जब बच्चो को अकेले रहने की आदत हो जाती है तो बड़े बुजुर्गों से उन्हें बंधन दिखाई देने लगता है। – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

मम्मी जी बुरा मत मानिएगा छवि हमेशा अकेली रही हुई है ना? हो सकता है उसकी कोई आदत से आपको ठेस पहुंचे वैसे तो मैने समझा दिया है। I पर फिर भी…..? रितु ने अपनी सासु मां को बताया। बंगलौर में छवि हमेशा अपने मम्मी ,पापा के पास ही रही ओर वे दोनों इंटरनेशनल कंपनी में काम करते थे।

राम बाबू और स्नेहा जी अपने पुश्तैनी मकान में राजस्थान के एक गांव में रहते थे। पर कुछ दिनों से रितु और आरव को ऑफिस में लंबा समय देना पड़ा और लता ( मेड) भी छुट्टी पर चली गई और छवि के स्कूल में छुट्टियां पड़ गई इसीलिए आरव के कहने पर बैंगलोर आ गए। स्नेहा जी ;” हा,मुझे पता है वो आजकल की स्मार्ट बच्ची है।

पर तुम चिंता मत करो मैं भी पुराने समय वाली दादी नहीं हु हा इंग्लिश विंग्लिश नहीं आती पर थोड़ा बदलाव तो कर ही लिया है। फिर दोनों हस पड़ी। है कहा वो मेरी नटखट लाडली । रितु ;” अभी सो रही है उठते ही तो हंगामा मचा कर रखेंगी। दादा ,दादी बेसब्र हुए जा रहे थे अपनी लाडली पोती से मिलने के लिए।

करीब 1 घंटे बाद जब चाय नाश्ता हो गया छवि उठ गई। दोनो आंखे मसलती हुई मम्मी की गोद में जा बैठी। रितु ;” छवि ये तुम्हारी दादी साहब ओर वो दादा साहब चलो इन्हें प्रणाम करो।” छवि के मस्तक पर अनगिनत लकीरों ने अपना घेराव डाल लिया था। रितु ;” अब आपको इनके पास ही रहना है फिर आप बड़े हो गए हो

तो दादा साहब ,दादी साहब का ख्याल भी आपको रखना है।” छवि ने अपने नन्हे हाथों को जोड़ प्रणाम तो कर दिया पर अगले ही पल मम्मी की गोद से उठ रूम में  चली गई । जैसे दादा साहब ,दादी साहब से उसे कोई सरोकार ही नहीं हो? स्नेहा जी बोली;”  रितु बेटा फिक्र ना करो  मैं सब संभाल लूंगी।

दूसरे दिन जैसे ही रितु और आरव ड्यूटी पर गए स्नेहा जी छवि के पास जाकर बैठ गई वो कार्टून चैनल देख रही थी। शिन चेन ” स्नेहा ;” अरे तुमको शिन चैन पसंद है मुझे भी बहुत पसंद है और तुम्हारे दादा जी को भी बुला लू उन्हें भी यहां। छवि ;” पापा तो सिर्फ न्यूज देखते है? आप लोग इतने बड़े होकर कार्टून चैनल देखते हो? हा………..।

एक लंबे सूर में स्नेहा जी ने कहा। छवि के चेहरे पर मुस्कान आ गई। स्नेहा जी ;” डोरेमोन, निजा हितेरी, पॉकेमोन….. ये तो हमें बहुत पसंद है। छवि ;” अरे वाह जब तो मजा आयेगा मुझे भी ये सब पसंद है तो आप मेरी फ्रेंड हो ठीक है ? दादा साहब ;” अच्छा केवल दादी साहब को ही फ्रेंड बनाओगी? हा,

आप तो दादा साहब हो ना? आप मेरे फ्रेंड नहीं बन सकते । है ना? दादी साहब। स्नेहा जी को लगा जैसे कोई मुश्किल बाजी जीत गई हो । तभी खाना बनाने वाली मेड काजल आ गई ;” तो खाने में क्या बनाऊं? स्नेहा जी ;” आज आप जाओ आज छवि की ये फ्रेंड खाना बनाएगी मस्त मस्त जीभ से चटकारा लेकर छवि की ओर देखा।

छवि ;” हा,हा, आंटी आप जाइए आज मेरी दादी साहब खाना बनाएगी फिर हम गुड़िया गुड़िया खेलेंगे।? क्यों ? खेलेंगे ना?. बिल्कुल खेलेंगे? मम्मी की चुन्नी कंधे पर टाक छवि गुड़िया की मम्मी बन गई और दादी साहब को बना दिया मेड। छवि ;” देखो मैं ऑफिस जा रही हु तुम इसे अच्छे से नहला धुला कर खाना खिला कर सुला देना और हा ,

मोबाइल पर रील दिखा दिखा कर इसकी आदत मत बिगाड़ देना थोड़ी देर खेल लेना।। खाना तुम भी अच्छी तरह खा लिया करो समझी ? स्नेहा जी अपनी लाडली पोती की एक्टिंग देख मुस्कुरा उठी। तभी छवि कान में आकर फुसफुसाई ;” मुस्कुराना नहीं है धीरे  से बोलिए “जी मेम साहब” दादा साहब ;”

ओह सॉरी जी मेम साहब ” छवि अपने नहीं हथेलियों को जोर से अपने माथे पर लगाती है और कहती है ;” ऑफ हो ये ओह सॉरी नहीं बोलना है सिर्फ आंखे नीचे करिए और बोलिए ” जी मेम साहब ” स्नेहा जी को लगा जोर से हंसे पर छवि नाराज़ हो जाएंगी और जीती बाजी हारना नहीं चाहती थी इसीलिए बोली;” जी मेम साहब ” थोड़ी देर बाद दादी ;” छवि बेटा खाना खिला दु ” मैं तो रितु हु

इसको खिला दो ओर गुड़िया दादी के हाथ में दे दी। स्नेहा जी ने गुड़िया हाथ में ली और रोटी का ग्रास लेकर उसमें सब्जी लगाई ओर गुड़िया की मुंह की तरफ ले जाकर कहा ;” ये लो खाना खाओ ” फिर छवि की तरफ मुंह कर के बोली ;” ये कह रही है पहले मेरी मम्मी को खिलाओ फिर मैं खाऊंगी।” छवि ;”हां ले पहले मैने खाया मुंह खोला तो रोटी का ग्रास सीधा छवि के मुंह में गया ।

ऐसे ही पूरी रोटी फिनिश हो गई। अब ये रोज का रूटीन बन गया था। शाम होते ही दादा साहब कहते ;” सुनो जी चाय बना दो फिर मैं ओर छवि गार्डन जाएंगे।” उसके बाद मम्मी ,पापा को छवि दिनभर की बात क्रमबद्ध बताती। आज हमने गुड़िया गुड़िया खेला। आज मैं हनुमान बनी ओर दादी सीता माता बनी।

आज में कृष्ण बनी ओर माखन चुरा कर खाया दादी साहब यशोदा मैया।। आज दादी साहब ने मुझे रानी लक्ष्मी बाई की कहानी सुनाई। अब तो रात होते ही छवि दादी साहब के पास आ जाती ओर कहती ;” मै तो अब मेरी बेस्ट फ्रेंड के पास सोऊंगी ओर कहानियां भी सुनूंगी। दादी साहब भी तो अपडेट रहने लगी थी

कभी रैबिट ओर टॉर्टॉइज की कहानी सुनाती तो कभी छोटे छोटे खिलौनों के माध्यम से लायन & माउस की कहानी सुनाती। रामायण के हनुमान जी तो कभी लव कुश। छवि को मजा आने लगा था अब तो छवि मोबाइल में रील भी देखती तो दादी साहब को साथ रखती देखो दादी साहब ये फिर पूछती ;” अच्छा है ना”

इससे दादी साहब को भी पता रहता कि छवि क्या देख रही है। थकने के बावजूद दादी साहब को अच्छा लगने लगा था। एक दिन लता छुट्टी से आ गई। जैसे ही छवि ने देखा ओर दादी साहब से चिपक गई ;” अब आंटी आप चली जाओ मैं तो मेरी दादी साहब ओर दादा साहब के पास ही रहूंगी। आरव ;” सच मम्मी आपने तो कमाल कर दिया

यें तो बिल्कुल ही बदल गई। स्नेहा जी ;” अरे बेटा अब दादा साहब ,दादी साहब को भी जमाने के साथ अपडेट होना पड़ेगा तभी ये बच्चे हमें स्वीकार करेंगे। इनके साथ कार्टून चैनल भी देखो और रील भी ओर इनके मन मुताबिक खेलो तो ये भी थोड़ा ढल जाएंगे। सुन अपनी बेटी से दादी को सुन सुन कर कितने तो मंत्र कितने ही भजन गा लेती है। छवि इतरा कर गाने लगी ;” श्री राम चंद्र कृपाल भजमन … नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुनम।

सब मंत्र मुग्ध इस बदलाव को देख रहे थे। रितु ;” मम्मी जी ,पापा जी हम लोग यूंही परेशान होते है  सच आप जैसे संस्कार कोई ओर नहीं दे सकता। दादा साहब ;” बात तो आपकी भी सही है पर दादा ,दादी पर विश्वास हो तो सभी के बच्चे संस्कारो से लिप्त हो पढ़ भी ले ओर आगे भी बढ़े।। सब हंसने लगते है और छवि दादी के पीठ पीछे लूम गुनगुना रही होती है

” ऊं त्र्यंबकं यज़ा महे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान मृत्यमुक्षीय मार्मतात …….। स्नेहा जी ने अपनी चतुराई से अपने आप को छवि की रुचि में ढाल लिया ओर अब वो उन्हें अपने सामान ही समझने लगी फिर धीरे धीरे अपनी संस्कृति से पहचान करवाई तो छवि सब कुछ बड़ी आसानी से सीख गई वो प्यार बन गया बंधन रहित प्यार।

दीपा माथुर

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