शालिनी की शादी एक प्रतिष्ठित परिवार में हुई थी। पढ़ी-लिखी, आत्मसम्मानी और अपने विचारों पर अडिग रहने वाली लड़की ने जब ससुराल में कदम रखा, तो सबने कहा, “बहू तो बहुत तेज़ है, जुबान से अंगारे उगलती है।”
असल में, शालिनी कभी गलत के सामने चुप नहीं रहती थी। जब पहली बार सास ने कहा, “औरत को सिर झुकाकर रहना चाहिए,” तो शालिनी ने मुस्कराकर कहा, “इंसानियत सिर ऊँचा करके जीने में है, माँजी।”
धीरे-धीरे घरवालों को उसकी साफ़गोई चुभने लगी। एक दिन देवर के शादी की बात चली। ससुर जी बोले, “लड़की वालों से एक फ्रिज और नगद मांग लेना।”
शालिनी चौंकी और बोली—“अगर आप बेटे के लिए दहेज माँगेंगे, तो क्या हमारी बेटी के साथ ऐसा सहन होगा?”
पूरा घर सन्न! सबने ताना मारा—“ये बहू तो ज़हर उगलती है… हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिला देगी।”
पर शालिनी ने दृढ़ता से कहा—“अगर सच्चाई बोलना अंगारे उगलना है, तो मैं उगलूँगी!”
समय बीता। वही बात जो चुभती थी, धीरे-धीरे समझ में आने लगी। आज सास अपनी सहेलियों से कहती है, “शालिनी जैसी बहू घर को रोशनी देती है।”
शालिनी की आग अब घर का दीपक बन चुकी थी।
Rekha saxena
#मुहावरे प्रतियोगिता #अंगारे उगलना”