आज रोहित मिश्र जी परेशान थे कारण अपने दोनों बेटों को खूब पढ़ाया ,लिखाया और विदेश भेजा।दूसरी ओर इसको–राम नरेश मिश्र को कम पढ़ाया,घर के काम में लगायें रखा,वे उसे जाहिल कहते थे। मगर वहीं जाहिल –।
आज इनकी बायपास सर्जरी हुई तो वहीं रामू उर्फ जाहिल ने जान बचाई और बायपास का पूरा खर्च उठाया।
आज दस दिन से अस्पताल में हैं मगर पढ़ें लिखे सपूत बंगलौर में रहते हुए भी न देखने आये।
पापा समय नहीं है।आप समझते नहीं,एम सी ए कंपनी में काम कितना होता है।सो नहीं आये-कभी साथ ले भी नहीं गये,पूछा तक नहीं।
दूसरी ओर बी ए पास यह जाहिल आराम से काम करता है।खेती बाड़ी और दूध का कारोबार। इन्होने सारा खेत और गांव का घर इसी के हाथ बेचा है।
शहर का मकान और इनके पी एफ का पैसा लेकर आधे आधे बांटकर दोनों ने इन्हें वृद्धाश्रम छोड आये थे।उस घटना को दस साल हो गये ,कभी पलटकर नहीं देखा।इनकी पत्नी दोनों बेटों का ब्याह कराकर गुजरी थी।उसके बाद ये सेवामुक्त हुए।
नहीं बाबा,इस बूढ़े की सेवा मुझसे नहीं होगी-बडी बहू अपने पति पर चिल्लाते हुए बोली थी ताकि ये सुन लें।
दूसरी ने छूटते ही कहा -मेरी शादी तुमसे हुई है तेरै बाप से नहीं । उन्हें रखकर मुझे आजादी नहीं खोनी।-बस सुनकर वे जडवत हो गये।जिस औलाद को आधा पेट खाकर पढ़ाया वहीं आज ऐसी बात करता है।
सो क्या करें,जिनपर भरोसा किया वहीं अपना नहीं तो दूसरे पर क्या भरोसा?–
एक दिन आश्रम से भी बाहर कर दिया गया,कहा गया कि आपका खर्च हम सब वहन नहीं कर सकते–।
सो ये बाहर आ गये थे और स्टेशन के पास रो रहे थे।क्या करें, कहां जायें -बाकी का जीवन कैसे कटेगा,इन सब बातों को लेकर रो रहे थे कि वही भतीजा दिख गया जिसे सब जाहिल कहते थे।सब क्या ये जाहिल कहते थे। अल्पायु में इनके भाई गुजर गये थे। फिर सहयोग के बजाय घर बांटा था।खेत बांटे थे,उस विधवा को भरपूर तंग किया था।आज वही जाहिल राम इनके साथ था, इन्हें रखें था।ये भरपूर आशीष दे रहे थे।
उस दिन भी जब वे स्टेशन के पास रो रहे थे और दोनों बेटों को फोन किया तो दोनों ने पल्ला झाड़ा।दोनों बोले -सभी अपने बच्चों को पढ़ाते हैं,आपने कौन सा एहसान किया है।आज हम सब बाहर हैं, हमारे बीबी बच्चे आपके साथ रहना नहीं चाहते,सो वहीं व्यवस्था देख लो।
तब वही भतीजा आया-वह दूध बेचकर गांव जा रहा था।
चाचाजी आप यहां -वह पांव छूकर बोला।
ये बोलते क्या,सो रोने लगे।आज वही बेटा बनकर ले गया।सात साल से रखे हुए है।अभी बाइपास सर्जरी करवाई जिसमें लगभग दस लाख का खर्च आया।ये रोने लगे थे-बडे पापा या बाबूजी कहता था।सो आज दुखी होकर लेटे थै।जिसके पीछे ज़िन्दगी बर्बाद की वह पलटकर नहीं देखा और यह जाहिल अपनाये है, मान सहित रखें है।
सो रहा न गया तो रोते हुए बोले-बेटा मैने तुम्हे सताया, बेइज्जती और बेइमानी करी ,फिर भी तुम –+।
बाबूजी आप बड़े हैं,भाई नहीं हैं तो क्या हुआ,हम सब हैं न।
बिल्कुल भी रोष या दुख नहीं है।सरल भाव से बाबूजी कहता है और मान देता है।आज आपरेशन भी कराया।बेकार में #जाहिल कहा। वास्तव में जाहिल ये और इनके बेटे हैं। दूसरी बात जैसी हरकतें दी उसी का प्रतिफल मिला।
सच में जाहिल वह नहीं है, जाहिल ये हैं -जितना सोच रहे थे उतना ही रोते जा रहे थे।पछतावे की दशा में दिल का दुःख आंसू के रास्ते बह रहा था।
उधर बारह साल का पोता आंसू पोंछते हुए कह रहा था -बाबा दर्द हो रहा है।
ये उसके सिर पर हाथ फेरने लगे।आज जाहिल का मतलब अच्छे से समझ आ गया था।
#बेटियां डांट इन साप्ताहिक विषय
#देय विषय-जाहिल
#दिनांक-5-8-2025
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।
शब्द संख्या -700कम से कम।
रचना मौलिक और अप्रकाशित