Moral Stories in Hindi
“…सुमन वह मैं बताना भूल गया.… कल मां का फोन आया था… आज शाम को मां पापा आने वाले हैं.…!” सुमन ने माथा पकड़ लिया…
” इतनी जरूरी बात तुम कैसे भूल सकते हो राजीव…!”
” क्या करूं… ध्यान ही नहीं रहा…!”
सुमन ने जल्दी-जल्दी कमरे का लुक बदलना शुरू किया… सोफे का कवर, डोर मैट, चादर, यहां तक की जमीन पर पड़े कालीन तक को खींचकर, फोल्ड करके, दूसरा डालने लगी…
राजीव चुपचाप लाॅन में जाकर बैठ गया था.… पांच साल का सोहन मां के आसपास मंडरा रहा था…
“मां यह गंदा वाला मैट क्यों डाल रही हो… मम्मी छी यह कालीन भी गंदी है…!”
” चुप करो सोहम… तुम अपना काम करो…!”
” लेकिन मम्मी… तुमने आज ही तो नया डाला था… तब फिर क्यों हटा रही हो…!”
” इसलिए तो हटा रही हूं… क्योंकि नया डाला था… तुम्हारे दादा दादी आने वाले हैं ना… पहले पता होता तो, सुबह इतनी मेहनत करके नया डालने की क्या जरूरत थी…!”
सुमन ने चीखते हुए आवाज लगाई… “राजीव थोड़ी मदद तो करो… एक तो इतनी देर से बताया है, और अब शांति से बैठ गए हो…!”
राजीव पूरा समय लेकर आराम से कमरे तक पहुंचते हुए बोला…” किसी के आने पर लोग कमरा साफ करते हैं, और तुम्हारी मां कमरा गंदा कर रही है…!”
” किसी दूसरे के आने पर मैं भी साफ ही करती… लेकिन तुम्हारे मां पापा तो जाहिल हैं… उनके लिए कैसी साफ सफाई… ना उन्हें अपने चप्पल जूते का होश रहता है, और ना ही खाने पीने का… यहां वहां गंदगी फैलाते चलते हैं… और कुछ बोल दूं तो मुंह बन जाएगा अलग से… सब तुम्हारी गलती है… अगर मुझे पहले बता दिया होता तो मैं आज इतनी साफ सफाई करती ही नहीं…
वह तो अच्छा था कि पुराने कपड़े मैंने धुलने को नहीं डाले थे… चलो अब मेरी मदद करो…!”
राजीव थोड़े गुस्से में ऐंठ कर बोला…” ऐसे फालतू कामों के लिए मेरे पास वक्त नहीं… मैं बाजार जा रहा हूं… मां पापा की पसंद की चीजें लाने… चलो सोहम…!”
थोड़ी ही देर में नीता जी और सुजान जी अपने बेटे के घर में थे…
सुमन जल्दी-जल्दी में उनके बिस्तर पर चादर डालना ही भूल गई थी… पहले जो साफ नई चादर डाली हुई थी… उसे तो उसने उतार दिया था… पुरानी चादर ढूंढने में समय लगता… तब तक वे लोग आ गए…
” सुमन… जरा एक चादर तो देना… मैं खुद डाल दूं…!” नीता जी ने बहु को आवाज देते हुए कहा… सुमन भीतर से पुरानी गाढे रंग की चादर ले आई…”बेटा… पिछले बार भी तो यही चादर थी… कोई दूसरी नहीं है…!”
” नहीं मां यही डाल दीजिए… आप लोग तेल वेल क्या-क्या दवाइयां लगाते हैं… फिर चादर में कोई दाग वाग लग जाएगा… यही ठीक है…!”
नीता चुप हो गई… वह अपनी बहू का व्यवहार जानती थी… इसलिए तो कभी भी चार-पांच दिनों से ज्यादा वे यहां उसके पास रुकना भी नहीं चाहते थे… इस बार भी बस दवाइयां और जरूरी सामान राजीव इकट्ठे करके… वापस पहुंचा ही आएगा…
राजीव इतनी सारी मां पापा के पसंद की मिठाइयां, नमकीन, सब कुछ बाजार से लेकर आ गया था… सब खोल खोल कर उन्हें जबरदस्ती देता जा रहा था…
सोहम भी दिल खोलकर दादा-दादी के साथ मस्ती कर रहा था… इधर-उधर भाग कर चीजें बिगाड़ रहा था… खाने पीने की चीजें नीचे फर्श पर, सोफे पर, हर जगह फैल रही थी…
दादी ने सोहम को डांटते हुए कहा… “सोहम बेटा… ऐसा नहीं करते… खाने की चीजों का अपमान होता है… ऐसे मत गिराओ…!”
सोहम मुंह बनाकर बोला… ” दादी आप आए हैं तो मैं मस्ती कर रहा हूं थोड़ी… मम्मी तो कुछ बदमाशी करने ही नहीं देती…!” दादी चुप हो गई…
सोहम के दादाजी गीली चप्पल लेकर अक्सर लाॅन से अंदर बिस्तर तक आ जाते थे… गांव की आदत थी… या कभी-कभी तो खाली पैरों से ही भीतर से बाहर तक का रास्ता नाप लेते थे…
सुमन चुपचाप उन्हें बर्दाश्त कर रही थी…एक दिन,दो दिन, तीन दिन की गिनती करते हुए…
आखिर चौथे दिन शाम को दोनों जाने ही वाले थे, कि अचानक सुमन की तबीयत खराब हो गई…
इतनी ज्यादा उल्टियां आनी शुरू हो गई… नीता जी ने उस रात वहीं रुकने का फैसला किया…
वे रात भर बहू की निगरानी में लगी रहीं… सुमन की हालत तो इतनी खराब हो गई थी, कि वह उठकर बेसिन तक जाते-जाते दो बार जमीन पर भी उल्टी करती गई…
नीता जी ने सब साफ करवाया… बहू को साफ कपड़े बदलवाए… सुमन को अब अपने किए का थोड़ा पछतावा भी हो रहा था…
दूसरे दिन नीता जी चलने को हुईं तो सुमन ने पहली बार उन्हें रुकने को कहा…” मां कुछ दिन और रुक जाइए… गैरों की तरह मुझे बीमार छोड़कर जा रही हैं…!”
” नहीं बेटा… अब तो तुम ठीक हो… जब तक तुम हमें अपना नहीं समझती हो… हम तो गैर ही बने रहेंगे… अब हम चलते हैं…!” दोनों चले गए…
इस बार सुमन ने साफ सफाई में ज्यादा हड़बड़ी नहीं दिखाई… एक तो वह खुद बीमार हो गई थी, और दूसरा वह अपने बर्ताव के लिए थोड़ी शर्मिंदा भी थी…
शाम को सोहम दादी के कमरे की चादर खींच कर मां के पास दौड़ा चला आया…” मम्मा इसे रख दो…!”
” क्यों… तुझे क्या हुआ…!”
” रख दो ना मां… दादा दादी फिर आएंगे तो काम होगा ना… और जब तुम जाहिल हो जाओगी… तब भी तो यही चादर डालनी है…!”
सुमन सोहम को देखती रह गई…उससे कुछ भी बोलते नहीं बना… यह भी नहीं की दादा-दादी बूढ़े हैं जाहिल नहीं…
रश्मि झा मिश्रा