।

आर्या ने आकाश की ओर देखा। उसे याद आया, बस दस साल पहले की बात… वह खुद अपनी माँ से ठीक यही कह रही थी, “माँ, ये सारे फालतू के नियम… जब मैं माँ बनूंगी, तो अपने बच्चे को पूरी आज़ादी दूंगी। उसे जो मन करेगा, पहनने दूंगी, जो मन करेगा, खाने दूंगी।”

और फिर उसकी माँ का वह अमर वाक्य, जो शायद हर बेटी की सुनने की नियति है, “चलो, अभी तुम समझोगी नहीं। जब तुम माँ बनोगी, तब पता चलेगा।”

उस वक्त आर्या ने मन ही मन में कहा था, ‘क्या पुराने ज़माने के cliché हैं। अब ज़माना बदल गया है।’

और आज… आज वही आर्या, जो अपने बच्चे को ‘पूरी आज़ादी’ देने की कसमें खाया करती थी, वह अपनी बेटी से कह रही थी, ” आद्या, बस करो! अभी नहीं पहनोगी तो नहीं पहनोगी। नंगू पंगू ऑफिस चलोगी क्या?”

यह सुनते ही आद्या का रोना एकाएक बंद हुआ। उसने हैरानी से अपनी माँ की ओर देखा, जैसे कोई नया आइडिया मिल गया हो, “चलेंगे!”

आर्या ने अपना सिर पकड़ लिया। उसकी हार्टबीट बढ़ गई। उसे लगा जैसे उसका दिमाग फटने वाला है। उसने गहरी सांस ली और diplomacy का रास्ता अपनाया।

“देखो बेटा,” वह मीठे स्वर में बोली, “अगर तुम ये नीली वाली ड्रेस पहनोगी, तो तुम्हें स्कूल से लौटते वक्त चॉकलेट आइसक्रीम मिलेगी।”

आद्या की आँखों में एक सेकंड के लिए चमक आई, लेकिन फिर वह जिद पर अड़ गई, “नहीं! हरे वाली ड्रेस और स्ट्रॉबेरी आइसक्रीम।”

आर्या ने अपनी घड़ी देखी। वह लेट हो रही थी। उसके पास अब कोई चारा नहीं था। उसे अपनी माँ की वह बात याद आई, “बच्चे को मनाना हो तो negotiate करो, demand नहीं।”

“ठीक है,” आर्या ने हार मान ली, “डील। हरे वाली ड्रेस और स्ट्रॉबेरी आइसक्रीम। लेकिन अभी तुरंत तैयार हो जाओ।”

आद्या के चेहरे पर विजय की मुस्कान खिल गई। वह तुरंत उठी और ड्रेस पहनने लगी।

ऑफिस से लौटते वक्त आर्या आइसक्रीम लेने रुकी। जब वह आइसक्रीम का cup आद्या को दे रही थी, तभी उसकी नजर अपनी कार के शीशे पर पड़ी। उसमें उसे अपना प्रतिबिंब दिखाई दिया – थकी हुई आँखें, बिखरे बाल… और एक हाथ में आइसक्रीम का cup और दूसरे हाथ में लैपटॉप बैग।

तभी उसका फोन बजा। उसकी सहेली नेहा थी, जो अभी तक शादीशुदा नहीं थी। “सुनो आर्या, कल हम लोगों ने प्लान किया है मूवी का, तुम भी चलोगी ना? शाम सात बजे।”

आर्या ने आद्या की ओर देखा, जो आइसक्रीम लपेटते हुए अपनी नई ड्रेस पर गिरा रही थी। उसे अपनी माँ की एक और बात याद आ गई, “शादी के बाद दोस्त कम हो जाते हैं, और बच्चे के बाद तो… भूल ही जाओ।”

उसने नेहा से कहा, “यार, मैं confirm नहीं कर सकती। देखती हूँ। आद्या का… “अच्छा,वही पुराना राग,” नेहा ने कहा, “तू तो बन गई है perfect mommy। हमें तो अभी वो ‘जब माँ बनोगी तब पता चलेगा’ वाला state achieve करना बाकी है।”

आर्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, सचमुच। जब तू माँ बनेगी, तब पता चलेगा कि मूवी से ज्यादा exciting क्या होता है – बच्चे का पहला कदम, उसका पहला ‘मम्मा’… और ये भी पता चलेगा कि तू आइसक्रीम खिलाने के लिए अपनी पसंदीदा साड़ी भी खराब कर सकती है।”

फोन पर एक पल की चुप्पी के बाद नेहा हँसी, “अच्छा, ठीक है। तू तो बहुत philosophical हो गई है। खैर, कोशिश करना आने की।”

फोन रखते ही आद्या ने पूछा, “मम्मा, philosophical क्या होता है?”आर्या ने उसे गोद में उठा लिया, “ये वो होता है जब तुम समझ जाओ कि तुम्हारी माँ हमेशा सही क्यों होती है।”

उस रात, आद्या  को सुलाकर, आर्या ने अपनी माँ को फोन लगाया। ” हैलो बेटा, सब ठीक है?” माँ की आवाज़ में हमेशा की तरह चिंता थी। ” जी माँ, सब ठीक है। बस… तुम्हें याद कर रही थी।” “क्यों? आद्या ने कोई शैतानी की है?” माँ तुरंत alert हो गई। “नहीं माँ, उसने तो बस मुझे याद दिला दिया कि आप कितनी सही थीं। आपका कहना था ना, जब मैं माँ बनूंगी तब पता चलेगा… सचमुच पता चला आज।”

फोन के दूसरे छोर से माँ की मखमली हँसी सुनाई दी, “अरे, ये तो बस शुरुआत है बेटा। अभी तो तुम nursery में हो। जब यह teenager बनेगी, तब तो तुम्हें real exam देना पड़ेगा। तब जाकर असली मतलब पता चलेगा मेरे उस वाक्य का।”

आर्या ने देखा कि आद्या ने सोते हुए करवट बदली । उसके चेहरे पर एक शांत, निश्चिंत मुस्कान थी।

उसे एहसास हुआ, ‘जब तुम माँ बनोगी’… यह कोई धमकी नहीं, कोई उपदेश नहीं, बल्कि एक रहस्यमय मंत्र है जो एक औरत के भीतर छिपे धैर्य, त्याग, और अनंत प्रेम के भंडार को खोल देता है। यह वह कुंजी है जो जीवन के उस गहनतम उद्देश्य से अवगत कराती है, जहाँ ‘मैं’ नहीं, बल्कि ‘वो’ सर्वोपरि हो जाता है। और यह सच्चाई… यह सच्चाई बिना अनुभव किए समझ में नहीं आती। शायद इसलिए प्रकृति ने इसे ‘माँ बनने’ की शर्त से जोड़ दिया है।

डॉ० मनीषा भारद्वाज

ब्याड़ा (पंचरुखी) पालमपुर

हिमाचल प्रदेश

Dr Manisha Bhardwaj 

#जब माँ बनोगी तब पता चलेगा (वाक्य प्रतियोगिता )

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